आत्मकथा : मेरे घर आना ज़िन्दगी (27)
जब राजस्थानी सेवा संघ की स्वर्ण जयंती भाईदास हॉल में मनाई जा रही थी तब माया गोविंद और गोविंद जी से चाय के दौरान पता चला कि वे माया गोविंद पर एक किताब तैयार कर रहे हैं ।”सृजन के अनछुए प्रसंग” जिसमें माया जी से जुड़े साहित्यकारों, पत्रकारों और फिल्मी दुनिया के लोग संस्मरण लिख रहे हैं।
“आप भी लिखिए न”
“हाँ मैं जरूर लिखूंगी गोविंद जी। आखिर मैं माया जी की बिटिया हूँ।
(वे मुझे बिटिया कहकर संबोधित करती थीं ) मैं उनके व्यक्तित्व कृतित्व पर लिखूंगी।” इस पुस्तक के संपादक डॉ करुणाशंकर उपाध्याय हैं।माया गोविंद दी पर जितना लिखो कम है। एक महान हस्ती हैं वे।जिनकी जिंदगी की किताब सबके सामने खुली है। यह कि उन्होंने तीन शादियाँ की, गोविंद जी उनके तीसरे पति हैं। यह कि वे अब तक 350 फिल्में, टीवी सीरियल प्राइवेट एल्बम के लिए 800 गीत लिख चुकी हैं और गीतों से उन्हें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई।
इस किताब का खूब धूमधाम से लोकार्पण हुआ। इस वर्ष उन्होंने अपना जन्मदिन भी खूब धूमधाम से मनाया ।हरे-भरे रिसॉर्ट में फिल्मी हस्तियों के बीच सागर त्रिपाठी के संचालन में गीत ग़ज़ल का कार्यक्रम रात 1:00 बजे तक चला। 2:30 बजे माया दी ने बोधिसत्व से कहा कि वे मुझे घर तक पहुंचा दें । वे मेरे घर से 5 मिनट की दूरी पर रहते थे।
बोधिसत्त्व को जाने क्या हुआ ।पहला हेमंत स्मृति कविता सम्मान उन्हें ही दिया गया था। तब उन्होंने पुरस्कार राशि संस्था को मंच पर ही डिक्लेअर करते हुए डोनेट कर दी थी। अब कहते फिर रहे हैं कि संस्था के दबाव में आकर डोनेट की। जहर उगल रहे हैं मेरे और प्रमिला के प्रति कि ये दोनों बहनें याचना की पात्र हैं ।
धन्य हैं बोधिसत्व जी , दोगलापन तो कोई आपसे सीखे ।आप हेमंत फाउंडेशन से पुरस्कृत कवियों में एक धब्बा हैं ।
ताशकंद में आयोजित 5 वें अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य सम्मेलन में मुझे सृजनगाथा पत्रकार सम्मान के लिए प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान छत्तीसगढ़ ने आमंत्रित किया। 4 जून 2012 को लगभग 70 भारतीय लेखकों के साथ मैं दिल्ली से ताशकंद रवाना हुई। कार्यक्रम बहुत ही सफलतम कहा जाएगा ।मुझे बुद्धिनाथ मिश्र के हाथों पुरस्कार प्रदान किया गया। यह मुझे मिले पुरस्कारों में तीसरा अंतर्राष्ट्रीय सम्मान था। ताशकंद भ्रमण के दौरान शास्त्री जी से जुड़ी यादों ने भाव विभोर कर दिया। इसलिए नहीं कि वह मेरे मामा ससुर थे बल्कि इसलिए कि उनका यहाँ आश्चर्यजनक परिस्थितियों में देहावसान हुआ था और हमने अपना बेहद प्यारा नेता खो दिया था। समरकंद यात्रा के दौरान बुलेट ट्रेन की बोगी में बुद्धिनाथ मिश्र, देवमणि पांडे, जयप्रकाश मानस आदि की कविताएं सुनते हुए समय का पता ही नहीं चला था। सम्मेलन के दौरान मुझे महाराष्ट्र का अध्यक्ष घोषित किया गया ।अगला सम्मेलन कंबोडिया में होना तय हुआ।
अब सोचती हूँ तो लगता है परिवार को खोकर तो मेरी जिंदगी पहियों पर सवार हो गई। कभी नाशिक ,कभी पूना, कभी भंडारदरा, कभी घाटघर, कभी इंदौर, कभी पटना ,तो कभी रायपुर। हर जगह मेरे लिए कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं । सम्मान पुरस्कारों की लिस्ट में इजाफा हो रहा है और अखबारों में सुर्खियों में हूं ।मेरे साक्षात्कार, लोकल न्यूज़ चैनलों में बाइट्स कुल मिलाकर बेहद व्यस्त जिंदगी हो गई ।समय ऐसा गुजरा जैसे किताब के पन्ने। हर पन्ना आश्चर्य, सफलता चर्चा में बना रहने वाला। साथ ही मेरी पीड़ाओं का खुलासा करने वाला। यही दास्तान पेज दर पेज।
और मैं दिशाहीन हो समय की सरिता में बेकाबू होकर चप्पू चला रही हूँ। किनारा दिखाई नहीं देता। न जाने कब ख़तम होगी यह किताब।
क्रमशः