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आल्हा छंद ~ निज भाषा बिन सब बेकार

अक्षर अक्षर भाषा बनते, भाषा प्रगटे भाव विचार।
अपनी भाषा अपनी बोली, निज भाषा बिन सब बेकार।-1

पढ़ें लिखे बोलें निज भाषा, होती इसमें गुण रसखान।
हिन्दी को निज भाषा मानें, यही हमारी है पहचान।~2

करे प्रगति दुनिया की भाषा। आपस में क्यों करें विरोध।
हिन्दी भाषा शिखर सजेगी, रखें यही बस अंतरबोध।~3

जन्मभूमि जननी की भाषा, जनगण मन का है अभिमान।
रोना हँसना गाना सीखा, निज भाषा से पाया ज्ञान।~4

लोककला अरु संस्कृति सबकी, निज भाषा बनती आधार।
जितना ज्यादा आदर सेवा, मान बढ़ेगा ‘अमित’ अपार।~5

सीखें लिखें पढ़े निज भाषा, गीत गजल सब छंद विधान।
रचना रचें नियम के संगत, तब होगा जग में गुणगान।~6

करें साधना अक्षर के नित, अक्षर होतें ब्रह्म समान।
सोच समझ कर करें सृजन जब, बनता रचनाकार सुजान।।~7

जाति धर्म सह क्षेत्रवाद से, खंड-खंड बस हिन्दुस्तान।
एक राष्ट्र में हिन्दी भाषा, प्यारा भारत बने महान।~8

अक्षय अक्षत अक्षर सक्षम, अक्षर की हो जयजयकार।
देख परख कर चले लेखनी, अक्षर है तेजस तलवार।~9

अक्षर पूजा मंत्र आरती, अक्षर शारद ‘अमित’ प्रसाद।
गुंजित तन-मन अपनेपन से, मौन हृदय का यह अनुवाद।~10
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कन्हैया साहू “अमित”
शिक्षक~भाटापारा (छ.ग)

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