धारावाहिक उपन्यास भाग 03 : सुलगते ज्वालामुखी

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धारावाहिक उपन्यास

सुलगते ज्वालामुखी

लेखिका – डॉ अर्चना प्रकाश

कक्षा चाहे छोटी हो या बड़ी परीक्षा के बाद परिणाम की बेसब्री से प्रतीक्षा रहती हैं। लखनऊ यूनीवर्सिटी में भी एम.एससी. फस्र्ट इयर के परिणाम घोषित हुए तो वेदान्त मिश्रा व यशोदा सिंह बायो केमिस्ट्री में टापर रहे। किन्तु सुनीता व मुशीरा बायो में साठ प्रतिशत से आगे न बढ़ सकी।

देशराज उदास थे कि इस बार वेदान्त ने अपने नोट्स उन्हें नहीं दिये थे। जिससे वे सिर्फ पैतालीस प्रतिशत अंक ही हासिल कर सके थे। मद्दुकर भी द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुए और जीनत जो नौकरी के साथ पढ़ाई कर रही थी वह फस्र्ट आई और इलियास भी। दोनों के प्रतिशत साठ से आगे न बढ़ सके थे।

‘‘मेरे मम्मी पापा मेरे रिजल्ट से बेहद खुश हैं! सुनीता बोली ‘‘वो क्यों? मुशीरा ने पूछा।

क्योंकि हल्की फुल्की पढ़ाई में हमने जैसे पेपर किए थे, नम्बर उससे अच्छे आ गये हैं। सुनीता ने कहा।

‘‘अब हम फाइनल में अच्छी तैयारी कर लेंगे! मुशीरा ने सुझाया।

अन्दर से उदास होते हुए भी देशराज सबके साथ सबकी खुशी में ह°स रहे थे।

‘‘अपने रिजल्ट की खुशी हमें शिवगढ़ रिर्जाट्स पर मनानी चाहिए, बहुत सुन्दर जगह है!’’ वेदान्त ने कहा ‘‘परसों का दिन सबको सूट करेंगा?’’ सुनीता ने पूछा ‘‘क्यों नहीं?’’ मुशीरा बोली।

परसों सब लोग दस बजे तक सूनीवर्सिटी फैकल्टी में आ कर इकट्ठे होंगे और यहा° से सब साथ शिवगढ़ रिजार्ट्स चलेंगे। सुनीता बोली।

एक दिन बाद ठीक ग्यारह बजे सब लोग शिवगढ़ रिजाटर््स पर पिकनिक मनाने पहु°च गये। पहले सभी ने शिवगढ़ लेक पर बोटिंग की और तरह-तरह के विदेशी पक्षियों के फोटो खींचे। फिर सबने स्वीमिंग पूल में काफी देर तक तैराकी का आनन्द लिया।

मुशीरा को तैरना नहीं आता था फिर भी वेदान्त उसे जबरदस्ती पूल में ले गये और तैराकी सिखाने की कोशिश करते रहे। सुनीता और यशोदा पूल में नहीं उतरी वरन किनारे बैठ कर पूल के नजारे ले रही थी।

देशराज को सुनीता अच्छी लग रही थी और उनकी नजरें लगातार सुनीता पर ही टिकी थीं।

विधाता ने नारी को घ्राण शक्ति की छठी इन्द्रिय दी है मुझे जब तब गहरी नजरों से देखने का मतलब मैं खूब समझती हू°! सुनीता बोली।

‘‘अच्छी और खूबसूरत चीजों को देखते रहने से मन प्रसन्न होता है। देशराज ने जोड़ा।

‘‘यानि! आप मेरी सुन्दरता की प्रशंसा कर रहे है! सुनीता ने पूछा पशंसा करने तक तो ठीक है! दिल में न बसा लेना इसे! वेदान्त बोले।

प्रतिदिन दो तीन घंटे साथ बिताते हुए इतना आकर्षण होना स्वाभाविक लगता है। मुशीरा ने कटाक्ष किया।

‘‘जब तक अच्छी और बड़ी नौकरी नहीं मिल जाती लड़को को लड़कियों के विषय में सोचने का कोई हक नहीं है’’ वेदान्त ने कहा ‘‘पा°च छः घंटे रोजाना साथ रहते हैं और वर्षो से दोस्ती है तो हमारे बीच भावनात्मक लगाव तो बनता ही है।’’ ये मुशीरा थी।

‘‘कोई किसी को अच्छा लगता है, उसे देख कर मन खिल उठता हैं तो इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए! सुनीता ने कहा

‘‘हमें मालूम है कि वेदान्त व मुशीरा के बीच कुछ खिचड़ी पक रही है! यशोदा ह°सते हुए बोली तो इलियास व मधुकर भी उसके समर्थन में ह°स पड़े।

पिछले दो सालो से दोनों को अक्सर एकान्त वार्ता में व्यस्त देखती हू°! यशोदा पुनः बोली।

‘‘तुम लोग मुझ पर नजर रखते हो! ये अच्छी बात नहीं!’’ मुशीरा ने तुनकते हुए कहा।

वेदान्त सिर्फ मुस्करा कर रह गये।

जितना ही वे मुशीरा के विचारों से दूर भागने की कोशिश करते वह उतना ही उनके मनोमस्तिष्क पर छाई रहती थी। ‘‘मैं जातिवाद की सख्त विरोधी हू° और उससे अलग हटकर सोचती हू°! सुनीता ने कहा।

वो क्यों? आप तो पा°डे है। देशराज चुप न रह सके।

‘‘वो इसलिए कि शिक्षा व सभ्यता में पिछड़े हुए लोग सरकारी सुविधाओं से ही सही आगे बढ़ तो रहे हैं! दूसरे मुझे लगता है कि निचली जातिया° सवर्णों से ज्यादा प्रगतिशील व बुद्धिमान है।’’ सुनीता बोली। ‘‘वह कैसे?’’ यशोदा ने पूछा

‘‘ये सरासर गलत है!’’ वेदान्त ने कहा।

‘‘ये इसलिए कि अनपढ़ गंवार माता पिता की परवरिश में इनके बच्चे अपने बूते पर पढ़ लिख कर कुछ बड़ा बनना चाहते हैं तो वे हमसे अधिक प्रगतिशील हुए। साथ ही हमारे सपनों की तुलना में इनके सपने आसमान छूने जैसे हैं’’ सुनीता ने सभी को समझना चाहा।

‘‘ये ठीक है कि हमारे साथ माता पिता का सहयोग एवं पारिवारिक पृष्ठभूमि सहायक होती हैं। लेकिन हम भी अथक परिश्रम करते हैं। तुम्हें देशराज अच्छे लगते हैं शायद इसीलिए तुम ऐसा कह रही हो, वेदान्त ने कहा।

वेदान्त के अन्तिम वाक्य पर सभी मन्द मन्द मुस्करा रहे थे। और सुनीता झेंप कर चुप थी।

‘‘पुरुष का पौरुष किसी जाति का मोहताज नहीं होता है और न ही वह किसी बन्धन में कैद होता है।’’ ये मुशीरा थी।

‘‘शायद यही वजह थी कि जिससे रामबोला तुलसीदास बन सके और डाकू वाल्मीकि आदि कवि बन सके’’, यशोदा बोली। और हो सकता है देशराज भी इसका अपवाद न हो उसने फिर कहा।

वैसे तो पिकनिक के बाद सभी अपनी अपनी पढ़ाई में जुट गये थे। किन्तु लखनऊ यूनीवर्सिटी के एम.एस.सी. फाइनल के परिणाम बेहद चैकाने वाले थे। सुनीता व मुशीरा के अलावा सभी प्रथम श्रेणी में पास हुए और सबसे ज्यादा प्रतिशत जो सत्तर के आस पास थी, देशराज के थे। सभी हैरान थे और देशराज को बधाई दे रहे थे।

‘‘मेरा एडमीशन मेरे पापा ने सन्तोष मेडिकल कालेज गाजियाबाद में करा दिया है और मैं कल जा रही हू°। सुनीता ने कहा।

‘‘मेरा भी बायोकेमिस्ट्री पीएच.डी. यूनीवर्सिटी में ही चुनाव हो चुका है, साथ ही विद्यान्त कालेज में पार्ट टाइम लेक्चरर की नौकरी भी मिल गई है,’’ ये वेदान्त थे।

‘‘मेरा क्या होगा? न कहीं एडमीशन हुआ न परसेंटेज ही अच्छी आई? मुशीरा परेशान सी बोली।

वेदान्त मुशीरा के पास आये और उसे भरोसा दिलाते हुए बोले- ‘‘मैं हू° न?’’ अपनी परीक्षा की कापियों की स्क्रूटनी का फार्म भर दो फिर मैं कोशिश करता हू°!’’

वेदान्त ने मुशीरा का हाथ व कन्धा हल्के से दबा दिया जिसका मुशीरा ने विरोध न करके प्रत्युत्तर में वेदान्त का हाथ ही पकड़ लिया और जमीन में नजरें गड़ा दी।

सभी पेपर्स की दुबारा स्कूटनी में लगभग तीस नम्बर बढ़ गये तो मुशीरा का भी पीएच.डी. में एडमीशन हो गया। अब वे दोनों साथ ही लाइब्रेरी, फैकल्टी, और कभी कभी रेस्टोरेन्ट भी जाने लगे।

‘‘क्यों न आज हम लोग मूवी चलें! मैंने दोपहर की टिकट बुक करा ली है।’’ वेदान्त बोले

‘‘सिर्फ हम दोनों? मुशीरा ने पूछा

हा° आ° क्यों? अब हम दोनों बालिग हैं! तुम्हें मुझसे डर लगता है क्या वेदान्त ने कहा

‘‘बिल्कुल नहीं! मैं तैयार हू°!’’ मुशीरा ने उत्तर दिया। तो चलो बैठो मेरे पीछे बाइक पर और मुझ अच्छे से पकड़ लेना! वेदान्त ने कहा।

हाल के अन्धेरे में दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़े रहें। वेदान्त ने मुशीरा का सिर अपने कन्धे पर टिका लिया और पूछा- ‘‘क्या सोच रही हो’’? जो तुम सोच रहे हों! मुशीरा बोली।

यही कि हम दोनों का साथ रहना घूमना फिरना, विवाह के बिना सब गलत है शम्मो! वेदान्त भावुक हो गये।

‘‘तो इसमें छात्र संघ वाले मदद नहीं कर सकते क्या? मुशीरा ने प्रश्न किया।

‘‘क्यों नहीं? वे लोग हमें मंदिर ले जा कर फेरे करा देंगे। ये मैं उनके बगैर भी कर सकता हू° अगर तुम साथ दो तो!’’ वेदान्त आग्रही स्वर में बोले।

‘‘मैं अब्बू व अम्मी के बगैर कुछ न कर पाऊ°गी विदू!’’

‘‘ठीक है अभी फिल्म इन्ज्वाय करो फिर देखते हैं।’’ वेदान्त बोले! फिर धीरे से एक डिब्बी मुशीरा के हाथों में दी।

‘‘खोल कर देखो। इसमें क्या है।’’

मुशीरा ने डिब्बी खोली उसमें कानों के सुन्दर से बुन्दे थे। ‘‘मै पल भर भी तुम्हारे बिना न रह पाऊ°गा! शम्मो? विदान्त बोले।

‘‘और मैं भी नहीं! कोई रास्ता निकालो विदू कि हम साथ साथ रह सकें।’’ मुशीरा कह उठी।

‘‘समस्या सिर्फ दोनों के घर वालों की हैं! वेदान्त का स्वर गम्भीर

था।

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जीनत और यशोदा के माता पिता उनके लिए सुयोग्य वर की तलाश कर रहे थे। यशोदा के पिता सौरभ सिंह ने अपने मित्र दुर्गेश सिंह के बेटे रजत सिंह से यशोदा का विवाह तय कर दिया था। रजत सिंह एम.टेक कर के दिल्ली की एम.एन.सी. कम्पनी में कार्यरत थे और वे यशोदा को पसन्द करके ‘हा°’ भी कर चुके थे। मध्यम वर्गीय परिवार होने के कारण यशोदा की सहमति की आवश्यकता ही न समझी गई।

जीनत के पिता जिस मोटर गैराज में काम करते थे। वहीं पर अहमद हसन सुपरवाइजर थे बी.टेक. की डिग्री होने के बाद भी जब दो सालों तक कोई नौकरी न मिली तो थक हार कर वे गैराज में ही सुपरवाइजरी करने लगे।

जीनत के पिता अब्दुल करीम को अहमद हसन प्यार से चचा ही कहते थे। खाली वक्त में दोनों ही एक दूसरे से बाते करते-करते एक दूजे की परिस्थिति से भी पूर्णतः परिचित हो चुके थे।

‘‘चचा! आप जीनत की चिन्ता कतई न करें उनका निकाह जल्दी ही हो जायेगा।’’ अहमद ने कहा

‘‘मिया° बिना शौहर के निकाह क्या खाक होगा?’’ अब्दुल बोले। ‘‘शौहर भी जल्दी ही ढूंढ़ लेंगे चचा आप नाहक परेशान है!’’ अहमद ने समझाया।

गैराज के काम से अहमद एक दो बार अब्दुल करीम के घर जा चुके थे। तब अनायास ही जीनत उनके सामने पड़ गई। जो उन्हें बेहद खुबसूरत व शालीन लगीं। गैराज के दूसरे कर्मचारियों से अब्दुल करीम ये जान चुके थे कि अहमद की परवरिश उसके मामू मौलाना जावेद और मामी निखत ने की थी। क्योंकि अहमद के अब्बू ने उसकी अम्मी को तलाक दे दिया था। तब एक वर्ष के अहमद को ले कर उसकी अम्मी अपने भाई जावेद के घर आ गई थीं। लेकिन छः माह में ही उनकी मृत्यु हो गई, तब से अहमद की परवरिश व पढ़ाई सब उसके मामू व मामी जान ने ही की।

अहमद जीनत को पसन्द तो करते थे लेकिन अब्दुल चचा से इस विषय में बात करने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे। अहमद की इस समस्या का अन्दाजा जब गैराज के दूसरे मैकेनिकों को लगा तो उनमें से किसी ने अब्दुल को अहमद के दिल की सच्चाई बताने के साथ ये भी सिफारिश कर दी कि जीनत के लिए अहमद से अच्छा शौहर चिराग ले कर ढूढ़ने पर भी न पाओगे। तब अब्दुल ने अहमद से इस विषय में स्वयं ही बात शुरू की –

‘‘मुझे पता लगा कि तुम जीनत को पसन्द करते हो?’’ ‘‘जीनत बेहद मेहनती सदगुणी व कमाऊ लड़की है! ऐसी पत्नी किसे अच्छी न लगेगी चचा?’’ अहमद बोले।

‘‘तो मैं ये रिश्ता पक्का कर दू°?’’ अब्दुल ने कहा ‘‘नेकी और पूछ-पूछ? चचा जान जितनी जल्दी हो सके निकाह करवा दीजिए।’’ अहमद खुशी से बोले।

‘‘ठीक है पन्द्रह दिनों में तैयारी करके तुम दोनों का निकाह पढ़वा कर वलीमा कर दू°गा।’’ ये अब्दुल थे।

‘‘मुझे क्या करना होगा?’’ अहमद ने पूछा ‘‘तुम अपने मामू जावेद और मामी निखत से मुझे मिलवा दो अब्दुल ने कहा।’’

अन्धा क्या चाहे दो आ°खें वाले अन्दाज में अहमद अब्दुल चचा को जावेद और निखत से मिलवाने उनके घर ले गये। जावेद और निखत दोनों ने ही अब्दुल के अनुसार पन्द्रह दिनों के बाद निकाह और वलीमे की तारीख तय कर दी।

यशोदा और जीनत के विवाह में सिर्फ एक सप्ताह का अन्तर था। पहले यशोदा का विवाह रजत सिंह के साथ धूम धाम से सम्पन्न हुआ। जिसमें वेदान्त, मुशीरा, सुनीता, देशराज व इलियास सभी शामिल हुए। यशोदा के पति रजत सिंह से सभी की दोस्ती हो गई और वे सभी को अच्छे लगे।

यशोदा के बाद अब जीनत के निकाह की बारी थी। यशोदा एक दिन पहले ही जीनत के घर आ गई और निकाह के समय जीनत के साथ ही थी। मौलवी साहब अहमद से निकाहनामा कुबूल करवा कर जीनत की तरफ आये, पूरा निकाह नामा पढ़ कर जब तीसरी बार कुबूल है की ऊ°ची आवाज गू°जी तो जीनत ‘हू°’। कहते ही रो पड़ी और सभी सहेलियों से लिपट गई। मुशीरा की आ°खें भी आ°सुओं से भरी थीं, किन्तु पास खड़े वेदान्त ने उसे बाहो में भर लिया तो आ°सू आ°खों में ही रह गये।

निकाह के एक माह बाद जीनत व अहमद लखनऊ चैक में कमरा किराये पर ले कर रहने लगे। एक कमरे व रसोईघर को जीनत ने रंगीन झालरों, पर्दे व उमर खयाम की पेंटिंग से सजाया। उधर यशोदा भी रजत सिंह के साथ गुड़गा°व में एक कमरे के फ्लैट में रहने लगी ।

मुशीरा को पीएच.डी. करते दो वर्ष पूरे हो चुके थे, साथ ही वेदान्त के साथ उसके प्रेम प्रसंग के चर्चे भी जग जीहिर हो चुके थे। इसलिए मुशीरा अक्सर जीनत के घर आ जाती और वेदान्त से विवाह व निकाह करने के विषय में चर्चा करती-

‘‘वेदान्त का ठेठ ब्राह्माण परिवार मुझे बहू के रूप में कभी स्वीकार नहीं करेगा!’’ मुशीरा ने कहा। फिर आगे बोली- ‘‘दूसरी तरफ मेरे अब्बू व भाईजान ठेठ पठानी मुसलमान है जो वेदान्त को कभी स्वीकार न कर सकेंगे।

‘‘तुम ऐसा बिल्कुल न सोचो, विवाह दो दिलों का मिलाप होता है। उसमें जाति या धर्म आड़े नहीं आना चाहिए। ये जीनत थी।

मुझे विश्वास है वेदान्त अपने घर वालों को जरूर राजी कर लेंगे! अहमद ने कहा।

इसी समय वेदान्त भी जीनत के घर आ गये दोनों सहेलियों को चिन्तामग्न देख कर वे चुप न रह सके- हमारे पास कोर्ट मैरिज के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है क्योंकि घर वालों को मनाने में पूरी जवानी ढल जायगी। मैं आज कोर्ट में हलफनामा दे आया हू°। वेदान्त गम्भीर स्वर में बोले।

फिर? ये मुशीरा थी।

‘‘तीन महीने बाद फैमिली कोर्ट के जस्टिस के सामने दस्तखत करके हमारी कोर्ट मैरिज हो जायेगी।’’ वेदान्त ने जोड़ा।

‘‘मेरे अब्बू व भाईजान पर क्या बीतेगी? कुछ तो सोचो? हम क्या सभी को छोड़ देंगे?’’ मुशीरा की आवाज भर्रा गई थी।

‘‘शम्मो। मैं किसी को दुःखी नहीं करना चाहता हू°। तुम्हारे साथ मेरे घर वाले भी मुझसे टूटेंगे जरूर!’’ ये वेदान्त थे। ‘‘फिर हम क्या करें और कैसे?’’ मुशीरा रुआ°सी सी बोली।

‘‘एक बात मैं दावे से कह सकता हू° कि हम दोनों सबका दिल जीतने की कोशिश करते रहेंगे। माता पिता हैं हमारे आखिर कभी तो पिघलेंगे।’’ वेदान्त ने जोड़ा।

‘‘कितना समय लग सकता है इस सबमें?’’ मुशीरा ने पूछा।

‘‘दो से पा°च वर्ष तक!’’ वेदान्त बोले

‘‘वो क्यों?’’

क्योंकि ये पता नहीं कि कौन कितना दयालु है या कठोर लेकिन तब तक हमें यहीं इसी शहर में घर ले कर गृहस्थी बसानी होगी। वेदान्त बोले।

बहुत अजीबो गरीब स्थिति है हम दोनों की? मुशीरा ने तर्क दिया।

वो तो प्यार करने से पहले सोचना था। अब ओखली में सिर दे ही दिया है तो मूसलों से क्या डरना! ये वेदान्त थे।

हू°            उ उ!   वेदान्त के दृढ़निश्चय के सम्मुख मुशीरा निरुत्तर थी।

क्रमशः

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