धारावाहिक उपन्यास भाग 04 : सुलगते ज्वालामुखी

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धारावाहिक उपन्यास

सुलगते ज्वालामुखी

लेखिका – डॉ अर्चना प्रकाश

देशराज एम.एस.सी. के बाद मधुकर के साथ लखनऊ के ही अम्बेदकर छात्रावास में रहकर आई.ए.एस. की तैयारी कर रहे थे। साथ में दस से एक बजे तक बैंक की पार्ट टाइम नौकरी भी कर रहे थे। जिससे गुजारा तो अच्छे से चलता ही था, वरन जब वे सुनीता के साथ होते तो वे सुनीता को पर्स न खोलने देते-

‘‘अरे यार! अब मैं कमाता हू° और तुम अभी स्टूडेन्ट हो।’’

‘‘अच्छा। तुमने मुझ पर क्या जादू किया हैै कि मैं हर दस बारह दिनों में तुम्हारी बा°हों में होती हू°? सुनीता कह रही थी।

‘‘मगर मैंने इसके लिए कभी तुम्हें बाध्य नहीं किया! देशराज बोले।

‘‘लेकिन फिर भी मैं घरवालों से सबसे छुपाकर तुम्हारे साथ रहती हू°, खुद को रोक नहीं पाती हू° क्यों? सुनीता आधीरता से बोली।

‘‘मैं क्या बता सकता हू°? लेकिन ये सब जो हमारे बीच होता है, ये सिर्फ तुम्हारी खुशी और पसन्द से होता है! देशराज बोले।

‘‘तो तुम्हारे प्यार का मतलब क्या है? अगर तुम्हारी सहमति नहीं रहती तो क्यों करते हो ये सब? सुनीता मायूसी और खीझ में बोली।

‘‘मेरा आशय ये है कि मैं किसी नारी का दिल नहीं तोड़ता! देशराज किंचित मुस्कान से बोले।

‘‘ओह! तो तुम कोई महापुरुष हो?’’ सुनीता  ने कटाक्ष किया।

‘‘महापुरुष से कम भी नहीं हू° डियर डाक्टर सुनी!’’ ये देशराज थे।

तभी वहा° पर मधुकर आ गये जो किसी कार्यवश कमरे से बाहर गये थे। कुछ देर रुक कर सुनीता चली गई।

अब कमरे में देशराज व मधुकर ही थे। ‘‘तुम सुनीता से साफ-साफ कह क्यों नहीं देते कि तुम सजातीय दलित लड़की से विवाह करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हो।’’ मधुकर बोले।

देशराज ह°स पड़े! ‘‘यार मधुकर वक्त बदल रहा है। कभी हमारे घरों की लड़कियों पर इन तथा कथित सवर्णों की लोलुप निगाहें होती थीं। आज यदि उनकी लड़किया° हम पर फिदा हैं तो हम मौका क्यों चूके?’’

‘‘तुम्हें अपनी सोच बदलनी चाहिए, ये ठीक नहीं है!’’ मधुकर ने राय दी।

‘‘सच पूछो तो जब सुनीता मेरे बिस्तर पर होती है तो मुझे आत्म सन्तुष्टि मिलती है कि इसके पूर्वजों ने भी तो मेरी मा° बहनों को ऐसे ही इस्तेमाल किया होगा।’’ देशराज की आवाज सख्त थी।

‘‘तुम बेहद घिनौना खेल खेल रहे हो! पहले जो कुछ भी हो चुका उसमें सुनीता का क्या दोष?’’ मधुकर ने पूछा।

‘‘सवर्ण बिरादरी से होना ही उसका दोष है। उन लोगों ने वर्षों पहले दलितों का शोषण किया। उसी की कुछ भरपाई मैं अब कर रहा हू°!’’ देश राज बोले।

‘‘मैं सुनीता को सब कुछ बता दू°गा।’’ ये मधुकर थे। ‘‘तुम बता के देख लो। वह तब भी मेरे पास आयेगी! प्रेम दिवानी जो है?’’ देशराज ने कहा।

अगली बार सुनीता जब आई तो मधुकर ने मौका लगाकर कमरे के बाहर ही सुनीता को सब कुछ सच बता दिया। साथ में ये भी बताया कि देशराज अपनी बिरादरी में लड़की पसन्द कर चुका है। लेकिन सुनीता पर इसका कुछ भी प्रभाव न देख कर उन्हें हैरानी थी।

तुलसी दास जी की पंक्तिया° ‘‘जाको विधि दारुण दुःख देही ताकी मति पहिले हरि लेही’’ सुनीता पर पूरी तरह सटीक बैठती थी। क्योंकि उसे पूर्ण विश्वास था कि देशराज आई.ए.एस. में चयनित अवश्य होंगे। उसी समय वह अपने माता पिता से अपने प्रेम सम्बन्धों का खुलासा कर के उन्हें देशराज से अपने विवाह के लिए राजी कर लेंगी।

लेकिन उम्मीद के विपरीत देशराज का चुनाव आई.ए.एस. एलाइड में हुआ और उन्हें असिसटेन्ट इन्कम टैक्स अधिकारी का पद मिला। मजबूरी में सुनीता ने देशराज की इसी हैसियत को स्वीकार कर लिया। सुनीता गाजियाबाद से सीधा देशराज के कमरे पर इसी विषय में बात करने आ गई। कमरे में घुसते ही उसे देशराज अकेले ही मिल गये किंचित मद्दुर प्रेमालाप के बाद सीधा मुद्दे की बात शुरू की –

‘‘हमें अब जल्द से जल्द शादी कर लेनी चाहिए। मैं तुम्हारे बिना अब एक पल भी नहीं रह सकती!’’ सुनीता बोली ‘‘लेकिन! ये आदत तो तुम्हें डालनी पड़ेगी माइ लव!’’ ये देशराज थे।

‘‘लेकिन क्यों?’’

‘‘क्योंकि मेरे घर वालों ने मेरी शादी महार लड़की से तय कर दी है।’’ देशराज ने कहा।

‘‘तुम उन्हंे मना क्यों नहीं कर देते डियर!’’ सुनीता परेशान सी बोली।

‘‘मैं अपने माई बाबू को जरा भी निराश नहीं कर सकता!’’ देशराज का स्वर गम्भीर था।

सुनीता जो अब तक परिन्दे की तरह उड़ रही थी अचानक पर कटे पक्षी की तरह गिरी धड़ाम! न चाहते हुए भी वह चीखी –

‘‘तुमने मुझसे सम्बन्ध क्यों बढ़ाये? पिछले तीन सालों से मेरे साथ हवस के खेल क्यों खेले?’’ वह देशराज का कालर पकड़ कर झिझोड़ रही थी।

‘‘मैं महिलाओं का सम्मान करता हू° डा. सुनीता कोई नारी मेरे पौरुष को जगाये तो मैं उसे निराश कैसे कर सकता हू°?’’ देशराज बेहद शान्त लहजे में बोले।

‘‘यू चीटर। धोखेबाज!’’ सुनीता गुस्से में चीखी।

‘‘हमारी दोस्ती और रिश्ते का समय अब समाप्त हो चुका है मैडम सुनीता।’’ देशराज कठोर थे।

‘‘प्लीज राज ऐसा मत करो! प्लीज कुछ सोचो!’’ सुनीता रोती गिड़गिड़ाती रही।

‘‘मैं कल ये हास्टल छोड़ रहा हू° और ट्रेनिंग से लौटते ही मेरी शादी हो जायेगी!’’ देशराज पत्थर के हो चुके थे। ‘‘अब हमारा मिलना नहीं हो पायेगा! मैडम्!’’ देशराज कमरे से बाहर निकल गये।

धीरे धीरे सुनीता स्वयं ही शान्त हुई और कमरे से बाहर आई। उसने सामने से जा रही आटो रिक्शा रोकी और उसमें बैठ कर सीधा चारबाग स्टेशन पहु°ची। गाजियाबाद की लग्जरी बस सामने ही दिखी तो वह लपक कर उसी में बैठ गई।

गाजियाबाद हास्टल पहु°च कर सुनीता दो दिनों तक कमरे में ही बन्द रही। कभी आ°सू बहाती, सोती, जागती, शून्य में निहारती। जीवन के एक अध्याय का अन्त बहुत दुःखद हुआ, जिसका दर्द वह अकेले ही पी रही थी। क्योंकि माता पिता या सहेलियों में किसी को भी उसने जरा भी भनक तक न लगने दी थी। दो दिन लगातार डिस्प्रिन व कम्पोज की गोलियों के साथ खुद को मजबूत किया और पूरी लगन से पढ़ाई में जुट गई। देशराज की यादों से बाहर निकलने का यही एकमात्र विकल्प भी था उसके पास।

परिणामतः फाइनल परीक्षा में उसे सर्वोच्च मेरिट का स्थान मिला। अब विशेषज्ञ पी.जी. कोर्स के लिए सुनीता को दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कालेज में जच्चा बच्चा विशेषज्ञ में दाखिला मिल गया। दो वर्ष में स्त्री व प्रसूति में सुपर स्पेशलिटी हासिल करके सुनीता ने लन्दन से वाई.

डब्लू.सी.ए. की फेलोशिप भी पूरी कर ली, डा. सुनीता माता पिता के पास लखनऊ आ गई। डा. चित्रा व डा. आशीष में सुखद वार्तालाप चल रहा था।

‘‘मेरी बेटी के पास डिग्रियों के अम्बार है!’’ डा. चित्रा ने कहा।

‘‘अब तो सुनीता महिला मरीज देखते ही उसके मर्ज का कच्चा चिट्ठा पल भर में ही खोल देती है।’’ ये डा. आशीष थे।

‘‘कई बार तो इसकी योग्यता व अनुभव से लोग हैरान रह जाते हैं।’’ चित्रा गर्व से बोली।

‘‘लन्दन में फेलोशिप करने के बाद लखनऊ किंग जार्ज मेडिकल कालेज में सुपर सीनियर स्पेशलिस्ट पद पर कार्य करते हुए उसकी प्रतिष्ठा व शोहरत दोनों ही बढ़ रहे हैं।’’ डा. आशीष ने कहा।

‘‘लेकिन इतनी मान प्रतिष्ठा के बाद भी सुनीता के चेहरे पर उदासी व गम्भीरता क्यों रहती है?’’ चित्रा परेशान थी।

‘‘कभी अच्छे मूड, में देख कर मैं ही उससे बात करू°गा। तुम टेंशन न लो।’’ आशीष ने डा. चित्रा को समझाया।

बेहिसाब सम्मान व शोहरत के बीच भी सुनीता पल भर के लिए भी देशराज की कटु मानसिकता भुला न पाती।

लगभग एक वर्ष की ट्रेनिंग के बाद देशराज का विवाह पास ही के गा°व की महार बिरादरी की बिंदिया देवी से हो गया, जो शैक्षिक योग्यता में हाईस्कूल फेल थीं। प्रथम मिलन में ही देशराज समझ गये थे कि बिंदिया को वे अपने समान बौद्धिक स्तर पर कभी न ला पायेंगे। तब एक पल को उन्हें सुनीता की याद आई, लेकिन अगले ही पल वे बिंदिया के शारीरिक भूगोल में डूब गये।

बिंदिया उन्हें बेहद मासूम लगी क्योंकि निरे बचपन से वे यही समझते थे कि सवर्ण लड़किया° व औरतें पढ़ी लिखी होने के कारण चतुर चालबाज एवं तेज तर्रार होती हैं। जबकि दलित व निम्नवर्गीय औरते व लड़किया° सीधी, सादी भोली और मासूम होती हैं। क्योंकि वे अनपढ़ या कम पढ़ी लिखी होती हैं।

विवाह के पन्द्रह दिनों में ही देशराज बिंदिया को लेकर अपनी प्रथम तैनाती नोएडा के बंगले पर आ गये। आफिस का कार्यभार सम्भालाने के बाद सबसे पहले उन्होंने बिंदिया के लिए ट्यूशन टीचर की व्यवस्था की। जो बिंदिया को बोल चाल व रहन सहन के तरीकों के साथ कुछ पढ़ाई करा सके।

ट्यूशन टीचर ज्योति ने सिलाई कढ़ाई व होम साइंस विषयों से पहले बिंदिया को हाईस्कूल का फार्म भराया। जब हाईस्कूल में बिंदिया तृतीय श्रेणी से उत्तीर्ण हो गई। तब उसने इन्हीं विषयों से बिंदिया को इण्टर का फार्म भी भरवा दिया। इस बार भी बिंदिया तृतीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुई तो देशराज खुशी से फूले नहीं समा रहे थे।

क्रमशः

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