मौन रही हार – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

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निराला

मौन रही हार

मौन रही हार ,

प्रिय-पथ पर चलती,

सब कहते शृंगार!

कण-कण कर कंकण, प्रिय

किण-किण रव किंकिणी,

रणन-रणन नूपुर , उर लाज ,

लौट रंकिणी।

और मुखर पायल स्वर करें बार-बार,

प्रिय-पथ पर चलती , सब कहते शृंगार!

शब्द सुना हो, तो अब

लौट कहाँ जाऊँ ?

उन चरणों को छोड़, और

शरण कहाँ पाऊँ ?-

बजे सजे उर के इस सुर के सब तार –

प्रिय-पथ पर चलती सब कहते शृंगार ।

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