रंग गई पग पग धन्य धरा – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

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निराला

रंग गई पग पग धन्य धरा

रँग गई पग-पग धन्य धरा,—
हुई जग जगमग मनोहरा ।

वर्ण गन्ध धर, मधु मरन्द भर,
तरु-उर की अरुणिमा तरुणतर
खुली रूप – कलियों में पर भर
          स्तर स्तर सुपरिसरा ।

गूँज उठा पिक-पावन पंचम  
खग-कुल-कलरव मृदुल मनोरम,
सुख के भय काँपती प्रणय-क्लम
         वन श्री चारुतरा ।

दो

अमरण भर वरण-गान

वन-वन उपवन-उपवन

जागी छवि, खुले प्राण ।

वसन विमल तनु-वल्कल,

पृथु उर सुर-पल्लव दल,

उज्ज्वल दृग कलि कल,पल

निश्चल कर रही ध्यान ।

मधुप-निकर कलरव भर,

गीति मुखर पिक प्रिय स्वर,

स्मर-शर हर केशर झर,

मधु-पूरित गंध,ज्ञान ।

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