वर्तमान परिवेश से परिचित कराती रोचक कहानियां : छुट्टी की मस्ती

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छुट्टी की मस्ती

वर्तमान परिवेश से परिचित कराती रोचक कहानियां

छुट्टी की मस्ती’

समीक्षक – डॉ शील कौशिक

लेखिका – अलका प्रमोद


प्रतिष्ठित साहित्यकार अलका प्रमोद वर्तमान हिंदी साहित्य में किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। वे निरंतर उत्कृष्ट लेखन से हिंदी साहित्य की विविध विधाओं को समृद्ध कर रही हैं।
‘छुट्टी की मस्ती’ उनकी सद्य:प्रकाशित बाल कहानियों की कृति है, जिसमें एक से बढ़कर एक दस कहानियां सम्मिलित हैं। अलका जी ने ‘आओ बच्चों पढ़ें कहानियां’ के माध्यम से बच्चों को पठन-पाठन की और मीठा सा प्यारा सा आह्वान किया है।
प्रस्तुत कहानियां बच्चों को उनके परिवेश से परिचय कराने के साथ उन्हें उनकी जिम्मेदारियों एवं जीवन में आने वाली चुनौतियों का एहसास कराने के साथ-साथ उनसे निपटने का रास्ता भी सुझाती हैं।
संग्रह की पहली कहानी ‘जादुई दस्ताने’ बच्चों को कल्पना लोक में विचरण विचरण करवाती है। नीटू की लड़ने-झगड़ने व गुस्सा करने की आदत पर काबू पाने के लिए उसके मामा उसके लिए जादुई दस्ताने लाते हैं। वे इस हिदायत के साथ उसे सौंपते हैं कि गुस्सा करने पर दस्ताने पहनी हुई उंगलियों में खुजली होने लगती है। आकर्षण का केंद्र बने जादुई दस्ताने स्कूल में बच्चों को आकर्षित करते हैं। बच्चों का मनोविज्ञान होता है कि उनके दिमाग में जैसी बात डाली जाती है, वे उसे तुरंत मान लेते हैं। इस तरह चतुराई से नीटू की गुस्सा करने की आदत छुड़ा दी जाती है।
‘रेनी डे’ में बारिश के कारण स्कूल की छुट्टी होने पर दोनों दोस्त पार्क में मस्ती करते हैं और सबसे पूछने पर झूठ पर झूठ बोलते जाते हैं। बारिश में अत्याधिक भीगने से अक्षत बीमार हो जाता है, तब उसे अपनी गलती का एहसास होता है।
‘पहली सफलता’ कहानी बच्चों की ऊर्जा को जरा सी समझाइश और प्रोत्साहन से किस तरह अच्छाई की तरफ मोड़ा जा सकता है, इस तथ्य को उजागर करती है। दैनिक जीवन में नियमों का पालन करना भी देशभक्ति है। और जब बच्चा टीम अपने से बड़े भैया को हेलमेट लगाने के लिए प्रेरित करने में सफल हो जाती हैं तो वे पहली सफलता से प्रोत्साहित हो जाते हैं। यह सत्य है कि देश की रक्षा का दायित्व सैनिकों का है, परंतु देश को बनाने का काम बाल साहित्यकार का है।
शीर्ष कहानी ‘छुट्टी की मस्ती’ आज के समय में प्रासंगिक है। बच्चे परिवार में रहकर सदैव खुश होते हैं। रीना अपने चाचा-चाची, दिया और टिंकू को देख कर खुश हो गई। वे एक साथ लखनऊ में विभिन्न दर्शनीय स्थलों का भ्रमण करते हैं। यह सर्वविदित तथ्य है कि बच्चे किताबों की बजाए प्रत्यक्ष रूप से अधिक सीखते हैं। इसीलिए रीना को छुट्टी पर निबंध प्रतियोगिता लिखने के लिए प्रथम पुरस्कार भी मिला।
‘होली है’ पशु- पक्षियों को लेकर रोचक कहानी है। हीरू बंदर रंगों से डरता है। सभी जानवर मिलकर हीरू बंदर के मन का डर निकालने का प्रयास करते हैं। बाद में हीरू को सबके साथ मिलजुल कर होली खेलना अच्छा लगता है।
‘एक वादा’ एक बेहतरीन कहानी है, जिसमें सपने में ऑक्सीजन सिलेंडर बसते की तरह पीठ पर लादना पड़ता है। “हवा में से ऑक्सीजन किसने चुरा ली?” “तुम्हारे पुरखों ने…”
कंप्यूटर पर जवाब मिलने पर अमायरा वादा करती है कि वह और उसके सब दोस्त एक-एक पेड़ अवश्य लगाएंगे। दिनोंदिन प्रदूषित होते वातावरण की चिंता से यह कहानी बखूबी अवगत कराती है।
‘सुजय सर’ कहानी में आरव को गणित और गणित अध्यापक से चिढ़ है। वह सोचता कि गणित सर भगवान करे, बीमार हो जाए या उन्हें चोट लग जाए। परंतु बच्चे मन के सच्चे होते हैं। वह अध्यापक को सच-सच बता देता है। सुजय सर के आत्मीय व्यवहार से आरव का मन परिवर्तित हो जाता है और सुजय उसके फेवरेट सर बन जाते हैं।
‘आपसी सौहार्द’ में बच्चों की आमों को लेकर लड़ाई में बड़े भी शामिल हो जाते हैं। अंततः साहू के पापा के एक्सीडेंट होने पर कॉलोनी के लोग सहायता करते हैं तो वे अपने बुरे व्यवहार के बारे में सबसे क्षमा मांगते हैं और वायदा करते हैं कि वे आम के पेड़ों को नहीं कटवाएंगे।
‘बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद’ कहानी में अनुज आलसी व घर में ही घुसे रहने का आदी है परंतु छुट्टी वाले दिन बाहर खेलने पर उसे बहुत अच्छा लगता है। ‘आज का लक्ष्मण’ कहानी में लक्ष्मण की तरह भाई वह मित्र के लिए त्याग की भावना रोपित करने की कहानी है।
कहना होगा कि अलका जी बच्चों के मन को पढ़ना जानती हैं। वे उन्हें कहानियों के माध्यम से परिवेश से परिचित करना चाहती हैं इसीलिए उनकी सभी कहानियां संदेशपरक होने के साथ-साथ रोचक और मजेदार हैं। सरल, सहज, सुबोध भाषा में लिखी इन कहानियों के संवाद चुलबुले हैं। कहानियां का सुंदर चित्रांकन सुश्री अपूर्वा ने किया है जिससे कहानियों की पठनीयता निश्चित तौर पर बढ़ी है। बच्चे आकर्षित होकर इन कहानियों को अवश्य पढ़ना चाहेंगे। इस सुंदर, सार्थक व पठनीय कहानी- संग्रह के लिए अलका जी को साधुवाद।

समीक्षकडॉ शील कौशिक

लेखिका – अलका प्रमोद

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