संस्मरण :बिथोविन और मोजार्ट की धुनों का गुंजन है जहाँ- ऑस्ट्रिया

0
20201208_151010

लेखिका : संतोष श्रीवास्तव

ऑस्ट्रिया शब्द मेरे मन में हलचल मचा रहा था| विश्व प्रसिद्ध संगीत की धुनें तैयार करने वाले बिथोविन और मोजार्ट ने यहीं पर संगीत में कमाल हासिल किया था| यहीं जर्मन भाषी ऑस्ट्रियाई लेखक स्टीफ़न स्वाइग ने उत्कृष्ट साहित्य रचा था| यहीं ऑस्ट्रिया का अंतिम बादशाह चार्ल्स और महारानी जीटा जो हैब्सबर्ग खानदान के थे, ने राज किया|यह खानदान पीढ़ी दर पीढ़ी सात सौ बरसों तक शासन करने के लिए प्रसिद्ध था| उन दिनों स्कूलों में काइज़र गीत गाये जाते थे|

      ऑस्ट्रिया के बॉर्डर पर हमारे पासपोर्ट की चैकिंग हुई| बहुतफुर्तीले थे पासपोर्ट अधिकारी| मिनटों में काम निपटाकर उन्होंने मुस्कुराते हुए हमें अलविदा कहा| ऑस्ट्रिया में १९६४ से ७६ तक इन्सब्रुक शहर में नेशनल गेम्स आयोजित किये गये थे| इन्स नामक नदी के किनारे बसा होने के कारण इस शहर का नाम इन्सब्रुक है| यह स्की के लिए प्रसिद्ध है| ३२,३८९ स्क्वेयर माइल में बसे ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना है| आबादी ७.६ मिलियन| पूरा देश नौ प्रॉविंस (राज्यों) में बँटा है|यहाँ की करेंसी यूरो है| मुख्य व्यवसाय टेक्सटाइल और लकड़ी का है| चालीस प्रतिशत टैक्स हर चीज पर लिया जाता है| जर्मन और अंग्रेज़ी भाषा बोली जाती है| बेहद खूबसूरत जंगलों, पहाड़ों, नदियों, झीलोंके बीच बसे ऑस्ट्रिया के कोहरे भरे मौसम और ठंडी हवाओं ने मन मोह लिया| दो ट्रेक वाली सड़क के किनारे हरी एस्बेस्टस दीवार का लम्बा सिलसिला स्विट्ज़रलैंड जैसा लगा| मनुष्य भले ही सीमाओं में बँट जाए पर प्रकृति नहीं बँटती| प्रकृति ने अपना सौंदर्य लुटाने में कोई भेदभाव नहीं बरता| जैसा स्विट्ज़रलैंड वैसा ही ऑस्ट्रिया| दसकि. मी. लम्बी सेंट एंथोनी टनल से गुज़रते हुए अंदर कतार से लगी लाल लाइट्सपर बरबस नज़रें टिक जाती हैं| टनल के बाद रिफ्रेशमेंट के लिए कोच ट्रोफाना टिरॉल में रुकी| यूरोप का नियम है हर दो घंटे की ड्राइविंग के बाद आधा घंटा ड्राइवर का सुस्ताना ज़रूरी है| यूरोप यात्रा का यह तीसरा देश है मेरा| अभी तक जिस एक बात ने पग-पग पर मेरा ध्यान खींचा है वह है यहाँ की सफ़ाई, प्रदूषण के प्रति जागरूकता| यहाँ के वासी अपने देश को उतना ही प्रेम करते हैं जितना अपने घरों को| इसीलिए घरों की तरह की साफ सुथरे, सजे-धजे मोहित कर देने वाले स्थल हैं सारे| भारत की तरह सड़कोंके किनारे खड़े होकर मैंने किसी को पेशाब करते नहीं देखा| यह बड़ा संगीन जुर्म माना जाता है अपने देश के सार्वजनिक स्थलों को दूषित करना| उसके लिए हर मील पर आधुनिक सुविधाओं से पूर्ण टॉयलेट बने हैं|

      ट्रोफाना टिरॉल के पेट्रोल पंप की बनावट बड़ी शानदार थी| विशाल शॉपिंग लाउंज में ऊपर कतार में टंगी तीन-तीन के गुच्छों में कच्ची भुनी, अधभुनी मकई के भुट्टे और फूलों के चक्र लटके हुए थे| कुर्सियोंपर बैठे पर्यटक ड्रिंक्स ले रहे थे| मैंने भी काले मग में गर्मागर्म खुशबूदार कॉफीपी|

      रिफ्रेशमेंट के बाद फिर कोच रवाना हुई| रास्ते में स्की जंप ट्रेनिंग सेंटर मिले| ठंड में लोग यहाँ स्की के लिए आते हैं|पहाड़ों पर ताज़ी गिरी बर्फ़ थी| ताज़ी बर्फ़ में चमक होती है| वर्गिस पहाड़ पर ओलम्पिक स्टेडियमथा| स्टेडियम में चालीस हज़ार लोग बैठ सकते हैं| पत्रकारों और मीडिया से जुड़े लोगों के लिए अलग-अलग बैठने को स्थान है|मैं देख रही हूँ स्टेडियम की ओर जाते पहाड़ पर बने तीन हरे रास्ते….. मानो हरे कार्पेट बिछे हों| मुझे अपने देश की पगडंडियाँ याद आ गईं और पगडंडियों के संग हवा में घुल आई सरसों, मटर की महक….. पल भर को मैं खुद को भुला बैठी|

      इन्सब्रुक में १४वींसे १७वीं शताब्दी में बने मकान, इमारतें आज भी सुरक्षित हैं| लेकिन हर दूसरा मकान पहले मकान के रंग से मेल नहीं खाता| मकानोंकी ऐसी इन्द्रधनुषी छटा पर मैं मुग्ध हो गई| सड़कें भी १७वीं सदी की बनी हैं| स्लेटी पत्थरों से जड़ी| उन्हें उसी रूप में आज भी सँवारा जाता है| सामने था ट्रंपल आर्च| आर्च के उस तरफ़ की मूर्तियों के चेहरे खुश नज़र आ रहे थे, इसतरफ़के उदास|

      “स्पेनके राजा की लड़की के साथ ऑस्ट्रिया की रानी मारिया थिरीस के लड़के की शादी तय हुई थी| लेकिन सगाई के दिन ही राजा की मृत्यु हो गई| खुशी और गम का प्रतीक है ये आर्च|” अजय के बताने पर मैंने कलाकार की कला को नमन किया जिसने भावनाओं का अक्स पत्थरों पर उतार दिया था| उसी के पार्श्व में सुनहले रंग का महल है जो नोबल फेमिली के टोन एन्ड टैक्सी ने बनवाया था| गोल्डनेसडाखल रूफ गॉथिक शैली में बना अनन्नास के छिलकों जैसी पीतल और ताँबे की खिड़कियों वाला था| १६१८ से ३२ तक मैकमिलन बहुत ही रोमांटिक था और अपनी गॉथिक शैली की बनी बाल्कनी में बैठकर विभिन्न खेलों का आनन्द लेता था| उसकी बेहद खूबसूरत दो बीवियाँ थीं| दोनों की मूर्तियाँ राजा की मूर्ति के आजू-बाजू थीं| किंग लिओपोर्ड की पाँच मूर्तियों वाला १७वीं सदी में बना फ़व्वारा, सेंट एन्स कॉलम तथा हाईब्लींगहाउस|एक इमारत तो ऐसी दिख रही थी जैसे ईसाईयों की शादी का केक| उस पर कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था| इन्सब्रुक ऐतिहासिक शहर है लेकिन जहाँ ये ऐतिहासिक इमारतें हैं वह पुराना शहर कहलाता है|सड़क पार करते ही नया शहर शुरू हो जाता है| जैसे सपनों मन सैर करते-करते नई सुबह में आँख खुल जाए| सामने एक चौक था जहाँ सारे राष्ट्रीय कार्यक्रम होते हैं, परेड होती है| वहीँ डॉल म्यूज़ियम है| अब भूख लग आई थी| अजय हमें ‘साहिब’ नाम के भारतीय रेस्तरां में ले आये जहाँ हमें डिनर लेना था|रात के आठ बज रहे थे| सड़कों पर धूप और बिजली के संगम में ऑस्ट्रियाई औरतों के चेहरे संगमरमरी नज़र आ रहे थे| रात हमने होटल ‘बॉन अल्पिना’ में बिताई| बस के लम्बे थका देने वाले सफ़र के बाद होटल आना और कमरे के अँधेरे में लाइट के स्विच ढूँढना बड़ा पीड़ादायी लगा था|

      सुबह वेकअप कॉल से नींद खुली| मैं टब बाथ से तरोताज़ा होकर बाल्कनी में आकर खड़ी हो गई| रात भर बारिश हुई थी, सड़कें गीली थीं पर अभी आसमान साफ़ था| अचानक बाजू वाले चर्च से घंटे बजने लगे| चर्च की इमारत पर सुनहले काँटों की बड़ी सी नीली घड़ी लगी थी| ओक का पेड़ हवा में झूम रहा था| दाहिनीओर बहुत सारी टाइल्स वाले टेरेस वाले घर थे|टेरेस पर पत्थर और कंकरीट क्यों बिछा था यह मेरी समझ में नहीं आया| चर्च से आते प्रार्थना के हल्के हल्के स्वर सुन मेरे हाथ जुड़ गये, आँखें मूंद गई….. सामने कान्हा थे….. तभी इंटर कॉम पर सूचना मिली – “रिसेप्शन में आपसे कोई मिलने आये हैं| यहाँ मेरी सखी वनिता और उसके पति दिनेश रहते हैं| दोनोंपढ़ाई के बाद शादी होते ही यहाँ आ बसे थे लेकिन हिन्दी के लिए वे अब भी काम कर रहे हैं| वनिता कवयित्री है और दिनेश खुद ग़ज़लें लिखते हैं, खुद कम्पोज़ करते हैं| दो साहित्यिक पत्रिकाओं से भी जुड़े हैं ये जो विदेश में फैले भारतीय परिवारों के बीच एक भावनात्मक रिश्ता जोड़ने के लिए निकाली जाती हैं और ‘पेन हिन्दुइज़्म’ को फैलाने का प्रयास करती हैं| रिसेप्शन में बैठी वनिता चहककर उठी और गले लगकर रो पड़ी – “कितने दिनों बाद मिल रहे हैं हम|”

      “दिनों नहीं बरसों….. इस बीच मेरा हेमंत चला गया|” मेरे भी आँसू उसका कंधा भिगोने लगे| दिनेश अजय से हमारे कार्यक्रम की जानकारी ले रहे थे| तय हुआ कि म्यूज़ियम देखने के बाद अजय मुझे वनिता के घर लेकर जाएँगे| वहीँ डिनर होगा हमारा|

      नाश्ता हमने साथ किया| रास्ते में दिनेश और वनिता को उनके घर छोड़ते हुए हम स्वरोस्की क्रिस्टल म्यूज़ियम देखने रवाना हुए जो वाटन्समें है| चेकोस्लोवाकिया से स्वरोस्की नाम का युवक जब ऑस्ट्रिया आया तो उसने यह जां लिया था कि वाटन्स के पहाड़ों में हीरे जैसी चमक, रूप, रंगवाला क्रिस्टल मौजूद है| क्रिस्टल को तराश कर आभूषण और सजावट की चीज़ों का उसने व्यापार शुरू कर दिया और अरबपति बन गया| जब हम म्यूज़ियम पहुँचे तो पार्किंग प्लेस पर जॉर्जेट के सिलेटी झंडे फ़हरा रहे थे| जो दर्जनों की संख्या में थे| उन झंडों पर स्वरोस्की लिखा था रोमन लिपि में| सामने एक हरी घास से भरे पहाड़ पर बड़ा सा हरा मानव सिर बना था| आँख की जगह बड़े बड़े दो क्रिस्टल लगे थे और मुँह से पानी निकल रहा था जो एक बड़े से जलाशय में गिर रहा था| आसपास जड़ी चार सफेद चट्टानों से भी पानी की पिचकारी बुलेट की तरह छूटती और जलाशय में जाकर गिर जाती| प्रवेश द्वार पर ही मैंने ग़ौर किया कि पहाड़ की जिस घास को मैं असली समझ रही थी वह प्लास्टिक की थी| अन्दर दो मंज़िल का म्यूज़ियम है जिसमें कई प्रकार के आभूषण, जानवर, कमरे की छत पर लगाने वाले झूमर सब क्रिस्टल से बने लाइट में जगर मगर कर रहे थे|मैं पूरा म्यूज़ियम घूमकर सोफ़े पर जा बैठी| लोगखरीदी कर रहे थे| मेरा हेमंत होता तो मैं भी अपनी होने वाली बहू स्वाति के लिए कुछ खरीदती पर विधाता ने मुझे इस सुख से वंचित कर दिया|

      सभी को उनकी मनमानी जगहों पर छोड़ हम वनिता के घर आ गये| वनिता का बंगला गुड़ियों की कहानी जैसा रंग बिरंगा, सजा धजा और खिले फूलों की क्यारियों वाले बगीचे वाला था| गेट पर लाल पत्तियों का सदाबहार पेड़ पहरेदार सा खड़ा था| लॉन पर दो सफेद पालतू बिल्लियाँ उछलकूद मचा रही थी| वनिता खाना बनाने में जुटी थी, दिनेश सलाद काट रहा था और दोनों बेटियाँ टेबिल लगा रही थीं- “यहाँ नौकर नहीं होते| सब काम हाथ से ही करना पड़ता है| ऑफिस से लौटकर मैं और वनिता दोनों बेटियों से घर का काम निपटाते हुए हिन्दी में ही बात करते हैं|” बताया दिनेश ने| तभी तो यहाँ पैदा हुई दोनों लड़कियाँ हिन्दी अच्छा बोल लेती हैं| मेरा अनुभव है कि विदेश में बसा हर अप्रवासी भारतीय हम से अधिक भारतीय है| भारतीय भोजन और बेहतरीन ग़ज़लों के बीच शाम गुज़ार कर हम होटल लौटे| सभी कार से हमें होटल छोड़ने आये| मेरी असुविधा है कि यहाँ पीने का पानी बाथरूम के वॉशबेसिन सी ही लेना पड़ता है|

      “यहाँ नलों में आने वाला सारा पानी ही पीने का पानी है स्वच्छ और कई बार स्वच्छ होने की प्रक्रिया से गुज़रा हुआ| आपको आदत डालनी होगी|” कहकर दिनेश हँस पड़ा|

      चूँकि साल्ज़बर्ग पहुँचने में छै: सात घंटे तो लग ही जाएँगे हम अलस्सुबह ही बोरिया बिस्तर बाँध निकल पड़े| साथ में पैक्ड नाश्ते का बोझ भी था| साल्ज़बर्ग में ऑस्ट्रियन लेखक स्टीफन स्वाइग ने कई वर्ष गुज़ारे थे और मेरे लिए यह सोच अद्भुत रोमांचकारी थी कि मैं उन जगहों पर चलूँगी जहाँ कभी स्टीफ़न चले होंगे| अजय बताते हैं कि साल्ज़बर्ग सबसे खूबसूरत जगह है| वहाँ नाटकों के लिए बहुत स्पेस है| कई असरदार नाटक वहाँ खेले जा चुके हैं| पिछले दिनों कालिदास की शकुन्तला भी मंचित की गई, सुनकर मैं रोमांच से भर उठी| आख़िरबहु प्रतीक्षित साल्ज़बर्ग आ ही गया| आल्प्स पर्वत की वादियों में बसा….. कोहरे की चादर ओढ़े| भीगा भीगा सा….. फूलों की रंगीन बिछावन ने साल्ज़बर्ग को जैसे अपने में समेट लिया हो|…… अलसायेसौंदर्य और रूमानियत से भरा साल्ज़बर्गमेरी आँखों के सामने था| पल भर को मैं चित्रित सी हो गई|

      “यह वर्शेटस गार्डन है….. यहाँ हिटलर सबसे छिप कर रहा है|” अजय के कहने पर मैं हँस पड़ी- “तानाशाह हिटलर को भी कहाँ कहाँ छुपना पड़ा…..कभी ब्लैक फ़ॉरेस्ट में तो कभी वर्शेटस गार्डन में|”

      ठंडीबयार चल रही थी| हम स्टीफ़न स्वाइग के मकान के सामने थे| यह मकान १७वीं सदी के एक आर्च बिशप की शिकारगाह था| आल्प्स पर्वत की ही एक ढलवाँ चोटी पर बना नौ कमरों, गलियारों और विशाल खंभों वाला यह भव्य मकान किसी किले से कम न था| कहतेहैं १८वीं सदी में बादशाह फ्रांसिस भी इस मकान में कई दिन रुका था और उसने यहाँ के गलियारों का आकार बढ़वाया था| पास ही एक १७वीं सदी का गिरिजाघर भी था| सीढ़ियाँ चढ़कर टैरेस पर पहुँचते ही ऑस्ट्रिया की भव्य प्रकृति आँखों को बहुत ठंडक देती थी| मकान के सामने सुरक्षा अधिकारी खड़ा था| पूछने पर उसने स्टीफ़न स्वाइग का पूरा इतिहास बयान कर दिया| उसने बड़े गर्व से हमारे साथ फोटो खिंचवाई और बताया कि उसे इस बात पर नाज़ है कि स्टीफ़न ऑस्ट्रियाई थे परन्तु इस बात पर नाराज़ी है कि उन्होंने आत्महत्या कर ली –“लेखक को कभी अपने दुख दर्द नहीं देखने चाहिए….. वह तो दूसरों के दुख दर्द अपनी कलम से बाँटने के लिए पैदा होता है|”

      मैं उस साधारण से व्यक्ति की झील सी गहरी नीली आँखों की गहराई को नापने में असमर्थ थी| पहली बार अपने लेखक होने पर थोड़ा सा गर्व हुआ| थोड़ा सा यूँ लगा जैसे इस भव्य कर्म का एक सिरा मेरी कलम से भी तो जुड़ा है| मैं भी उसका एक हिस्सा हूँ|

संतोष श्रीवास्तव

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *