आत्मकथा : मेरे घर आना ज़िन्दगी (28)

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मुंबई में बारिश का मौसम चल रहा था। इंदौर से कृष्णा अग्निहोत्री जी की घबराई हुई आवाज

” अरे संतोष ,नातिन आज ही 6 महीने की ट्रेनिंग के लिए मुंबई पहुंची है ।बारिश से घबराकर एयरपोर्ट पर ही बैठी है ।सुधा अरोड़ा ने अपने घर रुकने को हाँ कहा था पर वह तो फोन ही नहीं उठा रहीं। तुम कुछ करो।”

“कृष्णा दी, उनको मेरा फोन नंबर दे दीजिए। बात कर लेती हूं ।”

थोड़ी देर बाद नातिन का फोन आया। मैंने उसे अपने घर का रास्ता समझाया और कहा तुम मेरे घर रह सकती हो। वह मेरे घर एक हफ्ते रही। फिर उसे फ्लैट मिल गया। पेइंग गेस्ट वाला। अंधेरी में। कृष्णा जी का फोन आया “संतोष तुमने हमारी बहुत मदद की। ऐसे में जब सभी ने उसे अपने घर रुकने को मना कर दिया था तुमने साथ दिया ।तुम्हारा एहसान मैं कभी नहीं भूलूंगी ।

कृष्णा दी साहित्य जगत से असंतुष्ट हैं। वे सोचती हैं कि साहित्य में उनका मूल्यांकन नहीं हुआ और उन्हें हाशिए पर धकेल दिया गया है। 

इंदौर लेखिका संघ ने मुझे सम्मानित करने और सम्मेलन में भाग लेने के लिए इंदौर बुलाया। प्रेम कुमारी नाहटा ने मेरे रुकने का प्रबंध होटल में किया था पर कृष्णा दी नहीं मानी। मेरे ही घर रुकना है तुम्हें ।

प्रेम कुमारी नाहटा की पुस्तक कोठरी से बाहर की भूमिका मैंने लिखी थी। उसका भी लोकार्पण होना था। दूसरे दिन इंदौर लेखक संघ के कार्यक्रम में मेरा एकल कविता पाठ रखा गया। दो दिन बेहद व्यस्तता से गुजरे। कृष्णा जी के साथ जैसे ही फुर्सत होकर बैठी थी डॉक्टर सतीश दुबे (लघुकथाकार) के घर से कृष्णा दी के पास फोन आया। “यह क्या बात हुई ।संतोष पहले हमारी है फिर आपकी। कल उसे हर हाल में मेरे घर लेकर आइए ।”

मैं नि:शब्द, इतनी आत्मीयता, दुलार। सतीश दुबे जी न चल पाते हैं। न लिख पाते हैं। हाथ-पैर से लाचार हैं। व्हीलचेयर पर रहते हैं फिर भी उनकी किताबें प्रकाशित होती हैं। उनकी किताब डेराबस्ती का सफरनामा की उनके खास अनुरोध पर कथाबिंब के लिए मैंने समीक्षा लिखी थी। मुझे बहुत मानते हैं ।इतना भव्य स्वागत किया उन्होंने मेरा ।फूलों की माला, शॉल, नारियल, अपनी किताबों का सैट दे कर ।फिर मेरी कहानी का पाठ हुआ। और उस पर उपस्थित लेखकों द्वारा प्रश्न भी पूछे गए ।मैंने “शहतूत पक गए” कहानी का पाठ किया था। जब यह कहानी  कथाबिंब में छपी थी तो नंदकिशोर नौटियाल जी ने हिंदुस्तानी प्रचार सभा के मंच से कहा था कि

” यह सर्वश्रेष्ठ प्रेम कथा है। राजम जी आप अरविंद जी (संपादक कथाबिंब) को इस विषय में पत्र लिखिए और यहाँ बैठे सभी लोगों से उस पर हस्ताक्षर करवाएं। “

हस्ताक्षरों वाला वह पत्र मेरी कहानी की सबसे बड़ी उपलब्धि है।

सतीश दुबे जी अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन निर्जीव हाथों की लिखी उनकी ज्वलंत पुस्तकें हमारे बीच हैं ।

मुंबई लौटते ही कृष्णा दी का फोन “अरे तुम जिस तखत पर सोती थीं उसके नीचे अजगर का बिल था ।वह तो मजे से बिल से बाहर आकर तखत के नीचे सोता हुआ मिला।”

मुझे तो लगता है ऊपर तुम और नीचे अजगर सोता रहा होगा ।मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए ।दो-तीन दिन तक सपने में भी अजगर दिखता रहा लेकिन आज भी कृष्णा दी मुझे फोन करती हैं ।सुख-दुख की चर्चा करती हैं। एक छोटी सी मदद के बदले इतनी आत्मीयता प्यार मिला।

क्रमशः

लेखिका संतोष श्रीवास्तव

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