आत्मकथा : मेरे घर आना ज़िन्दगी (33)

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मुंबई की बारिश जितनी खूबसूरत होती है उतनी ही डराती भी है। महानगर को पानी पानी होते देर नहीं लगती। मेरा घर भी पानी की गिरफ्त में था ।सोचा था पहली मंजिल पर फ्लैट है तो घर में पानी नहीं भरेगा पर पहली बार एहसास हुआ कि पानी केवल जमीनी सतह से नहीं भरता ।घनघोर बारिश में नालियों के पाइप में से भी पानी उछल उछल कर बाहर आता है। पानी ड्राइंग रूम ,बैडरूम, रसोईघर हर जगह एक एक फुट भर गया। मेरे सारे महत्वपूर्ण कैसेट, सीडी जिनमें मेरी उपलब्धियाँ दर्ज थीं पानी में भीग गए। मैं डरी सहमी पलंग पर बैठी रही और मकान मालिक को लगातार फोन कर घर की स्थिति बताती रही। वह ठाणे में रहता था। इतनी बारिश में उसका कांदीवली आना मुश्किल था। किसी तरह कुमुद जोशी के दिए नंबर पर फोन करके प्लंबर बुलाया। पानी दोपहर 2 बजे से भरना शुरू हो गया था ।प्लंबर शाम को 6 बजे बारिश थमने पर आया।

आते ही “5 हजार लेगा ,3 पाइप की सफाई करनी पड़ेगी। सीढ़ी लेकर आएगा ।तभी काम हो पाएगा ।घर पूरा साफ करके फर्श सुखाकर देगा।  काम बढ़िया अपुन का।”

मेरे सामने सिवा हाँ कहने के कोई चारा न था। रात 8 बजे तक उसने उम्दा तरीके से काम किया। धुल पुछ कर फर्श चमक रहा था। 8 बजे पलंग से उतर कर मैंने चाय बनाई और प्रमिला को फोन लगाया ।

“बहुत मुश्किल है इस घर में रहना।”

“छोड़ दो मुंबई औरंगाबाद आ जाओ। हम साथ मिलकर रहेंगे। दिव्या को सरकारी मकान मिल गया है । रिन्यूशन कर के रहने लायक बनाना होगा।”

मेरी मुम्बई  रहने की मानसिकता में काफी अरसे से बदलाव आ रहा था। एक तो साहित्यिक माहौल अब पहले जैसा रहा नहीं।मेरी सहेलियाँ जो उम्र में मुझसे छोटी थीं।फिल्मों में, धारावाहिकों में, हास्य के मंचों पर भाग्य आजमा रही थीं। कई वरिष्ठ साहित्यकार मुंबई से दिल्ली, भोपाल शिफ्ट हो गए थे फिर मैं अकेली रह कर कैसे जिंदगी जिऊंगी। बीमार पड़ी तो कौन साथ होगा। केयरटेकर रखना भी खतरनाक है। आजकल किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता। मकान किराया भी हर साल 10 परसेंट बढ़ जाता है। कोई आय का स्रोत नहीं। कैसे होगा ? आदि आदि। सहेलियों की ओर से उठे सवालों से मैं जूझती रही। इन सवालों को जी तो रही हूँ कितने सालों से। जब से रमेश गए 2007 से। आखिर 9 वर्ष बाद वे सवाल मुझे क्यों डरा रहे हैं। क्यों मेरी हिम्मत को पस्त कर रहे हैं। मैंने प्रमिला से कहा “ ठीक है। घर रिन्यूवेट करा लो। शिफ्ट हो जाती हूं औरंगाबाद ।”

रिन्यूएशन के 75 हजार भेजकर मुक्ति महसूस की। उन सवालों से या बदलते हालातों से।

धीरे धीरे मुंबई के सभी साहित्यकारों तक मेरे मुम्बई छोड़ देने की बात पहुंची। धीरेंद्र अस्थाना ने मुझे लंच के लिए घर पर बुलाया। ललिता जी ने फोन पर कहा “आओ बात करना है जरूरी।”

मैं सुमीता के साथ जब धीरेंद्र अस्थाना के घर पहुंची तो सूरज प्रकाश वहाँ मौजूद थे ।ललिता जी के रसोईघर में पहाड़ी विधि के आलू पक रहे थे। ककड़ी के रायते में हींग जीरे का बघार दिया जा रहा था। धीरेन्द्र जी सलाद काट रहे थे। छूटते ही ललिता जी बोलीं “क्यों छोड़ रही हो मुम्बई? फाइनेंशियल प्रॉब्लम है तो मीरा रोड में सस्ते किराए का मकान दिला देते हैं। महानगर सी सुविधाएं किसी शहर में नहीं। पछताओगी।”

मैं हँस पड़ी थी। “पछता लेने दीजिए, भटक लेने दीजिए ।निश्चय ही जंगल की पगडंडी सड़क तक ला छोड़ेगी।“ मधु अरोड़ा के आने से बात को ब्रेक मिला ।वे कोफ्ते और खीर बना कर लाई थीं। टेबल पर धीरेन्द्र जी की बोतल खुल गई। बीच में सलाद। सूरज प्रकाश और अस्थाना के आमने-सामने पैग और चर्चा का केंद्र मैं।

” अब इतने साल रहीं।उतार-चढ़ाव देखे जिंदगी के ।नहीं छोड़ना चाहिए मुम्बई।”

” आपकी विदाई मुम्बई एक खुशखबरी से कर रही है। स्टोरी मिरर के अंतरराष्ट्रीय कथा सम्मान के लिए आप की कहानी शहीद खुर्शीद बी का चयन किया गया है।”सूरज प्रकाश ने बताया।

वे उन दिनों स्टोरी मिरर के सलाहकार मंडल में थे।

” वाह बधाई ,बधाई ।आधे लाख के पुरस्कार पर ट्रीट तो बनती है ।”सभी कहने लगे ।

“दिलचस्प कहानी है इस चयन की।” सूरज प्रकाश ने बताया “आप की कहानी कश्मीर के आतंकवाद की है। कहानी में वर्णित घटनाओं की सच्चाई जानने के लिए दो पत्रकारों को कश्मीर भेजा गया। 10 दिन रह कर जब उन पत्रकारों ने वहां के हालात का कहानी से मिलता-जुलता हवाला दिया तब उस कहानी का चयन किया गया।”

“सचमुच रोमांचक……  तो आज हम इसे गाकर सेलिब्रेट करेंगे।”

सुमीता ,मधु अरोड़ा ,मैंने गीत गाए। धीरेन्द्र जी को मैंने सधी आवाज में पहली बार गाते सुना।

” पुकार लो ख्वाब बुन रही है रात बेकरार है।”

क्रमशः

लेखिका संतोष श्रीवास्तव

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