आत्मकथा : मेरे घर आना ज़िन्दगी (43)

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कबीर तन पँछी भया ,जहाँ मन तहाँ उडि जाय

भोपाल बिल्कुल अनजाना शहर। रिश्तेदारों में बस विजयकांत जीजाजी। सभी की जुबान पर बस एक ही बात की क्या जज्बा है आपका ।ऐसा कदम उठाने को तो पुरुष भी दस बार सोचेगा। क्या करूं फितरत ही ऐसी पाई है ।ठहरे हुए जड़ पर्वत कभी पल भर को नयन सुख देते हैं पर बहती नदिया और पहाड़ों से फूटे झरने दूर तलक संग संग चलते हैं।

भोपाल में एंट्री भी हरि भटनागर के शब्दों में धमाकेदार हुई ।विजय जीजाजी मुझे भोपाल स्टेशन रिसीव करने आने वाले थे पर जब मैं भोपाल पहुंची रात के करीब 7 बजे तो उनका फोन आया कि वह यूनिवर्सिटी के काम में अचानक व्यस्त हो गए हैं इसलिए हरि भटनागर मुझे लेने आएंगे। हरि भटनागर ने फोन किया कि आप एक नंबर प्लेटफार्म से बाहर आ जाना मैं वहीं खड़ा मिलूंगा ।मैं कुली के साथ बाहर आई पर हरी जी कहीं दिखे नहीं। फोन लगाया तो पता चला वे छह नंबर प्लेटफार्म के बाहर मिलेंगे। हम छह नंबर की ओर भागे तो वे एक नंबर पर वापिस आ गए और एक नंबर और 6 नंबर का सिलसिला आधे घंटे चलता रहा यानी कि  हमारा भोपाल में पदार्पण आंख मिचौली से हुआ ।बहरहाल 6 नंबर पर आखिर हरि भटनागर जी मिले। कहने लगे साहब ( वे मुझे साहब ही कहते हैं )एक नंबर पर टैक्सी वालों में मारपीट हो गई ।पुलिस आ गई तो मैं 6 नंबर पर चला गया। अब क्या बताऊं आप भी परेशान हुई ।मगर जनाब एंट्री आपकी धमाकेदार हुई ।”

हम दोनों खूब हँसे । डी मार्ट पर हमें जीजाजी रिसीव करने खड़े थे ।यहाँ मैंने हरि भटनागर से विदा ली और जीजाजी के साथ घर आ गई ।दूसरे दिन बेंजामिन भी आ गया । 

औरंगाबाद से सामान भी आ गया था। वैसे तो फर्नीचर आदि सब मैंने औरंगाबाद में ही छोड़ दिया था। बस मोमेंटो, प्रशस्ति पत्र , किताबें  और कपड़े ही साथ लाई थी। मोमेंटो भी प्रांतीय अकादमियों के और राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों के बाकी एक बोरा मोमेंटो औरंगाबाद में छोड़ आई थी। जिसे प्रमिला ने तुरंत कबाड़ी को बेच दिया था। गलती से उसमें मेरा कंबोडिया में मिला अंतर्राष्ट्रीय सम्मान का मोमेंटो छूट गया था ।वह भी गया। जिसका मुझे आज भी अफसोस है। सोचा था पैकर्स एंड मूवर्स से सामान सुरक्षित पहुंच जाता है जबकि हमने सामान का इंश्योरेंस भी करवाया था परंतु वह फ्रॉड निकला। औरंगाबाद से जो भी सामान आया वह बहुत टूटी-फूटी हालत में हम तक पहुंचा। कंप्यूटर टेबल ,दीवाल घड़ी , क्रॉकरी आदि सब नष्ट हो गई। बेंजामिन ने कहा ग्राहक मंच में शिकायत दर्ज करा देते हैं लेकिन वह हो न सका और मैंने पनौती मानकर सह लिया और खुद को परिस्थिति अनुसार ढाल लिया।

क्रमशः

लेखिका संतोष श्रीवास्तव

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