मेरी नींद चुराने वाले – कवि भारत भूषण अग्रवाल
मेरी नींद चुराने वाले
मेरी नींद चुराने वाले, जा तुझको भी नींद न आए
पूनम वाला चांद तुझे भी सारी-सारी रात जगाए
तुझे अकेले तन से अपने, बड़ी लगे अपनी ही शैय्या
चित्र रचे वह जिसमें, चीरहरण करता हो कृष्ण-कन्हैया
बार-बार आँचल सम्भालते, तू रह-रह मन में झुंझलाए
कभी घटा-सी घिरे नयन में, कभी-कभी फागुन बौराए
मेरी नींद चुराने वाले, जा तुझको भी नींद न आए
बरबस तेरी दृष्टि चुरा लें, कंगनी से कपोत के जोड़े
पहले तो तोड़े गुलाब तू, फिर उसकी पंखुडियाँ तोड़े
होठ थकें ‘हाँ’ कहने में भी, जब कोई आवाज़ लगाए
चुभ-चुभ जाए सुई हाथ में, धागा उलझ-उलझ रह जाए
मेरी नींद चुराने वाले, जा तुझको भी नींद न आए
बेसुध बैठ कहीं धरती पर, तू हस्ताक्षर करे किसी के
नए-नए संबोधन सोचे, डरी-डरी पहली पाती के
जिय बिनु देह नदी बिनु वारी, तेरा रोम-रोम दुहराए
ईश्वर करे हृदय में तेरे, कभी कोई सपना अँकुराए
मेरी नींद चुराने वाले, जा तुझको भी नींद न आए