आज पहली बात पहली रात साथी – कवि भारत भूषण अग्रवाल

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भारत भूषन अग्रवाल

आज पहली बात पहली रात साथी

आज पहली बात पहली रात साथी

चाँदनी ओढ़े धरा सोई हुई है

श्याम अलकों में किरण खोई हुई है

प्यार से भीगा प्रकृति का गात साथी

आज पहली बात पहली रात साथी

मौन सर में कंज की आँखें मुंदी हैं

गोद में प्रिय भृंग हैं बाहें बँधी हैं

दूर है सूरज, सुदूर प्रभात साथी

आज पहली बात पहली रात साथी

आज तुम भी लाज के बंधन मिटाओ

खुद किसी के हो चलो अपना बनाओ

है यही जीवन, नहीं अपघात साथी

आज पहली बात पहली रात साथी

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