कहानी-डिजिटल विवाह:लेखिका-आरती पांड्या

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डिजिटल विवाह

    हर साल शादियों का मौसम शुरू होते ही डाक में शादी के निमंत्रण पत्र आने शुरू हो जाते हैं जिनमें से कुछ शादियों में तो हम बड़ी प्रसन्नता से जाते हैं , कुछ में मजबूरन जाना पड़ता है और कुछ निमंत्रण पत्र आते ही रद्दी की टोकरी में चले जाते हैं l आप समझे नहीं हमारा मतलब ..? घबराइए मत अभी समझाते हैं l  बात यह है कि रद्दी में जाने वाले निमंत्रण पत्र भेजने वाले या तो केवल औपचारिकता वश न्यौता भेजते हैं या केवल दुआ-सलाम वाली श्रेणी के परिचित होते हैं जिनसे खानपान आनाजाना नहीं के बराबर रहता है l या फिर ये वह लोग होते हैं जो पहले कभी ना कभी  हमारे निमंत्रणों को नजरंअंदाज कर चुके हैं l

   लेकिन इस बार के शादी के मौसम में एक ऐसा कार्ड आया है जो वैसे तो रद्दी की टोकरी में जाने वाली श्रेणी में ही आता है लेकिन फिर भी हम इस विवाह में जाने से स्वयं को रोक नहीं पा रहे हैं और तय  किया है कि  इस विवाह में अकेले नहीं बल्कि सपरिवार जाएंगे क्योंकि यह हमारे लिए नए जमाने का एक अभूतपूर्व अनुभव होगा l पहली बात तो यह कि विवाह का निमंत्रण शहर के नामी रईस टुनटुनमल गरीब दास के यहाँ से आया था जिनसे हमारा कोई खानपान वाला संबंध था ही नहीं लेकिन जब से हमें पत्रकार संघ का अध्यक्ष बनाया गया है तब से कई  बड़े बड़े लोगों ने हमसे मित्रता साधनी शुरू कर दी है l खैर यह तो हुई रईस परिवार के विवाहोत्सव का निमंत्रण मिलने की  बात लेकिन दूसरी और सबसे आकर्षक बात यह कि निमंत्रण पत्र में लिखा था कि शादी का रिसेप्शन डिजिटल होगा l अभी तक जितने भी निमंत्रण पत्र आते थे उनमें वर वधू के नामों के साथ शुभ विवाह का मुहूर्त , दिन और स्थान लिखा रहता था लेकिन इस निमंत्रण पत्र में जो लिखा था वह आपको भी दिखाते  हैं l

निमंत्रण

            चिरंजीव सूरज मल ( सुपुत्र श्री और श्रीमती टुनटुन मल ) एवं सौभाग्याकांक्षी किरण (सुपुत्री श्री एवं श्रीमती अजित कुमार ) के डिजिटल शुभविवाह में पधार कर वर वधू को आशीर्वाद देकर हमें अनुग्रहित करें l

( कृपया विवाह स्थल पर पँहुचने के बाद अपना मोबाइल फोन अपने हाथ में तैयार रखें l तत्पश्चात अपने उपहारों के लिफ़ाफ़े गेट पर उपस्थित वर के बड़े भाई को सौंपने का कष्ट करें और फिर नव विवाहित जोड़े को आशीर्वाद देने के लिए प्रस्थान करें l जिस मंच पर वर वधू बैठे होंगे उसके पास रुक कर पहले अपने फोन पर एक ओटीपी के आने की प्रतीक्षा करें l ओटीपी में मंच पर पँहुच कर आशीर्वाद देने का आपका नंबर लिखा होगा l  सभी मेहमानों के ओटीपी मंच पर लगे टीवी स्क्रीन पर  आते रहेंगे l  अपना नंबर उस टीवी स्क्रीन पर दिखाई देते ही आप मंच पर जाकर  वर वधू को आशीर्वाद देकर तुरंत मंच से उतर जाएं और दूसरे ओटीपी की प्रतीक्षा करें l दूसरा ओटीपी आते ही अपना वह नंबर वहाँ उपस्थित सुरक्षाकर्मी को दिखाने का कष्ट करें ताकि वह आपको आपके द्वारा दिए गए उपहार के अनुरूप स्थान पर ले जाकर आपका सत्कार करने की प्रतिक्रिया आरंभ करवा सके l विशेष सूचना : आपसे अनुरोध है कि उपहार के रूप में केवल नकदी ही लाएं l ) 

  विवाह से संबंधित सूचना तो एक लाइन में ही समाप्त हो गई थी , लेकिन सत्कार का विवरण पढ़ने के बाद हम इस विवाह में जाने का अपना लोभ किसी हाल में नहीं रोक पाए इसलिए एक रुपये का सिक्का लगा हुआ एक बढ़िया सा लिफाफा बाजार से खरीद कर लाए और उसमें 1100 रुपये के करारे नोट रख कर अपने दोनों बच्चों और श्रीमती जी को लेकर नियत दिन और समय पर पाँच सितारा होटल के विवाह स्थल पर पँहुच गए और जैसा कि निमंत्रण पत्र में लिखा था , बाहर ही टुनटुन मल का बड़ा सुपुत्र अपनी पत्नी के साथ खड़ा मिला l लड़का उस समय किसी धन्ना सेठ मेहमान का लिफाफा चेक कर रहा था इसलिए हम उसकी पत्नी के पास गए और नमस्कार करके अपना नाम बताया l  उसकी पत्नी ने हमारे नाम पर कोई विशेष ध्यान ना देते हुए हमसे निमंत्रण पत्र दिखाने को कहा तो हमने मन ही मन अपनी पत्नी को धन्यवाद दिया जिसने घर से चलते समय शादी का कार्ड अपने पर्स में रख लिया था l खैर ! कार्ड देखने के बाद उसने उपहार का लिफाफा मांगा l हमने भी बड़ी शान से 1100 रुपये वाला लिफाफा उस के हाथ में थमा दिया l उसने लिफाफा खोल कर देखा और थोड़ी उदासी के भाव से हमारी तरफ देखकर अंदर जाने का इशारा करते हुए ओटीपी फोन पर आने तक मंच के पास प्रतीक्षा करने को कहा और दूसरे मेहमानों से लिफ़ाफ़े बटोरने में व्यस्त हो गई l

      जब हम सपरिवार फूलों से सजे हुए फाटक को पार करके अंदर पँहुचे तो देखा होटल के विशाल लॉन में तीन चार बड़े बड़े टीवी लगे हुए थे जिनपर टुनटुन मल के बेटे की शादी का विडिओ चल रहा था l विडिओ में विवाह की रस्म तो कम नजर आरही थी और विवाह में आए हुए राज्य के मुख्यमंत्री , गवर्नर और अन्य गणमान्य लोग अधिक दिखाए गए थे l लॉन में नजर घुमाई तो बाईं तरफ एक बहुत सुंदर पंडाल बंधा हुआ था जिसमें गुदगुदे सोफ़े रखे हुए थे जिनपर कुछ भारीभरकम लोग विराजमान थे l पंडाल के अंदर एक तरफ बहुत लंबी मेज पर ढेरों डोंगे सजे हुए थे और कुछ वेटर बड़ी चुस्ती से वहाँ बैठे लोगों को खाना सर्व कर रहे थे l तभी हमारे आगे चल रहे दो अतिथियों ने उस तंबू की ओर रुख किया और वहाँ पँहुचते ही उनपर इत्र का छिड़काव होने लगा और गुलाब के फूल उनके हाथों में दिए गए l ऐसा भव्य स्वागत देख कर हम भी तुरंत उधर चल दिए लेकिन हमसे वहाँ पर भी ओटीपी दिखाने को कहा गया और हमारे फोन पर नजर आरहे तीन नंबर को देख कर ड्यूटी पर तैनात व्यक्ति ने बड़ी शालीनता से बताया कि ‘वह पंडाल पाँच हजार और उससे अधिक के लिफ़ाफ़े देने वाले अतिथियों के लिए है इसलिए आप  मंच के पास रुक कर दूसरे ओटीपी के आने की प्रतीक्षा करिए l’

    जितनी अकड़ से हम पंडाल तक पँहुचे थे उतनी ही निराशा से नव विवाहितों के मंच तक पँहुचे जहां एक लंबी कतार में चलते हुए मेहमान एक तरफ से मंच पर चढ़ कर  दूल्हे और दुल्हन को आशीर्वाद देकर दूसरी तरफ से मंच से उतरते जा रहे थे l   हमारे बच्चे अब तक चारों तरफ की सजावट की चकाचौंध देख कर ऊब चुके थे और बार बार खाने के लिए चलने की जिद कर रहे थे l तभी हमारे फोन  और मंच के टीवी पर एक साथ ही तीन नबर चमकने लगा , जिसे देख कर हमने  अपने परिवार के साथ सधे हुए कदमों से स्टेज पर चढ़ना शुरू किया और नव विवाहितों को आशीर्वाद देकर वहाँ खड़े फोटोग्राफर की तरफ देख कर मुस्कुराने लगे लेकिन उसने जब हमारा ओटीपी देखा तो बोला “ आपका फ़ोटो यहाँ नहीं ,खाना खाते समय खींचा जाएगा l “ यह सुनते ही हम सपरिवार मंच से नीचे उतर आए और कुछ दूर पर सजी खाने की मेज़ों की ओर अग्रसर हुए l भोजन की खुशबू और वेराएटी देख कर मुंह में पानी आरहा था इसलिए फ़ौरन प्लेट उठाने के लिए हाथ बढ़ाया लेकिन तभी वहाँ तैनात व्यक्ति ने हमारा ओटीपी चेक किया और पूछा कि हम अकेले आए हैं या साथ में कोई और भी है l हमने जब बताया कि हम चार लोग आए हैं तो उसने  एक वेटर से तीन नंबर वाली चार प्लेटें लगाकर हम लोगों को तीन नंबर वाली कुर्सियों तक पँहुचाने का आदेश दिया l

  अब तक यह नंबर गेम हमको बहुत परेशान कर चुका था इसलिए अपनी अपनी प्लेटें लेकर वेटर के साथ तीन नंबर की कुर्सियों की तरफ जाते हुए हमने उससे पूछ ही लिया  “क्यों भाईसाहब , यह ओटीपी वाला क्या गोरखधंधा चल रहा है यहाँ पर ?”

   खुद को भाईसाहब कहे जाने से शायद वह सज्जन हमें बहुत पसंद करने लगे थे क्योंकि तुरंत बोले “ सर ! आप बहुत शरीफ आदमी है जो मेरे जैसे अदना से बैरे को भाईसाहब कह रहे हैं l अब आपको क्या बताएं इन रईसों के चोंचले l इनलोगों को सिर्फ पैसे की इज्जत है इंसान की नहीं l  जिन बड़े सेठों और रईसों ने हजारों रुपये के लिफ़ाफ़े दिए हैं उनके लिए अलग तंबू लगा कर उनके खाने और पीने दोनों का बहुत बढ़िया इंतजाम किया गया है l  खाने में वहाँ 6 तरह की नौन वेज डिशेज   हैं और नाजाने कितने तरह के कोफ्ते, पनीर, दालें पुलाव और ना जाने क्या क्या  हैं l अरे साहब वहाँ तो मेहमानों को अंग्रेजी पिलाई भी जा रही है l “ यह बताते हुए उसने हाथ से मुंह में कुछ पीने का इशारा करते हुए अपनी एक आँख दबाई तो हम उसका मतलब पूरी तरह से समझ गए l  

   हमें सुन कर बुरा तो जरूर लगा लेकिन फिर भी हमने निर्विकार भाव से कहा , “ कोई बात नहीं भाईसाहब , हमें क्या फरक पड़ता है l  खाना तो हमें भी मिलेगा ही l “

  उसने पलभर को हमारी तरफ देखा फिर बोला “ साहब l सबके लिए खाने का इंतजाम लिफ़ाफ़े के अंदर रखी गई नकद राशि के अनुसार किया गया है l  तंबू में सोफ़े पर बैठे उन  हजारों देने वालों से कम खाने का इंतजाम  2100 रुपये देने वालों के लिए किया गया है , उससे कम 1100 रुपये देने वालों का और बेचारे जो 500 का लिफाफा लेकर आए हैं उनकी  उधर बेंचों पर बैठा कर समोसा और चाय देकर खातिर की जा रही है l “ तब तक हम लोग तीन नंबर वाले स्थान पर पँहुच गए थे क्योंकि हमें वहाँ तक लाने वाला वेटर बोला “ साहब ये रहीं आपकी प्लास्टिक की कुर्सियाँ , यहाँ बैठ कर खाना खा लीजिए और घर जाइए l “ तभी हमारी बिटिया बोली “ पापा पापा , हम उस लाल कुर्सी पर बैठेंगे वहाँ सब लोग आइसक्रीम खा रहे हैं , हम भी खाएंगे l “ हमने सोचा चलो बच्ची का मन रख लेते हैं इसलिए लाल मखमल की कुर्सियों की तरफ जैसे ही पैर बढ़ाए तो साथ आए भाईसहब यानि कि वेटर ने बताया कि मखमली कुर्सियाँ 2100 रुपये का शगुन देने वालों के लिए हैं l हमने हताश होकर बच्चों से प्लास्टिक वाली कुर्सियों पर बैठने को कहा और वेटर भाईसाहब से कहा कि शायद काउंटर पर हमें आइसक्रीम देना भूल गए हैं तो कम से कम बच्चों को तो आइसक्रीम लाकर दे दें l लेकिन पता चला कि आइसक्रीम 2100 सौ देने वालों के लिए है और 1100 सौ वालों के लिए सिर्फ गुलाब जामुन है l इतना सुनना था कि हमारे सपूत ने हमें कंजूस बताते हुए कहा “ पापा , अगर आप लिफ़ाफ़े में एक हजार और रख देते तो हमें अच्छी कुर्सियाँ बैठने को और आइसक्रीम खाने को मिलती लेकिन आप तो पूरे कंजूस हैं l “

   हमने बेटे की तरफ आँखें तरेर कर कहा , “ घबराओ मत , घर जाते हुए रास्ते में तुम लोगों को आइसक्रीम खिला देंगे l अभी फिलहाल जो मिला है वह खाओ और घर चलो l “ हम लोगों ने प्लास्टिक की कुर्सियों पर बैठ कर 1100 रुपये में चार प्लेट खाना खाया और बिसलेरी की छोटी सी खाली बोतल हाथ में लेकर घर आ गए l बोतल पर पाँच सितारा होटल का नाम लिखा हुआ था इसलिए बोतल में घर के नल का पानी भर कर अपने फ्रिज में  रख दी ताकि कोई मेहमान जब हमारे घर आएगा तो उसे बता सकेंगे  कि हमने इस पाँच सितारा होटल में एक डिजिटल शादी अटेन्ड करी  थी l

     रात को सोते समय अचानक श्रीमती जी बोलीं “ सुनिए , जब हमारा  मुन्नू शादी लायक होगा तो हम भी उसकी डिजिटल शादी करेंगे l “ हमने कोई जवाब नहीं दिया और करवट बदल कर सो गए l   

– आरती पांड्या

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