कहानी-मूषक कथा:लेखिका-आरती पांड्या

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Mooshak Katha

मूषक कथा

    कुछ अरसे पहले तक इस शहर की गिनती छोटे शहरों में होती थी , इसलिए यहाँ का युवा अपने सपने पूरे करने के लिए बड़े शहरों की तरफ पलायन कर जाता था ll  लेकिन जब से यहाँ पर दो सॉफ्टवेयर कम्पनियां आगई हैं तब से मानो शहर की प्रगति को पंख लग गए हैं ll  अब तो यहाँ से जाने के बजाय लोग यहाँ आकर बसने लगे हैं और जनसंख्या बढ़ने के साथ ही साथ इस शहर का रंग रूप भी बदलने लगा है ll  बड़े बड़े मॉल , नए नए होटल और एक से बढ़ कर एक आलीशान रिहायशी इमारतें शहर में तेज़ी से बननी शुरू हो गई हैं और छोटा कहलाने वाला यह शहर धीरे धीरे महानगर का रूप लेने लगा है ll  यह बात अलग है कि इस स्मार्ट बनने की दौड़ में शहर के पर्यावरण की ऐसी की तैसी हो गई है और हर जगह प्रदूषण , भीड़ और कचरा नज़र आने लगा l लेकिन यहाँ हम पर्यावरण पर बातचीत नहीं कर रहे हैं बल्कि बात चूहों की कर रहे हैं l जी हाँ ! वो ही चूहे जो हर जगह नज़र आते हैं और जिनसे छुटकारा पाने के लिए ना जाने कितने प्रलोभनों के जाल बिछाकर इन्हें पकड़ने के प्रयास किये जाते हैं l l लेकिन सवाल यह है कि बेचारे यह चूहे और इन्हीं के जैसे बेघर गरीब जो कि समाज का ही एक हिस्सा हैं आखिर इस प्रगति के दौर में कहाँ जाकर बसें ?

    जब तक इस शहर का सौन्दर्यीकरण शुरू नहीं हुआ था तब तक तो  चूहों की मौज ही मौज  थी l ना तो रहने और खाने की कोई परेशानी थी और ना ही कहीं आने जाने की कोई मनाही  थी क्योंकि तब तक बीहड़ और उजाड़ पड़े इलाकों में रहने वाले बेघर लोग भी इन चूहों जैसे ही थे जो खाली पड़ी किसी भी जगह पर अपना आशियाना बना लेते थे और फिर  चूहे अपना ही घर समझ कर इनलोगों के प्लास्टिक की बरसातियों से ढंके गत्ते के महलों  में घुस कर अपना बिल बना लेते थे और उसके बाद रात दिन इंसान और चूहे का पकड़ा पकड़ी का खेल तो चलता रहता था लेकिन सभी की गुज़र बसर होती रहती थी l उन इलाकों की टूटी-फूटी झोपड़ियां में बसे हुए शहर के बेघर लोगों के बीच में ही हमारी इस कथा का नायक मूषक भी अपने साथियों के साथ रहता था l उन झोंपड़ियों में हालांकि रोज़ भरपेट खाना नहीं पकता था पर फिर भी हर चूहे को उसके मतलब भर का खाना किसी ना किसी चूल्हे के आसपास मिल ही जाता था l लेकिन जब से झोंपड़ियाँ वहां से हटी हैं , तब से बेचारे चूहों के पेट पर तो जैसे लात ही पड़ गई है l

  नई इमारतों की नींव पड़ते ही वहां की झोंपड़ियों के साथ साथ सभी मूषकों को भी वहां से पलायन करना पड़ा था जिसकी वजह थी रात दिन वहाँ चल रहे निर्माण का शोर और विशालकाय क्रेनों द्वारा की जा रही नीव की खुदाई , जिसने बेचारे चूहों के बिल पूरी तरह नष्ट करके उनके शांति पूर्ण जीवन में उथल पुथल मचा दी थी और इन खतरनाक गतिविधियों से घबरा कर कुछ चूहे तो वहाँ के निवासियों के पीछे पीछे जाकर उनके साथ ही अलग अलग जगहों पर बस गए थे लेकिन कुछ अब भी वहीं टिके हुए थे l

    जिस समय नई इमारतों की नींव पड़नी शुरू हुई थी , उस वक्त  कुछ चूहे यह सोच कर बड़े खुश थे कि अब उनका ‘स्टैण्डर्ड ऑफ लिविंग’ बढ़ जाएगा क्योंकि टूटी झोपड़ियों में भटकने के बजाय अब वे लोग बड़े बड़े घरों में जा कर बढ़िया खाना खा सकेंगे और उन एयरकंडीशंड घरों में अपना ठिकाना बना सकेंगे क्योकि उनके एक बुद्धिमान और घुमंतू मित्र चतुर चूहे  ने अपने एक ऐसे ही ‘महल प्रवास’ के बारे में बताते हुए कहा था कि बड़े घरों में बढ़िया खाना तो मिलता ही है साथ में एक बड़े से डिब्बे में बंद बहुत सारे लोगों का नाच –गाना भी देखने को मिलता हैl  l उस चतुर चूहे ने अपने मित्रों को टॉम और जेरी के बारे भी बताया था कि कैसे उस नाच गाने वाल़े डिब्बे में रहने वाला उनके जैसा ही एक चूहा एक बिल्ली को परेशान करता रहता है और चैन से रहता है ll  चतुर की बातों में मगन उसके साथी अपने नए आलिशान आशियानों की कल्पना कर के बहुत खुश थे ll  

   लेकिन चतुर ने अपने साथियों को यह नहीं बताया था कि बिना खिड़की और दरवाजों वाली झोंपड़ियों में निडर होकर घूमना जितना आसान था , शहर के बड़े बंगलों में ठिकाना बनाना और खाना ढूंढना उतना ही कठिन था ll  उसने यह सच्चाई भी अपने साथियों  से छिपाई थी कि अपने महल प्रवास के दौरान वो वहां के निवासियों द्वारा बिछाए गए जानलेवा जाल में से कैसे बमुश्किल निकल कर वापिस आया था ll  बहरहाल यह सभी महत्वाकांक्षी चूहे अपने अपने नए ठिकानों की खोज में निकल पड़े थे और इनका नेतृत्व चतुर चूहा कर रहा था ll  

  इन चूहों की तरह ही उस ज़मीन को खाली करके जाने वाले बेघर लोगों ने जहां और जैसी जगह मिली वहां सिर छुपाने का ठिकाना बना लिया था लेकिन इनमें भी महत्वाकांक्षी चूहों जैसा ही एक ऊंची सोच वाला मजदूर था जिसका नाम सुखीराम था , जिस बेचारे ने अपने नाम के अनुरूप सुख का एक दिन भी नहीं देखा था l l उसके गरीब माँ बाप ने शायद इस आशा में बेटे का नाम सुखीराम रखा होगा कि उनका बेटा बड़ा होकर अपने नाम को सार्थक करेगा मगर बेचारा सुखीराम रोज़ी रोटी की तलाश में भटकते हुए कब सुखीराम से सूखा बन गया ,पता ही नहीं चला , क्योंकि सिर्फ नाम से ही नहीं बल्कि शरीर से भी वो किसी सूखे पेड़ की पतली टहनी जैसा ही लगता था और उसके सामने के दो टूटे हुए दांतों के बीच में से शब्द हवा के साथ ऐसे फिसल जाते थे कि सुनने वाले को बहुत दिमाग दौड़ा कर उसकी बात को समझना पड़ता था l तो हम बात कर रहे हैं सूखे की ( अब हम भी सुखीराम को सूखा या सूखे के नाम से ही बुलाएंगे ) जो पहले उस बड़ी सी ज़मीन के एक छोटे से कोने में इधर उधर से बटोर कर लाये हुए कार्डबोर्ड  के टुकड़ों पर प्लास्टिक का कवर चढ़ा कर बनाये गए अपने झोंपड़े में आराम से रहता था l आराम से मतलब यह है कि दिनभर की मेहनत के बाद जो मजदूरी मिलती थी उससे दारू और चखना खरीद कर शाम को जब वो अपनी झोंपड़ी में आकर बैठता था तो खुद को किसी बादशाह से कम नहीं समझता था l जिसकी वजह थी शेरू नाम का एक लावारिस कुत्ता जो खाने और पीने दोनों में ही उसका साथी था और उसे एक अन्नदाता वाली फीलिंग देता था l l वैसे शेरु किसी आम आवारा कुत्ते जैसा नहीं था बल्कि देखने में अच्छी नस्ल का लगता था , ऐसा लगता था जैसे किसी ने अपना पालतू कुत्ता सड़क पर भटकने के लिए छोड़ दिया था l उसे पहली बार देख कर ही सूखे को उसपर बड़ी दया आई थी और वो उसको अपने साथ ले आया था और तभी से शेरु उसकी ज़िंदगी का अभिन्न हिस्सा बन गया था l शेरु भी सूखे की बहुत इज्ज़त करता था और जैसे ही सूखा अपने टूटे दांतों के बीच से ‘फेरु’ पुकारता था तो नाम से पहले जो सीटी सी बजती थी उसे सुनते ही शेरु दौड़कर सूखा के पास पंहुच जाता था और जब सूखा अपनी दारू की बोतल और चखने की थैली खोलता था तो शेरु सामने ऐसे आकर बैठ जाता था जैसे उसे कंपनी देने के लिए उसका कोई परम मित्र आया हो l शुरू में तो सूखा उसे अपने साथ बैठा कर सिर्फ दारू और चखना ही खाने पीने को देता था लेकिन बेचारे शेरु का उससे पेट ही नहीं भरता था इसलिए अपने लिए चखना और दारू खरीदने के साथ ही अब सूखा ने ढाबे से दो रोटियाँ शेरु के लिए भी लाने का जुगाड़ कर लिया था l रोटी खाकर और दो घूंट दारू के पीने के बाद शेरु बड़े प्रेम से उसके हाथ चाटता था और फिर शेरू और सूखा आराम से अपने उस महल में सो जाते थे l

     एक रात को खाने की तलाश में घूमते हुए सूखा की खाने की थैली में बचे चूरे को खाने के लिए हमारा हीरो चूहा भी वहाँ आगया और चूरा टूँगते हुए उसके धक्के से वहाँ रखी दारू की बोतल लुढ़क गई l बोतल की बची खुची दारू ज़मीन पर बिखर गई तो चूहे ने उसे बर्बाद होने से बचाने  के लिए चाट कर साफ कर दिया l सूखा ने अपना अमृत यूं बर्बाद करने के लिए चूहे को संटी से पीटना चाहा लेकिन नशे के बाद निशाना सध नहीं पाया और इस बीच में दारू की बिखरी बूंदों को चखने का सौभाग्य पाकर मूषक सिंह तो मानो ब्रह्म में लीन हो चुके थे l फिर तो जनाब को उस दिव्य वस्तु का ऐसा चस्का पड़ गया कि उन्होने सूखे की झोंपड़ी को ही अपना स्थायी घर बना लिया और शेरु से भी ज़्यादा अब वह चूहा अपने अन्नदाता के इर्दगिर्द घूमने लगा और जब सूखे ने वह जगह छोड़ी तो उसके साथ शेरु और मूषक सिंह भी नए ठिकाने की खोज में चले गए l

  अरसे से कचरे के बीच अपने टूटे फूटे रंगमहल में रह रहे ये तीनों प्राणी जब शानदार कौलोनियों में नए ठिकाने की तलाश में पँहुचे तो सिर छुपाने की कोई जगह ना मिलने पर उन्हें सड़क के किनारे या किसी सूखी नाली में ही सोना पड़ता था l एक दिन सूखा एक पार्क के बाहर शेरु को छोड़ कर और उसे कहीं ना जाने की नसीहत देकर जब मजदूरी की तलाश में चला गया तो चूहा भी सूखे के पीछे पीछे चल दिया और शेरु कुछ देर इधर उधर भटकने के बाद एक पेड़ के नीचे बैठ कर अपने मालिक का इंतज़ार करने लगा l तभी एक शानदार गाड़ी वहाँ आकर रुकी और उसमें से एक संभ्रांत व्यक्ति उतर कर शेरु के पास आया और उसे सहलाने लगा l वो व्यक्ति दरअसल एक पशु प्रेमी था और जब उसने एक अच्छी नस्ल के कुत्ते को यूं सड़क पर  बैठे हुए देखा तो लावारिस समझ कर उसे अपने साथ लेगया l  शेरु भी बड़े प्रसन्न मन से अपने नए मालिक की शानदार गाड़ी में बैठ कर चला गया l जब शेरु अपने नए मालिक के साथ जा रहा था तभी सूखा वहाँ वापिस लौटा और जब उसने अपने शेरु को एक बड़ी सी गाड़ी में बैठ कर जाते हुए देखा तो उसे रोकने के लिए गाड़ी के पीछे भी दौड़ा लेकिन शेरु चला गया l सूखे को अपने शेरु से यह उम्मीद नहीं थी, वो तो उसे अपना सच्चा दोस्त समझता था इसलिए शेरु के जाने के बाद वो हताश सा सड़क के किनारे बैठ कर शेरु को लेजाने वाले उस ‘राक्षस साहब’ की गाड़ी के टायरों के दूर तक नज़र आने वाले कीचड़ भरे निशानों को सूनी आँखों से ताकने लगा l मगर इस दुख की घड़ी में सूखे को उसके चूहे मित्र ने अकेला नहीं छोड़ा था, और छोड़ता भी कैसे ? उसकी तकदीर तो  शेरु जैसी थी नहीं कि कोई गाड़ी वाला साहब उसे अपने साथ ले जाता ! उस बेचारे को तो सूखे के दिये हुए चूरे का ही आसरा था l इसलिए सूखे की बगल में बैठ कर चूहा उसके हाथ पर रेंगता रहा l जब सूखा ने अपनी बगल में बैठे चूहे को देखा तो उस पर प्यार से हाथ फेर कर थोड़ा चखना और देसी की कुछ बूंदें अपनी हथेली पर रख कर चूहे को खिलाते पिलाते हुए शेरु की बेवफाई का किस्सा उसको सुनाते हुए बोला , “बेटा मूसक लाल , जैसे हम तुझे अपने हाथ से पिलावत हैं  वैसे ही सेरू को भी पिलाया करत रहे, फिर भी वो हमे छोड़ कर उस गाड़ी वाले साहब के साथ चल दिया l धोखेबाज कुत्ता कहीं का l कौनों बात नाहीं , आज से तू हमारा सेरू है l” बेचारा चूहा चुपचाप सूखे की दुखभरी कहानी सुनता रहा और उसकी हथेली से दारू चाटते हुए अपने सेरू नामकरण के बारे में  सुनकर तो एकदम ‘सेंटी’ हो गया और सूखा उसे राजा हरिश्चंद्र से भी बढ़कर दयालु नज़र आने लगा l सूखा के सच्चे हितैषी की तरह उसने यह सोचना शुरू कर दिया कि कैसे वो सूखा को दुख देने वाले उस गाड़ी वाले साहब को ढूंढकर उसे तकलीफ पंहुचाए और अपने मित्र सूखा के दुख का बदला ले ( अब आप समझ जाइए कि यह बदले की भावना केवल हम मनुष्यों में ही नहीं होती है बल्कि सोमरस पान के बाद एक चूहे के मन में भी पनप सकती है )

  बहरहाल शेरु को थोड़ी देर के लिए भूल कर अब सूखा और मूषक की ‘ ठिकाना खोज’ फिर से चालू हो गई और वे लोग हर गली मुहल्ले में घूम घूम कर रहने का जुगाड़ बैठाने की उठा पटक में लग गए l ऐसे ही घूमते घूमते एक दिन सूखाराम एक रिहायशी इमारत की भूमिगत पार्किंग के पास पंहुच कर वहाँ बैठे चौकीदार से बातें करते हुए रहने की किसी जगह के बारे में उससे पूछने लगा और तभी उसकी नज़र पार्किंग से निकलती उसी गाड़ी पर पड़ी जो उसके शेरु को उससे छीन कर ले गई थी l आज साहब की बगल में मेमसाहब भी बैठी हुई थीं और पीछे की सीट पर साहब का दस बारह साल का बेटा बैठा शेरु के साथ खेल रहा था l सूखा से नहीं रहा गया और उसने ज़ोर ज़ोर से शेरु को आवाज़ें देना शुरू कर दिया l बंद शीशों वाली एअर कंडीशंड गाड़ी के अंदर बैठे साहब और उसके परिवार के कानों तक तो शायद उसकी आवाज़ पंहुची ही नहीं , लेकिन शेरु ने अपने पुराने मालिक के टूटे दांतों से निकलती सीटी को पहचान कर और उसकी सूखी काया को गाड़ी के सामने लहराते हुए देख कर अपनी झबरी पूंछ का पंखा लहराना शुरू कर दिया जो सीधा साहब के बेटे के चेहरे पर जाकर लगा और उसने शे…रु …नहीं नहीं टाइगर को अङ्ग्रेज़ी में डांटते हुए तमीज़ से बैठने को कहा तो बेचारा शेरु टर्ण्ड टाइगर झट से चुपचाप बैठ गया और गाड़ी सर्र से आगे चली गई l  सूखे को अब इतना तो पता चल ही गया था कि उसका शेरु  इस शानदार बिल्डिंग के अंदर रहता है इसलिए उसने तय किया कि जब तक शेरु के साहब की गाड़ी वापिस नहीं आएगी और वो साहब से बात नहीं कर लेगा तब तक वहाँ से कहीं नहीं जाएगा l 

  मगर अंधेरा होने लगा और गाड़ी वापिस नहीं आई तो पार्किंग के चौकीदार ने सूखे को वहाँ से जाने को कहा लेकिन सूखा जाने को तैयार नहीं था इसलिए अपनी बोतल लेकर चौकीदार भैया के पास आया और उससे दो घूंट लगाने का आग्रह करने लगा l गार्ड भैया की नीयत तो बोतल देख कर डोलने लगी , मगर फिर भी ड्यूटी पर ना पीने की बात कह कर सूखे के आग्रह को ठुकरा दिया l लेकिन सूखे ने जब दोबारा बोतल आगे बढ़ाई तो झट से दो घूंट सटक कर और मुंह पोंछ कर बोतल सूखे को लौटा कर उससे बातें करने लगा,  लेकिन अब सूखा को नींद  के झोंके आने लगे थे इसलिए उसी इमारत के बाहर सड़क के किनारे लुढ़क कर उसने बोतल में बची हुई दारू गटक कर गला तर किया और फिर कुछ बूंदें  मूषक के सामने डालते हुए अपना दुख उसके सामने बखानते हुए बोला कि ‘वो आज सड़क के किनारे से तब तक नहीं हटेगा जब तक कि गाड़ी वाले साहब से बात नहीं कर लेगा l’ लेकिन अपने चूहे से बातें करते करते ही सूखे की आँख लग गई l यह देख कर मूषक ने उसे जागने की कोशिश भी नहीं करी क्योंकि वह  जानता था कि ना तो गाड़ी वाला साहब सुखीराम की बात सुनेगा और ना ही शेरु वापिस उनके पास आएगा पर अपने ‘अन्नदाता’ के दुख को देख कर और दिव्य पेय की बूंदें चखने के बाद चूहे के मन में गाड़ी वाले साहब के प्रति बदले की भावना तेज़ी से फन उठाने लगी इसलिए बदले की भावना से भरा चूहा सूखा के पास से उठकर धीरे से इमारत की पार्किंग के अंदर चला गया और सूखा के ‘दुश्मन’ की कार के आने का इंतज़ार करने लगा l जब भी कोई गाड़ी अंदर आती तो मूषक चौकन्ना हो जाता पर गाड़ी से उतरने वालों के साथ शेरु को ना देख कर फिर से विश्राम की स्थिति में बैठ जाता l

  आखिर उसका इंतज़ार रंग लाया और जब  शेरु एक बड़ी सी गाड़ी में से अपने नए मालिक के परिवार के साथ अपना नया अँग्रेजी नाम ‘टाइगर’ सुनकर और अँग्रेजी में दिये जा रहे आदेशों को  समझते हुए उतरा तो मूषक फौरन दौड़ कर शेरु के पास पन्हुचा और उसके पैर में एक टहोका देकर बोला “ शेरु भैया , तुम्हारी तो अब बड़ी मौज है , गाड़ी में घूमते हो और इंग्रेजी बोलते हो” l शेरु ने मूषक की तरफ हिकारत से देखते हुए उसे अङ्ग्रेज़ी में कहा कि दिन भर  रेसोर्ट में घूमने के बाद अब वह बहुत थक गया है इसलिए जाकर अपने एअर कंडीशंड कमरे में नरम बिस्तर पर रेस्ट करेगा l ‘सो गेट लौस्ट’ और फिर शेरु ने गुस्से से अपना पैर झटका और  आगे बढ़ गया l अपने पुराने मित्र की अंग्रेज़ी तो मूषक को समझ में नहीं आई लेकिन उसके निष्ठुर व्यवहार से आहत चूहा अब और भी ज़ोर शोर से शेरु के मालिक से बदला लेने के इरादे से फौरन शेरु के पीछे चल दिया लेकिन फिर कुछ सोच कर उसकी कार के पास पन्हुचा क्योंकि उसकी दृष्टि में कार ही उसकी और सूखे की सबसे बड़ी दुश्मन थी क्योंकि वही शेरु को लेकर गई थी इसलिए पहले कार को ही कष्ट पन्हुचाना ज़रूरी था l यह सोच कर वह गाड़ी के चारों तरफ घूम कर उसके अंदर घुसने का रास्ता ढूँढने लगा l काफी देर की जी तोड़ कोशिश के बाद आखिर गाड़ी के एयर कंडीशनर की जाली में से किसी तरह चूहा अंदर पंहुच ही गया और पहले तो गाड़ी की सीटों पर खूब उछला कूदा, उसके बाद सीट पर पड़े एक बिस्किट के खाली पैकेट में से बचा खुचा चूरा खाया मगर तभी उसके मन ने उसे धिक्कारा और उसकी सोई हुई बदले की भावना को जगा कर उसे अपने कर्तव्य को पूरा करने की याद दिलाई तो मूषक गाड़ी के मालिक का अभी अभी खाया हुआ बिस्किट वाला नमक भूल कर अपने मित्र सुखीराम के चखने के पुराने नमक का कर्ज़ उतारने के लिए गाड़ी की सीटों को कुतरने में जुट गया l

   लेकिन उन मजबूत गद्दियों को कुतरने से जल्दी ही उसके दांतों में दर्द होने लगा तो उसने इधर उधर नज़र आरहे दो चार तार काटे , कुछ रबर के पावदान कुतरे और बाद में थककर सीट के नीचे घुस कर सो गया l

   उधर सड़क के किनारे ऊँघते हुए साहब के आने का इंतज़ार कर रहे सूखा ने जब आँख खोल कर अपने आस पास चूहे को ढूंढा तो उसके ना मिलने पर थोड़ा उदास होकर सोचने लगा कि ‘जब शेरु ही उसका नहीं हुआ तो एक चूहा क्या दोस्ती निभाएगा’ और अपने दोनों साथियों के मोह से मुक्त होकर अपने खाली पेट में उठते भूख के भूचाल को रोकने के लिए पास लगे सरकारी नल से भर पेट पानी पीकर फुटपाथ पर सिकुड़ कर सो गया l रात बीती और सुबह जब गाड़ी के मालिक ने दफ्तर जाने के लिए अपनी कार का दरवाजा खोला तो अपनी लाखों की गाड़ी की दुर्दशा देख कर गुस्से से काँप उठा और पार्किंग के चौकीदार को बुला कर उसे ऐसे डांटने लगा जैसे कार में काट पीट उसी ने की हो और वो बेचारा अपने द्वारा नहीं की गई गलती के लिए साहब से माफी  मांगने लगा l उन दोनों की इस चिकचिक ने कुतरी हुई सीट के नीचे चैन से सो रहे हमारे चूहे की निद्रा भंग कर दी और अपनी करतूत से परेशान साहब की पीड़ा से खुश होता हुआ चूहा उसकी आँख बचा कर धीरे से गाड़ी के खुले दरवाजे से बाहर सरक गया l पर चौकीदार की नज़र चूहे पर पड़ गई और वो उसके पीछे ऐसे दौड़ा जैसे किसी चोर के पीछे पुलिस दौड़ती है l मगर चूहा तब तक दौड़ कर पार्किंग से बाहर निकल गया था इसलिए ‘वाच मेन’ सिर लटका कर वापिस साहब की गाड़ी के पास आ कर खड़ा हो गया तब साहब ने उसे अपनी ड्यूटी अच्छी तरह आँखें खोल कर करने की हिदायत दी और अपनी गाड़ी स्टार्ट ना हो पाने के कारण किसी टेक्सी के इंतज़ार में पार्किंग से बाहर निकला मगर फिर वापिस आगया और एक बार फिर से चौकीदार को चौकन्ना रहने का आदेश देकर अपने घर चला गया l 

   पार्किंग से निकल कर चूहा सूखा के पास पंहुचा और उसे सोता देख कर उसके हाथ पर दौड़ने लगा l चूहे की इस दौड़ भाग की हलचल से जागकर सूखे ने आँखें मलते हुए अपने आसपास के माहौल को पहचानने की कोशिश करी और तभी उसे याद आया कि वो तो गाड़ी वाले साहब के इंतज़ार में यहाँ बैठा हुआ था फिर सो कैसे गया ? उसे अपने ऊपर खीज आरही थी , तभी अपने चूहे को देख कर वो झट से उठ कर बैठ गया और उससे पूछने लगा कि वह कहाँ चला गया था l मूषक ने सूखा के सवाल के जवाब में उठकर पार्किंग की तरफ दौड़ना शुरू कर दिया और फिर रुक कर सूखा की तरफ देख कर दोबारा दौड़ना शुरू कर दिया l इतने दिनों के साथ के बाद अब सूखा अपने चूहे दोस्त की भाषा समझने लगा था इसलिए उठ कर उसके पीछे चल पड़ा l

    चूहा तो पार्किंग के फाटक के नीचे से सरक कर अंदर चला गया मगर सूखा को चौकीदार ने बाहर ही रोक लिया l सूखा को चौकीदार की यह हरकत ज़रा भी रास नहीं आई क्योंकि उसने रात को चौकीदार भैया को अपनी बोतल में से दारू भी पिलाई थी l तब तो बड़े मजे ले कर दारू गटक रहा था और अब साला नमक हराम ! सूखे को पहचानने से भी इंकार कर रहा था ! सूखा ने बड़ी हिकारत भरी आवाज़ में उसे याद दिलाते हुए कहा , “गारड भैया , रात में तो हमरी बोतल में से खूब दारू गटक रहे थे और इस समे हमको पहचान भी नाही रहे हो ?अरे भूल गए कि हम तुमसे रहने की जगह के बारे में बात चीत करे थे l” सूखे ने अपना परिचय देकर अंदर जाने की बड़ी कोशिश करी मगर चौकीदार ने दो टूक जवाब पकड़ाया “ अबे , ओरे मक्कार ! हमसे झूठ बोलते हो ? हम तो सबेरे डिऊटी पर आए हैं रात को हमसे कब बात करे हो तुम ! अब सीधे रफूचक्कर हुई जाओ वरना दुई डंडा जड़ेंगे और पुलिस के हवाले कर देंगे l”

   सूखा फाटक के अंदर जाने के लिए बेचैन हो रहा था इस लिए बोला , “चौकीदार भैया , हमारा सेरू यहीं अंदर रहता है उससे मिले खातिर जाना है l  हमारा चूहा अबहीं फाटक के नीचे से अंदर गया है अब हमको भी जाने दो भैया l” सूखे की बात सुन कर तो चौकीदार ने उसकी गर्दन ही दबोच ली “ अच्छा ! तो तेरा है वह बदमास चूहा l”और वो सूखे की गर्दन को पकड़ कर हिलाने लगा l बेचारा सूखा उसकी पकड़ से छूटने के लिए कसमसाता रहा पर चौकीदार की पकड़ ज़रा भी ढीली नहीं हुई और वो उसे  घसीटता हुआ गार्ड पोस्ट के अंदर ले गया और फिर इंटर कौम पर 804 नंबर फ्लैट के साहब से गाड़ी की सीट काटने वाले चूहे के साथी को पकड़ने की अपनी वीरता बखानते हुए उन्हें तुरंत पार्किंग में आने को कहा और फोन रखने के बाद अकड़ कर सूखे से बोला , “ बस अब तू कम से कम दस साल के लिए अंदर जाएगा क्योंकि तेरे चूहे ने जिन साहब की गाड़ी को नुकसान पन्हुचाया है उनके दोस्त पुलिस के बहुत बड़े कनिस्तार हैं और तुझसे वो अब चक्की पिसवाएंगे l”

     सूखे को समझ नहीं आया कि टीन का कोई कनस्टर किसी साहब का दोस्त कैसे हो सकता है लेकिन इस समय उसकी गर्दन चौकीदार के शिकंजे में फंसी हुई थी इसलिए बेचारा सूखा मारे डर के और भी सिकुड़ कर चौकीदार के सामने गिड़गिड़ाने लगा , “भइयाजी , अइसा ज़ुलम मत करो , अपने सेरू की कसम खा कर क़हते हैं हमने साहब की गाड़ी में कुछ नई करवाया है और सरत लगा के कहते हैं कि साहब की गाड़ी  काटे में हमारे मूसक सिंह का भी हाथ नाहीं है l हमारा मूसक तो बहुतये सीधा हैगा l काट पीट करना तो जानत ही नाही है l” चौकीदार ने सूखा की गर्दन में एक और झटका मारते हुए पूछा ,” अच्छा ! तो अब तू चूहे की पैरवी भी कर रहा है ? अच्छा तो फिर यह बता कि तेरा वो चूहा अंदर क्यों गया था ? क्या काम था विसे अंदर ?” 

  सूखा कुछ बोलता उसके पहले ही गाड़ी वाले साहब आते दिखाई दिये तो चौकीदार सूखा को घसीटता हुआ गार्ड पोस्ट से बाहर लाते हुए बोला , “ अब तुझे जो भी कहना है गाड़ी वाले साहब से कहियो , देख वो आगए साहब l” और फिर उसने ज़ोर से सलाम मारते हुए साहब को अपनी वीरता की कहानी सुनानी शुरू कर दी , मगर साहब ने उसकी इस किस्सागोई में रुचि ना दिखाते हुए सूखा राम से सवाल किया कि उसने अपने चूहे से गाड़ी की इतनी मंहगी सीट क्यों कटवाई ?

   सूखा जो कि पहले ही इन साहब से खार खाये हुए था उनके इस सवाल पर हत्थे से उखड़ गया और बोला , “ साहब , हमें  का पता कि कौन चूहा आप केर गाड़ी को काटा है ? अरे हमसे पूछ कर थोड़े ना गया रहे l गाड़ी मा कछु खाय को ना मिला होई तो गाड़ी केर बरबादी किए होई l” इतना बोलने के बाद शायद सूखा को लगा कि उसे ऐसा नहीं कहना चाहिए था इसलिए हाथ जोड़ कर साहब के सामने झुक गया और बोला , “ साहब , हम अपने मूसक की तरफ से माफी मांगत हैं l वैसे आप जब से हमारे सेरू को अपनी गाड़ी में ले गए तबहि से हमारा मूसक इकल्ला पड़ गया है और अपने दोस्त से मिलने आप केर गाड़ी मा गया होई l अब चूहा ठहरा साहब , जब इंसान गुस्से माहियाँ एक दूसर के खून के प्यासे होई जात हैं तो वो तो चूहा है l काट दी होई गाड़ी l पर सरकार हमारा ई नुकसान मा कौनों दोस नाहीं है l आप बस हमारा सेरू हमे लौटा दीजिये l”

   साहब ने आगे बढ़  कर एक झापड़ सूखा को रसीद किया और बोले ,” मैं किसी सेरू को नहीं जानता हूँ वैसे भी तेरे बेटे को मैं क्यों अपने घर में रखूँगा l अपनी यह झूठी कहानी सुना कर मुझपर झूठा इल्ज़ाम लगाने की तेरी हिम्मत कैसे हुई , यू इडियट l”

   सूखा तो बेचारा घबराहट में उस साहब की आधी बात समझ ही नहीं पाया था लेकिन चौकीदार के कान साहब की बात से खड़े हो गए थे इसलिए उसने सूखा से कहा , “ अबे ! तेरा दिमाग तो ठिकाने पर है ? भला साहब तेरे लौंडे को क्यों उठा कर ले जाएंगे जबकि उनका अपना खुद का बिटवा है l”

  चौकीदार की बात सुनकर बदहवास सूखा ने हकलाते हुए कहा ,” ह..हमने क….कब कहा कि साहब ने हमार बिटवा चुराया है l सेरू तो हमारे कुक्कर क्यार नाम है, जिसे ये साहब पारक के बाहिर से अपनी गाड़ी मा बैठाये के ले आए रहे l” साहब ने एक तुच्छ सी नज़र सूखे पर डालते हुए पूछा , “ वो तुम्हारा डौग है ? इमम्पौसेबल ! इतनी अच्छी ब्रीड का डौग तुम्हारा हो ही नहीं सकता है और अगर तुम्हारा है तो उसे सड़क पर क्यों छोड़ा हुआ था ? उसे लावारिस समझ कर मैं अपने घर ले गया और अब वो हमारी फेमिली का एक मेम्बर है l हमारे घर के कमफर्ट्स छोड़ कर अब वो तुम्हारे साथ नहीं जाएगा l ” 

  सूखा ने हाथ जोड़कर जवाब दिया , “साहब हमारे पास आप लोगन जैसे आलीसान मकान तो हैं नहीं रहने खातिर l रात मां कहीं भी पड़ कर सो जावत हैं l विस दिन अपने सेरू को पेड़ के नीचे बैठाये कर हम काम की तलास मा गए रहे और उत्ती देर मा आप सेरू को लेकर चले गए l साहब एक बार हमका अपने सेरू से मिलने दो l देख लेना हमारा सेरू हमे पहिचान के दौड़ के हमरे पास आजाई l”

 सूखा की बात का कोई उचित जवाब साहब को नहीं सूझ रहा था इसलिए पलटवार करते हुए बोले , “ तुम एक काम करो , गाड़ी का जो नुकसान तुम्हारे चूहे ने किया है उसकी भरपाई कर दो और अपना डौग ले जाओ l” सूखे ने आशाभरी आँखों से साहब को निहारते हुए पूछा , “कत्ते रुपये देने हैं साहब ?” साहब ने डौन वाला लुक देते हुए जवाब दिया , “ पच्चीस हज़ार रुपये देदो और अपना डौग लेजाओ वरना मैं अभी पुलिस को फोन करके तुझे जेल भिजवा दूंगा l” और सूखे से जवाब की कोई भी अपेक्षा किए बगैर गाड़ी वाला साहब पलट कर चल दिया l सूखा  पीछे से गिड़गिड़ाता रहा लेकिन साहब ने उस पर कान नहीं दिये l चूहा यह देख रहा था इसलिए उसने तुरंत अपना ‘लाइन औफ़ एक्शन’ तय किया और साहब के पीछे पीछे चल कर झट से लिफ्ट में जाकर एक कोने में दुबक गया l

 साहब अपनी गाड़ी की बरबादी के दुख के में डूबा हुआ था इसलिए उसकी नज़र शायद कोने में दुबके हुए चूहे पर नहीं पड़ी और उसने लिफ्ट का आठवीं मंज़िल का बटन दबाया और चुपचाप खड़ा होकर अपने फ्लोर के आने का इंतज़ार करने लगा l लिफ्ट रुकी तो साहब के साथ ही चूहा भी झट से बाहर निकला और एक किनारे रुक कर साहब के किसी दरवाजे के अंदर घुसने का इंतज़ार करने लगा और जैसे ही साहब एक फ्लॅट के अंदर गया , चूहे ने होशियारी बरतते हुए उस फ्लॅट की एक खुली हुई खिड़की से अंदर छलांग लगा दी l

 ‘वाह ! शेरु भैया तो बड़े सुंदर महल में पंहुच गए हैं l’ चूहे ने फ्लॅट में चारों तरफ नज़र दौड़ाते हुए सोचा और उसकी इच्छा हुई कि वह भी शेरु के साथ वहीं बस जाए l यह सोच कर वह शेरु को ढूँढता हुआ जब उसके पास पन्हुचा तो देखा कि  शेरू उर्फ टाइगर अपने पलंग पर कुछ खिलौनों के साथ खेलते हुए टेलीविज़न पर कुत्तों का नाच देख रहा है l मूषक ने पलंग पर चढ़ कर शेरु को उसके भाग्योदय के लिए बधाई देते हुए सूखा के दुख की दर्द भरी कहानी सुनानी चाही तो शेरु ने तुरंत उसे रोकते हुए कहा ,” मूषक, मैं मानता हूँ कि वो तेरा मालिक मुझे बहुत प्यार करता था लेकिन यह बता कि कौन सा समझदार आदमी अपने कुत्ते को दारू पिलाता है और वो भी ‘चीप’ ठर्रा ! एक बात और बताता हूँ तुझे उस आदमी की l जो दो रोटियाँ मेरे लिए ढाबे से आती थीं वह मुझसे ही चोरी करवा कर लाता था और उसमें से भी एक रोटी खुद खा जाता था l ‘हुंह ब्लडी फूल’ l”  सूखे के प्रति अपनी पूरी भड़ास निकाल कर शेरु ने अब अपने नए मालिक की तारीफ़ें करनी शुरू करीं , “ अब देख चूहे , इस घर में मुझे मटन , चिकन , फल और मेवा सब कुछ खाने को मिलता है और यह मेरा कमरा देख , बेड देख और मेरी सेहत देख ! अब मैं लगता हूँ कि हाँ  ‘इंगलिश लेब्रेडौर’ हूँ वरना उस सूखा ने तो मुझे अपने जैसा ही सड़क छाप बना दिया था l”

   हालांकि मूषक अपने मित्र की बातों से बहुत प्रभावित था और उसका दिल उसे शेरु के नए मालिक के यहाँ रहने की सलाह दे रहा था लेकिन दिमाग ने तुरंत समझाया कि ‘ तू कुत्ता नहीं बल्कि चूहा है और तुझे शेरू जैसी सुख सुविधाएं यहाँ नहीं मिलेंगी इस लिए इस लालच में मत फंस मूषक l’ मूषक सम्हल गया और सूखा का दुखी चेहरा याद करके उसने अपने आप को शेरु के इस नए वातावरण और सुख सुविधाओं से निर्लिप्त करके सूखा के प्रति अपना कर्तव्य पालन शुरू कर दिया और हर काटने लायक चीज़ पर अपने दाँत आज़माने शुरू कर दिये l टाइगर ने यह देखा तो भौंक भौंक कर घर सिर पर उठाते हुए चूहे के वहाँ होने का सिग्नल अपने नए मालिकों को देना शुरू कर दिया l जिस समय चूहा अपने कर्तव्य का पालन करते हुए कुछ किताबों का स्वाद चख रहा था तभी साहब का बेटा मिन्टू टाइगर के भौंकने की आवाज़ सुनकर उस कमरे में आया तो चूहे को देख कर ज़ोर से चिल्लाकर वहाँ से भागा और उसके वहाँ होने की खबर अपने मम्मी और पापा को सुनाते हुए अपनी किताबों के काटे जाने की सूचना दी l

  बेचारा साहब अभी तक अपनी गाड़ी के नुकसान के दुख से उबरा भी नहीं था कि दुश्मन घर के अंदर पंहुच गया ! यह चोट उससे बर्दाश्त नहीं हुई और उसने चूहे को पकड़ने के लिए जाल बिछाने का निश्चय कर के पत्नी से तुरंत चूहेदानी निकाल कर तैयार करने को कहा l मगर पता चला कि पुराने घर को छोड़ते समय पुराने सामान के साथ ही चूहेदानी भी उसने अपने नौकर कलुआ को दे दी थी क्योंकि इस नए फ्लॅट में वह ज़ंक लगी हुई पुरानी चूहेदानी ज़रा भी शोभा नहीं देती l साहब ने खीज कर पत्नी को डांटना शुरू कर दिया और कहा कि पुरानी चीज़ें भी कभी कभी बड़े काम की होती हैं l इस मुसीबत की घड़ी में पुरानी चूहे दानी का जाना साहब को बहुत कचोट रहा था l इसलिए कलुआ को आवाज़ें लगना शुरू कर दिया लेकिन पत्नी ने बताया कि कलुआ तो हफ्ते भर के लिए सब पुराना समान और चूहे दानी लेकर अपने गाँव गया है l  साहब ने गुस्से में हर गलती का ठीकरा अपनी पत्नी के सिर पर फोड़ते  हुए कहा कि अगर इस समय वह चूहे दानी होती तो इस दुष्ट चूहे को पकड़ कर बाहर फेंका जा सकता था l पत्नी ने अपने ऊपर लगाए जा रहे इस आरोप से बचते हुए बड़ी चतुराई से पति देव को ज्ञान देते हुए बताया कि आजकल वह आउट डेटेड चूहेदानियाँ कोई ईस्तमाल नहीं करता है क्योंकि आजकल ‘पेस्ट कंट्रोल’ करने वाली एजेंसियां नए तरीके के ग्लू पैड देती हैं जिन पर चिपक कर चूहा भाग नहीं पाता है और शर्तिया पकड़ा जाता है , यह बात उसकी एक सहेली ने एक बार किटी पार्टी में बताई थी l “ अब मुझे कोसने के बजाय अपने पेस्ट कंट्रोल वाले को फोन करके ग्लू पैड  मँगवा लो या जाकर बाज़ार में पता कर लो , शायद किसी हार्ड वेयर की दुकान पर मिल जाए तो दो ले आना, एक तुम्हारी गाड़ी में लगा देंगे और एक घर में लगा देंगे l” वैसे तो पत्नी की बात से समझौता करना पतियों को अपनी बहुत बड़ी बेइज्जती लगती है मगर इस समय दूसरा कोई चारा नज़र नहीं आरहा था इसलिए पत्नी की आज्ञा मानकर साहब अपनी प्यारी गाड़ी की दुर्दशा पर खौरियाता हुआ हार्ड वेयर की दुकान पर पन्हुचा और नए तरीके के दो ग्लू पैड  लेकर वापिस लौटा तो पत्नी ने झट से एक जाल  घर के किचन के पास लगाया और दूसरा लेकर पति के साथ पार्किंग में गई और कार के अंदर ग्लू पैड लगा कर पूरे आत्मविश्वास के साथ पति से कहा कि अब वो बदमाश चूहा किसी हालत में बच कर नहीं जाएगा l पत्नी के इस ‘कौन्फ़िडेंस’ से प्रभावित पति ने बड़ी गर्मजोशी से पत्नी को ‘थेंक’ करते हुए ना चाहते हुए भी उसकी होशियारी के गुणगान किए और अपनी जीवन संगिनी का हाथ थाम कर घर आगया l

   इस बीच में मूषक ने घर में अपने लिए लगाए गए मौत के जाल के चारों तरफ घूम कर उसको समझने और जानने की कोशिश शुरू कर दी और जैसे ही उस पर रखी घी चुपड़ी रोटी को खाने की कोशिश करनी चाही कि वह समझ गया कि यहीं गड़बड़ होने की संभावना है l लेकिन भूख भी लग रही थी l तभी उसे पास में पड़ी साहब के बेटे की रबर की चप्पल दिखाई पड़ी और उसके दिमाग की बत्ती जल उठी l मूषक ने किसी तरह घसीट कर वह चप्पल चूहे दान के चिपकने कागज पर रखी और फिर उसपर चढ़ कर आराम से रोटी का स्वाद लेने लगा l तभी उसकी नज़र सामने टीवी पर चल रहे कार्यक्रम पर गई जिसमें चूहों की होशियारी के बारे में  बताते हुए कहा जा रहा था कि जल्दी ही अब कई जगहों पर कुत्तों की जगह चूहों को ट्रेंड करके जासूसी और रखवाली कारवाई जाएगी l हमारा मूषक अपनी बिरादरी की तारीफ़ें सुन कर खुशी से फूला नहीं समा रहा था और चप्पल के ऊपर चढ़ कर आराम से रोटी का आनंद ले रहा था l वहीं सोफ़े पर बैठा साहब का बेटा टीवी पर चूहों का कार्यक्रम देखते ही बोला , “ यह अच्छा मौका है , इस चूहे को पकड़ कर मैं अपने स्कूल ले जाऊंगा और अपने बायोलोजी के सर को देकर उनसे इसका ‘डिसेकशन’ करवा कर  इसके दिमाग के बारे में पता करने को कहूँगा तो सर बहुत खुश होंगे l” और वो भाग कर अपने कमरे से एक बड़ा सा रूमाल लेकर आया और रोटी खारहे चूहे को पुचकार कर अपने पास बुला कर उसपर रूमाल डाल कर पकड़ने की कोशिश करने लगा l मगर हमारा मूषक कोई गधा थोड़े है जो बहकावे में आयेगा , वो समझ गया कि मामला गड़बड़ है इसलिए बगैर एक पल का भी वक्त गँवाए जिस खिड़की से आया था उसी से कूद कर बाहर निकल गया और बेचारा साहब का लड़का अपनी असफलता पर हाथ मल कर रह गया l

   घर लौटने पर पति पत्नी ने सबसे पहले ‘स्मार्ट’ चूहेदान का जायज़ा यह सोच कर लिया कि उन्हें उसपर चूहा चिपका हुआ मिलेगा मगर यह क्या ? रोटी और चूहा दोनों ही गायब थे l तब बेटे ने पूरी कहानी सुनाते हुए ग्लूपैड पर रखी अपनी चप्पल दिखाई और चूहे की होशियारी की तारीफ करने लगा l साहब ने एक मोटी  सी गाली देते हुए चूहे को कोसा और थक हार कर बिस्तर पर पड़ गया l मगर पत्नी ने हिम्मत नहीं हारी और रोटी का एक ज़्यादा घी चुपड़ा टुकड़ा दोबारा ग्लू पैड पर रख कर पूरे विश्वास के साथ पति के सामने चूहे के पकड़े जाने की उम्मीद ज़ाहिर करी तो पतिदेव कुछ निश्चिंत हुए और अगले दिन घर या गाड़ी में लगे हुए किसी चूहेदान में फंसे चूहे की कल्पना करते हुए पति पत्नी सो गए l

  चूहा इस बीच में साहब के घर से निकल कर वापिस पार्किंग में गया और साहब की गाड़ी का जायज़ा लेने के लिए उसके अंदर पंहुच गया l वहाँ भी घी चुपड़ी रोटी की गंध आती देख कर चूहा समझ गया कि उसको पकड़ने का इंतज़ाम यहाँ भी किया गया है और उसने तय किया कि अब तो इस गाड़ी वाले साहब को अच्छी तरह मज़ा चखाएगा l फिर क्या था ! शुरू हो गया साहब और चूहे के बीच पकड़ा पकड़ी का दंगल l हमारा चूहा गाड़ी में रखी रोटी का टुकड़ा भी किसी तरह खा कर वहाँ से बच कर निकल लिया और अगले दिन अपनी असफलता से खीजे साहब ने पत्नी के सामने जब नए चूहे दान के फेल होजाने का रोना रोया तो पत्नी जी ने गूगल बाबा की मदद से चूहे पकड़ने के अनेकों उपाय ढूंढ डाले और एक के बाद एक सभी आज़माने शुरू कर दिये पर हर बार चूहा ही इंसान से तेज़ साबित हुआ l बेचारा साहब आखिर कब तक चूहे के पकड़े जाने का इंतज़ार करता इसलिए एक दिन गाड़ी के मेकेनिक को बुला कर गाड़ी स्टार्ट कारवाई और  उसे रिपेयर करवाने के लिए गेराज में ले गया l नई गाड़ी की दुर्दशा देख कर वहाँ काम करने वाले एक मेकेनिक ने साहब को सलाह दी कि रोटी वाली चूहेदानी का झंझट छोडकर चूहे की रोटी में जहर मिला कर उसकी कहानी ही खत्म कर दें या तेज़ाब से भरे बर्तन वाला ऐसा पिंजरा लगा दें  कि उस बर्तन पर रखी रोटी खाने के बाद चूहा सीधा तेज़ाब में गिर कर स्वर्ग सिधार जाए l

  घर पंहुच कर साहब ने अपनी पत्नी को  जहर वाली रोटी बनाने या तेज़ाब वाला पिंजरा लगाने के बारे में बताया तो उस धर्मभीरु महिला ने पहले तो यह कह कर इंकार कर दिया  कि गणेश जी के वाहन को मारने का पाप वो नहीं करेगी पर जब पति ने अपनी लाखो की कार के नुकसान की दुहाई दी तो उसे राज़ी होना ही पड़ा और फिर गाड़ी में बड़े जुगाड़ से एक छोटी बाल्टी में तेज़ाब भर कर उसके ऊपर एक गत्ते के टुकड़े पर खाने का सामान रखा गया और अपनी विजय की पूरी आशा के साथ जब अगले दिन  पति और पत्नी दोनों गाड़ी में चूहे को तड़पते हुए देखने को पँहुचे तो देखा हमेशा की तरह ही आज भी खाने का समान और चूहा दोनों  गायब थे और जिस गत्ते के टुकड़े पर खाने का सामान रखा गया था वह बाल्टी से नीचे गिरा हुआ था l यानि कि चूहे ने गत्ता खींच कर नीचे  गिराया और खाना खा कर चला गया l बेचारे साहब और उनकी मेमसाहब चूहे की होशियारी से हारकर अपना सिर पकड़ कर बैठ गए l

    चूहा दूर बैठा अपने दुश्मनों के चेहरों पर पुती हार की कालिख देख कर परम प्रसन्न हो रहा था और यह सूचना जाकर शेरू को सुनाना चाहता था लेकिन फिर यह सोच कर उसने अपना इरादा बदल दिया कि ‘शेरु भैया तो अब अपने नए मालिक के दुमछल्ले बन गए हैं इसलिए उनको यह सब बताने का कोई फायदा नहीं है’ इसलिए पार्किंग से निकल कर वह अपने अन्नदाता सूखे को ढूँढने चला गया l सड़क के किनारे जहाँ कल उसे छोड़ा था, सूखा वहाँ नहीं था इसलिए मूषक वहां पड़ी सूखे की दारू की खाली बोतल को सूंघ कर सूखे की तलाश में चल दिया l रास्ते में एक जगह खाने की एक थैली दिखाई पड़ी तो उसे कुतर कर खाने चला लेकिन अगले ही पल अपने अन्नदाता के भूखे चेहरे का ख्याल आगया तो थैली को वहीं छोडकर फिर से उसकी तलाश में चल पड़ा लेकिन बड़ी देर तक  भटकने के बाद भी जब वो कहीं नहीं मिला तो बेचारा मूषक थक कर एक अंडेवाले के ठेले के नीचे बैठ कर वहाँ पड़े खाली बर्तनों को चाट कर अपनी भूख शांत करने लगा लेकिन अंडे वाले ने उसे देख लिया और एक लात मार कर वहाँ से भगा दिया तो बेचारा जाकर दूसरे ठेले के पास बैठ गया l तभी उसे सूखा किसी के साथ आता हुआ दिखाई दिया तो मूषक दौड़ कर उसके पैर से होता हुआ उसके शरीर पर चढ़ने लगा  सूखा ने अपने मूसक को देखा तो उसे पुचकार कर उससे बातें करने लगा l यह देख कर सूखे के साथ चल रहे आदमी ने उससे पूछा ,  “हमसे कछु कह रहे हो सुखी राम ?” “” नहीं अजोध्या , हम अपने मूसक से बतिया रहे थे l” फिर उसने अयोध्या नामक अपने साथी को शेरु और मूषक के बारे में बताते हुए अभी तक की सारी आपबीती सुनाई और फिर बोला , “” भैया , अब तो यही मूसक हमारा सहारा हैगा l अब देखो , हमका ढूंढते हुए यहाँ तक आय गवा है l बस इसी लिए अब हम भी तुम्हरी तरह गारड की नौकरी करना चाहत हैं और अपने मूसक को आराम से पाले का चाहत हैं l”

 कुछ महीनों बाद …….

   एक दांत के डाक्टर के क्लीनिक के बाहर गार्ड की कडक वर्दी पहने और हाथ में सोटा पकड़े हमारे सूखा …. नहीं नहीं … सुखीराम जी बैठ कर हथेली पर खैनी मसलते हुए कोई गाना गुनगुना रहे है और मूषक उनके स्टूल के नीचे बैठ कर वहाँ रखी एक बोतल पर पंजे मार रहा  है l खैनी मुंह में दबा कर सुखीराम ने नीचे झांक कर अपने मूसक को प्यार से एक चपत लगाई और बोला , “ सरऊ , हमसे भी बढ़ के पऔए बाज बन गए हो ? तुमका हर बखत पीए का चाही ?’’ लेकिन मूषक बोतल पर पंजा मारता रहा तब हारकर सुखीराम ने बोतल उठा कर उसका ढक्कन खोला और हथेली पर थोड़ा सरसों का तेल ( तेल इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि बोतल पर शुद्ध सरसों का तेल लिखा हुआ है मगर अंदर का तरल पदार्थ तो ब्रह्म के करीब पन्हुचाने वाली सुरा है l ) निकाल कर मूषक राज के सामने किया तो उसने उछल उछल कर अपने मालिक की हथेली को चाटना शुरू कर दिया और सोमरस खत्म होने पर ज़मीन पर गिर कर सो गया l

 लेकिन  सुखी राम बोतल हाथ में पकड़े बड़े असमंजस में बैठा था कि ‘डूटी के समे’ पिये या ना पिये l नई नई नौकरी लगी है और ‘डाक्दर साब’ ने कहा है कि जब उनके पास फालतू दाँत आएंगे तो वो सुखीराम के टूटे दांतों की जगह नकली दाँत भी लगा देंगे और यह सोच सोच कर ही उसका चेहरा खुशी से खिल जाता है कि दाँत लग जाने पर वो कितना सुंदर लगेगा l लेकिन  अगले ही पल बोतल के अंदर का जादू उसे बुलाने लगा और वो अपना गला तर करने की सोच ही रहा था कि तभी उसके ‘डाक्दर साब’ की गाड़ी सामने आकर रुकी l गार्ड सुखीराम ने तुरंत बोतल स्टूल के नीचे सरकाई और फौरन  खड़े होकर साहब को सेलूट करके उनका बैग लेकर क्लीनिक के दरवाजे तक पन्हुचाया और फिर आकर अपने स्टूल पर बैठ कर अपनी ‘डिऊटी’ करते हुए नकली दाँत लगे हुए अपने सुंदर चेहरे की कल्पना में खो गया l  

– आरती पांड्या

1 thought on “कहानी-मूषक कथा:लेखिका-आरती पांड्या

  1. मजा आ गया, पूरी कहानी चल चित्र जैसे दिमाग में चल रही थी। एकदम सजीव चित्रण है। ऐसा लग रहा था कि हम हिंदी में टॉम एंड जेरी का ही सिरयल देख रहे हैं।
    सच में बहुत ही बढ़िया, कहां से लातीं है इतनी रियलिटी। बहुत ही रोचक, ऐसा मन हो रहा था कि खत्म ही न हो।

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