कहानी : वो ख़्वाब-बबिता बसाक

0
Poster copy

वो ख़्वाब

     एक छोटा सा परिवार था गौरी का, जिसमें वो अपनी 5 साल की बेटी राधा और अपने शराबी पति के साथ रहती थी। उसका पति दिन भर शराब पीकर घर पर ही पड़ा रहता। न कोई काम और न ही अपने परिवार की कोई चिंता।

ऐसी स्थिति में गौरी दो तीन घरों में खाना पकाती और अपने परिवार का भरण पोषण करती। घर से बाहर काम के लिए जब भी वह जाती, अपने साथ वह अपनी बेटी को भी साथ ले जाती।

गौरी पढ़ी लिखी नहीं थी लेकिन पढ़ाई के बारे में जानने व सीखने की ललक उसमें बहुत प्रबल थी। जब भी वह स्कूल के बच्चों को बस्ता लेकर स्कूल जाते देखती, वह भी अपनी बेटी के लिए एक ख़्वाब देखने लगती।

काम से थकी हारी जब वह शाम को अपने घर लौटती और चारपाई पर लेटती फिर वही ख़्वाब उसकी आंखों के इर्द-गिर्द घूमने लगते। राधा स्कूल जायेगी, टीचर बनेगी और हम जैसी अनपढ़ महिलाओं को वह पढ़ायेगी और समझदार बनायेगी।

लेकिन वो स्कूल कैसे भेजेगी अपनी बिटिया को? वह तो कभी स्कूल गई ही नहीं। उसे तो ठीक से बात करना भी नहीं आता। क्या स्कूल में इस अनपढ़ मां की बिटिया को पढ़ने की अनुमति मिलेगी? यह सब सोचकर फिर उसका मन बहुत दुःखी हो जाता है।  

लेकिन एक दिन उसने हिम्मत करके जब वह मिसेस डिसोजा के घर काम पर पहुंची। हल्के व नम्र स्वर में उसने कहा, ‘मालकिन! क्या आप मेरे साथ स्कूल चलेगीं?’ बात सुनते ही मिसेस डिसोजा पहले तो जोर से हंसी, परंतु बड़ी ही शालीनता के साथ उन्होंने गौरी को समझाया और बताया शिक्षा क्या है और क्यों जरुरी है ये शिक्षा, सभी के लिए।

गौरी आगे कोई सवाल उनसे पूछती, उससे पहले मिसेस डिसोजा ने उससे कहा, क्यों नहीं गौरी, शिक्षा पर किसी एक का अधिकार नहीं, सभी का इस पर समान अधिकार है। जाति-पाति, धर्म-सम्प्रदाय, उंच-नीच का इससे कोई संबंध नहीं। तुम्हारी राधा भी स्कूल जरुर जायेगी। हम दोनों उसे लेकर स्कूल जायेगें। ऐसा करते हैं हम कल ही उसके स्कूल चलते हैं।

मिसेस डिसोजा की बात को सुनकर गौरी को उसका ख्वाब कुछ सच होता नज़र आना लगा। लेकिन मन में अभी भी एक डर सा था कि क्या वास्तव में उसका यह ख़्वाब सिर्फ एक ख़्वाब बनकर ही ना रह जाये।

दूसरे दिन गौरी बेटी राधा और मिसेस डिसोजा के साथ स्कूल जाती है। स्कूल पहुंचकर प्रिंसिपल मैडम से बातचीत के बाद मिसेस डिसोजा राधा की पढ़ाई से सम्बन्धित समस्त औपचारिकताएं स्वयं ही पूरी करती हैं। 

स्कूल से लौटने के बाद गौरी मिसेस डिसोजा को धन्यवाद कहकर खुशी खुशी अपनी बिटिया के साथ घर लौटती है। 

अब राधा रोज़ाना स्कूल जाने लगी। स्कूल में राधा को खूब आनंद आने लगा और वह मन लगाकर पढ़ने लगी। किसी प्रकार की समस्या होने पर वह बेहिझक मिसेस डिसोजा के घर पहुंच जाती और उनसे पूछ लेती। इस प्रकार दिन बीतते गये और देखते ही देखते राधा ने 12वीं की परीक्षा अव्वल दर्ज़े में उत्तीर्ण कर ली। 

एक दिन मिसेस डिसोजा ने गौरी से पूछा, आगे क्या सोचा है गौरी, तुमने राधा के बारे में?

मैं समझी नहीं मालकिन, आप क्या कह रही हैं? उसने डरते डरते पूछा।

मिसेस डिसोजा ने कहा, ‘देखो गौरी, राधा ने 12वीं तक पढ़ाई पूरी कर ली है। अब आगे उसकी शादी करोगी या फिर …..’ इतना कहकर वे चुप हो गईं। लेकिन यह सब सुनकर गौरी की आंखों में आंसू आ गये। ‘अरे ये क्या? तुम रोने लगी गौरी, मैंने तो सिर्फ तुमसे पूछा। अच्छा नहीं पूछूगीं बस! अब रोना धोना बंद करो। हमें आंसू अच्छे नहीं लगते और अगर तुम रोओगी तो हम भी रोने लगेगें।‘

तब डरते-डरते गौरी ने कहा, ‘मालकिन हम तो अनपढ़ रहे। पढ़ लिख ना सके। लेकिन हम अपनी राधा बेटी को खूब पढ़ाना चाहते हैं। उसे मास्टरनी बनाना चाहते हैं ताकि गांव की सभी लड़कियां पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो सके और सम्मान से इस दुनिया में जी सके। इतना ही नहीं, हम जैसी गांव की औरतन भी काम काज के बाद खाली वक्त में उसके पास जाकर जरुरत का हिसाब किताब और अपना नाम पता भी लिखना सीख लेगें ताकि कोई हमें धोखा ना दे सके।‘ 

यह सुनकर मिसेस डिसोजा बहुत खुश हुई। उन्होंने कहा, ‘गौरी, तुम अशिक्षित होकर भी शिक्षा के बारे इतना सोचती हो और सबका भला चाहती हो। तुम्हारी सोच कितनी महान है, हमें तुम पर आज गर्व हो रहा है। ठीक है, हम कल ही राधा के कॉलेज के लिए अप्लाई कर देंगे.’ मिसेस डिसोजा ने गौरी से कहा और इस तरह पढाई पूरी करने के बाद राधा बी0एड0 और फिर एक अच्छे से स्कूल में शिक्षिका बन जाती है। 

इधर जब से राधा कॉलेज जाने लगी थी। गौरी ने अतिरिक्त काम भी करना शुरु कर दिया था ताकि राधा की पढ़ाई में किसी प्रकार की कोई दिक्कत ना आये और न ही उसकी पढ़ाई रुके।

सिलाई का काम करने की वजह से गौरी की आंखों की रोशनी और कंधों का दर्द बढ़ने लगा था और वो बीमार रहने लगी थी, लेकिन राधा को कभी इसके बारे में उसने पता नहीं चलने दिया।

राधा रोज़ समय से अपने स्कूल जाती और शाम को फिर गांव की महिलाओं को भी पढ़ाती। वे सभी महिलाएं हंसी खुशी उससे लिखना पढ़ना सीखतीं और जाते समय उसे ढेर सारा आशीर्वाद देकर अपने अपने घर को लौटतीं।

एक दिन अचानक जब वह स्कूल में ही थी कि सुखिया चाचा वहां आते हैं और उसकी बीमार मां की खबर राधा को देते हैं। खबर सुनते ही राधा के कदम घर की ओर फौरन दौड़ पड़ते हैं।

उधर चारपाई पर लेटी गौरी जीवन और मृत्यु से अंतिम जंग लड़ रही थी। मां को ऐसी हालत में देखकर राधा की आंखों में आंसू आ गये और वह जोर जोर से रोने लगी। राधा को देखकर गौरी ने उसको अपने पास बुलाया और कहा, ‘ना मेरा बेटा ! रोना नहीं, आज तो खुशी का दिन है। आज मुझे हंसते हुए विदा करना। देखो राधा! तुम्हारा दायित्व अभी पूरा नहीं हुआ है। अभी तुम्हें बहुत सी राधा को शिक्षित करना है। उन्हें आगे बढ़ाना है, शिक्षा का महत्व बताना है और आत्मनिर्भर भी बनाना है। वादा करो राधा! तुम शिक्षा के इस मिशन में कभी पीछे नहीं हटोगी।‘ ‘हां मां, मैं आपके इस सपने को जरुर साकार करुंगीं, मैं आपसे वादा करती हूं।‘

राधा के इस प्रकार के आश्वासन सुनते ही गौरी मुस्कराती है। अचानक उसकी आंखे धीरे धीरे बंद होने लगती हैं। ऐसा लग रहा था मानो एक मां का वो ख़्वाब आज पूरा हो गया हो, जो उसने अपनी नन्हीं सी प्यारी बेटिया राधा के लिए कभी देखा था।

“शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान मानव तुम्हारे जीवन में

इसलिए मानव तू शिक्षित बन, अशिक्षा का तू विनाश कर।“

– बबिता बसाक

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *