कहानी : सोने का पिंजरा -संजीव जायसवाल ‘संजय’

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कहानी :
   सोने का पिंजरा
                

रोहित एअर पोर्ट से सीधे गुडगांव चल दिया। वहां उसे 11 बजे ‘महेश्वरी फार्माक्यूटिकल्स कंपनी प्रा. लिमिटेड’ में वाईस प्रेसीडेंट के पद का इंटरव्यू देना था। उम्मीद थी कि साढ़े दस बजे तक वहां पहुंच जायेगा मगर गुड़गांव के टैªफिक का हाल भुक्तभोगी ही समझ सकता है। गति में पैदल से भी पराजित होती कारों की लंबी कतारों में फंसा आदमी बेबस पंछी की तरह छटपटा कर रह जाता है।
 रोहित बार-बार ड्राईवर से जल्दी चलने के लिये कह रहा था लेकिन ड्राईवर की भी अपनी मजबूरी थी। अभी तक दिल्ली-गुड़गांव के बीच के ट्रैफिक  जाम से निबटने की किसी भी तकनीक का अविष्कार नहीं हो पाया था। आप मंहगी से मंहगी गाड़ी में क्यूं न सवार हों गंतव्य पर समय से पहुंच पाना पूर्णतया आपकी किस्मत के उपर निर्भर करता है।
   रोहित बहुत मुश्किलों से सवा ग्यारह बजे ‘महेश्वरी प्लाजा’ की शानदार ईमारत तक पहुंच पाया। लगभग दौड़ते हुये वह लिफ्ट पर सवार हो छठी मंजिल पर स्थित मैनजिंग डायरेक्टर की सिक्रेट्री के पास पहुंचा और अपनी उखड़ी हुयी सांसो को नियंत्रित करते हुये बोला,‘‘ मैं रोहित जगभारिया हूं। ग्यारह बजे मेरा एम.डी. से एपाईन्टमेन्ट था मगर टैªफिक जाम की वजह से मैं लेट हो गया। आई एम रियली सारी फार दैट। प्लीज मेरी उनसे मुलाकात करवा दीजये।’’
‘‘एम.डी. बहुत व्यस्त है। आज उनसे मुलाकात नहीं हो सकती लेकिन मैं आपको बधाई देना चाहती हूं ’’ खूबसूरत सिक्रेट्री ने मुस्कराते हुये कहा।
‘‘किस बात की बधाई ?’’
‘‘आपका चयन वाईस प्रेसीडेंट के पद के लिये हो गया है।’’
‘‘बिना इंटरव्यू के ?’’ रोहित का स्वर आश्चर्य से भर उठा।
‘‘एम.डी. आपकी क्वालीफिकेशन और आपके इक्सपीरियेंस से बहुत प्रभावित हैं। इसलिये आपका बायोडाटा देखते ही उन्होंने आपका चयन कर लिया है। आपका वेतन होगा दो लाख रूपया महीना ’’ सिक्रेट्री ने सम्मानजनक स्वर में बताया फिर बोली,‘‘लेकिन उसके लिये दो-तीन शर्तें है।’’
‘‘कैसी शर्तें ?’’ रोहित ने अपनी खुशी को छुपाते  हुये पूछा। पिछली कंपनी में उसे एक लाख चालिस हजार रूपये मिलते थे और यहां बिना मांगे उसे दो लाख रूपये का प्रस्ताव मिल रहा था। अपनी काबलियत पर रोहित को अनायास ही गर्व हो उठा।
‘‘आपको हमारी कंपनी आज से ही ज्वाईन करनी होगी। इसके लिये आपको आज ही पुरानी कंपनी से ईस्तीफा देना होगा। इसके साथ ही आपको हमारी कंपनी से कम से कम पांच साल का सर्विस का एग्रीमेंट करना  होगा। इसके एवज में कंपनी आपको दस परसेन्ट का इंक्रीमेंट हर साल देगी ’’ सिक्रेट्री ने एक सांस में शर्तें बता दीं।
‘‘पांच साल का एग्रीमेन्ट ?’’ रोहित पल भर के लिये ठिठका।
‘‘सोच लीजये सर, ‘महेश्वरी फार्माक्यूटिकल्स’ एक बड़ा नाम है। पांच साल बाद अगर आप कंपनी छोड़ना चाहेगें तो तब तक आपकी मार्केट वैल्यू काफी बढ़ चुकी होगी ’’ सिक्रेट्री ने समझाया।
उसकी बात में दम था। रोहित ने कुछ सोचा फिर बोला,‘‘आपका कहना भी ठीक है। महेश्वरी फार्माक्यूटिकल्स में काम करने का सपना बड़े-बड़े लोग देखते हैं। कागज लाईये मैं अपना इस्तीफा लिख देता हूं।’’
‘‘उसकी जरूरत नहीं है। आपका इस्तीफा पहले से तैयार है। आप साईन कीजये, मैं उसे आपकी पुरानी कंपनी को फैक्स कर देती हूं’’ सिक्रेट्री ने एक कागज आगे बढ़ाते हुये कहा।
‘‘मेरा ईस्तीफा तैयार है? लेकिन क्यूं और किसने तैयार कराया इसे?’’ रोहित आश्चर्य से भर उठा।

‘‘एम.डी. ने। उन्हें पूरा भरोसा था कि आप हमारी कंपनी का इतना खूबसूरत आफर कभी अस्वीकार नहीं करेगें।’’

‘‘बहुत दूरदर्शी हैं एम.डी. साहब’’ रोहित हल्का सा मुस्कराया फिर अपने ईस्तीफे पर दस्तखत करने लगा।

‘‘जी हां बहुत दूरदर्शी । जिस बात का हम लोग अंदाजा भी नहीं लगा सकते उसका आभास उन्हें पहले से ही हो जाता है। तभी 20 सालों में उन्होंने ‘महेश्वरी फार्माक्यूटिकल्स’ को देश की सबसेबड़ी कंपनी फार्माक्यूटिकल्स बना दिया है’’ सिक्रेट्री हल्का सा हंसी फिर ड्राअर से एक फाईल निकालते हुये बोली,‘‘सर, यह लीजये अपना एग्रीमेन्ट। आप इसे पढ़िये तब तक मैं आपका ईस्तीफा फैक्स कर देती हूं।’’

 रोहित ने एग्रीमेंट को पढ़ उस पर हस्ताक्षर कर दिये तो सिक्रेट्री उस पर एम.डी़. के हस्ताक्षर करवाने उनके चैम्बर में चली गयी। 
वह थोड़ी ही देर में ही लौट आयी और रोहित को नियुक्ति पत्र पकड़ाते हुये बोली,‘‘सर, आईये आपको आपके चैंबर तक पहुंचा दूं।’’
एम.डी. का चैम्बर ‘महेश्वरी प्लाजा’ की छठवीं मंजिल पर था और वाईस प्रेसीडेंट का पहली मंजिल पर। सिक्रेट्री लिफ्ट से उसे वहां तक ले आयी। वाईस प्रेसीडेंट का कक्ष रोहित की सोच से कहीं ज्यादा आलीशान था। ईटैलियन ग्लास की चमचमाती हुयी मेज के पीछे शानदार एक्सक्यूटिव चेयर उसका इन्तजार कर रही थी। पूरे कक्ष को खूबसूरत पर्दो और पेंटिग्स से सजाया गया था।
अपनी किस्मत पर इतराते हुये रोहित कुर्सी पर बैठ गया। वह पूरा दिन आराम से बीता। न तो कोई फोन काल आयी और न ही कोई फाईल। खाली समय में रोहित भविष्य की योजनायें बनाता रहा।
किन्तु अगले तीन दिनों तक भी जब उसके पास कोई काम नहीं आया तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उसने छठवीं मंजिल पर जाकर सिक्रेट्री से जब इस बारे में पूछा तो वह मुस्कराते हुये बोली,‘‘सर, आप चिन्ता क्यूं करते हैं। आज 30 तारीख हो चुकी है। अपना बैंक एकाउंट चेक करिये आपकी 4 दिन की सैलरी वहां पहुंच चुकी होगी।’’
‘‘लेकिन मेरे पास अभी तक कोई काम नहीं आया है।’’
‘‘वह आपका नहीं कंपनी का सिर दर्द है ’’ सिक्रेट्री मुस्करायी।
‘‘क्या मैं एम.डी. से मिल सकता हूं ?’’ रोहित ने पूछा।
‘‘सारी, आज वे बहुत व्यस्त हैं। मुलाकात नहीं हो सकती ’’ सिक्रेट्री ने साफ इन्कार कर दिया।
धीरे-धीरे पूरा सप्ताह बीत गया। रोहित के पास न कोई फोन काल आयी और न कोई काम । खाली चैंबर में बैठे-बैठे वह उबने लगा था। वह जब भी एम.डी. से मिलने का समय मांगता सिक्रेट्री मना कर देती। 
धीरे-धीरे पूरा महीना बीत गया। रोहित को न तो कोई काम मिला और न ही एम.डी. से मिलने का अवसर। वातानुकूलित कक्ष में बैठा-बैठा वह उबता रहता था। खाली समय अब उसे काटने दौड़ने लगा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर कंपनी उसे किस बात के पैसे दे रही है। हर बीतते दिन के साथ उसकी खीझ बढ़ती जा रही थी। वाईस-प्रेसीडेंट का शानदार वातानुकूलित कक्ष उसे सोने के पिंजरे की तरह लगने लगा था जिसमें रोज सुबह आकर उसे कैद हो जाना होता था।
एक दिन वह सुबह-सुबह सिक्रेट्री के पास पहुंचकर बोला,‘‘मैडम, मुझे यहां आये हुये एक महीना बीत गया है लेकिन अभी तक मुझे कोई काम नहीं मिला है प्लीज आज उनसे मेरी मुलाकात करवा दीजये। मैं उन्हें अपनी प्राब्लम बताना चाहता हूं।’’
‘‘सर, एम.डी. आज कल बहुत बिजी हैं । एक सप्ताह के लिये उन्होंने अपनी सारी एपाउन्टमेंन्टस कैंसिल कर दी है । इसलिये अभी मैं आपकी उनसे मुलाकात नहीं करवा सकती। लेकिन आप इतना परेशन क्यूं हो रहे हैं ? आपको सैलरी तो पूरी मिल रही है न?’’ सिक्रेट्री ने कहा।

 ‘‘ खाली सैलरी मिलना ही सब कुछ नहीं होता । बिना काम के मक्खियां मारते-मारते मैं उब गया हूं’’ रोहित झल्लाते हुये बोला।

‘‘ओ. के. सर, मैं समझ गयी । आप मक्खियां मत मारिये। मैं आपके लिये कुछ अच्छी फिल्मों की सी.डी. मंगवा देती हूं। आप अपने चैंबर में बैठ कर आराम से देखिये उन्हें’’ सिक्रेट्री हंसते हुये बोली।

‘‘मुझे नहीं देखनी फिल्में’’ रोहित ने गुस्से से कहा और वहां से वापस लौट आया।
धीरे-धीरे तीन महीने बीत गये। रोहित ने एम.डी. से मिलने की हर चंद कोशिश की लेकिन सब बेकार रहा। सिक्रेट्री  किसी न किसी बहाने उसे टाल देती। रोहित को लगने लगा था कि इस तरह चैंबर में खाली बैठे-बैठे तो वह पागल हो जायेगा।
एक दिन वह सिक्रेट्री के पास पहुंचा और झल्लाते हुये बोला,‘‘मैं इतने दिनों से एम.डी. से मिलने का टाईम मांग रहा हूं आखिर आप मुझे उनसे मिलने क्यूं नहीं देतीं ?’’
‘‘सर, एम.डी. साहब ने आपको टाईम देने से मना कर रखा है’’ सिक्रेट्री ने बताया।
‘‘लेकिन क्यूं ?’’
‘‘यह तो वही जानें।’’
‘‘अगर आज आप एम.डी. से मेरी मुलाकात नहीं करवाती हैं तो मैं कंपनी से ईस्तीफा दे दूंगा ’’ रोहित का स्वर तेज हो गया।
‘‘सारी सर, आप ईस्तीफा नहीं दे सकते क्योंकि आपने कंपनी के साथ पांच साल का सर्विस एग्रीमेन्ट साईन कर रखा है’’ सिक्रेट्री ने शांत स्वर में समझाया।
‘‘आखिर आप लोग चाहते क्या हैं ?’’ रोहित सिक्रेट्री की मेज पर घूंसा पटकते हुये चिल्लाने लगा,‘‘इस तरह खाली बैठे-बैठे तो मैं पागल हो जाउंगा। मेरी सारी योग्यता और काबलियत जंग खा जायेगी। आखिर मुझे कोई काम क्यूं नहीं दिया जा रहा ? क्या में नाकाबिल हूं, नकारा हूं, निकम्मा हूं, भरोसेमंद नहीं हूं ?
‘‘सर, आप इस तरह यहां शोर नहीं मचा सकते’’ सिक्रेट्री ने टोंका।
 ‘‘शोर क्या मैं और भी बहुत कुछ मचा सकता हूं। मैं चीखूंगा-चिल्लाउंगा-उछलूंगा-कूदूंगा’’ रोहित का स्वर तेज होता चला जा रहा था।
सिक्रेट्री कुछ कहने जा रही थी कि तभी उसके इंटरकाम की घंटी बजी। सिक्रेट्री ने हैंडसेट उठा कर कुछ सुना फिर रोहित से सर्द स्वर में बोली,‘‘आपकी बुलंद आवाज भीतर तक पहुंच रही है। अंदर जाईये आपका इंतजार हो रहा है।’’
रोहित ने सिक्रेट्री को घूर कर देखा फिर तेज कदमों से एम.डी. के चैम्बर की ओर बढ़ा। सामने ही सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ था डी.के.महेश्वरी। उसने एक उचटती हुयी दृष्टि एम.डी. के नेम-प्लेट पर डाली फिर झटके के साथ दरवाजा खोल कर भीतर दाखिल हुआ। वह आज आर-पार का फैसला कर लेना चाहता था।
एम.डी. साहिबा अपनी मेज के पीछे रखी शेल्फ से कोई फाईल निकाल कर देख रही थीं। उनकी पीठ इस समय दरवाजे की ओर थी। उन्होंने पीछे मुड़े बिना ही पूछा,‘‘यस, मिस्टर जगभरिया क्या बात है ?’’
‘‘आखिर कंपनी में मुझे कोई काम क्यूं नहीं दिया जा रहा है ?’’ रोहित ने अपने गुस्से को काबू में करते हुये पूछा।
‘‘आप जितना काम कर रहे हैं उसके पैसे कंपनी हर महीने आपको दे रही है’’ एम.डी. ने शांत स्वर में कहा।
‘‘लेकिन मैं तो कोई काम ही नहीं कर रहा। एक तरह से मुफ्त की कमाई खा रहा हूं ’’रोहित ने कसमसाते हुये कहा।
‘‘मुफ्त की कमाई खाना तो आपकी पुरानी आदत है ’’ एम. डी. का स्वर अचानक ही कड़ा हो गया।
‘‘मेरी आदत ?’’
‘‘यस मिस्टर रोहित जगभरिया, आपकी आदत’’ एम.डी. साहिबा पीछे मुड़ीं और अपनी रिवाल्वर चेयर पर बैठते हुयी बोलीं।
‘‘दीपा तुम ?’’ रोहित यूं उछला जैसे किसी भूत को देख लिया हो।
‘‘जी हां, मैं दीपा कुमारी महेश्वरी, ‘महेश्वरी फार्माक्यूटिक्लस प्रा0 लि0’ की फाउंडर मैनेजिंग डायरेक्टर  और आपकी बास। इसलिये मुझसे तुम नहीं बल्कि आप कह कर बात कीजये ’’ दीपा ने एक-एक शब्द पर जोर देते हुये कहा।
‘‘जी ...वो...वो...मैं...मैं..’’ रोहित हड़बड़ा कर रह गया। उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या कहे। उसने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि दीपा से कभी इस तरह मुलाकात हो सकती है। वातानुकूलित कक्ष में भी उसके माथे पर पसीना चुहचुहा आया। उसकी टांगें कांपने लगीं और वह धम्म से सामने रखी कुर्सी पर बैठ गया। उसे सामने की दीवारें तक घूमती नजर आने लगीं थीं। ऐसा लग रहा था कि वह चक्कर खाकर गिर जायेगा। उसने कांपते हाथों से कुर्सी के हत्थों को थाम लिया।
दीपा ने उसके उपर एक घृणा भरी दृष्टि डाली फिर इंटरकाम का बटन दबाते हुये बोली,‘‘मिस सोनिया, प्लीज कम।’’
‘‘यस मैम’’ चंद पलों में सिकेट्री भीतर दाखिल हुयी।
‘‘मिस्टर जगभरिया की तबियत कुछ खराब हो रही है। इन्हें अपने केबिन में ले जाकर पानी-वानी पिलवाईये। जब ये नार्मल हो जाये।तब इन्हें भीतर भेज दीजियेगा। तब तक मैं एक जरूरी काल कर रही हूं।’’
‘‘ओ.के मैम’’ सिकेट्री ने सिर हिलाया फिर रोहित को साथ चलने का ईशारा किया। लड़खड़ाते कदमों से रोहित उसके साथ चल दिया।
दीपा उसे दरवाजे से बाहर जाते हुये देखती रही। जब दरवाजा बंद हुआ तब दीपा के अर्न्तमन में बीस साल पुरानी यादें किसी चलचित्र की भांति  उभरने लगीं। विश्वविद्यालय के भीतर कितने खुशियों भरे दिन थे। दीपा, उपमा, अजीत और रोहित की चौकड़ी पूरे विश्वविद्यालय में प्रसिद्व थी। चारों जी भर कर हुल्लड़ मचाते मगर पढ़ाई में भी सभी सबसे आगे रहते। दीपा हर बार प्रथम आती और उपमा , अजीत और रोहित में द्वितीय आने के लिये प्रतियोगिता रहती।
यूं ही हंसते-खेलते दीपा और रोहित कब एक-दूसरे की आखों में भविष्य के सपने देखने लगे पता ही नहीं चला। एम.एस.सी करने के बाद दोनों ने रिसर्च के लिये रजिस्ट्रेशन करवा लिया था। थीसिस पूरी होने के बाद दोनों का शादी करने का ईरादा था।
दीपा ने थीसिस पूरी करने के लिये दिन-रात एक कर दिया था। हमेशा लाइब््रोरेरी में पुस्तकों के ढेर से घिरी रहती। एक दिन रोहित ने टोंका,‘‘तुम्हारे लिये तो तुम्हारी थीसिस ही सब कुछ है। मेरे लिये तो तुम्हारे पास अब समय ही नहीं बचा है।’’
‘‘मैं यह सब तुम्हारे लिये ही तो कर रही हूं ’’ दीपा ने अपनी पलकों को उठा कर रोहित की ओर देखा।
‘‘मेरे लिये ?’’
‘‘हां मेरे बुद्वू राजा ’’ दीपा उसकी आंखो में देखते हुये हंस पड़ी,‘‘हम लोगों ने तय किया है कि अपनी थीसिस पूरी करने के बाद शादी कर लेगें और मुझे शादी की बहुत जल्दी है।’’
‘‘ओह, तब तो मुझे भी मेहनत करनी पड़ेगी। अभी तक तो मेरी सिनाप्सिस भी तैयार नहीं हुयी है ’’ रोहित मुस्कराया।
उस दिन के बाद दीपा और ज्यादा मेहनत करने में जुट गयी। करीब आठ महीने बाद एक दिन उसने एक फाईल रोहित को देते हुये कहा,‘‘मेरी थीसिस का रफ ड्राफ्ट तैयार हो गया है। तुम एक नजर इसे देख लो। अगर कुछ कमी हो तो बता देना।’’
‘‘ठीक है ’’ रोहित ने सिर हिलाया।
अगले दिन जब रोहित मिला तो बोला,‘‘दीपा, तुम्हारी थीसिस तो कमाल की है। प्रकाशित होते ही तहलका मचा देगी। मगर कहीं-कहीं पर हल्के-फुल्के सुधार की जरूरत है। अगर तुम कहो तो मैं उसे ठीक कर दूं। बस पांच -छै दिन लगेगें।’’
‘‘इसीलिये तो तुम्हें दिया है ’’ अपनी प्रसंशा से अभिभूत दीपा ने अपना सिर रोहित के चौड़े कंधो पर रख दिया। रोहित काफी देर तक उसके बालों को सहलता रहा।
उसके बाद अगले चार दिनों तक रोहित नहीं दिखा तो दीपा, उपमा और अजीत उसके कमरे पर गये। मकान मालिक ने बताया कि उसकी मां की तबियत खराब हो गयी थी इसलिये वह अचानक अपने गांव चला गया है।
धीरे-धीरे एक महीना बीत गया लेकिन रोहित की कोई खबर नहीं मिली। परेशान दीपा ने एक दिन मकान-मालिक से  उसका पता लेकर अजीत को उसके गांव भेजा। उसने लौट कर बताया कि रोहित के मां-बाप की काफी पहले मृत्यु हो गयी थी। कुछ दिनों पहले वह अपना घर और जमीन बेंच कर कहीं चला गया है और उसका पता किसी के पास नहीं है।
रोहित ने ऐसा क्यूं किया किसी की समझ में नहीं आ रहा था। परन्तु यह रहस्य ज्यादा दिनों तक रहस्य नहीं रहा। एक दिन उपमा खुशी से उछलती हुयी आयी और एक अमेरिकन साईंस जर्नल दीपा की ओर बढ़ाते हुयी बोली,‘‘यह देख इसमें तेरे रोहित का रिसर्च पेपर छपा है। पूरी दुनिया में उसके नाम की धूम मची हुयी है।’’
दीपा ने जर्नल को देखा तो उसका कलेजा धक्क से रह गया। उसकी थीसिस के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से को रोहित ने अपने नाम से छपवा लिया था। दीपा को इतने बड़े धोखे की उम्मीद न थी। उसकी आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा और वह वहीं एक कुर्सी पर धम्म से गिर पड़ी।
‘‘तुझे क्या हुआ ?’’ दीपा की हालत देख उपमा घबरा उठी।
‘‘कुछ नहीं ’’ दीपा अपने माथे पर छलक आये पसीने को पोंछते हुयी बोली। उसकी दो वर्षो की मेहनत रोहित ने लूट ली थी। उसका रिसर्च पेपर अब रोहित का हो चुका था। अब कौन करेगा उसकी बातों पर विश्वाश ? अब कुछ भी कहना बेकार था। दीपा खून का घूंट पीकर रह गयी।
उसने रोहित से सच्चा प्यार किया था। अगर वह कहता तो वह अपनी थीसिस के साथ-साथ उसकी थीसिस भी तैयार करवा देती। मगर उसने न केवल उसकी मेहनत को लूटा था बल्कि उसके विश्वाश को भी तोड़ा था। वह एक बार उससे मिल कर पूछना चाहती थी कि उसने ऐसा क्यूं किया मगर उस इन्सान से दोबारा कभी मुलाकात ही नहीं हुयी।
समय का पंछी अपनी गति से उड़ता रहा। धीरे-धीरे बीस साल बीत गये। इस बीच बहुत कुछ बदल गया था। दीपा ने बहुत जल्दी ही अपने को संभाल लिया था। नये सिरे से रिसर्च पेपर तैयार करने करके उसने अपनी पी.एच.डी पूरी की। उसके बाद पांच सालों तक उसने एक फार्माक्यूटिकल्स कंपनी में काम किया। उसके पापा दामोदर कुमार महेश्वरी का भी फार्माक्यूटिक्लस का छोटा सा व्यवसाय था। उनकी प्रेरणा से दीपा ने नौकरी छोड़कर ‘महेश्वरी फार्माक्यूटिक्लस प्रा0 लि0’ की स्थापना की थी। उसके लिये पूंजी पापा ने ही जुटायी थी। दीपा के पापा डी.के महेश्वरी कंपनी के प्रेसीडेंट और दीपा मैनेजिंग डायरेक्टर बन गये थे। पिता के अनुभव और बेटी की मेहनत ने देखते ही देखते ‘महेदश्वरी फार्माक्यूटिक्लस’ को बुलंदियों पर पहुंचा दिया और आज उनकी कंपनी देश में एक प्रमुख स्थान रखती थी।
  पिछले कुछ दिनों से दीपा के पापा काफी बीमार चल रहे थे इसलिये उन्होंने आफिस आना बंद कर दिया था। इससे दीपा पर काम को बोझ काफी बढ गया था। तभी उसे कंपनी के लिये एक वाईस-प्रेसीडेंट की आवश्यकता महसूस हो रही थी। उसे कई व्यक्तियों के बायोडाटा मिले थे। एक बायोडाटा पर लगी फोटो देख उसकी आंखे ठिठक गयीं। आर. के. जगभरिया मतलब रोहित कुमार बायोडाटा पर लिखे नाम को देख दीपा का खून खौल उठा। जिस व्यक्ति ने उसे जिंदगी का सबसे बड़ा धोखा दिया था आज उसी ने उसकी कंपनी में नियुक्ति के लिये आवेदन किया था।
गुस्से से उसकी मुट्ठियां भिंच गयीं। पहले उसका मन हुआ कि रोहित के आवेदन को फाड़ कर फेंक दे मगर फिर कुछ सोच कर उसने सिक्रेट्री को बुला कर उसका एपाउइन्टमेन्ट लेटर लिखवा दिया। इसके साथ ही पांच साल का सर्विस का बांड भी तैयार करवा लिया था।
जैसा दीपा ने सोचा था वैसा ही हुआ। रोहित ने फौरन उसकी कंपनी ज्वाईन कर ली थी और पिछले तीन महीनों से उससे मिलने के लिये तड़प रहा था। सोचते-सोचते दीपा की सांस फूलने लगी। उसने सामने रखे गिलास को उठा कर पानी पिया फिर अपनी सांस को नियंत्रित करते हुये इंटरकाम पर बोली,‘‘मिस सोनिया, अगर मिस्टर जगभरिया नार्मल हो गयें हों तो उन्हें भीतर भेज दीजये।’’
दीपा के कमरे से बाहर निकल रोहित सिक्रेट्री के चैम्बर में बैठ तो गया था लेकिन उसकी हालत खराब थी। जीवन में कभी ऐसी स्थित का भी सामना करना पड़ सकता है इस बात की उसने कल्पना भी नहीं की थी। अब वह रह-रह कर उस घड़ी को कोस रहा था जब उसने पांच साल के सर्विस बांड का एग्रीमेन्ट साईन किया था। सिक्रेट्री ने पानी के साथ-साथ काफी भी मंगवा दी थी लेकिन उसने दोनों को हाथ भी नहीं लगाया था। सिकेट्री के कहने पर वह एक बार फिर दीपा के चैम्बर में दाखिल हुआ।
‘‘मि0 रोहित जगभरिया, आप जानना चाहते थे कि आपको काम क्यूं नहीं दिया जा रहा है ?’’ दीपा ने उसके चेहरे पर दृष्टि टिकाते हुये कहा।
रोहित की समझ में ही नहीं आया कि क्या कहे इसलिये मौन ही रहा। दोनों के मध्य चंद क्षणों तक सन्नाटा पसरा रहा फिर दीपा ने उसे भंग करते हुये कहा,‘‘आपने मुझसे मेरी जिंदगी के दो वर्षो की मेहनत छीनी थी। अब मैं आपसे आपकी जिंदगी के पांच वर्ष छीनती हूं। इस बीच आप आराम से बैठ कर मुफ्त की कमाई खाईये।’’ 
‘‘लेकिन यह तो मेरा मानसिक शोषण होगा’’ रोहित ने किसी तरह हिम्मत जुटाते हुये कहा।
‘‘क्या शोषण करना सिर्फ पुरूषों का ही एकाधिकार है और नारी केवल शोषित होने के लिये बनी है’’ दीपा का स्वर अचानक ही कड़ा हो गया और वह रोहित की आंखों में आंखे डालते हुये बोली,‘‘मि0 जगभरिया , आप मेरी मेहनत को चुरा कर भाग गये थे लेकिन मैं आपकी तरह बेईमान नहीं हूं। आपकी मेहनत को चुरा कर न तो मैं भागूंगी और न ही आपको भागने दूंगी। मेहनतहीन होकर आप यहीं रहिये और मेरे दिये हुये मुफ्त के रूपयों पर पलिये।’’
रोहित के अंदर दीपा से आंखें मिला कर बात करने का साहस नहीं था। उसने अपनी नजरें झुका लीं। एक बार फिर उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि उसे क्या कहना चाहिये। तभी दीपा  ने टोंका,‘‘मि0 जगभरिया, क्या सोचने लगे ?’’
‘‘दीपा, प्लीज, इस तरह मेरी जिंदगी खराब न करो। कभी हमने एक-दूसरे को प्यार किया था। तुम्हें उसकी सौंगध ’’ रोहित ने अपने अंदर की समस्त उर्जा को बटोरते हुये हाथ जोड़े।
‘‘प्यार !’’ दीपा के होंठ नफरत से सिकुड़े और वह सर्द स्वर में बोली,‘‘चलो तुम्हें भी उसी प्यार की दुहाई। किसी मर्द की तरह स्वीकारते हुये अखबारों में विज्ञप्ति दे दो कि बीस साल पहले अमेरिकन  जर्नल में जो रिसर्च पेपर प्रकाशित हुआ था वह तुम्हारा नहीं मेरा था और तुमने जिस थीसिस पर डाक्टरेट हासिल की है वह भी तुम्हारी नहीं बल्कि मेरी है। यकीन मानो उसके बाद तुम्हारे सर्विस एग्रीमेन्ट को फाड़ कर तुम्हें मुक्त कर दूंगी। ’’
‘‘यह...यह.... मैं कैसे कर सकता हूं ? यह तो मेरे लिये आत्महत्या करना जैसा होगा ’’ रोहित के होंठ बहुत मुश्किलों से हिले।
 ‘‘तो फिर मिस्टर वाईस प्रेसीडेंट अपने चैम्बर में जाईये और किसी नपुंसक की तरह अगले पांच साल तक मेरे फेंके हुये टुकड़ों पर पलिये ’’ दीपा की आंखे अचानक लाल अंगार हो उठीं।
‘‘दीपा, प्लीज....’’ रोहित ने कुछ कहना चाहा।

    ‘‘मि0 वाईस प्रेसीडेंट, दीपा नहीं एम.डी. मैम कहिये मुझे और इससे पहले कि मैं सिक्योरिटी बुला कर आपको बाहर करवाऊं चुपचाप मेरे चैम्बर से निकल जाइये’’ दीपा हिस्टीरयाई अंदाज में चीख पड़ी।

 अब कहने सुनने के लिये कुछ शेष नहीं बचा था। रोहित किसी नपुंसक की भांति अपने कदमों को खींचते हुये वहां से लौट पड़ा। सोने का पिंजरा उसका इंतजार कर रहा था।
                                  संजीव जायसवाल ‘संजय’
                                 आई.आर.पी.एस (सेवा.)
                                पूर्व निदेषक/आर.डी.एस.ओ.(भारत-सरकार)

                .......
संजीव जायसवाल ‘संजय’

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