गीतकार राजेंद्र कृष्ण – बबिता बसाक
गीतकार राजेन्द्र कृष्ण
गीतकार राजेन्द्र कृष्ण, इस नाम से वर्तमान पीढ़ी भले ही अनभिज्ञ हो, परंतु उनकी कलम से निकले पल पल दिल के पास, मेरे सामने वाली खिड़की में और इक चतुर नार जैसे लोकप्रिय गीतों को उन्होंने सुना ना हो, या फिर उनकी जुबां पर न हो, या यों कहें किसी संगीत प्रतियोगिता में उन्होंने इन गीतों को गाया न हों या फिर इन गीतों को सुनने का लुफ्त ना उठाया हो, यह कहना असंभव है।
वो भूली दास्तां, सुख के सब साथी, मन डोले मेरा, चली चली रे पतंग, चुप चुप खड़े हो, तेरे नैनों में, इना मीना डीका, इक चतुर नार, रुक जाना नहीं, पल पल दिल के पास, देखा ना हाय, जाना था हमसे, ए सनम आज ये कसम, वो भूली दास्तां जैसे अनगिनत लोकप्रिय गीतों की एक लम्बी सूची है जिन्हें गीतकार राजेंद्र कृश्ण ने कलमबद्ध किया, जिन्हें आज भी संगीतप्रेमी सुनना व गुनगुनाना पसंद करते हैं।
राजेंद्र कृश्ण जिनका वास्तविक नाम था राजेंद्र कृष्ण दुग्गल। वे लोकप्रिय गीतकार ही नहीं एक कुशल कवि, शायर व पटकथा लेखक भी थे। 6 जून 1919 को गुजरात के जलालपुर जट्टन नामक गांव में (जो अब पाकिस्तान में है) इनका जन्म हुआ था। जब वे कक्षा आठ में पढ़ते थे तभी से कविता के प्रति इनका विषेश रुझान हुआ और वे तभी से उनके विचारों ने कविता का रुप लेना प्रारंभ कर दिया।
बम्बई आने से पूर्व उन्होंने शिमला में बतौर क्लर्क नगरमहापालिका में कुछ समय तक नौकरी भी की थी। चूंकि कविता व शायरी के बेहद षौकीन थे राजेंद्र कृश्ण साहब, अतः नौकरी से जब भी फुरसत मिलती, पूर्वी और पश्चिमी लेखकों की पुस्तकें पढ़ा करते और साथ ही अपना लेखन कार्य भी किया करते।
उन्हें सभी भाषाओं की पुस्तकें पढ़ना अच्छा लगता था। उर्दू में जहां फिराक गोरखपुरी और अहसान दानिश से प्रभावित थे तो हिन्दी साहित्य में कविवर सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और सुमित्रानंदन पंत की रचनाएं उनके लिए प्रेरणास्त्रोत थे।
उनकी कविता सबसे पहले एक स्थानीय समाचार पत्र में प्रकाशित हुई जब उन्होंने कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर राधा कृश्ण पर एक कविता लिखी थी। काम के दौरान वे उनके लिए लेखन कार्य को भुलाना आसान ना था, इसलिए वे सदैव कुछ ना कुछ अवष्य लिखा करते थे।
इधर कविता-शायरी ही नहीं, कहानी व संवाद लेखन में भी उनकी विशेष रुचि थी और यही रुचि उन्हें मायानगरी बम्बई ले आई। 40 के दशक के मध्य वे बम्बई आ गये। यहां आकर सर्वप्रथम 1947 की फिल्म जंजीर के लिए गीत लिखे और इसी साल फिल्म जनता की पटकथा भी लिख डाली परंतु दुर्भाग्यवश दोनों ही कार्यों में असफ़लता मिली उन्हें।
एक साल बाद 1948 में उन्होंने अभिनेता मोतीलाल व सुरैया की फिल्म आज की रात में गीत व पटकथा दोनों ही कार्य किये राजेंद्र कृश्ण ने और इस बार उनके लिखे गीतों व कहानी को दर्शकों ने पसंद किया। इतना ही नहीं इस फिल्म के साथ ही उनके लिए सफ़लता के द्वार भी खुलते चले गये।
1948 में ही फिल्म प्यार की जीत में सुरैया का गाया तेरे नैनो में चोरी किया किया मेरा छोटा सा जिया परदेसिया इस गीत ने चारों ओर धूम मचा दी। उसके बाद 1949 में संगीतकार श्याम सुन्दर के साथ फिल्म लाहौर के लिए बहारें फिर भी आयेगी बेहद लोकप्रिय हुआ। इसी साल संगीतकार हुस्नलाल भगतराम के संगीत निर्देशन में लता मंगेषकर व प्रेमलता का गाया फिल्म बड़ी बहन का गीत चुप चुप खड़े हो जरुर कोई बात है जैसे गीत ने तो संगीतप्रेमियों पर मानो जादू सा कर दिया। सिल्वर जुबली हिट फिल्म बड़ी बहन की सफ़लता का संपूर्ण श्रेय मिला राजेंद्र कृष्ण के लिखे गीतों को।
कहा जाता है प्रसन्न होकर फिल्म के निदेशक डी0 डी0 कष्यप ने राजेन्द्र कृष्ण को एक हजार रुपये और ऑस्टिन कार भेंट स्वरुप दिया था और यह उस समय उनके लिए एक बेशकीमती उपहार था।
राजेंद्र कृष्ण के गीतों की सबसे बड़ी खूबी यह थी उन्होंने दर्द, प्यार, रोमांस, जीवन, दर्शन, हास्य सभी विषयों को अपनी कलम के माध्यम से सरल शब्दों में लिखकर और उन्हें गीतों में पिरोकर संगीत प्रेमियों तक पहुंचाया था।
एक गीतकार के रुप में अपने समय के सभी दिग्गद संगीतकारों के लिए उन्होंने हर प्रकार के गीत लिखे और वे सभी कामयाब हुए। जिन संगीतकारों के साथ काम किया उनमें सज्जाद हुसैन के साथ 1952 में सैय्या, एस0 डी0 बर्मन के साथ 1952 की बहार, एक नजर, एस0 मोहिन्दर के साथ 1953 में पापी, चित्रगुप्त के साथ कंगन, भागी, सलिल चौधरी के साथ छाया, रोशन के साथ अनहोनी, हेमन्त कुमार के साथ मिस मेरी, लगन, दुर्गेष नंदिनी, पायल, नागिन, सी0 रामचंद्र के साथ आशा, अनारकली, पतंगा, कल्याण आनंद जी के साथ ब्लैकमेल, लक्ष्मीकांत के साथ नया दिन नई रात, इंतकाम, आर0 डी0 बर्मन के साथ बाम्बे टू गोवा और लोकप्रिय फिल्म पड़ोसन इत्यादि।
परंतु सर्वाधिक गीत लिखे संगीतकार मदनमोहन के लिए। बतौर गीतकार उनके साथ आशियाना, भाई भाई, देख कबीरा रोया, अदालत, संजोग, एक कली मुस्काई व मनमौजी जैसी फिल्मों में मदनमोहन और राजेंद्र कृष्ण का सफ़लतम साथ रहा। इन सभी फिल्मों के गीतों व ग़ज़लों को संगीतप्रेमियों ने खूब पसंद किया।
राजेंद्र कृष्ण ने फिल्मों ने रोमांटिक, संजीदा, दर्द, हास्यप्रद ही नहीं, देशभक्ति और भक्तिपूर्ण रचनाएं भी लिखीं। मैं आजाद हूं, दुर्गेश नंदिनी व मिस मेरी जैसी फिल्मों में उनकी भक्ति पूर्ण रचनाएं भी बेहद सफल रहीं।
1948 में सुनो सुनो ऐ दुनिया वालों बापू की ये अमर कहानी इस लोकप्रिय अमर रचना को कलमबद्ध किया था गीतकार राजेंद्र कृष्ण साहब ने। फिल्म अमर ज्योति के इस गीत को मोहम्मद रफी ने संगीतकार हुस्नलाल भगतराम के संगीत निर्देषन में गाया था। यह गीत आज भी सुनने वालों की आंखें नम कर देता है।
गीतकार के साथ साथ वे एक कुशल पटकथा लेखक भी थे। पड़ोसन, छाया, प्यार का सपना, मनमौजी, धर्माधिकारी, मां बाप, साधु व शैतान जैसी फिल्मों की पटकथा भी लिखी। हिन्दी भाषा के अलावा लगभग 18 तमिल फिल्मों के लिए भी उन्होंने पटकथा लेखन का भी कार्य किया।
उनकी उत्कृष्ट रचनाओं को संगीतप्रेमियों ने पसंद तो किया, बावजूद इसके इस गीतकार को 1965 की फिल्म खानदान के तुम्हीं मेरे मंदिर तुम्हीं देवता हो इस गीत के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का एक मात्र फिल्म फेयर पुरस्कार मिला।
23 सितंबर 1987 को राजेंद्र कृष्ण ने इस दुनिया को अलविदा कहा। आज वो हमारे बीच भले ही ना हों, परंतु अपने गीतों के माध्यम से अपने चाहने वालों के दिलों में पल पल चिरस्मरणीय रहेंगे।
आलेख बबिता बसाक