धारावाहिक उपन्यास भाग 12 : सुलगते ज्वालामुखी

0
12

धारावाहिक उपन्यास

सुलगते ज्वालामुखी

लेखिका – डॉ अर्चना प्रकाश

जब कोई भी सरकारी कर्मचारी घर के काम में टिका ही नहीं तब बिंदिया अपने मायके से बेहद गरीब रिश्तेदारों के दो लड़के अपने साथ ले आई। अमन और पिंकू दोनों मिल घर का सारा काम करने लगे। समीर व तुषार के पुराने पकड़े उन्हें पहनने के लिए मिल जाते और बचा हुआ भोजन भी पेट भरने के लिए मिलने लगा। एक वक्त भूखे पेट सोने वालों को बिन मा°गी मुराद मिल रही थी।

बिंदिया किटी पार्टियों में समय बिताती और समीर व तुषार दोस्तों से चैटिंग करते रहते। इधर सपना की दोस्ती भी सिद्धान्त शर्मा के साथ नये आयाम छू रही थी। उसमें प्रेम के भावभीने रंग भर रहे थे। देशराज इस समय छुट्टी लेकर आये हुए थे। वे अपने सजातीय मित्रों के साथ बैठे थे, चाय नाश्ता चल रहा था।

‘‘सरकार पिछड़ों व दलितों को सामान्य से चैगुनी छूटे व सुविधायें दे रही है तो हमारे बच्चे तो आई.ए.एस. बन ही जायेंगे!’’ देशराज गर्व से बोले।

‘‘अब अगर हमारे बच्चे निचली कक्षाओं में थर्ड डिवीजन भी ले आये तो प्रतियोगिता निकालने के बाद उस पर कोई सोचेगा भी नहीं’’ ये बिंदिया थी।

‘‘आखिर ये हमारी तीसरी पीढ़ी आरक्षण के चैतरफा लाभ ले रही है’’ मित्र भोगराज बोले।

‘‘फेल और नकाम दलित भी जब सिविल सर्विसेज में उत्तीर्ण हो जाते हैं तो उनकी साख समाज में सबसे ऊपर हो जाती है’’ ये देशराज थे।

‘‘मैं समझता हू° कि ये बच्चे सवर्ण बच्चों की तरह होशियार नहीं है। इन्हें हिम्मत व साहस की घुट्टी देना जरूरी है।’’ भोगराज ने कहा।

‘‘हमारे बच्चे सीधे हैं तभी तो सभी के पास गर्लफ्रेन्डस हैं और क्लास बंक कर के रेस्टोरेन्ट भी जाते हैं। जबकि वो समय डट के पढ़ाई करनी चाहिए।’’ ये बिंदिया थी।

‘‘लेकिन हमारी बेटी सपना बेहद सरल व भोली है’’ ये देशराज थे।

‘‘उसका तो एक ही दोस्त सिद्धान्त शर्मा है उसी के साथ घूमा करती है’’ बिंदिया बोली।

स्वभावताः सपना बेहद भावुक थी इसी कारण वह सिद्धान्त के आग्रह को मना न कर पाती और और सिद्धान्त भी उसके साथ मर्यादा की सीमायें ला°घ जाते। सपना और सिद्धान्त नोएडा के कवाब फैक्ट्री रेस्टोरेन्ट में बैठे थे तभी सपना शादी के लिए जिद करने लगी।

‘‘शायद तुम्हें पता नहीं कि इस शादी के लिए हमारे परिवार वाले कभी राजी न होंगे’’ सिद्धान्त बोले।

‘‘क्यों’’

‘‘क्योंकि मैं शर्मा हू° और तुम दलित हों’’ सिद्धान्त ने कहा।

‘‘ये तो तुम्हें पहले सोचना चाहिए था। अगर मेरे भाइयों को भनक भी लगी कि तुमने मेरे साथ खिलवाड़ किया। तो वे तुम्हारी हत्या कर देंगे और इल्जाम किसी और पर लगा देंगे’’ सपना गुस्से में बोली।

‘‘फिर तो मेरा तुमसे न मिलना ही ठीक है। आजकल लड़के लड़कियों में सब चलता है।’’ सिद्धान्त भी तैश में बोले।

सिद्धान्त बाइक स्टार्ट करके चला गया तब सपना किंकर्तव्यविमूढ़ सी आटो रिक्शा से घर आ गई।

गीतिका मिश्रा व सौम्या शुक्ला समीर व तुषार की दोस्त घर आईं तो समीर ने उन्हें बिंदिया से मिलवाया।

‘‘मम्मी! ये हमारी क्लास मेट हैं, कमबाइन्ड स्टडी के लिए हम अपने कमरे में जा रहे हैं। कुछ नाश्ता भेज दीजियेगा’’ समीर ने कहा।

‘‘ये भी कोई कहने की बात है?’’ बिंदिया बोली।

थोड़ी देर बाद जब दोनों सहेलिया° चली गई तब बिंदिया ने दोनों बेटों को ढे़रो आशीष दिये।

‘‘आज तो तुम लोगन की दोस्ती से आत्मा खुश हो गई! पंड़ितन की बिटिया हमारे जैसों के लड़कों से दोस्ती कर रही! समय बदल रहा है’’ बिंदिया ने कहा।

‘‘मम्मी! आजकल ठाकुर पंड़ित जात बिरादरी कोई नहीं मानता! लड़के लड़की की दोस्ती में सब चलता है!’’ समीर ने कहा।

‘‘माम डियर वो लड़किया° गंवार और बुद्धू समझी जाती हैं जिनका कोई ब्वाय फ्रेन्ड न हो। वो लड़के भी निरे घोचू° और बेवकूफ समझे जाते हैं जिनकी छः सात गर्ल फ्रेन्ड्स ना हो।’’ ये तुषार थे।

‘‘हे राम! क्या जमाना है? जरा सी उम्र में ये बच्चे कैसे खेल खेल रहे हैं?’’ बिंदिया ने आ°खे फैलाते हुए कहा तो सभी ठ°ठाकर ह°स पड़े।

‘‘डियर मम्मी! लड़के लड़कियों की दोस्ती में अब शादी की बात कोई नहीं उठाता है। अब समय ये है कि जब तक अच्छा लगे साथ रहो, जो अच्छा लगे वो करो, फिर अपने अपने रास्ते लो!’’ समीर ने मा° को समझाया तो सभी का समवेत ठहाका एक बार फिर गू°ज उठा।

सपना माता पिता व भाइयों की लाडली थी उसने अनेकों बार देशराज को ये कहते हुए सुना था कि-

‘‘इन्हीं ब्राह्माणों व ठाकुरों ने हमें अछूत व दलित बनाया और समाज की नगण्य इकाई बनाकर हमसे अथक मेहनत भी कराते रहे।’’ ऐसी बाते कहते समय देशराज की आ°खें लाल हो जातीं थी और चेहरा विकृत हो जाता था। लेकिन सपना अब सिद्धान्त शर्मा के बिना एक पल भी नहीं रह

सुलगते ज्वालामुखी ख् 66 , अर्चना प्रकाश अर्चना प्रकाश ख् 67 , सुलगते ज्वालामुखी

सकती थी। उसे सिद्धान्त शर्मा ही जीवन साथी के रूप में स्वीकार्य था। अगले दिन जब समीर व तुषार कालेज चले गये तब सपना बिंदिया को अपने कमरे में ले गई।

‘‘मम्मी! मैं सिद्धान्त से प्यार करती हू° प्लीज उससे मेरी शादी करा दीजिए।’’ सपना बोली।

‘‘हमारे लाड़ प्यार का तुम ये नतीजा दोगी इसकी हमें कल्पना भी न थी’’, बिंदिया आवेश में बोली।

सपना रोने लगी – ‘‘मम्मी! हमें माफ कर दो, हम तुम्हारे पा°व पड़ते हैं!’’सपना ने दोनों हाथ बिंदिया के पैरों पर रख दिये। बिंदिया की ममता पिघल उठी, उसने सपना को उठाया फिर बोली- ‘‘ये रिश्ता नहीं हो सकता!’’

‘‘लेकिन मैं उसके बच्चे की मा° बनने वाली हू°!’’ सपना गिड़गिड़ाई।

‘‘किसी के सामने इस विषय की कोई बात न करना। हम एक दो दिन में ही इसका रास्ता निकालते हैं।’’ बिंदिया ने बेटी को आश्वस्त किया।

दो दिन बाद बिंदिया सपना को लेकर जिला अस्पताल गई और उसका गर्भपात करा के दो घंटे में घर ले आई। सपना को बिस्तर पर देख समीर परेशानी में बोला –

इसे क्या हुआ है?

‘‘सर्दी बुखार है डाक्टर को दिखा दिये हैं, एक दो दिन में ठीक हो जायेगी।’’ बिंदिया ने कहा।

सिद्धान्त अब सपना को देख कर भी अनदेखा करने लगा। तब सपना ने दोनो भाइयों से मदद मांगी। उन्हें अपने कमरे में बुला कर बोली-

‘‘भइया, मैं सिद्धान्त से प्यार करती हूं और सिर्फ उसी से शादी करुंगी! नहीं तो मैं अपनी जान दे दुंगी।’’

सपना को गले लगाकर उसके गालों से आ°सू पोछते हुए समीर बोले- ‘‘तुम हमारी इकलौती बहन हो हम तुम्हारे लिये कुछ भी करेंगे।’’

‘‘पापा को समझाना मेरे दाये हाथ का खेल है मै उन्हें चुटकियों में राजी कर लु°गा।’’ तुषार ने कहा तो उसके कहने के स्टाइल पर सपना ह°स पड़ी।

क्रमशः

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *