धारावाहिक उपन्यास भाग 20 : सुलगते ज्वालामुखी

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धारावाहिक उपन्यास

सुलगते ज्वालामुखी

लेखिका – डॉ अर्चना प्रकाश

कभी-कभी इन्सान अपनी बुलन्द योजनाओं में ही उलझे रह जाते हैं और नियति अकस्मात सारी ही योजनाओं पर पानी फेर देती हैं।

परी कोचिंग से निकल ही रही थी कि तभी किसी मनचले ने उसे जबरदस्ती पकड़ लिया-

‘‘मैं रोशन अहमद हू°! चलो तुम्हें घर पहु°चा देता हू°!

‘‘शटअप! छोड़ो मेरा हाथ! मैं खुद से जा सकती हू°, समझे?’’ परी चीखी।

‘‘मुझे समीर समझने की गलती न करना, मैं हाथ पकड़ता हू° तो छोड़ता नहीं!’’ रोशन ने कहा!

‘‘छोड़ो! मेरे हाथ में दर्द हो रहा है, मैं तुम जैसे लफंगो फ्लर्टो को खूब समझती हू°!’’ परी तैश में बोली!

परी चीखने लगी, कुछ लड़के वहा° खड़े तमाशा देख रहे थे। तभी समीर जीप से वहा° आया, उसने रोशन से परी का हाथ छुड़ाया और लात घूसों से उसकी पिटाई कर दी।

‘‘आगे से परी या किसी भी लड़की का जबरदस्ती हाथ पकड़ते दिखे तो ऐसी धुनाई करू°गा कि जिन्दगी भर याद रखोगे?’’ समीर ने रोशन को चेतावनी दी।

परी समीर को देखती ही रह गई, उसने समीर का ये रूप आज से पहले देखा ही नहीं था। उसे समीर सिर्फ फ्लर्ट व लोफर टाइप ही लगा था। ‘‘थैंक्यू समीर! आज तुम न होते तो मेरा क्या होता?’’ परी ने कहा।

‘‘ऐसा लगता तो नहीं’’ ये परी थी।

‘‘मगर जब मेरी पढ़ाई छूटी, कैरियर बिगड़ा तब से मैंने स्वयं को समूचा बदल लिया है।

‘‘कैसे न होता? इसे संयोग समझो या सौभाग्य किन्तु, जब भी कोई लड़की ऐसी मुश्किल में फ°सती है तो वहा° पर सबसे पहले मैं ही पहु°चता हू°।’’ समीर ने कहा फिर बोला-

‘‘कहो तो तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ दू°?’’

‘‘श्योर क्यों नहीं? मेरा घबराहट से बुरा हाल है’’ कहते हुए परी समीर की जीप में आगे बैठ गई।

‘‘मैं जानता हू° ज्यादातर लड़किया° मुझे मनचला ही समझतीं हैं! लेकिन मैं अब किसी लड़की के साथ न तो छेड़खानी करता हू°, न जबरदस्ती!’’ समीर ने कहा।

‘‘अच्छा! तो फिर मेरे पीछे क्यों पड़े थे?’’ परी ने पूछा।

‘‘तब से अब तक मैं बदल गया हू°!’’ समीर ने कहा।

‘‘ये अलग बात है कि तुम मुझे अच्छी लगती हो और मैं तुमसे शादी करना चाहता हू°!’’ समीर ने प्रत्युत्तर दिया।

‘‘सिर्फ अच्छा लगने से शादी नहीं हो जाती। हमारे बीच धर्म व जाति की अभेध दीवारे हैं और हमारे रीति रिवाज खान पान और विचारों में भी गहरा मतभेद है’’ परी ने कहा।

‘‘ठीक है! मैं अपना धर्म बदल कर इस्लाम अपना लेता हू°। तब तो तुम्हें मुझसे विवाह में कोई एतराज न होगा?’’ समीर ने कहा।

‘‘मैं हैरान हू° तुम्हारे फैसले पर? हम दोनों के घरवाले भी इस विवाह के लिए राजी न होंगे’’ परी ने कहा।

‘‘पहले तुम हा° कर लो फिर तुम्हारे घर वालों को भी मना लू°गा! मेरे

पापा और दीदी तो पहले से ही तैयार हैं। तुम्हारी हा° के बाद तुम्हारे माम डैड को आसानी से मना लेंगे।’’ समीर ने युक्ति दी।

‘‘तुम कोशिश करो जब सब तैयार हो जाये तो मुझे बताना! मैं तुम्हारे मम्मी पापा से मिल लू°गी।’’ अब गाड़ी रोको मुझे यहीं उतरना है परी ने कहा।

इस घटना के एक हफ्ते बाद समीर कोेचिंग के बाहर परी का इन्तजार कर रहे थे। परी को देखते ही बोले- ‘‘तुम्हारे लिए गुड न्यूज है?’’

‘‘क्या?’’ परी ने समीप आते हुए कहा।

‘‘मेरे पापा और जीजू हमारे रिश्ते के लिए तुम्हारे घरवालों से दुबारा बात करने जायेंगे!’’ समीर ने कहा।

‘‘तुम कल शाम उन्हें साथ ले कर आना! तब तक मैं अब्बू व अम्मी को स्वयं ही समझाऊ°गी’’, ये परी थी।

अगले दिन शाम को देशराज समीर व सिद्धान्त के साथ परी के घर पहु°च गये। परी के माता पिता इन दिनों यशोदा सिंह के घर नोएडा ही रह रहे थे। परी ने जीनत व अहमद को पहले से ही सब कुछ बता दिया था।

छोटे से ड्राइंग रूम में जीनत व अहमद के साथ यशोदा भी थी। सामने के सोफा पर देशराज, समीर एवम् सिद्धान्त बैठे थे।

‘‘हमारी बचपन की दोस्ती अब और ज्यादा गहरी हो चुकी है। यशोदा मेरे बगैर और मैं यशोदा के बिना कोई फैसला नहीं लेती’’ जीनत ने कहा।

‘‘सच्ची दोस्ती का मतलब भी यही होता है। हम भी तो बचपन की दोस्ती को रिश्ते में बदलने का इरादा लेकर आये हैं’’, देशराज बोले।

‘‘लेकिन आप तो शुरू से ही दलितवादी थे। हम लोग दोस्ती और रश्तिों के बीच जाति धर्म की दीवारें नहीं मानते’’, यशोदा ने कहा!

‘‘हमारी नजर में हमारे रिश्ते और दोस्ती से बढ़कर कुछ भी नहीं है’’ ये अहमद थे।

‘‘मैंने भी अब ये अच्छी तरह समझ लिया है कि जाति धर्म की बेड़िया° हमें रुढ़िवादी बनाती है और उन्नति के सभी अवसर समाप्त कर देती है’’ देशराज ने कहा।

‘‘हमें अपने बच्चों के सुखी खुशहाल भविष्य के विषय में सोचना चाहिए न कि व्यर्थ की रूढ़िवादिता की भेंट चढ़ जाना चाहिए’’, ये जीनत थी।

‘‘मैं आप सब से पूरी तरह सहमत हू° और वादा करता हू° कि परी हमारे घर में बेटी की तरह रहेगी। उस पर जाति धर्म व रीति रिवाजों की कोई बन्दिश न रहेगी’’, देशराज ने कहा।

समीर और सिद्धान्त सबकी बातें सुन रहे थे, तभी परी सुशान्त के साथ सबके लिए चाय नाश्ता ले कर आई। सिद्धान्त और समीर ने उसे सबको चाय नाश्ता देने में मदद की। सभी लोग चाय नाश्ते का आनन्द ले रहे थे तभी अहमद बोले-

‘‘देशराज भाई! मैं सरकारी पद के वैभव से अप्रभावित ही रहता हू°। किन्तु परी के अनुरोध पर ही मैंने उसका हाथ आपके बेटे समीर को देने के लिए मन बनाया है।’’

‘‘अहमद भाई मैं भी आपकी भावनाओं का सम्मान करता हू°! आप निश्चिन्त रहे, परी को हमारे घर में जरा भी असुविधा न होगी’’, देशराज भावुक स्वर में बोले।

‘‘मैं अपने मौलवी से पूछ कर ही परी के निकाह की तारीख आपको बताऊ°गा।’’ अहमद ने कहा।

‘‘लेकिन ये भी निश्चिंत है कि परी का विवाह हमारे लखनऊ आवास से ही होगा, आपको बारात लेकर लखनऊ आना पडे़गा!’’ जीनत ने दृढ़ता से कहा।

‘‘लखनऊ से हमारा पुराना रिश्ता हे एक बार फिर हम सभी दोस्त इसी बहाने लखनऊ में इकट्ठा होंगे!’’ ये यशोदा थी।

‘‘हमें आपकी हर शर्त मंजूर है, अब हमें चलना चाहिए!’’ देशराज ने कहा।

‘‘पहले मु°ह मीठा कीजिए फिर जाइये!’’ जीनत ने दबाव दिया।

जीनत ने सबको लड्डू खिलाये और देशराज ने अपने हाथों से अहमद के मु°ह में लड्डू खिलाया। समीर और सिद्धान्त ने भी सबके पा°व छूकर आशीर्वाद लिया।

परी के विवाह में जीनत ने अपने सभी पुराने मित्रों को आमंत्रित किया था। जिनमें डा. सुनीता भी थी। लखनऊ चैक स्थित आम्रपाली रिसार्ट में अहमद ने परी के निकाह एवं दावत की व्यवस्था की थी। साथ ही उन्होंने एक पंड़ित भी बुलाया था जिससे निकाह के बाद हिन्दू रीति रिवाजों से कन्यादान व सप्तपदी भी सम्पन्न करा सके।

अनेक वर्षों के लम्बे अन्तराल के बाद डा. सुनीता अपनी बेटी विजया के साथ परी व समीर के निकाह व दावते वलीमा में देशराज के सामने थी। वेदान्त व मुशीरा से औपचारिक अभिवादन के बाद देशराज से भी आमना सामना हुआ।

‘‘आप तो लखनऊ की आइकान हैं जबकि मैं सिर्फ एक सरकारी मुलाजिम हू°’’, देशराज ने कहा।

‘‘मुझे आइकान बनाने वाले भी तुम्हीं हो और इसके लिए मैं तुम्हें जितना भी धन्यवाद दू° कम ही हैं’’, डा. सुनीता मुस्कराते हुए बोली।

देश राज ने तत्क्षण हाथ जोड़ दिये।

‘‘मैं! आपसे क्षमा प्रार्थी हू° डा. साहिबा! मुझसे अनजाने में अक्षम्य अपराध हुआ है जिसका मुझे जीवन पर्यन्त अफसोस रहेगा!’’ देशराज विनम्रता से दोहरे हो चुके थे।
‘‘मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है, क्योंकि हर किसी को मनचाहा

आस्मा° नहीं मिलता! सब अपने नसीब का ही पाते हैं!’’ डा. सुनीता ने

कहा।

तभी जीनत वहा° आ गई और डा. सुनीता को परी व समीर को

आशीर्वाद देने एवम् फोटो सेशन के लिए बुला ले गई। देशराज की आ°खों

के सामने ही परी व समीर को वेदान्त मुशीरा, यशोदा एवं सौरभ सिंह व

डा. सुनीता व डा. विजया ने अनेकों आशीर्वाद व ढेरों बहुमूल्य उपहार

दिये। खुशी व प्रायश्चित के मिले जुले आ°सू देशराज की आ°खों से बह

निकले।

समाप्त

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