बालकहानी : मुखिया का चुनाव – शशांक मिश्र भारती

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शशांक मिश्र भारती
            [ बच्चों कभी किसी की मदद करने से पीछे नहीं हटना चाहिए और जो मुसीबत में हो उसे बचाने के लिए तो अपनी भी परवाह नहीं करनी चाहिए,; बिल्कुल श्यामू बंदर की तरह।जिसने अपने काम से ज्यादा किसी की मदद करने को महत्वपूर्ण समझा और बाद में उसे इसका फल भी मिला।श्यामू बंदर कौन था ? और उसने ऐसा क्या किया।जानने के लिए यह रोचक व लेखक की प्रतिनिधि बालकहानी पढ़िये और जान जाइयेः- ] 

             नंदन वन गोमती नदी के किनारे स्थित था। वहां सेमल आम , जामुन , बरगद आदि के बड़े-बड़े पेड़ थे। शेर , चीता ,भालू , सियार, हिरण, खरगोश आदि से  जंगल में  सदैव चहल-पहल रहती थी।

             इसी जंगल के एक कोने पर स्थित बड़े से बरगद पर चालीस-पचास बंदरों का एक झुंड रहता था।उनका मुखिया था कम्मू। वह बरगद की सबसे सुंदर डाली पर रहता था। अन्य बन्दर उसके आस- पास की डालियों पर रहते थे। कुछेक आस-पास के अन्य पेड़ों पर भी चहल कदमी करते रहते थे।

              कम्मू बन्दर भी अब बूढ़ा हो चला था। उसने सोचा; -‘‘मैंने तो जैसे- तैसे अपना सबका समय काट दिया। अच्छी बीत गई। आने वाले समय में जाने क्या होगा?’’

              एक दिन उसने सभी बंदरों की अपने घर पर बैठक बुलाई।जब सभी बंदर पहुंच गए, तो उसने कहा, ‘दोस्तों, अब मैं बूढ़ा हो गया हूं। मैंने तो मुखिया गिरी खूब कर ली। अब मुझसे यह कार्य नहीं हो सकता।मैं आप लोगों से निवेदन करता हूं कि अब आप अपने में से एक नये मुखिया का चुनाव कर लो और मुझे बाकी जिन्दगी आराम से बिता लेने दो।’

              सारे बंदर उनकी बात समझ गये और नया मुखिया चुनने पर सहमत हो गये।इसके बाद बैठक समाप्त हो गई।

              झुंड का मुखिया चुनने का नियम यह था।कि  झुंड के बंदरों की एक ‘‘उछल कूद दौड़’’ का आयोजन होता था और उस दौड में जो जीतता था, वही मुखिया चुना जाता था।झुंड के सभी युवा बंदर इस दौड़ में भाग लेते थे।दौड़ जंगल के एक छोर से दूसरे छोर तक पेड़ों पर उछल कूद करते हुए पूरी करनी होती थी।जो पेड़ों पर कूद-फांदकर सबसे पहले आता था, वही झुंड का मुखिया बनता था।

                 प्रत्येक किलोमीटर के बाद दो बंदर तैनात किए जाते थे; जो प्रतियोगियों पर नजर रखते थे।दौड़ सामान्यतः सुबह जल्दी शुरू होती और शाम तक समाप्त हो जाती ।

                  इस बार की प्रतियोगिता का दिन भी निश्चित हो गया।सभी उछल कूद दौड़ की तैयारियों में जुट गए।भाग लेने वाले प्रतियोगियों का चुनाव कर लिया गया।प्रतियोगी भी कड़े अभ्यास में लग गए।

                  आखिर प्रतियोगिता का दिन भी आ गया।सभी प्रतियोगी तथा अन्य बंदर प्रतियोगिता स्थल पर इकट्ठे हो गए। एक छोटे से बंदर ने जोर से ‘‘ कूं ’’ की आवाज निकाली और दौड आरम्भ हो गई।

                  एक पेड़ से दूसरे , दूसरे से तीसरे और चौथे पर उछल कूद करते हुए बंदर पहले किलोमीटर पर पहुंचे, जहां सभी ने अपना नाम लिखवाया।इसी तरह से हर किलो मीटर पर नाम लिखवाते और आगे बढ़ जाते।

                 अभी तक श्यामू बंदर दौड में सबसे आगे था।वह अपने मां-बाप का लाड़ला तो था ही झुंड के अन्य बंदर भी उसे बहुत चाहते थे।

                 अब तक चार किलो मीटर की दौड़ ही पूरी हो पायी थी ; कि नदी की तरफ से किसी के चिल्लाने की आवाज सुनाई दी।

                 श्यामू ने आवाज सुनी और सोचने लगा ; कि हो सकता है कोई मुसीबत में हो और सहायता के लिए आवाज लगा रहा हो।

                 श्यामू वहीं रुककर उस आवाज को ध्यान से सुनने लगा।उसे विश्वास हो गया था कि जरूर कोई संकट में है और सहायता के लिए पुकार रहा है।

                 श्यामू ने वहीं रुककर पीछे आ रहे अन्य बंदरों की सहायता लेने का विचार किया।

                अन्य बंदर आये।उन्होंने भी चीख-पुकार सुनी।मगर एक- एक कर सब आगे बढ़ गए।सभी ने मुखिया पद के लिए चल रही दौड़ को छोड़ यहां रुकना बेबकूफी समझा और श्यामू को मूर्ख- मूर्ख कहते हुए भी आगे बढ़ते चले गए।

                 श्यामू तो आखिर श्यामू था। उसका हृदय तो करुणा से भरा था।वह धीरे- धीरे उस ओर बढ़ने लगा ,जहां से आवाज आ रही थी।उसने जा कर देखा कि-‘‘एक बंदर नदी के किनारे दलदल में फंसा चिल्ला रहा था।यदि जल्दी ही कुछ न किया गया तो वह दलदल में धंसकर मर जाएगा।

                  श्यामू ने दौड़कर पास ही खड़े बरगद की एक जटा पकड़ी और ले जाकर उस बंदर के पास डाल दी , लेकिन बंदर उसे पकड़ न पाया।श्यामू ने पुनः ऐसा ही किया।इस बार उस बंदर ने जटा पकड़ तो ली ; मगर छूट गई।

                  अगली बार श्यामू स्वंय जटा के साथ झूलता हुआ उस बंदर तक पहुंचा और जटा उसको मजबूती के साथ पकड़ा दी।फिर धीरे-धीरे जटा के सहारे बरगद के पेड़ पर आ गया। पीछे-पीछे वह बंदर भी आ गया।उसने श्यामू को बताया; कि वह मुखिया के भाई रम्मू का लड़का है।

                   श्यामू अब वापस उसी स्थान पर आ गया; जहां से दौड़ आरम्भ हुई थी।दौड़ प्रतियोगिता खत्म हो चुकी थी और इस समय वहां सभी बंदरों का झुंड इकटठा था।रामू बंदर प्रतियोगिता जीत चुका था और उसे झुंड का मुखिया बनाए जाने की तैयारी चल रही थी।

                   तभी रम्मू के लड़के ने आगे बढ़कर मुखिया को सारी बात बताई; कि कैसे श्यामू सिर्फ उसकी जान बचाने के चक्कर में यह दौड़ हार गया है।जो बंदर यह दौड़ हार चुके थे ,उन्होंने भी मुखिया को बताया ;कि जिस समय श्यामू सहायता के लिए गया था।उस समय तक वह दौड़ में सबसे आगे था और अगर वह रम्मू के बेटे को बचाने न जाता तो निश्चय ही यह दौड़ वही जीतता।

                   यह सुनकर सभी बुजुर्ग बंदरों का सीना गर्व से फूल गया।उन्होंने श्यामू के इस नेक काम के लिए उसकी मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की।मुखिया भी अपने भतीजे की जान बचाने के कारण उससे बड़ा खुश हुआ।

                   मुखिया की अध्यक्षता में एक और बैठक हुई और सर्व सम्मति से श्यामू बंदर को झुंड का नया मुखिया चुन लिया गया। 

शशांक मिश्र भारती

संपादक, देवसुधा, हिन्दी सदन, बड़ागांव, शाहजहांपुर – 242401, उ0प्र0 

9410985048 / 9634624150 ईमेल shashank.misra73@rediffmail.com

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