यथार्थ के धरातल पर रचित मार्मिक कहानियों का संग्रह : उसका सच

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Uska sach
पुस्तक समीक्षा –
समीक्षक – डाॅ.दिनेश पाठक‘शशि’ 28,सारंग विहार,मथुरा-6,मोबा-9870631805
पुस्तक – उसका सच (कहानी संग्रह),     ISBN  978-93-87915-61-9       
लेखिका -श्रीमती अलका प्रमोद
पृष्ठ-104,   मूल्य-150 रुपये,   प्रकाशन वर्ष-2020
प्रकाशक-मनसा पब्लिकेशन 2/256 विराम खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ-10

यथार्थ के धरातल पर रचित मार्मिक कहानियों का संग्रह : उसका सच

 हिन्दी की पहली आधुनिक कहानी की लेखिका राजेन्द्र बाला घोष उर्फ बंग महिला ने अपनी कहानी ‘कुंभ में छोटी बहू’ लिखकर हिन्दी साहित्य में कहानी विधा की प्रतिष्ठापना के प्रारम्भ से ही महिला कहानीकार के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी थी। बंग महिला की ‘ कुंभ में छोटी बहू’ कहानी इतिहास का वह सोपान साबित हुई, जहाँँ से हिन्दी कहानी की नई यात्रा प्रारम्भ हुई।
इस कहानी के उपादान- गाँँव, गाँँव के परिवार, नारी-पुरुषों के रूढ़िवादी रिश्ते, मालिक-मजदूर आदि को ही आगे चलकर एक दशक बाद प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी में बहुलता के साथ उकेरा।
इस प्रकार हम देखते हैं कि कहानी के क्षेत्र में एक महिला कहानीकार का कृतित्व नींव के पत्थर के रूप में अवस्थित है।
बंग महिला के बाद सन् 1922 से अब तक शिवरानी प्रेमचंद ,बनलतादेवी, उषादेवी मिश्र, सुभद्रा कुमारी चैहान, लीला अवस्थी, शिवानी, मृणाल पाण्डे, मन्नू भण्डारी,,  अनेक महिला कहानीकारों ने अपनी कहानियों से हिन्दी साहित्य की श्रीवृद्धि की है।
आज महिला कहानीकारों की एक बड़ी संख्या कहानी लेखन के माध्यम से अपनी पहचान बनाने के लिए सक्रिय दिखाई दे रही हैं। इन महिला लेखिकाओं में मंजुल भगत, सूर्यवाला, निरुपमा सेवती, डाॅ.सरोजिनी कृलश्रेष्ठ, डाॅ.अमिता दुबे,, नीलिमा टिक्कू आदि अनेक नाम तथा  श्रीमती अलका प्रमोद के नाम उल्लेखनीय हैं।
 हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं, कहानी, उपन्यास, समालोचना और बाल-साहित्य में साधिकार लेखनी चलाने वाली, विदुषी, साहित्यकार श्रीमती अलका प्रमोद का सद्यः प्रकाशित कहानी संग्रह ‘‘उसका सच’ को आद्योपान्त पढ़ा। लखनऊ के मनसा पब्लिकेशन से प्रकाशित 104 पृष्ठीय इस कहानी संग्रह में स्ुाश्री अलका प्रमोद की 11 कहानियाँँ समाहित की गई हैं।
अति भौतिकतावादी इस युग में मनुष्य यंत्रवत् अपनी अति महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति हेतु अपनों को , रिश्तों को और घर-परिवार सब कुछ को भुलाकर दौड़ रहा है। इस बेतहासा दौड़ में जब उसे अपनी भूल का अहसास होता है कि जिनके लिए वह दौड़ रहा था, उन्हीं को बहुत पीछे छोड़ आया है तो सांसारिकता से विरक्ति होने लगती है।
प्रसिद्ध लेखिका स्ुाश्री अलका प्रमोद जी के आठवे कहानी संग्रह -‘उसका सच’ की पहली कहानी ‘आकाश गंगा’ इसी भाव-भूमि पर लिखी गई कहानी है जो वर्तमान जीवन पद्धति का बारीकी से विश्लेषण कर रही है।
महत्वाकांक्षी होना बुरा नहीं किन्तु अति हर चीज की बुरी होती है। कहानी ‘आकाश गंगा’ का राजन भी अति महत्वाकोक्षा के वशीभूत हो अपने परिवार की निकटता खो देता है। पत्नी मेहा उसे समझाती भी है-
‘राजन संसार असीमित है, आकांक्षाएँँ असीमित हैं। तुम कहाँँ तक उनके पीछे दौड़ौगे?(पृष्ठ-10)
किन्तु राजन असीमित को सीमित बनाने की दौड़ में मेहा की बात को अनसुना कर देता है। अलका जी की कहानी इसे इस तरह व्यक्त करती है-
‘उसके विदेशों तक पंख फैलाते व्यापार और उत्तरोत्तर बढ़ते कद में भावनाओं के लिए बिसूरने और रुकने का समय ही कहाँँ था।  (पृष्ठ-11)
आखिर पत्नी मेहा अपने आप को एन.जी.ओ. में व्यस्त कर लेती है तो पुत्र-पुत्री अपनी पढ़ाई में। तब राजन को अहसास हुआ कि ‘ वह तो केवल धनोपार्जन की मशीन बन गया है।’ और अवसादग्रस्त होकर नींद की अधिक गोलियाँँ खाकर अपनी इहलीला समाप्त करने का प्रयास करता है।
सामान्यतः भारतीय साहित्य की रचनाओं को सुखान्त बनाने की परम्परा रही है। कथाशिल्पी श्रीमती अलका प्रमोद जी ने भी ‘आकाष गंगा’ को सुखान्त बनाकर उस परम्परा का निर्वाह किया है-
‘राजन ने आँख्ँों खोलीं तो स्वयं को अस्पताल के बैड पर पाया। मेहा, नव्या और नमित उसे घेरे थे। उसके इशारे पर मेहा, और बच्चे उसकी बांहों में सिमट आये।’
वैश्विक महामारी कोविड-19 ने पूरे विश्व को अस्त-व्यस्त कर दिया है। ऐसे में हर वर्ग को किसी न किसी समस्या से दो-चार होना पड़ा है। सरकार ने जिस वर्ग की सहायतार्थ मुहिम छेड़ी उसमें मध्यम वर्ग नहीं आता। मध्यम वर्ग अपनी पीड़ा स्वयं ही झेलने को अभिशप्त रहा।
इस संग्रह की दूसरी कहानी-‘बड़ी लकीर’ के मध्यम वर्गीय सुमित की नौकरी चली गई। वह बात-बात पर चिढ़चिढ़ाने लगा। इस आपात काल में दो जून रोटी के प्रबन्ध के लिए उसे ससुर जी द्वारा दी गई अपनी पत्नी की एफ.डी. तुड़वानी पड़ी।
बैंक से लौटकर सुमित को लगा कि उसे कोरोना तो नहीं हो गया। कोरोना के नाम से ही मनुष्य के मन में एक अनजाना भय व्याप्त हो जाता है। अलका जी ने अपनी कहानी -‘बड़ी लकीर’ का ताना-बाना बहुत ही सजगता से बुना है। उन्होंने कहानी के नायक सुमित के माध्यम से सि़द्ध कर दिया है कि जीवन के सुख-दुख, और अन्य झमेले तभी तक हैं जब तक मनुष्य जीवित है।
 कोविड-19 की रिपोर्ट नेगेटिव आने पर सुमित को लगा कि जीवन बचा रहने पर अन्य समस्याओं को हल किया जा सकता है।
 संग्रह की तीसरी कहानी-‘बिना स्पेश वाला’ में अलका प्रमोद जी ने भारतीय और पाश्चात्य  दोनों ही संस्कृति के अन्तर को बहुत ही बारीकी से उकेरा है।
निःसंतान दम्पत्ति नेहा और मानस ने अपने मित्र की पुत्री को गोद ले लिया। बालिग होने पर आर्या को जब हकीकत का पता चला तो वह अपने असली माता-पिता से मिलने की हठ करने लगी। मजबूरन नेहा और मानस आर्या को उसके जन्मदाता माता-पिता से मिलाने अमेरिका पहुँँच गये। वहाँँ की तड़क-भड़क से आर्या बहुत प्रभावित हुई और ग्रेजुएशन अमेरिका से ही करने के अपने जन्मदाताओं व भाई-बहन के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
आर्या को अमेरिका ही छोड़कर निराष नेहा-मानस भारत लौट आये। अलका जी ने अपनी इस कहानी में निराश दम्पत्ति की मनःस्थिति का बहुत ही मार्मिक चित्र खींचा है-
‘आर्या को छोड़कर आये हुए छह माह बीत गये थे। नेहा और मानस के जीवन में अंधकार छा गया था। मानस तो फिर भी आफिस चला जाता था पर नेहा के लिए तो मानो दिन-रात का कोई अर्थ ही नहीं रह गया था।
उस दिन रविावार था शाम ढल गई थी। मानस और नेहा को लाइट जलाने की भी सुध नहीं थी। दोनों चुप बैठे थे।’ (पृष्ठ-34)
आर्या का अमेरिका प्रवास का मोहभंग शीघ्र ही हो गया। उसे नेहा-मानस की तुलना में अपने जन्म दाताओं और भाई-बहन का व्यवहार बनावटी और यांत्रिक लगने लगा और वह सब छोड़कर भारत वापस आ गई। अलका जी ने आर्या के संवादों के द्वारा इस कहानी में बड़े ही सहज रूप से भारत के स्नेह और विदेशी सम्बन्धों का खुलासा करा दिया है-
‘मानस और नेहा को सुखद आश्चर्य में डालकर आर्या सोफे पर पैर फैलाकर ऐसे बैठ गई जैसे अभी-अभी काॅलेज से लौटी हो।
फिर कुछ झेंपकर बोली-‘मैं झूठ नहीं बोलूंगी। कुछ देर तो मैं वहाँँ के ग्लैमर के जाल में उलझ गई थी पर क्या करूँँ आपके प्यार का जाल इतना स्ट्रªंाग था कि मैं काट ही नहीं पा रही थी।
वहाँँ तो किसी को किसी से मतलव ही नहीं। लगता ही नहीं कि वह चार लोग एक फैमीली में रहते हैं। सबको अपनी-अपनी स्पेश चाहिए। मैं नहीं रह सकती उनके साथ। मुझे तो अपना घर ही प्यारा है। बिना स्पेश वाला।’(पृष्ठ-35)
संग्रह की चैथी कहानी-‘बुझता हुआ चिराग’ में कहानीकार अलका जी ने ‘नेत्रदान’ के महत्व को संवेदना के चरम तक पहुँँचा कर कहानी का समापन किया है। निश्चित ही आकस्मिक मृतक के परिजनों को इस कहानी से अपनी भावुकता पर नियंत्रण करके दूसरों के जीवन को रोशन करने की सीख मिलेगी।
एक आम आदमी और एक लेखक में मूल अन्तर संवेदना का होता है। लेखक की संवेदना ही उसे प्रेरित करती है कलम उठाने के लिए। कहानीकार अलका प्रमोद जी की संवेदना का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि 6 सितम्बर 2018 को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की बैंच ने समलैंगिक सम्बन्धों को अपराध बनाने वाले भारतीय दण्ड संहिता की धारा-377 को कानून से हटाने का फैसला दिया था इस समाचार को अखबारों में लाखों लोगों ने पढ़ा होगा किन्तु अलका प्रमोद जी ने उसे पढ़कर बड़ी ही शालीन भाषा का प्रयोग करते हुए कहानी-‘देर से उगा सूरज’ को जन्म दे दिया।
अलकाप्रमोद जी की कहानियाँँ बहु आयामी हैं। उन्होंने समाज की अच्छाई और बुराई, सभी पहलुओं का गहनता से अध्ययन किया है, महसूसा है।
समय परिवर्तनषील है। सामाजिक विकृतियाँँ भी इस कदर बढ़ती जा रही हैं कि सम्बन्धों की गरिमा तार-तार होने लगी है। इसीलिए तो अब विद्यालयों में भी ‘गुड टच-बैड टच’ की षिक्षा की जरूरत महसूस होने लगी है। संग्रह की कहानी -‘गीदड़ की मौत’ खण्ड-खण्ड होते जा रहे सामाजिक विश्वास और सम्बन्धों की कहानी है। अलका प्रमोद जी ने अन्याय के विरुद्ध न्याय की जीत दिखाकर कहानी केे अन्त को सकारात्मक रूप दिया है। काश! सचमुच ऐसा हो पाये।
कहानी संग्रह-‘उसका सच’ की आठवीं कहानी का शीर्षक है-‘नो यूज’। बुजुर्ग दम्पत्तियों की एकाकीपन की पीड़ा और आज के मानव की स्वार्थपरता की पराकाष्ठा को यह कहानी बड़े ही सलीके से दर्शाती हुई आगे बढ़ती है।
विदेश प्रवासी पृत्र-पुत्रवधु और पोती के कारण अपने एकाकीपन को भुलाने के लिए बुजुर्ग दम्पत्ति वंदना-अखिल अपने पड़ोसी राहुल-रुचि की पुत्री चिया को ही अपनी पोती मानकर उसपर अपना प्यार उड़ेलते रहते हैं।
जब तक चिया बहुत छोटी थी, राहुल-रुचि उसे बुजुर्ग दम्पत्ति के पास छोड़कर निश्चिंत होकर अपने दफतर चले जाते किन्तु जब चिया बड़ी और समझदार हो गई तो उन्हें बुजुर्ग दम्पत्ति की कोई जरूरत नहीं रही।
कहानी का अन्त पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित है। यह सत्य है कि ‘यूज एण्ड थ्रो’ की मानसिकता अब भारतीय मानस को भी अपनी गिरफत में लेती जा रही है पर लेखकीय दायित्व की मांग कुछ और है। किसी भी वास्तविक घटना को ज्यों का त्यौं परोस देना लेखक का कत्र्तव्य नहीं है। अमेरिका की ई-कल्पना पत्रिका में प्रकाषित यह कहानी वहाँँ के जनमानस को तो भा सकती है पर भारतीय लेखक का प्रयास समाज में एक-दूसरे का विश्वास बना रहे, सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् की स्थापना हो, यही ध्येय लेकर चलना चाहिए।
‘परिपक्व हुआ जीवन’ कहानी संग्रह की अगली कहानी है। काॅलेज जीवन की बात ही कुछ और होती है। 40 साल बाद भी सबकी स्मृतियों में वे क्षण जीवित हो उठते हैं। इस कहानी के बहाने अलका प्रमोद जी ने पढ़ने वालों की पुरानी यादों को ताजा तो किया ही है किन्तु वर्तमान जीवन की आपाधापी और सबकी अपनी-अपनी व्यस्तता साथ ही ईगो को भी सहज ही व्यक्त कर दिया है।
अमीरी और लाड़-प्यार में पली-बढ़ी वर्तमान संतति को पिज्जा-बर्गर और अनाप-षनाप खाने के आगे रोटी का महत्व पता नहीं होता। परोक्ष रूप से इसी ओर इंगित करती लगती है संग्रह की कहानी-‘रोटी का टुकड़ा’
‘उसका सच’ कहानी, इस संग्रह की ग्यारहवीं  और शीर्षक कहानी है। जो बुजुर्गो के साथ अपने ही घर में लाड़-प्यार से पाले अपने पुत्र और पुत्रवधु के द्वारा किए जाने वाले दुव्र्यवहार का कच्चा चिट्ठा प्रस्तुत कर रही है।
अलका प्रमोद जी ने इस कहानी के लेखन में अपनी अति संवेदनषीलता का परिचय दिया है। यह कहानी केवल बड़की अम्मा और उसके बेटे मनोजवा की कहानी नहीं है बल्कि अनेक उन परिवारों की कहानी है जिनमें अपने वृद्ध माता-पिता का आदर सम्मान नहीं किया जाता।
कहानी की शुरूआत का पैरा ही वृद्धा माँँ की दयनीयता, उपेक्षा और पीड़ा की परतें खोलता नजर आता है।
‘‘बड़की अम्मा की खुशी का पारावार न था। उसके मन का घड़ा जो जीवन के दुःख सहते-सहते पूरी तरह सूख चुका था, आज उत्साह से लबालब भर उठा। और छलका जा रहा था। छलकता भी क्यों न, बरसों बाद आज उसके बेटे मनोज ने उससे सीधे मुँँह बात की थी।’’(पृष्ठ-96)
कुल मिलाकर अलका प्रमोद जी का कहानी संग्रह-‘ उसका सच’ सामाजिक बिसंगतियों, विकृतियों और वृद्धों की पारिवारिक उपेक्षाओं, देश और विदेश की संस्कृति आदि बहुत से जनमानस को झकझोरने वाले बिषयों को लेकर यथार्थ के धरातल पर रची गई मार्मिक कहानियों का संग्रह है।
प्रत्येक कहानी की भाषा, कहानी के पात्रों के अनुसार और शैली आकर्षक है। कहानियों की प्रवाहमयता ऐसी है कि पढ़ने वाला निरन्तर उत्सुकता के साथ पुस्तक को पढ़ता जाता है।
104 पृष्ठीय पेपर बैक संस्करण का मूल्य 150 रुपये है जो उपयुक्त ही है। मनसा पब्लिेकेशन्स से प्रकाशित कहानी संग्रह उसका सच’ का मुद्रण साफ-सुथरा एवं त्रुटिहीन है। हिन्दी साहित्य जगत में पुस्तक-‘उसका सच’ का हार्दिक स्वागत होगा, ऐसी आशा है।

समीक्षक – डाॅ.दिनेश पाठक‘शशि’

लेखिका – अलका प्रमोद

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