लुप्त-सुप्त व नूतन विधाओं की महिमा – 2

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आज हम एक लुप्त-प्राय रचना विधा ‘मुकरी’ या ‘कह मुकरी’ लेकर आये हैं।

इस बारे में जानकारी इस प्रकार है:

बहुत ही पुरातन और लुप्तप्राय: काव्य विधा है “कह-मुकरी” ! हज़रत अमीर खुसरो द्वारा विकसित इस विधा पर भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भी स्तरीय काव्य-सृजन किया है।मगर बरसों से इस विधा पर कोई सार्थक काम नहीं हुआ है। “कह-मुकरी” अर्थात ’कह कर मुकर जाना’ !

इस विधा में दो सखियों के बीच का संवाद निहित होता है, जहाँ एक सखी अपने प्रियतम को याद करते हुए कुछ कहती है, जिस पर दूसरी सखी बूझती हुई पूछती है कि क्या वह अपने साजन की बात कर रही है तो पहली सखी बड़ी चालाकी से इनकार कर (अपने इशारों से मुकर कर) किसी अन्य सामान्य सी चीज़ की तरफ इशारा कर देती है।
जैसा कि नाम से प्रतीत हो रहा है, कह-मुकरियाँ या मुकरियाँ का सीधा सा अर्थ होता है, कही हुई बातों से मुकर जाना।

यह चार पँक्तियों की विधा है।
कथ्य की दृष्टि से ‘कह मुकरी’ में प्रथम तीन पंक्तियों के माध्यम से साजन या प्रियतम या पति के विभिन्न रूप परिलक्षित होते हैं, चौथी पंक्ति का प्रथम वाक्य-भाग बताये लक्षणों के आधार पर बूझ लेने को कहता हुआ प्रश्न करता है। परन्तु उसी पंक्ति का दूसरा वाक्य-भाग न सिर्फ़ उस बूझने का खण्डन करता है, अपितु कुछ और ही उत्तर देता है जो कि कवि का वास्तविक इशारा है।

दूसरी बात शिल्प के स्तर पर दिखती है।
शब्दों में मात्रिक व्यवस्था के साथ-साथ प्रथम तीन पंक्तियाँ सोलह मात्राओं की होती हैं।यानि, प्रथम तीन पंक्तियाँ गेयता को निभाती हुई सोलह मात्राओं का निर्वहन करती हैं।

चौथी पंक्ति पन्द्रह या सोलह या सत्तरह मात्राओं की हो सकती है। इसका कारण यह है कि तीसरी पंक्ति वस्तुतः बुझवायी हुई वस्तु या संज्ञा पर निर्भर करती है।
चौथी पंक्ति दो भागों में विभक्त हो जाती है तथा चौथी पंक्ति के दूसरे वाक्य-भाग में आये निर्णायक उत्तर से भ्रम या संदेह का निवारण होता है।
प्रथम दो पँक्तियाँ आपस मे तुकान्त होती है और तीसरी और चौथी पँक्तियाँ आपस में तुकान्त होती हैं

उदाहरण
1.
रात समय वह मेरे आवे।
भोर भये वह घर उठि जावे॥
यह अचरज है सबसे न्यारा।
ऐ सखि साजन? ना सखि तारा॥

2.
नंगे पाँव फिरन नहिं देत।
पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत॥
पाँव का चूमा लेत निपूता।
ऐ सखि साजन? ना सखि जूता॥

3.
वह आवे तब शादी होय।
उस बिन दूजा और न कोय॥
मीठे लागें वाके बोल।
ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल॥

4.
जब माँगू तब जल भरि लावे।
मेरे मन की तपन बुझावे॥
मन का भारी तन का छोटा।
ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा॥

अमीर खुसरो


कुछ और कह मुकरी रचनाएँ

1.
आँखों में वो मेरी बसता
नींदों को वो चलता करता
आता रात में पूरे ताब
का सखि साजन? ना सखि ख्वाब

2.
अँखियन में छा जाय खुमारी
आहट ले ले सुधबुध सारी
रातों को आ हर ले सुधियाँ
क्या सखि साजन ?ना सखि निंदिया

3.
संग रहे वो बनके हमदम
मेरे साथ चले है हर दम
छुपे रात में वो हरजाई
का सखि साजन? ना सखि परछाई

4.
आये वो पा जाऊँ राहत
बिन उसके आ गई कयामत
सूनी उस बिन मन की नगरी
का सखि साजन? ना सखि महरी

5.
अपनी बातों में उलझाये
वादों से वो हमें रिझाये
चालाकी से मन हर लेता
का सखि साजन? ना सखि नेता

6.
उसके बिन है जीवन सूना
पाकर साथ मज़ा हो दूना
उससे प्यारा हमारा कौन
क्या सखि साजन? ना सखि फोन

7.
उसकी अँखियों से मैं देखूँ
वो जो चाहे वो मैं निरखूँ
उसका साथ लगे है करिश्मा
क्या सखि साजन ? ना सखि चश्मा

– महिमा श्रीवास्तव

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