कहानी:वापसी-राजुल
वापसी
चटाख …ज़ोर की आवाज़ थी, लगता है शीशा टूटा था, या शायद कुछ और हो. शीशा कहाँ टूटा होगा, उस गलियारे में, जहाँ से उसे लाया गया था या बगल वाले कमरे में?
आवाजों की दुनिया में भी सब गड्डमड्ड हो गया है .. दूरियों का नापजोख रखने की न तो इच्छा है और न ही कोई ज़रूरत .. बस इसी सफ़ेद बिस्तर पर पड़े रहना है … आँखें बंद करो या खोलो, कोई फ़र्क नहीं पड़ता … सामने वही सफ़ेद दीवार और आसपास वही स्टूल, दवाइयां जिनसे पहले से ही परिचय था, कुछ दिनों बाद इनमें एक स्टैंड भी शामिल हो गया जो शुरू में अपरिचित लगा था फिर इसकी भी आदत हो गई.
क्या दुनिया सिर्फ़ यहीं तक सीमित रह जानी थी? ये स्टैंड कब आया उसे पता नहीं चला. शायद वेंटीलेटर लगा हो या जाने क्या हो .. कुछ पता नहीं. इस नितांत अजनबीपन के बीच सिर्फ़ उसके तकिये के नीचे कुछ है जो जाना पहचना है, और बेहद प्यारा है. इनकी खनक न जाने कितनी बार सुनी है … ये चूड़ियाँ राजीव ने दी थीं .. लेकिन अगर चेहरों की कहें तो पुराने परिचितों में अब कोई नहीं दीखता.
शुरू में दरवाज़े के शीशे से झांकते पापा दीखते थे. पापा रोज़ आते थे.. एक दो बार भाई भी दिखे थे .. छोटा शायद कई बार आया लेकिन बड़े भैया सिर्फ़ दो बार आये थे .. और माँ तो बिलकुल नहीं आयी. शायद गर्भवती भाभी की देखभाल के लिए घर पर ही रह गई हों. उसे यही लगा था बहुत सारी बातें ठीक से याद नहीं पड़तीं लेकिन बड़े भैया का आना और पापा का ना आना दिमाग में दर्ज है.
दूसरी बार बड़े भैया यही ख़बर लेकर आये थे कि पापा को अस्पताल में भर्ती कर लिया गया है और राजीव ठीक होकर घर लौट गया है. पता नहीं राजीव उसे देखने आएगा या नहीं! हो सकता है न भी आये. अभी कमज़ोर होगा ..अच्छा है न ही आये, लेकिन पापा कैसे होंगे ..शुरू में वो जानना चाहती थी, लेकिन पता लगाने का कोई तरीका नहीं था. नर्स, डॉक्टर अपने समय पर आते, उसका चेकअप करते, लेकिन बिना बोले. मुंह पर वही मास्क लगा रहता, जो भैया पहनकर आते थे. मास्क पहनने के बावजूद वो लोग इशारों में ही बोलते … वो कुछ कहना चाहती पर आवाज़ ही नहीं निकलती … आवाज़ निकल भी जाती तो क्या वो लोग इशारे से उसे चुप रहने को ही कहते, उसे चुप रहना है, लेटे रहना है .. बस कुछ दिन और फिर उसे छुट्टी मिल जाएगी. ये बात इशारों में डॉक्टर और नर्स समझा चुके थे, इसलिए चुप रहने और इंतज़ार करने के अलावा उसके पास कोई रास्ता नहीं, लेकिन फिर भी तलब सी लगती .. माँ के हाथ के खाने की …पापा के लाड की और राजीव की बाहों की … कैसी मज़बूत थी उसकी पकड़ .. उन्ही बाहों में घिरकर योरोप भ्रमण करते हुए ख़ुद को याद कर लेती वो .. साइट सीइंग के लिए उसे अपने साथ खींचकर ले जाता राजीव … शौपिंग करता राजीव … सरदर्द होने पर उसके माथे पर लैवेंडर आयल मलता राजीव … उसके कितने सारे रूप आँखों में तैर जाते … और फिर वो राजीव जो फ्लाईट में निढाल सा लग रहा है, उसने उसके कंधे पर सर रख लिया है … एयर होस्टेस ने सर दर्द की दवा दी है लेकिन दर्द कम नहीं हो रहा .. उसका माथा जल रहा है .. उसकी गर्म साँसे कंधे और गर्दन पर महसूस हो रही हैं और फिर लैंडिंग के बाद कैसी आँखों से वो उसे देख रहा है .. डर है या चिंता? उस वक़्त समझ नहीं आया था लेकिन अब उस दहशत से वो बख़ूबी वाकिफ़ हो चुकी है ..
घर लौटने के साथ ही गले में दर्द शुरू हो गया था, फिर बुखार महसूस हुआ, फिर कैसे उसकी हालत बिगड़ी और वो अस्पताल लाई गई, उसे कुछ याद नहीं .. आज सुबह नर्स ने बताया था, “परेशान मत हो तुम डिस्चार्ज हो रही हो.”
दोपहर होने को है .. उसकी आँखें बार बार दरवाज़े पर जाकर लौट आती हैं, लंच में आज उसे चपाती और दाल दी गयी है, फीकी और बेस्वाद .. घर जाकर माँ के हाथों का खाना खाएगी .. हो सकता है राजीव ही उसे लेने आये, ससुराल में लोग किस तरह व्यवहार करेगे इसका थोड़ा तनाव भी है .. लंच में दो चार निवाले खाकर ही उसने प्लेट परे सरका दी … आँखें बंद कर ली. नर्स सूचित कर चुकी है कि वो किसी भी समय घर जा सकती है .. लेकिन अभी तक कोई आया क्यों नहीं? राजीव को शायद अस्पताल आने की मनाही हो, लेकिन पापा तो रुक नहीं सकते … बचपन से देखती आ रही है स्कूल से लेकर कालेज तक कोई भी एग्जाम हो पापा उसे लेने और छोड़ने ज़रूर आते. हनीमून पर जाते वक़्त भी पापा एयरपोर्ट तक आने को कह रहे थे, उसी ने मना किया था. 40 किलोमीटर गाड़ी चलाकर आना और तुरंत वापिसी, ”शाम की फ्लाईट है, क्या फायदा पापा .. इतनी दूर गाड़ी से आने में आप थक जाएंगे, अपना शहर होता तो कोई बात नहीं थी, अनजाने शहर में कहाँ रुकेंगे.”
पापा बड़ी मुश्किल से माने तब जाकर उसे तसल्ली हुई, लेकिन यूरोप से वापिस लौटकर जब राजीव की हालत बिगड़ती देखी, चेकअप हुआ और राजीव को से आइसोलेशन वार्ड में ले जाया गया .. और वो खुद .. कितनी घबरा गई थी जब डॉक्टर ने उससे कहा था कि उसे भी अस्पताल में रखा जाएगा. उस वक़्त बहुत परेशान होकर उसने सोचा था, ”काश! पापा यहाँ होते”. घबराहट बढ़ने लगी, उस समय कोई हिदायत याद नहीं रही, यहाँ रुकना बेकार है, वो तो राजीव को देख भी नहीं सकती. मन था कि माँ पापा के पास जाने के लिए मचल रहा था. तो वो चुपके से अस्पताल से निकल आई. मुश्किल से वो भागकर घर पहुंची थी.. सब याद आता है .. दरवाज़ा खुलते ही सबके चेहरों पर हैरानी थी. माँ और पापा ने उसे गले लगाया, बड़े भैया ने हालचाल पूछा लेकिन भाभी दूर से देखती रही .. सब को राजीव की तबियत की फ़िक्र थी, लेकिन उसकी घबराहट और सुस्त चेहरा देखकर ज़्यादा सवाल नहीं हुए.
घर में सबने तय किया कि राजीव की खैरियत लेने अस्पताल जाएंगे. इस बीच कई बार राजीव का हाल जानने के लिए अस्पताल में फोन भी किया गया लेकिन कुछ पता नहीं लगा. ये सब जानकर वो बहुत परेशान हो जाती और तब माँ हलके हलके उसके बालों में उँगलियाँ फेरतीं .. पापा उसे समझाते.
अगले दिन शाम से उसका बुखार बढ़ने लगा था. उसने किसी को नहीं बताया, लेकिन उस रात तबियत बिगड़ने लगी, उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी तब पापा और भैया उसे लेकर अस्पताल भागे थे .. कितने दिन अस्पताल में गुज़रे, उसे नहीं पता .. लेकिन आज उसे लेने कोई नहीं आया .. आँखों में पुराने सभी चित्र मिट गए हैं, सिर्फ़ कुछ चुभ रहा है … आँखों में ही नहीं सीने में भी कुछ अजीब सा दर्द है … आज सुबह से आराम नहीं किया है तभी इस तरह चुभन और बेचैनी हो रही है. तकलीफ तो है लेकिन किसी को बताएगी नहीं, वरना क्या पता ये लोग उसे फिर अस्पताल में ही रोक लें … शाम होने को थी, उसने मिन्नत करके नर्स से फ़ोन करने को कहा. तब पता लगा कि माँ तो उसी रोज़ अस्पताल में भर्ती हुई थीं जिस रोज़ बड़े भैया दूसरी बार उससे मिलने आये थे. पापा भी पिछले चार दिनों से अस्पताल में हैं. हालत ख़राब है.
वो थकी सी बिस्तर पर लेट गई .. आँखें बंद कर ली .. तभी दरवाज़ा खुला, शायद नर्स आयी थी, लेकिन बड़े भैया की आवाज़ सुनकर उसने आँखें खोलीं, “ये तो सो रही है.” “नहीं भैया, बस आँखें बंद कर ली थीं.“ बड़े भैया पूछ रहे थे, “बताओ कहाँ छोड़ दूं, ससुराल जाओगी?” उसने पूछा, ”राजीव नहीं आये?“ “नहीं, उसके घर वाले नाराज़ हैं, तुमने बहुत बचपना किया है सोनम, राजीव अस्पताल में था, तुम्हे भी वहीँ रुकने को कहा गया था, लेकिन तुमने किसी की नहीं सुनी … और अब कोई तुम्हारी सुनने को तैयार नहीं है कि तुम खुद कोरोना की वजह से अस्पताल पहुँच चुकी हो. तुम्हें क्या ज़रूरत थी घर आने की, अगर उस वक़्त अस्पताल में ही रुक जाती तो ये सब न होता, जो आज हुआ है. तुम इस तरह भाग आयी और उनका बेटा अस्पताल में पड़ा रहा. उन्हें बुरा तो लगेगा ही. मैं तुम्हारी ससुराल गया था, राजीव से मिला था लेकिन वो भी ठीक से बोला नहीं.”
वो शून्य में देख रही थी, उसे चुप देखकर भैया बोले, ”देखो अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है, अब तुम समझदारी से काम लो, वहां चली जाओ. यहाँ वैसे भी तुम्हें अकेले ही रहना होगा, तुम्हारी भाभी का नवा महीना है, उसके लिए कोई भी इन्फेक्शन ठीक नहीं रहेगा, माँ पापा दोनों क्रिटिकल हैं, इस एज में कोरोना इन्फेक्शन बहुत ख़तरनाक होता है .. हम सब अस्पताल की भागदौड़ में लगे हैं, मैं तुम्हारा सामान ले आया हूँ, टैक्सी बुक कर ली है बाहर खडी है, ड्राईवर पहचान का है, तुम्हे कोई परशानी नहीं होगी.” वो बिस्तर से उठ गई और कांपते पैरों से टैक्सी में आकर बैठ गई .. भैया ड्राईवर से कुछ कह रहे थे. टैक्सी स्टार्ट हो गई, भैया ने हाथ हिलाकर विदा किया .. उसने सीट से टिककर आँखें बंद कर ली, आँखों में बहुत देर से जो चुभ रहा था वो आंसुओं में बहने लगा.
- राजुल
बहत अच्छा लेखन
Behtareen story samay k anukul samvednaon emotions se bharpoor aur ek strong message liye hue….👏👏👏👏👏👏👏👏
Very nice …very sensitive
So sad heart touching .todays real story
Heart touching…
शब्दो से परे मन के घेरे में बुनी गयी मनभाव ।
उम्दा राजुल जी।
समसामयिक ।
Bilkul Sachi lag rahi hai