विश्व में हिंदी और हिंदी का विश्व – डॉ करुणाशंकर उपाध्याय

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आज समूचे विश्व  में वैश्वीकरण की जो आंधी चल रही है उससे भाषाएं भी अछूती नहीं हैं।अब उन्हें भी वैश्विक प्रतिस्पर्धा के इस युग में उपयोगिता और बदलाव की हर कसौटी पर खरा उतरना होगा। इस दृष्टि से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में हिंदी तथा भारतीय भाषाओं को यथोचित सम्मान दिलाने के लिए प्रयास किया गया है। इसमें स्वदेशी, स्व-संस्कृति तथा स्वभाषा पर विशेष जोर दिया गया है। यही कारण है कि इसे शिक्षा की घर वापसी भी कहा जा रहा है। इसे भारतवर्ष की गतिशील लोकोन्मुख परंपरा और वर्तमान सदी की चुनौतियों के अनुरूप बनाया गया है। यह हमारे राष्ट्रीय सरोकारों को पुरस्कृत करते हुए उसे विषयगत वैविध्य के हर पहलू तक ले जाती है। इसका उद्देश्य ही ज्ञान आधारित जीवंत समाज का निर्माण एवं विकास रखा गया है। इसमें कुल 206 बार भाषा शब्द का प्रयोग किया गया है जो इस बात का सबूत है कि हमारी वर्तमान सरकार भारतीय भाषाओं के भवितव्य को लेकर कितनी गंभीर है।

इक्कीसवीं सदी बीसवीं शताब्दी से भी ज्यादा तीव्र परिवर्तनों वाली तथा चमत्कारिक उपलब्धियों वाली शताब्दी सिद्ध हो रही है। विज्ञान एवं तकनीक के सहारे पूरी दुनिया एक वैश्विक गाँव में तब्दील हो रही है और स्थलीय व भौगोलिक दूरियां अपनी अर्थवत्ता खो रहीं हैं। वर्तमान विश्व व्यवस्था आर्थिक और व्यापारिक आधार पर ध्रुवीकरण तथा पुनर्संघटन की प्रक्रिया से गुजर रही है। ऐसी स्थिति में विश्व के शक्तिशाली राष्ट्रों के महत्त्व का क्रम भी बदल रहा है।ऐसी स्थिति में इन राष्ट्रों की भाषाओं का महत्व भी नित नवीन श्रेणी प्राप्त कर रहा है।हिंदी इस दृष्टि से नेतृत्वकारी भूमिका में है।उसे समय और समाज का यथोचित सहयोग मिल रहा है। अभी 14 सितंबर 2019 को हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में बोलते हुए गृहमंत्री श्री अमित शाह ने कहा कि हमें  सारी भारतीय भाषाओं के विकास के साथ- साथ  एक देश एक भाषा के सिद्धांत को भी अपनाने की जरुरत है ।हम किसी पर कोई भाषा थोपना नहीं चाहते परंतु देश को एकसूत्र में जोड़ने के लिए हिंदी के विकास के प्रति प्रतिबद्ध हैं।हम 2024 तक हिंदी को अगले चरण में पहुंचा देंगे।इस बयान पर दक्षिण के कुछ राजनेताओं द्वारा बाकायदा राजनीति भी शुरू हो गयी हैं।ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि हम हिंदी की वर्तमान स्थिति से भलीभांति परिचित हो जाएं।

बदलती दुनिया बदलते भाषिक परिदृष्य

यदि हम विगत तीन शताब्दियों पर विचार करें तो कई रोचक निष्कर्ष पा सकते हैं। यदि अठारहवीं सदी आस्ट्रिया और हंगरी के वर्चस्व की रही है तो उन्नीसवीं सदी ब्रिटेन और जर्मनी के वर्चस्व का साक्ष्य देती है। इसी तरह बीसवीं सदी अमेरिका एवं सोवियत संघ के वर्चस्व के रूप में विश्व नियति का निदर्शन करने वाली रही है। आज स्थिति यह है कि लगभग विश्व समुदाय दबी जुबान से ही सही, यह कहने लगा है कि इक्कीसवीं सदी भारत और चीन की होगी। इस सदी में इन दोनों देशों की तूती बोलेगी। इस भविष्यवाणी को चरितार्थ करने वाले ठोस कारण हैं। आज भारत और चीन विश्व की सबसे तीव्र गति से उभरने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से हैं तथा विश्व स्तर पर इनकी स्वीकार्यता और महत्ता स्वत: बढ रही है। इन देशों के पास अकूत प्राकृतिक संपदा तथा युवतर मानव संसाधन है जिसके कारण ये भावी वैश्विक संरचना में उत्पादन के बडे स्रोत बन सकते हैं। अपनी कार्य निपुणता तथा निवेश एवं उत्पादन के समीकरण की प्रबल संभावना को देखते हुए ही भारत और चीन को निकट भविष्य की विश्व शक्ति के रूप में देखा जाने लगा है। 

जाहिर है कि जब किसी राष्ट्र को विश्व बिरादरी अपेक्षाकृत ज्यादा महत्त्व और स्वीकृति देती है तथा उसके प्रति अपनी निर्भरता में इजाफा पाती है तो उस राष्ट्र की तमाम चीजें स्वत: महत्त्वपूर्ण बन जाती हैं। ऐसी स्थिति में भारत की विकासमान अंतरराष्ट्रीय हैसियत हिंदी के लिए वरदान-सदृश है। यह सच है कि वर्तमान वैश्विक परिवेश में भारत की बढती उपस्थिति हिंदी की हैसियत का भी उन्नयन कर रही है। आज हिंदी राष्ट्रभाषा की गंगा से विश्वभाषा का गंगासागर बनने की प्रक्रिया में है।आज विश्व स्तर पर उसकी स्वीकार्यता और व्याप्ति अनुभव की जा सकती है। जब हम हिंदी को विश्व भाषा में  रूपांतरित   होते हुए देेेे रहे हैं और यथावसर उसे विश्व भाषा की संज्ञा प्ररदान कर रहे हैं तब यह जरूरी हो  जात है कि हम सर्वप्रथम विश्व भाषा का स्वरूप -विश्लेषण कर लेें ।

    भाषा के वै श्विक संदर्भ की विशेषताएँ-जब हम किसी भाषा के वैश्विक परिदृश्य पर विचार करते हैं तो हमें अनेक पक्षों पर गंभीर बात करनी होती है। आज हिंदी वैश्विक परिदृश्य में अपनी भूमिका बखूबी निभाने के लिए सुसज्जित है। वह संपूर्ण विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है।

आखिर, वे कौन सी विशेषताएँ हैं जो किसी भाषा को वैश्विक संदर्भ प्रदान करती हैं।         

सामान्यतः विश्व व्यवस्था को संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों में प्रयुक्त होने वाली भाषाएं विश्व भाषा कहलाने की अधिकारिणी हैं परन्तु अध्ययन की सुविधा के लिए उसके कुछ ठोस निकष अथवा प्रतिमान बनाने होंगे।   ऐसा करके हम हिंदी के विश्व संदर्भ का वस्तुपरक विश्लेषण कर सकते हैं।  संक्षेप में, विश्वभाषा के निम्नलिखित अभिलक्षण निर्मित किए जा सकते हैं:-

  •  उसके बोलने-जानने तथा चाहने वाले भारी तादाद में हों और वे विश्व के अनेक देशों में फैले हों।
  • उस भाषा में साहित्य-सृजन की प्रदीर्घ परंपरा हो और प्राय: सभी विधाएँ वैविध्यपूर्ण एवं समृद्ध हों। उस भाषा में सृजित कम-से-कम एक विधा का साहित्य विश्वस्तरीय हो।
  • उसकी शब्द-संपदा विपुल एवं विराट हो तथा वह विश्व की अन्यान्य बडी भाषाओं से विचार-विनिमय करते हुए एक -दूसरे को प्रेरित -प्रभावित करने में सक्षम हो।
  • उसकी शाब्दी एवं आर्थी संरचना तथा लिपि सरल, सुबोध एवं वैज्ञानिक हो। उसका पठन-पाठन और लेखन सहज-संभाव्य हो। उसमें निरंतर परिष्कार और परिवर्तन की गुंजाइश हो।
  • उसमें ज्ञान-विज्ञान के तमाम अनुशासनों में वाङमय सृजित एवं प्रकाशित हो तथा नए विषयों पर सामग्री तैयार करने की क्षमता हो।
  • वह नवीनतम वैज्ञानिक एवं तकनीकी उपलब्धियों के साथ अपने-आपको पुरस्कृत एवं समायोजित करने की क्षमता से युक्त हो।
  • वह अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक संदर्भों, सामाजिक संरचनाओं, सांस्कृतिक चिंताओं तथा आर्थिक विनिमय की संवाहक हो।उसमें इन सबको तथा विश्व मन की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करने का माद्दा हो।
  • वह जनसंचार माध्यमों में बडे पैमाने पर देश-विदेश में प्रयुक्त हो रही हो।वैश्विक मीडिया में उसका प्रभावी हस्तक्षेप हो।
  •  उसका साहित्य अनुवाद के माध्यम से विश्व की दूसरी महत्त्वपूर्ण भाषाओं में पहुँच रहा हो।उसके पठन-पाठन तथा प्रसारण की सुविधा अनेक देशों में उपलब्ध हो।
  •  उसमें मानवीय और यांत्रिक अनुवाद की आधारभूत तथा विकसित सुविधा हो जिससे वह बहुभाषिक कम्प्यूटर की दुनिया में अपने समग्र सूचना स्रोत तथा प्रक्रिया सामग्री (सॉफ्टवेयर) के साथ उपलब्ध हो। साथ ही, वह इतनी समर्थ हो कि वर्तमान प्रौद्योगिकीय उपलब्धियों मसलन ई-मेल, ई-कॉमर्स, ई-बुक, इंटरनेट तथा एस.एम.एस. एवं वेब जगत में प्रभावपूर्ण ढंग से अपनी सक्रिय उपस्थिति का अहसास करा सके ।
  • उसमें उच्चकोटि की पारिभाषिक शब्दावली हो तथा वह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की नवीनतम आविष्कृतियों को अभिव्यक्त करते हुए मनुष्य की बदलती जरूरतों एवं आकांक्षाओं को वाणी देने में समर्थ हो।
  • वह विश्व चेतना की संवाहिका हो। वह स्थानीय आग्रहों से मुक्त विश्व दृष्टि सम्पन्न कृतिकारों की भाषा हो, जो विश्वस्तरीय समस्याओं की समझ और उसके निराकरण का मार्ग जानते हों।उनके द्वारा सृजित साहित्य विश्व बंधुत्व,विश्व मैत्री एवं विश्व कल्याण की भावना से अनुप्राणित हो।

वैश्विक संदर्भ में हिंदी की सामर्थ्य

जब हम उपर्युक्त प्रतिमानों पर हिंदी का परीक्षण करते हैं तो पाते हैं कि वह न्यूनाधिक मात्रा में प्राय: सभी निष्कर्षों पर खरी उतरती है। आज वह विश्व के सभी महाद्वीपों तथा महत्त्वपूर्ण राष्ट्रों- जिनकी संख्या लगभग एक सौ चालीस है- में किसी न किसी रूप में प्रयुक्त होती है। वह विश्व के विराट फलक पर नवल चित्र के समान प्रकट हो रही है। आज वह बोलने वालों की संख्या के आधार पर चीनी के बाद विश्व की दूसरी सबसे बडी भाषा बन गई है। इस बात को सर्वप्रथम सन १९९९ में “मशीन ट्रांसलेशन समिट’ अर्थात् यांत्रिक अनुवाद नामक संगोष्ठी में टोकियो विश्वविद्यालय के प्रो. होजुमि तनाका ने भाषाई आँकडे पेश करके सिद्ध किया है। उनके द्वारा प्रस्तुत आँकडों के अनुसार विश्वभर में चीनी भाषा बोलने वालों का स्थान प्रथम और हिंदी का द्वितीय है। अंग्रेजी तो तीसरे क्रमांक पर पहुँच गई है। इसी क्रम में कुछ ऐसे विद्वान अनुसंधित्सु भी सक्रिय हैं जो हिंदी को चीनी के ऊपर अर्थात् प्रथम क्रमांक पर दिखाने के लिए प्रयत्नशील हैं।

डॉ. जयन्ती प्रसाद नौटियाल ने भाषा शोध अध्ययन २००५ के हवाले से लिखा है कि, विश्व में हिंदी जानने वालों की संख्या एक अरब दो करोड पच्चीस लाख दस हजार तीन सौ बावन (१, ०२, २५, १०,३५२) है जबकि चीनी बोलने वालों की संख्या केवल नब्बे करोड चार लाख छह हजार छह सौ चौदह (९०, ०४,०६,६१४) है।इस समय हिंदी  संपूर्ण विश्व की सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाली भाषा है। 

आज  संपूर्ण विश्व में हिंदी 64करोड़ लोगों की मातृभाषा,24करोड़ लोगों की दूसरी भाषा और 42करोड़ लोगों की तीसरी,चौथी,पांचवीं  अथवा विदेशी भाषा है।आज हिंदी विश्व के 206 देशों में धड़ल्ले से प्रयुक्त हो रही है और उसके प्रयोक्ताओं की संख्या  एक अरब तीस करोड़ तक पहुंच गयी है। हमारे देश के प्रशिक्षित पेशेवर लगातार विदेशों में अपनी सेवाएं देने के लिए जा रहे हैं और उनके साथ हिंदी भी जा रही है। इसी तरह बहुराष्ट्रीय निगम बड़े पैमाने पर भारत में पूंजी निवेश कर रहे हैं। फलतः वे अपने लाभ के लिए ही सही हिंदी का प्रयोग करने के लिए अभिशप्त हैं।

चीन की भाषा मंदारिन के पिछड़ने का मुख्य कारण यह है कि अड़तीस प्रतिशत चीनी मंदारिन नहीं बोल पाते हैं जबकि हिंदी की स्थिति इससे बेहतर है। केवल बाईस प्रतिशत भारतीय ही हिंदी बोल अथवा समझ नहीं पाते हैं। चीन में 56बोलियां अथवा उपभाषाएं हैं जो मंदारिन से एकदम भिन्न हैं।  यह मान भी लिया जाय कि आँकडे झूठ बोलते हैं और उन पर आँख मूँदकर विश्वास नहीं किया जा सकता तो भी इतनी सच्चाई निर्विवाद है कि हिंदी बोलने वालों की संख्या के आधार पर विश्व की दो सबसे बडी भाषाओं में से है। लेकिन वैज्ञानिकता का तकाजा यह भी है कि हम इस तथ्य को भी स्वीकार करें कि अंग्रेजी के प्रयोक्ता भी  विश्व के उतने ही  देशों में फैले हुए हैं। वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशासनिक, व्यावसायिक तथा वैचारिक गतिविधियों को चलाने वाली सबसे प्रभावशाली भाषा बनी हुई है।

चूंकि हिंदी का संवेदनात्मक साहित्य उच्चकोटि का होते हुए भी ज्ञान का साहित्य अंग्रेजी के स्तर का नहीं है अत: निकट भविष्य में विश्व व्यवस्था परिचालन की दृष्टि से अंग्रेजी की उपादेयता एवं महत्त्व को कोई खतरा नहीं है। इस मोर्चे पर हिंदी का बडे ही सबल तरीके से उन्नयन करना होगा। उसके पक्ष में महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आज अंग्रेजी के बराबर  वह विश्व के सबसे ज्यादा देशों में व्यवहृत होती है।उसने डिजिटल दुनिया में अंग्रेजी के एकाधिकार को समाप्त कर दिया है। 

आने वाली पीढ़ी की भाषा

वर्तमान उत्तर आधुनिक परिवेश में विशाल जनसंख्या भारत और चीन के साथ-साथ हिंदी और चीनी के लिए भी फायदेमंद सिद्ध हो रही है। हमारे देश में १९८० के बाद 75 करोड से ज्यादा बच्चे पैदा हुए हैं जो विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों तथा अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षित प्रशिक्षित हो रहे हैं। वे सन् 2030 तक विधिवत प्रशिक्षित पेशेवर के रूप में अपनी सेवाएँ देने के लिए विश्व के समक्ष उपलब्ध होंगे। दूसरी ओर जापान की सत्तर प्रतिशत से ज्यादा आबादी सत्तर साल पार करके बुढापे की ओर बढ रही है। यही हाल आगामी पंद्रह सालों में चीन, अमेरिका और यूरोप का भी होने वाला है। चीन की 75 करोड़ जनसंख्या 2030 तक बूढ़ी हो जाएगी । ऐसी स्थिति में विश्व का सबसे तरुण मानव संसाधन होने के कारण भारतीय पेशेवरों की तमाम देशों में लगातार मांग बढेगी।

जाहिर है कि जब भारतीय पेशेवर भारी तादाद में दूसरे देशों में जाकर उत्पादन के स्रोत बनेंगे। वहाँ की व्यवस्था परिचालन का सशक्त पहिया बनेंगे तब उनके साथ हिंदी भी जाएगी। ऐसी स्थिति में जहाँ भारत आर्थिक महाशक्ति बनने की प्रक्रिया में होगा वहाँ हिंदी स्वत: विश्वमंच पर प्रभावी भूमिका का वहन करेगी। इस तरह यह माना जा सकता है कि हिंदी आज जिस दायित्व बोध को लेकर संकल्पित है वह निकट भविष्य में उसे और भी बडी भूमिका का निर्वाह करने का अवसर प्रदान करेगा। हिंदी जिस गति तथा आंतरिक ऊर्जा के साथ अग्रसर है उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि सन 2030 तक वह दुनिया की सबसे ज्यादा बोली व समझी जाने वाली भाषा बन जाएगी।आज विश्व का हर छठा व्यक्ति हिंदी बोलने अथवा समझने में सक्षम है तो 2030तक विश्व का हर पांचवां व्यक्ति हिंदी बोलने अथवा समझने में सक्षम होगा। अतः आने वाला समय हिंद और हिंदी का है।

समर्थ भाषा और वैज्ञानिक लिपि

यदि हम इन आँकडों पर विश्वास करें तो संख्याबल के आधार पर हिंदी विश्वभाषा है। हाँ, यह जरूर संभव है कि यह मातृभाषा न होकर दूसरी, तीसरी अथवा चौथी भाषा भी हो सकती है। हिंदी में साहित्य-सृजन की परंपरा भी बारह सौ साल पुरानी है। वह ८वीं शताब्दी से लेकर वर्तमान २१वीं शताब्दी तक गंगा की अनाहत-अविरल धारा की भाँति प्रवाहमान है। उसका काव्य साहित्य तो संस्कृत के बाद विश्व के श्रेष्ठतम साहित्य की क्षमता रखता है। उसमें लिखित उपन्यास एवं समालोचना भी विश्वस्तरीय है। उसकी शब्द संपदा विपुल है। उसके पास पच्चीस लाख से ज्यादा शब्दों की सेना है। उसके पास विश्व की सबसे बडी कृषि विषयक शब्दावली है। उसने अन्यान्य भाषाओं के बहुप्रयुक्त शब्दों को उदारतापूर्वक ग्रहण किया है और जो शब्द अप्रचलित अथवा बदलते जीवन संदर्भों से दूर हो गए हैं उनका त्याग भी कर दिया है। आज हिंदी में विश्व का महत्त्वपूर्ण साहित्य अनुसृजनात्मक लेखन के रूप में उपलब्ध है और उसके साहित्य का उत्तमांश भी विश्व की दूसरी भाषाओं में अनुवाद के माध्यम से जा रहा है।

जहाँ तक देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता का सवाल है तो वह सर्वमान्य है। देवनागरी में लिखी जाने वाली भाषाएँ उच्चारण पर आधारित हैं। हिंदी की शाब्दी और आर्थी संरचना प्रयुक्तियों के आधार पर सरल व जटिल दोनों है। हिंदी भाषा का अन्यतम वैशिष्ट्य यह है कि उसमें संस्कृत के उपसर्ग तथा प्रत्ययों के आधार पर शब्द बनाने की अभूतपूर्व क्षमता है। हिंदी और देवनागरी दोनों ही पिछले कुछ दशकों में परिमार्जन व मानकीकरण की प्रक्रिया से गुजरी हैं जिससे उनकी संरचनात्मक जटिलता कम हुई है। हम जानते हैं कि विश्व मानव की बदलती चिंतनात्मकता तथा नवीन जीवन स्थितियों को व्यंजित करने की भरपूर क्षमता हिंदी भाषा में है बशर्ते इस दिशा में अपेक्षित बौद्धिक तैयारी तथा सुनियोजित विशेषज्ञता हासिल की जाए। आखिर, उपग्रह चैनल हिंदी में प्रसारित कार्यक्रमों के जरिए यही कर रहे हैं। हमने डिजिटल दुनिया में हिंदी की मानक वर्तनी उपलब्ध कराकर देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता को तार्किक परिणति प्रदान की है।

मीडिया, सोशल मीडिया और वेब पर हिंदी

यह सत्य है कि हिंदी में अंग्रेजी के स्तर की विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर आधारित पुस्तकें नहीं हैं। उसमें ज्ञान विज्ञान से संबंधित विषयों पर उच्चस्तरीय सामग्री की दरकार है। विगत कुछ वर्षों से इस दिशा में उचित प्रयास हो रहे हैं। अभी हाल ही में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा द्वारा हिंदी माध्यम में एम.बी.ए.का पाठ¬क्रम आरंभ किया गया। इसी तरह “इकोनामिक टाइम्स’ तथा “बिजनेस स्टैंडर्ड’ जैसे अखबार हिंदी में प्रकाशित होकर उसमें निहित संभावनाओं का उद्घोष कर रहे हैं। पिछले कई वर्षों में यह भी देखने में आया कि “स्टार न्यूज’ जैसे चैनल जो अंग्रेजी में आरंभ हुए थे वे विशुद्ध बाजारीय दबाव के चलते पूर्णत: हिंदी चैनल में रूपांतरित हो गए। साथ ही, “ई.एस.पी.एन’ तथा “स्टार स्पोर्ट्स’ जैसे खेल चैनल भी हिंदी में कमेंट्री देने लगे हैं। हिंदी को वैश्विक संदर्भ देने में उपग्रह-चैनलों, विज्ञापन एजेंसियों, बहुराष्ट्रीय निगमों तथा यांत्रिक सुविधाओं का विशेष योगदान है। वह जनसंचार-माध्यमों की सबसे प्रिय एवं अनुकूल भाषा बनकर निखरी है।

आज विश्व में सबसे ज्यादा पढे जानेवाले समाचार पत्रों में आधे से अधिक हिन्दी के हैं। इसका आशय यही है कि पढा-लिखा वर्ग भी हिन्दी के महत्त्व को समझ रहा है। वस्तुस्थिति यह है कि आज भारतीय उपमहाद्वीप ही नहीं बल्कि दक्षिण पूर्व एशिया, मॉरीशस,चीन,जापान,कोरिया, मध्य एशिया, खाडी देशों, अफ्रीका, यूरोप, कनाडा तथा अमेरिका तक हिंदी कार्यक्रम उपग्रह चैनलों के जरिए प्रसारित हो रहे हैं और भारी तादाद में उन्हें दर्शक भी मिल रहे हैं। आज मॉरीशस में हिंदी सात चैनलों के माध्यम से धूम मचाए हुए है। विगत कुछ वर्षों में एफ.एम. रेडियो के विकास से हिंदी कार्यक्रमों का नया श्रोता वर्ग पैदा हो गया है। हिंदी अब नई प्रौद्योगिकी के रथ पर आरूढ होकर विश्वव्यापी बन रही है। उसे ई-मेल, ई-कॉमर्स, ई-बुक, इंटरनेट, एस.एम.एस. एवं वेब जगत में बडी सहजता से पाया जा सकता है। इंटरनेट जैसे वैश्विक माध्यम के कारण हिंदी के अखबार एवं पत्रिकाएँ दूसरे देशों में भी विविध साइट्स पर उपलब्ध हैं।यहां तक कि स्वयं गूगल का सर्वेक्षण सिद्ध कर रहा है कि विगत चार वर्षों में सोशल मीडिया पर हिंदी में प्रयुक्त होने वाली सामग्री में 94प्रतिशत की बढोतरी हुई है जबकि अंग्रेजी में मात्र 19 प्रतिशत की हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी हिंदी के वैश्विक राजदूत और सुपर ब्रांड बन गए हैं। संपूर्ण विश्व के अलग अलग हिस्सों में उन्हें सुनने के लिए जिस तरह भारी भीड़ जमा होती है वह प्रकारांतर से हिंद और हिंदी की बढ़ती शक्ति का उद्घोष भी है।

माइक्रोसाफ्ट, गूगल, सन, याहू, आईबीएम तथा ओरेकल जैसी विश्वस्तरीय कंपनियाँ अत्यंत व्यापक बाजार और भारी मुनाफे को देखते हुए हिंदी प्रयोग को बढावा दे रही हैं। इस समय भारत विश्व में इंटरनेट का सबसे बड़ा उपभोक्ता बनने के कगार पर है।अब भारत विश्व का ब्राड बैंड बन गया है । आज हमारे देश में 50 करोड़ से अधिक इंटरनेट उपभोक्ता हैं जिनमें से 40 करोड़ से अधिक लोग स्मार्ट फोन के द्वारा इंटरनेट का उपयोग करते हैं। इनमें से 42 करोड़ उपभोक्ता हिंदी में इंटरनेट का उपयोग करते हैं। इस समय संपूर्ण विश्व में यू-ट्यूब के 1अरब 80 करोड़ उपभोक्ता हैं जिनमें से 27 करोड़ से अधिक लोग भारत के हैं।

आज 26 करोड़ से अधिक लोगों द्वारा यू-ट्यूब पर हिंदी का प्रयोग हो रहा है। भारत के 93% युवा यू-ट्यूब पर हिंदी वीडियो देखते हैं।इस समय गूगल प्ले स्टोर द्वारा भारत में हर महीने एक अरब ऐप डाउनलोड किए जाते हैं। इस दृष्टि से भारत और हिंदी सबसे ऊपर हैं। अभी जब भारत सरकार ने 200 से अधिक चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाए तो करोड़ों लोगों ने इन ऐप्स को अपने फोन से हटा दिया। अब भारतीय वैज्ञानिक उनका भारतीय रूप विकल्प के तौर पर उपलब्ध करा रहे हैं ।सोशल मीडिया पर अंग्रेजी की तुलना में हिंदी संदेश ज्यादा पसंद और  साझा किए जाते हैं।

आज हिंदी वाॅयस सर्च क्वेरी प्रति वर्ष 400% की दर से बढ़ रही है। इस समय सोशल मीडिया अंग्रेजी न जानने वालों के लिए सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म है जो ई-मेल को भी अप्रासंगिक बना रहा है। अंग्रेजी की तुलना में फेसबुक, ट्विटर पर हिंदी ज्यादा लोकप्रिय है। इसका मूल कारण अभिव्यक्तिगत सरलता और सुबोधता है।सोशल मीडिया के कारण पारदर्शिता बढ़ रही है। इसने हर व्यक्ति को स्मार्ट फोन के माध्यम से रिपोर्टर बना दिया है। इसकी द्रुत गति एवं विश्वव्यापी वर्चुअल पहुंच आश्चर्यजनक है । यही कारण है कि इस समय इंटरनेट के महासागर में हिंदी के 4 लाख 82 हजार करोड़ हे अधिक पृष्ठ उपलब्ध हैं जो अंग्रेजी से दुगुने से भी अधिक हैं।

संक्षेप में, यह स्थापित सत्य है कि अंग्रेजी के दबाव के बावजूद हिंदी बहुत ही तीव्र गति से विश्वमन के सुख-दु:ख, आशा-आकांक्षा की संवाहक बनने की दिशा में अग्रसर है। आज विश्व के दर्जनों देशों में हिंदी की पत्रिकाएँ निकल रही हैं तथा अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, जापान, आस्ट्रिया जैसे विकसित देशों में हिंदी के कृती रचनाकार अपनी सृजनात्मकता द्वारा उदारतापूर्वक विश्व मन का संस्पर्श कर रहे हैं। हिंदी के शब्दकोश तथा विश्वकोश निर्मित करने में भी विदेशी विद्वान  भी सहायता कर रहे हैं। इस समय ई-पत्रिका, ई-जर्नल और ई-बुक की अवधारणा चरितार्थ हो रही है। कोरोना कहर से उत्पन्न स्थिति ने सारे अखबारों एवं पत्रिकाओं के डिजिटल संस्करण उपलब्ध करा दिए हैं।

राजनीतिक व सामाजिक क्षेत्र में हिंदी

जहाँ तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक विनिमय के क्षेत्र में हिंदी के अनुप्रयोग का सवाल है तो यह देखने में आया है कि हमारे देश के नेताओं ने समय-समय पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिंदी में भाषण देकर उसकी उपयोगिता का उद्घोष किया है। यदि अटल बिहारी वाजपेयी तथा पी.वी.नरसिंहराव द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में दिया गया वक्तव्य स्मरणीय है तो श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा राष्ट्र मंडल देशों की बैठक तथा चन्द्रशेखर द्वारा दक्षेस शिखर सम्मेलन के अवसर पर हिंदी में दिए गए भाषण भी उल्लेखनीय हैं। यह भी सर्वविदित है कि यूनेस्को के बहुत सारे कार्य हिंदी में सम्पन्न होते हैं। इसके अलावा अब तक विश्व हिंदी सम्मेलन मॉरीशस, त्रिनिदाद, लंदन, सुरीनाम तथा न्यूयार्क जैसे स्थलों पर सम्पन्न हो चुके हैं जिनके माध्यम से विश्व स्तर पर हिंदी का स्वर सम्भार महसूस किया गया। अभी आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव बान की मून ने दो-चार वाक्य हिंदी में बोलकर उपस्थित विश्व हिंदी समुदाय की खूब वाह-वाही लूटी। हिंदी को वैश्विक संदर्भ और व्याप्ति प्रदान करने में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद द्वारा विदेशों में स्थापित भारतीय विद्यापीठों की केन्द्रीय भूमिका रही है जो विश्व के अनेक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रों में फैली हुई है। इन विश्वविद्यालयों में शोध स्तर पर हिन्दी अध्ययन अध्यापन की सुविधा है जिसका सर्वाधिक लाभ विदेशी अध्येताओं को मिल रहा है। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी देश-विदेश के हर मंच पर   हिंदी का प्रयोग करके उसकी छवि का उन्नयन कर रहे हैं। वे इस समय हिंदी के वैश्विक राजदूत बनकर उभरे हैं।

विदेशो में हिंदी

हिंदी विश्व के प्राय: सभी महत्त्वपूर्ण देशों के विश्व विद्यालयों में अध्ययन अध्यापन में भागीदार है। अकेले अमेरिका में ही लगभग एक सौ पचास से ज्यादा शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी का पठन-पाठन हो रहा है। आज जब २१वीं सदी में वैश्वीकरण के दबावों के चलते विश्व की तमाम संस्कृतियाँ एवं भाषाएँ आदान -प्रदान व संवाद की प्रक्रिया से गुजर रही हैं तो हिंदी इस दिशा में विश्व मनुष्यता को निकट लाने के लिए सेतु का कार्य कर सकती है। उसके पास पहले से ही बहु सांस्कृतिक परिवेश में सक्रिय रहने का अनुभव है जिससे वह अपेक्षाकृत ज्यादा रचनात्मक भूमिका निभाने की स्थिति में है। हिंदी सिनेमा अपने संवादों एवं गीतों के कारण विश्व स्तर पर लोकप्रिय हुए हैं। उसने सदा-सर्वदा से विश्वमन को जोडा है। हिंदी की मूल प्रकृति लोकतांत्रिक तथा रागात्मक संबंध निर्मित करने की रही है। वह विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र की ही राष्ट्र भाषा नहीं है बल्कि पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, फिजी, मॉरीशस, गुयाना, त्रिनिदाद तथा सुरीनाम जैसे देशों की सम्पर्क भाषा भी है। वह भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों के बीच खाडी देशों, मध्य एशियाई देशों, रूस, समूचे यूरोप, कनाडा, अमेरिका तथा मैक्सिको जैसे प्रभावशाली देशों में रागात्मक जुडाव तथा विचार-विनिमय का सबल माध्यम है।अभी पिछले वर्ष संयुक्त अरब अमीरात ने हिंदी को तीसरी आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया है और वहां के न्यायालयों में भी उसका प्रयोग आरंभ हो गया है। इस तरह हिंदी अब भारत के अलावा फिजी एवं संयुक्त अरब अमीरात की भी आधिकारिक भाषा बन गयी है।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने पिछले साल हिंदी में अपना ट्विटर हैंडल तथा वेबसाइट का शुभारंभ कर दिया है।साथ ही, हर शुक्रवार को एक घंटे का रेडियो कार्यक्रम भी आरंभ किया है।सन 2000 और 2011 के बीच अकेले अमेरिका में हिंदी जानने वालों की संख्या 105% की दर से बढ़ी है। यह इस बात का प्रमाण है कि अब विकसित राष्ट्र भी हिंदी के प्रति गंभीर हैं। हमने न्यूयार्क विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ.गेब्रियल निक इलेवा से हिंदी सीखने वालों का कारण पूछा था तो उसके उत्तर में उन्होंने कहा कि आज संपूर्ण विश्व यह जानना चाहता है कि आखिर भारत में ऐसा क्या है जो यहाँ की सभ्यता, संस्कृति, इतिहास, दर्शन, धर्म एवं साहित्य सब सुरक्षित है। लोग हिंद को जानना चाहते हैं जो हिंदी द्वारा ही संभव है।

यदि निकट भविष्य में बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था निर्मित होती है और संयुक्त राष्ट्र संघ का लोकतांत्रिक ढंग से विस्तार करते हुए भारत को स्थायी प्रतिनिधित्व मिलता है तो वह यथाशीघ्र इस शीर्ष विश्व संस्था की भाषा बन जाएगी।आज विश्व का हर छठा व्यक्ति हिंदी बोलने अथवा समझने में सक्षम है और यदि हिंदी संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रतिष्ठा सहित आसीन नहीं है तो यह विश्व के हर छठे व्यक्ति के मानवाधिकार का उल्लंघन है । ऐसी स्थिति में मैं संपूर्ण हिंदी जगत से आग्रह करता हूँ कि वह एकजुट होकर हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए प्रयास करे।  यदि ऐसा नहीं भी होता है तो भी हिंदी बहुत शीघ्र वहाँ पहुँचेगी। वर्तमान समय भारत और हिंदी के तीव्र एवं सर्वोन्मुखी विकास का द्योतन कर रहा है और हम सब से यह अपेक्षा कर रहे हैं कि हम जहाँ भी हैं, जिस क्षेत्र में भी कार्यरत हैं वहाँ ईमानदारी से हिंदी और देश के विकास में हाथ बँटाएँ।इसी तरह हमें भारत के न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय में भी हिंदी के प्रयोग के लिए संघर्ष करना चाहिए।आज भारत में 78 प्रतिशत लोग हिंदी बोलने अथवा समझने में सक्षम हैं और यदि हिंदी का वहां पर प्रयोग नहीं हो रहा है तो यह देश के 78% लोगों के मानवाधिकार का उल्लंघन है।हम हिंदी के प्रश्न को मानवाधिकार से जोड़कर ही उसे न्याय दिलवा सकते हैं।इस तरह आज हिंदी विश्व की सबसे शक्तिशालिनी  भाषा बनने की दिशा में उत्तरोत्तर अग्रसर है। वह विश्व स्तर पर बहुत तेजी से प्रसार पा रही है। वह विश्व में तो अत्यंत तेजी से बढ़ रही है लेकिन हिंदी जगत को भी अपने दायित्व बोध का सम्यक् निर्वाह करना होगा। अब यह समय की मांग है कि हिंदी का विश्व उसके महत्त्व को समझे तथा हर स्तर पर उसके प्रयोग को बढ़ावा दे । हमें अपने स्तर पर इस सत्कार्य को गति प्रदान करना होगा जिससे वह न केवल विश्व की सबसे बड़ी भाषा की प्रतिष्ठा प्राप्त करे अपितु देश की अस्मिता को चार-चाँद लगा सके।भारत को आत्मनिर्भर, विश्वगुरु और विश्वशक्ति की महिमा से मंडित कर सके। संक्षेप में, हिन्दी का वर्तमान आश्वस्तिकारी है और भविष्य अत्यंत उज्वल है।

  • डॉ करुणाशंकर उपाध्याय  प्रोफेसर एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग मुंबई विश्व विद्यालय मुंबई 400098



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