संस्मरण : साहस और चुनौती का प्रतीक वियतनाम

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दुनिया के नक्शे पर वियतनाम अपनी बहादुरी के लिए एक रुपहले सितारे सा जगमगा रहा है जिसने दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरका के साथ बीस वर्षों तक लम्बी लडाई लडी और उसे पराजित किया।मेरे लिए वियतनाम मेरे बचपन का वह हैरतअँगेज़ देश है जिसकी लडाई के किस्से सुनकर,पढकर मैं बडी हुई।आज उसी वियतनाम की धरती पर कंबोडिया और वियतनाम की धरती पर कदम रखते मैं रोमाँचित हूँ। इतनी अधिक कि पासपोर्ट की लम्बी प्रक्रिया भी मुझे अखरी नहीं। कंबोडिया से हम जिस बस में आए थे उसे सरहद पर ही छोड देना पडा। हम वियतनाम की बस में सवार हो गए।

         अचानक तेज़ बारिश होने लगी। यहाँ बारिश का कोई ठिकाना नहीं,चाहे जब बरसने लगती है,चाहे जब धूप खिल आती है। हमने वियतनाम में चलने वाली दाँग मुद्रा कंबोडिया से ही ले ली ठीक इसलिए रास्ते में पडने वाले गाँवों से हम फल आदि खरीद सकते थे। हमारे गंतव्य होचीमिन्ह पहुँचने में अभी काफी वक्त था। कभी जँगल ,कभी गाँवों से गुज़रते हुए लग रहा था जैसे मैं सपनों की खूबसूरत गली से गुज़र रही हूँ और गली जिसमें मुहाने पर रुकी है वह एक छोटा सा गाँव….एक झोपडी के सामने कुछ् वियतनामी औरतें या तो चटाई बुन रही थीं या करघा चला रही थीं। लग रहा था जैसे टीम वर्क हो। हम जिन जिन गाँवो से गुज़रे औरतों को विभिन्न भूमिकाओं में देखा। कोई जडी बूटियाँ बेच रही है तो कोई स्थानीय शराब। अमूमन यही दृश्य थोडे परिवर्तित रूप में होचीमिन्ह पहुँचने पर भी मिला। हम सफारे होटल के रिसेप्शन हॉल में रखे सोफों पर आराम से बैठे वेलकम ड्रिंक का मज़ा ले रहे थे लेकिन मेरी नज़रें काँच के पार्टीशन के उस पार अपने दोनो हाथॉं,कँधों या फिर साईकल पर सामान बेचती औरतों पर पडी। वे विदेशी ग्राहकों से मोलभाव कर रही थीं। अचानक होने वाली बारिश से बचने के लिए वे सामान प्लास्टिक के बैगों में भरे, सिर पर हैट लगाए बडी मुस्तैदी से डटी थीं। रिसेप्शन में भी औरते,वेलकम ड्रिंक देने वाली भी औरतें ही…..यानी की औरतों की यहाँ की अर्थ व्यवस्था में काफी बडी भूमिका है।

                होचीमिन्ह विश्व का सबसे बडे क्षेत्रफल (2095) वाला शहर है। पहले इसका नाम यहाँ बहने वाली नदी सेगॉन के कारण सेगॉन ही था। यह काफी विकसित और खूबसूरत शहर है। सँग्रहालय, राष्ट्रपति का महल,अन्य राजकीय भवन,सुन्दर बाग बगीचे, कसीनो,ऑपेरा,शॉपिंग मॉल,थियेटर और सबसे बडा बाज़ार बेनथॉन है। डिनर के लिए जब हमारा रेस्टॉरेंट की ओर जा रहे थे रोशनी में नहाए होचीमिन्ह का स्थापत्य तिलस्मी नज़र आ रहा था। डिनर के बाद हमने उस तिलस्म को नज़दीक से देखना शुरू किया। भीगी ठँडी हवा सुकून दे रही थी जबकि यहाँ का तापमान 30 से 32 तक रहता है। सूती कपडे ही आरामदायक लगते है। रंग बिरंगे फूलों से सजा निवर्तमान राष्ट्रपति महल और उस पर फहराता लाल रंग का बीचोंबीच षटकोण सितारे के चिन्ह वाला राष्ट्रीय ध्वज और नदी के किनारे बिल्कुल मुम्बई के मरीन लाइंस जैसा नज़ारा था। महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों को विशेष रोशनी से रोशन किया गया था। कुछ परिंदे जिनके पर नदी के काले से दिखते जल पर अधिक सफेद नज़र आ रहे थे शायद भटक गए थे।

उनके परों की आवाज़ बहुत देर बाद जाकर कहीं थम गई थी। दूर होचीमिन्ह विश्व विद्यालय की इमारत दिखाई दे रही थी जहाँ सन 2000 से हिन्दी पढाई जाती है और हिन्दी वियतनामी कोष भी है जिसे वहाँ की प्राध्यापिका श्रीमती साधना सक्सेना और उनके एक विद्यार्थी ने मिलकर तैयार किया है। यहाँ एक सुखद समाचार है। वियतनामी भाषा जिसकी लिपि पहले चीनी थी लेकिन अब परिवर्तित कर लैटिन वर्ण्माला को स्वीकार कर लिया गया है बडी समृद्ध भाषा है उतना ही समृद्ध वियतनामी साहित्य भी। वियतनाम का इतिहास 2700 वर्ष पुराना है जिसके किस्से यहाँ की पाठ्य पुस्तकों में मौजूद है।

                सुबह नाश्ते के बाद हम सिटी टूर के लिए निकले। जिन इमारतों को रात में देखा था अब वे सुबह की धूप में चमक रही थीं। सड्कों पर अधिकतर सँख्या स्कूटरों की जिनकी तुलना में कारें कम थीं। स्कूटरों पर भी महिलाओं की सँख्या अधिक थी।एक आदिवासी महिला सिर पर लकडियों का गट्ठर उठाए सिग्नल पर खडी थी। गाइड ने बताया ये ब्लैक हमोंग समुदाय की आदिवासी महिला है। इस स्मुदाय की महिलाओं को जलाऊ लकडी लाने के लिए जंगलों में बहुत ऊँचाई तक जाना पडता है। आदिवासियों में भी विभिन्न समुदाय हैं। डोंगरिया कौंध समुदाय के आदिवासी जंगलों में रहते हैं लेकिन काम शहर में आकर ही करते हैं। एक बात और मैने देखी। यहाँ सडकों पर स्ट्रीट डॉग या बिल्ली कही नज़र नही आते, यहाँ उनका माँस बडे चाव से खाया जाता है।

200 किलोमीटर फैली कू ची की सुरँगों की ओर बस ने रुख किया। 1 नवम्बर 1955 से 30 अप्रेल 1975 तक चले वियतनाम युद्ध में कैसे इन दुबले पतले दिखने वाले वियतनामियों ने अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश को पराजित किया यहाँ बात कल्पना से परे थी। लेकिन जब कू ची की सुरँगें देखीं तो उनके युद्ध कौशल की मैं कायल हो गई। तेज़ बारिश में भी सुरँगें देखने के लिए हमने घने जँगल में प्रवेश किया। जँगल का रास्ता पथरीला शायद बारिश की वजह से ही बनाया गया था। जिसमें पर नाममात्र को भी कीचड नही थी। जँगल के स्घन दरख्तों के साये में चलने के कारण बारिश हमें भिगो नहीं पा रही थी।अचानक हमारी दाहिनी ओर से एक सिपाही ज़मीन के अंदर से प्रगट हुआ जिसके सिर पर घास का चौकोर ढक्कन था। मैं चौंक पडी। वो एक सुरँग का मुहाना था जिसमें भीतर ही भीतर कई वियतनामी काँग गुरिल्ला छिपे रहते थे और दुश्मन के करीब आने पर उन्हें खत्म कर देते थे। इसी तरह की अन्य छोटी बडी सुरँगें थीं जो अब पर्यटकों के लिए बाकायदा युद्ध के डिमाँस्ट्रेशन सहित मौजूद थीं।

खँदकों में हथियार रखे थे जिन्हें बिजली की सहायता से वहाँ रखे सैनिकों के पुतले बाकायदा चलाकर दिखाते है। काँग गुरिल्लाओं ने इन खँदकों और सुरँगों का इस्तेमाल छिपने के ठिकानों, सँचार यँत्र स्थापित करने,रसद हथियार आदि इकट्ठा करने और छापामार युद्ध के लिए किया। शक्तिशाली अमेरिका के विरुद्ध अपनी जीत गाथा इतिहास में दर्ज़ करने और श्रेष्ठ रणकौशल का बखान करने वाली ये सुरँगें देख रौंगटे खडे हो गए। कुछ स्य्रँगों में तो हमें रेंग कर जाना पडा। उफ…ज़हरीले साँप, बिच्छू,चींटियाँ,मकडी का बसेरा होने के बावजूद और मलेरिया जैसी बीमारी को झेलते होए जाँबाज़ वियतनामी सैनिकों ने अमेरिकी सेना के पैर उखाड दिए। जब सुरँगें बनाने का काम काँग गुरिल्लाओं ने शुरू किया होगा तब उनके दिमाग में निश्चय ही ये बात रही होगी कि” इस वक्त बहा उनका एक एक बूँद पसीना हमारे नागरिकों का एक एक गैलन खून बहने से रोकेगा।“

बीस साल तक भी अमेरिकी इन सुरँगों की गुत्थी नहीं सुलझा सके। सुरँगे देखने के बाद जँगल पार करते हुए मैंने मन ही मन उन वीर सैनिकों को सेल्यूट किया जो तमाम असुविधाओं के बीच हारे नहीं, समय शून्य होकर लडते रहे और जीत हासिल की।

कल मैं अपने देश लौट जाउँगी । इन वीर सैनिकों की छवि को मन में बसाए।….विदा वियतनाम।

लेखिका – संतोष श्रीवास्तव

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