कवि : गोप कुमार मिश्र
मजमून -186-``प्रतीक्षा /इंतज़ार '' ====================== प्रतीक्षारत पथराई आँखें -गीत सिसक रही सम्वेदना ,रिश्ते हुए फकीर रिश्तों की तहरीर अब पानी...
मजमून -186-``प्रतीक्षा /इंतज़ार '' ====================== प्रतीक्षारत पथराई आँखें -गीत सिसक रही सम्वेदना ,रिश्ते हुए फकीर रिश्तों की तहरीर अब पानी...
झुमकी की मौत हासन झोपड़ी के बाहर बीड़ी पर बीड़ी फूंके जा रहा था कि उसेअचानक खांसी का धचका लगा और वह बुरी तरह खांसने लगा, खंासते खंासते बलगम के साथ रक्त का थक्का भी निकलआया।उसके खंखारने की आवाज सुन कर गुनिया झोपड़ी से बाहरआ गयी और बड़बड़ाने लगी’’ इहां दुई जून की रोटी नाही जुड़ात हैअउर ई ससुर बीड़ी में पइसा अउर जिगरा दुइनो फूंके पड़ा है ‘‘।फिर एक अल्मुनियम लोटे में पानी उसके हाथ में पटकते हुए बोली ’’ आये दो झुमकी का तोहर सारी करतूत बतइबे‘‘।यह सुन कर हासन बिफर पड़ा ’’काहे झुमकी का को लारड गवरनरहै कि हमका फंासी चढ़ाय देही,उई दुई बीता भर की छोकरी हमकाउकर डर दिखाय रही है ...हुंह‘‘।’’ हां दुई बीता की है पर ओहकी कमाई से ही घर मां रोटी का जुगाड़हुई जात है नाही तो पेट और पीठ एक हुई जात रहै‘‘।हासन ने अकड़ कर कहा ’’ हां तौ हमरै बिटिया तौ है ,उ हमका तोहरेसे जियादा माने है‘‘।’’ अब जियादा भैाकाल न दिखावौ‘‘ कहते कहते गुनिया को यादआया कि चूल्हे पर सब्जी चढ़ी है कहीं जल गई तो नमक रोटी खानीपड़ेगी और वह अन्दर को लपकी।भूख और गरीबी से त्रस्त हो कर हासन जबष्षहर आया था तो दोदिनो तक उसे और उसके परिवार को पानी पर दिन व्यतीत करने पड़ेथे। धीरे धीेरे पूरे परिवार ने मजदूरी करके किसी तरह षहर में सांसलेने का जुगाड़ कर ही लिया था ।हासन ,गुनिया ,सबसे बड़ी औलादचैदह साल की झुमकी ,बारह का राजू ,मजदूरी करते और ग्यारहसाल की मुनिया छोटे भाई बहन बिट्टू, और माजी की देख भालकरती ।उसके गांव के रमई ने अपने बचपन की यारी निभाई ,उसीकी सहायता से पांव जमाने का आसरा मिला और उसने झुपड़ पट्टीमें एक झोपड़ी बना ली ।हासन राणा साहब की कोठी पर मजदूरी के काम लगा था हासन केसाथ झुमकी भी मजदूरी करने गई । राणा साहब की मैडम कोउसका तन्मयता से बिना रूके काम करना भा गया ,उन्होने कहा ’’ मैंतुम्हारी बेटी को अपने पास रखूंगी वो हमारे घर के काम में सहायताकरेगी और हम उसे पढ़ाएंगे ।‘‘ ’पर हुजूर हमका छोरी केा पढ़ाय के का करे का है, मजूरी करकेकछु पइसा ही कमाय लेत है।‘‘’’अरे तो हम भी कोई मुफ्त में काम थोड़े ही कराएंगे पूरे हजार रूपयेदेंगे और तुम्हारी बेटी का खाना पहनना पढ़ना मुफ्त‘‘ मिसेज राणा नेकहा।हासन को सौदा लाभ का लगा ,दोनो हाथ में लड्डू, एक हजार रूपयेहाथ में और एक पेट का खाने का भार कम ।झुमकी राणा जी के घर काम करने लगी कुछ ही दिनों में उसकी तोचाल ढाल ही बदल गई। उसकी भाषा बोली पहनने ओढ़ने काअंदाज सब बदल गया ।अब उसकी बोली में गांव की गंवई बोली कास्थान खड़ी बोली लेती जा रही थी। अच्छे खाने ने उसकी धूल मेंछिपी लुनाई को बरसात के बाद धुली पंखुड़ी सा निखार दिया था, जूं से भरे रूखे केषों की जगह षैम्पू किये करीने से पोनी टेल में बंधेबालों ने ले ली थीे । मैडम के रिजेक्ट किये कपड़ों में वह सड़क परलगे पोस्टर की नायिका से स्वयं की तुलना करने लगी थी और कुछरंगीन सपने देखने का साहस करने लगी थी। महीने में एक बारझुमकी घर आती तो उसे समझ न आता कि उस कच्चे घर की कच्चीजमीन पर कहां बैठे। जब वह बप्पा के हाथ में हजार रूपये रखती तोअनजाने ही उसके आगे अम्मा बप्पा का कद बौना हो जाता औरछोटे भाई बहन हसरत से उसके कपड़े छू छू कर देखते।सब कुछ ठीक था कि अचानक उस सुबह दस बजे किसी ने आ करहासन से कहा ’’ तुम्हारी बिटिया ने फांसी लगा ली‘‘।हासन और उसकी बीबी गुनिया हकबक रह गये,अभी पिछले हफ्तेही तो झुमकी आई थी तब तो सब ठीक था।कुछ क्षण तो वो संज्ञाषून्य हो गये फिर जब बात समझ में आई तो वो जिस हाल में थेराणा जी के घर की ओर दौड़ पडे़। उनके कदम तो मानों साथ हीछोड़े दे रहे थे दोनो यही मना रहे थे कि झुमकी के ऊपर कौवा बैठाहो इसी लिये उसकी लम्बी उमर की खातिर उन्हे यह खबर दी गईहो।उनका बावरा मन यह नही सोच पाया कि ऐसा झुमकी का कौनहितैषी बैठा है जो उसकी लम्बी उमर की खातिर इतना बखेड़ाकरेगा।राणा जी के घर में जमीन पर उनकी बेटी सदा के लिये आंखे मंूदेपड़ी थी।हासन और गुनिया उसके षरीर से लिपट कर दहाड़े मार कररो पड़े । वो मन भर रो भी न पाये थे कि विकासदेव उन्हे उठा करअपने साथ बाहर ले आये।उन्होने उससे कहा ’’तुम पहले थाने चलो,फिर राणा जी से निबटना।‘‘हासन ने कहा ’’ थाने काहे अरे कोऊ बतावा है कि हमरी बिटीवा कछुकर लीहिस अउर आप हमही का थाने ले जाय रहे हो‘‘।विकास देव ने कहा ’’ इसीलिये तो हम कह रहे हैं कि थाने चल कररिपोर्ट लिखाओ‘‘।बेटी को देखने को बेचैन गुनिया ने कहा ’’ साहब हमका अपनीबिटीवा मन भर देखै का है का पता अभी जान बची होय अउर उ जीजावै ,तुम हमका बीचै में न अटकाओ‘‘।विकासदेव ने कहा ’’ तुम्हारी बिटिया तो अब दुनिया से जा चुकी है‘‘। समाचार की दोबारा पुष्टि से हासन और गुनिया की रही सहीआषा भी घ्वस्त हो गई।दुखी हासन को विकासदेव की दुनियादारी की बाते इस समय षूलसा चुभ रही थीं उसने विरोध किया ’’ हमका कोरट कचहरी मां नाहीपरेका है साहिब‘‘।’’अरे हद करते हो उन्होने तुम्हारी बेटी को मार दिया और तुम उन्हेऐसे ही छोड़ दोगे, अपनी बेटी का बदला भी नही लोगे‘‘ विकासदेव नेउन्हे भड़काया।’’पर साहिब मैडम जी तो ओका बहुत चाहे रहीं हमका तो यहु नाहीपता कि हुआ का है हमका तो बस ओका देख्ैा का है‘‘हासन नेकहा।’’तुम बहुत भोले हो अरे तुम्हारी बेटी मरी है वो भी मि0 राणा के घरपर ।‘‘’’पर एक बार ओहसे पूछेै तो का हुआ ,सुना है वह खुदय मरिगई‘‘।फिर कुछ सोचता सा बोला ’’वैसे साहिब हमरी बिटीवौ कमगरम दिमाग की नाही रही ,का पता का हुआ। अउर साहिब ऊ बरेलोग उनकेर हमरी बिटिया से का दुसमनी अउर सौ बात की एक बातउनका सजा दिराय से हमरी बिटीवा तो हमका मिलिहै नाही‘‘।’’ पर ई है कि अगर उनके बरे हमरी बिटीवा मरी है तौ हमरा सरापउनकेर छोहिड़है नाही ‘‘गुनिया ने कहा।विकास देव ने सिर थाम लिया उन्हे लगा गुनिया को समझाया जासकता है वो गुनिया से बोले ’’ये तो सिरफिरा है‘‘ उन्होने उसे सीधेसीधे समझाया ’’ देखो यह कोई छोटी बात नही है तुम्हारी बिटियागई है वो भी राणा जी के घर में उसने आत्म हत्या की है, मुआवजातो उनको देना ही होगा‘‘।गुनिया को बात समझ में आ गई उसने हासन को घुड़का ’’ अरेझुमकी के बापू हमरी झुमकी का तो उई मार दिहैं ।उई तो गई परचार पिरानी जो हैं उनका का होइहै अब हमरा खर्चा पानी कइसेचलिहै‘‘।यह सुन कर हासन को होष आया और बेटी के विछोह में व्यथितपिता का गला घोंट कर दुनियादार इंसान जगा। उसने घटना का यहपक्ष तो सोचा ही नही था। अचानक ही उसे बीड़ी की तलब लगनेलगी और उसे अपने ऊपर क्रोध आया कि उसे अब तक वह मूर्खविकासदेव के कहने का अर्थ क्यों नही समझ रहा था। बेटी तो हाथसे गई ही उसे थेाड़ी देर बाद भी देखा जा सकता है पहले तो विकासदेव के साथ थाने जाना होगा रिपोर्ट लिखाने ।जिस समय झुमकी ने आत्महत्या की उस समय श्री राणा के घर मेंकेवल उनकी पत्नी ही थीं ।यद्यपि उनके अनुसार वो तो अपने कमरेंमें टीवी देख रही थीं और उन्हे नही पता कि झुमकी ने ऐसा क्योंकिया। पर ऐसा कहने से तो उन्हे निर्दोष नही माना जा सकता औरफिर उनका और कोई दोष भले न हो नाबालिग लड़की को काम पररखने का अपराध तो बनता ही था। वो भले ही कहती रहीं कि वो तोझुमकी के परिवार की सहायता के लिये उसे पढ़ाने के लिये ,उसकीजिंदगी सुधारने के लिये अपने पास रखे थीं और सच कुछ भी हो परमीडिया और हवा में फैलेे चर्चों के गुबार और परिस्थितियां षक कीसुई उन्ही की ओर मोड़ रहे थे।जब मिसेज राणा को लाक अप से कोर्ट ले जाने के लिये ले जायाजाने लगा तो वहां जमा भीड़ एकाएक चैतन्य हो गई मानो उनकेजीवन की सार्थकता उन्हे दंड दिलाने में ही है।सारे के सारे लोगों नेजीप को चारों ओर से घेर लिया।’’पैसे वाले होष में आओ ,खूनी को सजा दो,गरीब भी इंसान है उसेभी इंसाफ चाहिये.......................‘‘के नारे गूंजने लगे।कुछ लोगजीप पर डंडे मारने लगे, बड़ी कठिनता से पुलिस उग्र होती भीड़ कोरोकने का असफल प्रयास कर रही थी अन्ततः विकास देव ने आ करभीड़ को नियंत्रित किया।तभी श्री राणा अपनी गाड़ी से वहां आये, भीड़ कुछ करती उससे पूर्वही विकास देव ने भीड़ को षान्त रहने का इषारा किया और श्री राणाकी कार के पास पहुंचे। उन्होने श्री राणा की गाड़ी रोक कर उनसेबाहर आने का संकेत किया। श्री राणा को एक किनारे ले जा करविकास देव ने कहा ’’अगर आप इस भीड़ के गुस्से से बचना चाहते हैंतो मैं यह काम कर सकता हूं ‘‘।’’ आप बताइये मैं क्या करूं किसी तरह इस भीड़ को रोकिये,मै तोऐसे ही बहुत परेषान हूं ऊपर से यह भीड़ और मुसीबत किये है।‘‘’’देखिये उस गरीब की बेटी गई है और किसी भी इंसान के लिये चाहेवह गरीब हो या अमीर जान से जादा कुछ नही होता‘‘।’’हंा मै मानता हूं पर इसमें मेरी पत्नी का कोई दोष नही है । वो तोउसका बहुत ध्यान रखती थी अब उसने जान दे दी तो मै क्याकरूं‘‘श्री राणा ने पसीना पोछते हुए कहा।’’देखिये साहब जिसकी बच्ची की जान गई है उसके लिये तो जोउसका रखवाला था वो ही दोषी होगा, कुछ भी हो आपके घर परउसकी बेटी की जान गई है तो जिम्मेदारी तो आप की हीहै‘‘विकासदेव ने उन्हे दबाव में लेते हुए कहा, फिर उनका उतरा चेहरादेख उन्हे समझ आ गया कि तीर निषाने पर लगा है। वो उनके कंधेपर हाथ रखते हुए बोले ’’ वैसे देखिये मेरी सहानुभूति आपके साथहै।‘‘श्री राणा को विकासदेव डूबते में तिनके का सहारा लगे, वह तुरंतविकासदेव का हाथ थाम कर बोले ’’ तो बताओ मैं तो कुछ भी करनेको तैयार हूं ‘‘।’’वैसे तो किसी के लिये भी उसका बच्चा अनमोल होता है औरझुमकी तो अपने घर के लिये कमाई का भी आसरा थी, उनका तोदोहरा नुकसान हुआ है‘‘ विकासदेव राणा जी को पूरी अनुभूति करारहे थे वो कितने गहरे भंवर में फंसे हैं।’’तो बताओ मै क्या करूं‘‘ राणा जी ने लाचारी से कहा।’’आप उनकी बेटी तो नही लौटा सकते पर उसकी कमाई की भरपाईतो कर ही सकते हैं ‘‘ विकासदेव मुद्दे की बात पर आये।’’कितना दूं ‘‘?’’कम से कम तीन लाख तो दीजिये ही‘‘।’’तीन लाख, क्या कह रहे हो अभी तो मुझे इस केस के कानूनीझमेले में ही लाखों खर्च करना होगा ।इतना तो वो हमारे यहां दसबीस साल काम करती तो भी न होता ‘‘ राणा ने भड़कते हुए कहा।’’तो ठीक है आप खुद ही निपटिये ‘‘विकास देव ने वहां से चलते हुयेदांव फेंका।’’नही नही मेरा यह मतलब नही है‘‘ राणा ने उसे रोका।’’पर कुछ तोरीजनेबल अमाउन्ट बताइये‘‘।’’चलिये ठीक है दो दे दीजिये‘‘।’’एक से काम नही चलेगा ‘‘ राणा ने टटोला।’’आप सब्जी नही खरीद रहे हैं ,किसी की जान गई है ‘‘ विकासदेव नेउठते हुये कहा।’’हमे भी पता है, तभी तो हम दे रहे हैं नही तो लाख दो लाख रूपयेपेड़ से नही टपकते‘‘।छोनो पक्षों में रस्साकषी चल रही थी उधर हासन और गुनियाअधीरता से दूर से उनकी बात समाप्त होने की प्रतीक्षा में इधर हीदृष्टि गड़ाए थे ।एक लम्बी बहस और मोल भाव के बाद मामला डेढ़ लाख में तयहुआ।विकास देव ने जा कर झुमकी के पिता हासन से पसीना पोछते हुयेकहा ’’मैने राणा को आड़े हाथें लिया,खूब डांटा फटकारा । अरे क्याबतायें इन पैसे वालों को ,कह रहे थे हासन को पैसे दे कर मामलारफा दफा करो पर हम बिगड़ गये हमने कहा अरे साहब उसके दिलका टुकड़ा गया है उसके आंख की तो रोषनी चली गयी ।‘‘’’फिर‘‘? हासन ने पूछा।’’हमने कह दिया वो सुप्रीम कोर्ट तक लड़ेगा पर सजा दिलवा कर हीमानेगा ,‘‘यह कह कर विकास आगे बढ़ गये ।हासन घबरा गया उसने दौेड़ का विकास को रोकते हुये कहा ’’अरेमाई बाप हमरी कहां कोरट कचहरी की औेकात है दुई जून रोटी तोजुटत नाही । झुमकी थी तो महीने में हजार रूपइया मिलौ जात रहाअउर उ तो साहब के घरै रहती रही ओकर कोई खर्चा नाही था। परपता नही ओका का सूझी की फंदा डार झूर गई अब तो हमरी कोउकमइयों नाही बची बाकी बच्चे छोटेै हैं उनकी अम्मा की तबियतऐसन ही ऊपर वाले के भरोसे है हमका दिन भर मा जो मिलत हेैउससे रोटी भी पूरी नही पड़ती, एकै कथरी का ओढ़ें का बिछावै‘‘।विकास ने कुछ सोचने की मुद्रा में देखते हुये कहा’’ं हुं देखेंाकोषिष करते हैं ।वह राणा के पास गया । राना ने उसे एक लाखदिये अैार कहा कि पहले केस तो वापस करवाओ अगर कोर्ट में चलागया तो मामला हाथ से निकल जाएगा बाकी बाद में देंगे। विकास नेअपनी काल्पनिक मूंछों पर ताव देते हुए कहा ’’अरे यह विकास देवकी जुबान है कोई मजाक नही।‘‘उसने पैसे अपनी जेब में रखे और हासन के पास आया । हासन नेउन्हे उम्मीद से निहारा, विकास देव ने पचास हजार उसके हाथ मेंरखते हुये अहसान दिखाते हुये कहा ’’सारी जोर जबरदस्ती करनीपड़ी अरे बड़ी पहंुच वाली पार्टी है ‘‘। हासन का दुख लहरातेनोटंो की हवा में घुल कर कम हो गया था। दो जून के खाने ,पूरेकपड़े पहने बच्चे और बीबी के हंसते चेहरों की आस में झुमकी कीलटकती गर्दन की छवि ध्ूामिल हो गयी थी ।उसने ऊपर हाथउठा कर झुमकी को याद करके उसके प्रति पिता होने के कर्तव्यमुक्ति पायी। गुनिया का दिल एक बार बेटी के विछोह सेे कचोटगया पर षेष बच्चों के खिलखिलाते चेहरे उस पर मलहम लगा गये।दोनो घर की ओर चल दिये उनके कदमों में तेजी थी हासन के हाथअपनी अंटी को कस कर थामें थे । इतनी बड़ी राषि तो उसने स्वप्न मेंभी एक साथ नही देखी थी।उधर षाहिदा बेगम को जैसे ही इस दुर्घटना के बारे में ज्ञात हुआअल्पसंख्यकों के प्रति कर्तव्य उछाले मारने लगा और वह अपने सभीमहत्वपूर्ण कार्य छोड़ कर थाने की ओर चल पड़ीं। एक अल्पसंख्यकऔर वो भी अबला स्त्री के प्रति अन्याय की बात सुन कर वो आपे सेबाहर हो गयीं।वहां पहुच कर उन्ेहोने पाया कि विकासदेव हासनऔर गुनिया को घेरे हैं ।अब वोे इसी प्रतीक्षा में थीं कि विकासदेवहटे तो वो हासन और गुनिया से बात करें । हासन और गुनिया कोवहां से जाते देख कर वह चैंकी, उन्होने तुरंत अपने कार्यकर्ता को भेजकर हासन को रोका ।उनके गुर्गे ने हासन से पूछा ’’कहंा जा रहे हो‘‘?हासन को उनका इस प्रकार रोकना अच्छा न लगा, उसके हाथ अपनीअंटी पर कस गये उसे भय था कहीं षहिदा बेगम उस धन को लौटानेको न कह दें ।उसने सप्रयास उपेक्षा के भाव से कहा ’’अपने घर जा रहेै हैं अउरका ‘‘?’’ तो क्या अपनी बेटी के अपराधियों को ऐसे ही जाने दोगे?‘‘’’हमरी बिटीवा थी का पता कइसे मरी ,हमका रोटी कय जुगाड़ सेफुरसत नाही कि हम ई सब झमेला पाली‘‘।ष्षाहिदा बेगम उसके इस रवैये से बिफर गयी उन्हे केस अपने हाथ सेफिसलता सा लगा।उन्होने षांति से काम लेने में ही भलाई समझीउन्होने कहा ’’देखेा हम तुम्हारे अपने हैें किसी से डरने की जरूरतनही है हम तुम्हारा नही सोचेंगे तो कौन सोचेगा‘‘? ’’पर हम अइसन दिन रात केर रोज रोज के पुलिस कचहरी से बहुतहैरान परेसान हैं अब हमरा पीछा छोड़ देवौ साहिब‘‘ं हासन उनसेपीछा छुड़ाना चाह रहा था ।षाहिदा बेगम ने कहा ’’अरे घर तोजाओगे ही, तुम्हे कौन रोक रहा है पर हम तुम्हे न्याय दिलवा कररहेंगे‘‘।’’अरे साहिब हमरे घर की रोजी रोटी लावै वाली चली गयी हमकाउकर फिकर है ,ई नयाय वयाय तुम पढ़ै लिखन का झमेला है,हमैें इतनी फुरसत नाही ।’’अरे तो हम भी तो उसी का इंतजाम करवा रहे हेंै‘’षाहिदा बेगम नेचारा डाला।’’मतबल‘‘? हासन ठिठका तो क्या अभी कुछ और मिल सकता हैउसने मन ही मन सोचा।ष्षाहिदा बेगम ने कहा ’’तुम बस जो हम कहें तुम वो करो‘‘। उन्होनेवहीं चादर बिछा कर उसे बैठा दिया। अपने साथियों के साथ वो नारेलगाने लगीं ’’हमें न्याय चाहिये ‘‘.......... इन सब के मध्य हासनअपने षोक को भूल कर विस्फरित नेत्रों से इस अफरातफरी को देखरहा था। धीरे धीरे उसे अनुभव हो रहा था कि उसकी पुत्री कीआत्महत्या की घटना कोई छोटी मोटी घटना नही है जैसी कि उसकेगांव में होती थी वहां तो उनकी जठराग्नि उन्हे इतनी मोहलत भी नहीदेती थी कि वो दो दिन अपने किसी जाने वाले का षोक मना सकें।वो तो अगले दिन ही षेष जीवित लोगों के जीवन को बचाने की चिंतामें पड़ जाते थे। पर यहां का दृष्य ही कुछ और था उसकी उसी बेटीजिससे कोई सीधे मंुह बात भी नही करता था उसी के लिये बड़े बड़ेलोग अन्याय के विरूद्ध आवाज उठा रहे थे। संभवतः षाहिदा बेगमके साथी मीडिया को सूचना दे चुके थे उनके नारे लगाते ही कैमरेक्लिक होने लगे संवाददाता उनसे प्रष्न पूछने लगे।उन्होने घोषणा करदी कि और जब तक झुमकी को न्याय नही मिलता दोषी को दंडनही मिलता वह वहां से नही हटेंगीं । सबके आकर्षण की धुरी अबषाहिदा बेगम पर केन्द्रित हो गयी थी, कैमरे और रिपोर्टरों ने षाहिदाबेगम की ओर रूख कर लिया।दो चार दिन षाहिदा बेगम समाचारपत्रों की सुर्खिंयो में छायी रहीं।धरने के बीच में एक व्यक्ति ने उनके कान में कुछ कहा ।रिपोर्टरउनसे प्रष्न पूछते ही रह गये और वह अचानक वहां से उठ कर कार मेंचली गयी।उन्होने न्याय की आस में सड़क पर जमकर बैठे हासन समझाया ’’ अब जो हो गया वो हो गया मैने तुम्हारे परिवार के एक सदस्य केलिये नौकरी का इंतजाम कर दिया है।बाकी बच्चों को भविष्यसुधारो‘‘ हासन का सिर अहसान से झुक गया उसने षहिदा बेगम कोदिल से दुआ दी और दोनो हाथ ऊपर उठा कर अपनी बेटी को यादकिया, हासन को लगने लगा कि झुमकी के रूप में उसके घर किसीपाक रूह ने जन्म लिया था जो जाते जाते भी उसके दुख दरिद्र दूरकर गई।पर्दे के पीछे क्या खेल हुआ किसी को नही पता चल पाया बस आगेका परिदृश्य अवषश्य बदल चुका था। श्री राणा और शाहिदा बेगममें कब और कहां एक कष्ती में सवार हो गये कोई जान न पाया ।शाहिदा बेगम की पार्टी के अगले इलेक्षन के फंड की राशि में पर्याप्तबढ़ोतरी हो गयी थी। अपनी इस अचानक आयी लोकप्रियता औरपार्टी के फंड में बढ़ोत्तरी ने अचानक ही पार्टी में उनके कद को बढ़ादिया था और इस बढ़े हुये कद ने अगले चुनाव में उनके सांसद केटिकट को पक्का कर दिया था।केस वापस हो गया था, मि0 राणा और श्रीमती राणा एक बड़ीमुसीबत से बाहर आये थे इसी उपलक्ष्य में उन्होने एक शानदार पार्टीदी, जिसमें शाहिदा बेगम और विकास देव विषिष्ट अतिथि थे।विकास देव को वांछित धन मिल गया शाहिदा बेगम को प्रसिद्धि, जिसने उन्हे सांसद का टिकट दिला ही दिया और हासन को जीवनयापन का सुदृढ़ आधार। अपनी अपनी उपलिब्धियों की चकाचौंध मेंकिसी को यह जानने का अवकाश कहां था कि झुमकी ने जान क्योंदी थी।
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कहानी : सोने का पिंजरा रोहित एअर पोर्ट से सीधे गुडगांव चल दिया। वहां उसे 11 बजे ‘महेश्वरी फार्माक्यूटिकल्स कंपनी...
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