सुगना हरियाला : प्रमिला भारती
सुगना हरियाला
देख सुनहरी किरणें दूर जब निकल गया
मोम का खिलौना था धूप में पिघल गया ।
बरसों से सपना जो अंतर में पाला था ।
यत्न किये कितने तब साँचे में ढाला था ।
ठिठुरन,अकड़न,आँधी सब कुछ तो झेल गया ,
हृदयहीन बातों के बोझ से कुचल गया ।
मोम जले हाथों की पीर बतायें किसको ।
ममता का अकुलाया नीर दिखाएँ किसको ।
जेठ की दोपहरी ने जाने क्या समझाया ,
सुगना हरियाला सा रूठकर मचल गया ।
शहनाई के स्वर जब पालकी उठाते हैं ।
शगुन द्वार देहरी के आज भी डराते हैं ।
देह पड़ी खुरचन को कब तक वो सहलाता ,
नख वाले पंजों के ताप से ही जल गया ।
अंतर्राष्ट्रीय मंच की ख्याति प्राप्त कवियित्री प्रमिला भारती
बहुत ही सुन्दर रचना
मेरी प्यारी आंटी की बहुत ही सुंदर तस्वीर और उतनी ही सुन्दर कविता
Ati sundar rachna
कवियित्री श्री को सादर अभिवादन 🙏 अत्यंत सुंदर रचना उतकृष्शट बदावली में
Very nice poem .
बहुत ही सुंदर शब्दों से पिरोई गई उत्कृष्ट रचना !!
बधाई प्रमिला जी