सुगना हरियाला

 

देख सुनहरी किरणें दूर जब निकल गया
मोम का खिलौना था धूप में पिघल गया ।

 

बरसों से सपना जो अंतर में पाला था ।
यत्न किये कितने तब साँचे में ढाला था ।
ठिठुरन,अकड़न,आँधी सब कुछ तो झेल गया ,
हृदयहीन बातों के बोझ से कुचल गया ।

 

मोम जले हाथों की पीर बतायें किसको ।
ममता का अकुलाया नीर दिखाएँ किसको ।
जेठ की दोपहरी ने जाने क्या समझाया ,
सुगना हरियाला सा रूठकर मचल गया ।

 

शहनाई के स्वर जब पालकी उठाते हैं ।
शगुन द्वार देहरी के आज भी डराते हैं ।
देह पड़ी खुरचन को कब तक वो सहलाता ,
नख वाले पंजों के ताप से ही जल गया ।

अंतर्राष्ट्रीय मंच की ख्याति प्राप्त कवियित्री प्रमिला भारती

 

6 thoughts on “सुगना हरियाला : प्रमिला भारती

  1. मेरी प्यारी आंटी की बहुत ही सुंदर तस्वीर और उतनी ही सुन्दर कविता

  2. कवियित्री श्री को सादर अभिवादन 🙏 अत्यंत‌ सुंदर रचना उतकृष्शट बदावली में

  3. बहुत ही सुंदर शब्दों से पिरोई गई उत्कृष्ट रचना !!
    बधाई प्रमिला जी

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