संस्मरण : उजाले उन सबकी यादों के – प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी

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उजाले उन सबकी यादों के

इसमें कत्तई संदेह नहीं कि अपने देश में वैचारिक स्वतंत्रता पिछले कुछ महीनों से चरम पर जा पहुंची है। इन दिनों सोशल मीडिया के विस्तार के कारण यह स्वतंत्रता कुछ ज्यादे ही मुखर हो चली है। तर्क- कुतर्क की भी कोई सीमाएं नहीं। एक उबाल की तरह, दावानल की तरह देश के एक छोर से दूसरे छोर तक किसी का कोई बयान आते ही “दे -दना- दन ” उस पर प्रतिक्रियाएं आने लगती हैं। एक सीमा तक यह प्रजातंत्र के लिए लाभदायक तो है किन्तु उसके बाद घातक भी हो सकता है। कभी- कभी जब अति हो जाती है तो डर भी लगता है कि कहीं यह प्रजातांत्रिक प्रणाली में असहज स्थिति न पैदा कर दे।

आकाशवाणी की लम्बी सेवा में मुझे अव्वल तो सहज लोगों का संग -साथ मिला किन्तु कुछ गरम मिजाज वाले संगी – साथी और कलाकार भी मिले ।कई अधिकारी भी अपनी विकृत मानसिकता वाले मिले । कुछेक सुरा सुंदरी के प्रेमी भी मिले । इसीलिए कभी ऐसा भी हुआ जब कार्यालय जीवन के कुछ दिन दंत पंक्तियों के बीच दबी जीभ की तरह भी बिताने पड़े । सभी के जीवन में ऐसे पल आते -जाते रहते हैं। आकाशवाणी गोरखपुर में एक छात्र नेता, आकाशवाणी लखनऊ में एक उद्दन्ड विभागीय संगत कलाकार और एक अनुशासनहीन सुरक्षा संतरी से निपटना पड़ा था । लेकिन समय पंख लगाकर उड़ता चला गया। इसलिए उन सन्दर्भों को भी हाशिए पर डाल देना ही श्रेयस्कर है।

रिटायरमेंट बाद जब मैनें ब्लाग लेखन शुरु किया और ख़ास तौर से अपने आकाशवाणी और दूरदर्शन के संगी साथियों की यादों के बारे में तो मेरे कुछ मित्रों ने तनिक देर से ही अपनी प्रतिक्रियाएं भी देनी शुरु की हैं।ज़्यादातर मीठी किन्तु कुछ तीखी भी ।

दूरदर्शन में अपर महानिदेशक पद से रिटायर्ड डा0 सतीश ग्रोवर ने अपने ऊपर लिखे ब्लाग पर यह प्रतिक्रिया दी -“Bandhu, I just wanted to congratulate you, the way you have written the blog nice language, descriptive and to the point.”

वहीं वरिष्ठ इंजीनियर श्री अखिलेश शर्मा लिखते हैं, ” आकाशवाणी गोरखपुर के बारे में प्रफुल्ल जी की यादों को पढ़ कर अच्छा लगा,जानकारी मिली।हम जिस केंद्र पर लंबे समय तक रहते हैं और ख़ास कर जो हमारा पहला केंद्र होता है,उसकी यादें कभी साथ नहीं छोड़ती हैं।

मुझे इस वक़्त आर. एस. गुप्ता जी याद आ गए जो मेरे पहले केंद्र अलवर राजस्थान में AE पद पर गोरखपुर से आये थे-89’91। उनका तकिया कलाम “जो है” आज भी याद आता है। जानकारी हेतु प्रफुल्ल जी को धन्यवाद।”

लखनऊ के वयोवृद्ध अकादमी पुरस्कार से सम्मानित संगीतकार श्री एच0बसंत लिखते हैं, ” My dear Tripathiji, I am simply awestruck after reading the writeup presented by you on me. I simply can’t believe that anything so glamorous can be written about a person like me, who does not deserve so much praise. I am extremely grateful to you for having painstakingly written so much about me. Thank you very much.”उन्होंने आगे लिखा,” Cudos to you for paying me such lovely morale boosting compliments, which I don’t remember having received from anywhere in my lifetime. I wonder if I really deserve them. I am extremely indebted to you for this.”

आकाशवाणी लखनऊ के पूर्व संगीत संयोजक और यश भारती पुरस्कार से सम्मानित श्री केवल कुमार ने कुछ इस तरह अपनी प्रतिक्रिया दी है – “Mai aapka abhari hun. Jab bhi aapki kalam uthti hai hamesha bahut khusurat likhte hain. Akashvani may aap sabhi kalakaron ka barber se dhyan rakhte the. Ishwer kare aisse hi likhte rahein . ” वहीं कठिन दिनों में एक लम्बी अवधि तक कारगिल में अपनी सेवाएं देने वाले पूर्व कार्यक्रम अधिकारी जनाब हसन अब्बास रिज़वी ने लिखा है-  “Sabka shukria khas kar Gur bhai P.K.Tirpathi ji ka jinki post ne meri purni yaden taza kara de.”

पूर्व वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी महामहोपाध्याय डा0 राम जी मिश्र ने कहा – “आकाशवाणी गोरखपुर परिवार को स्थापना दिवस की बधाई ! इतना सुन्दर ब्लाग लिखने के लिए त्रिपाठी जी को बधाई।”

आकाशवाणी आगरा के से0नि0वरिष्ठ उदघोषक जनाब रियाज़ ख़ान की टिप्पणी- “Congratulations on adding another medal in your knowledgeable script.”

मेरे वरिष्ठ सहकर्मी रह चुके श्री के0सी0गुप्त ने लिखा- “Congrats…we are proud of you Tripathi ji….you are milestone in blog writing…”

उदघोषिका मोहसिना ख़ान के निधन पर प्रसार भारती में छपे मेरे ब्लाग पर उनकी भांजी मोहतरमा ज़ोबिया ख़ान ने भावुक होकर लिखा – “Thank you so much for the heart touching article related to my aunty Mohsina Khan (Sr.Announcer,A.I.R. Gorakhpur). We all are extremely grateful to you.”

वहीं प्रसार भारती ब्लाग में झुमरी तलैय्या के बारे में छपे मेरे ब्लाग को जब एक सज्जन ने उड़ाकर अपने नाम से कहीं और पोस्ट किया तो मैनें उन्हें लिखा-
“मान्यवर अरुन सिसौदिया जी,यह स्टोरी मेरी लिखी है जो प्रसार भारती ब्लाग में आ चुकी है। आपने न तो मेरा नाम दिया और न प्रसार भारती ब्लाग का जो उचित नहीं है। ऐसा कापीराइट एक्ट का भी उल्लंघन करना है जो दंडनीय है। “उन्होंने इसे स्वीकारते हुए खेद जताया। इन सबके साथ कुछ तीखापन लिए प्रतिक्रियाएं भी मिलीं जिनकी खटास से एक पाठक होने के नाते आप सभी भी गुजर सकें इसलिए उसे भी प्रस्तुत कर रहा हूं । सो, एक ऐसी ही प्रतिक्रिया उद्धरित करना चाहूंगा जिसे वर्तमान में कार्यरत एक वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी और मेरे मित्र ने व्यक्त किया है;

“Dear Prafulla jee, I am reading your posts for a long time where you eulogise retired officers of AIR in a very decent way, though howsoever horrible they had been. I could never understand why they used to behave in such a foolish manner when they were holding office. It happened with me so many times that I had to fight them in the most uncivilized manners, though I never liked that.But their foolish activities and inhuman behavior forced me to get down at that level. I would say that most of Station Directors didn’t deserve the post as they were never good Radio Producers and didn’t know the pains of Programme production which a good Producer undergoes.They reached to the post of Station Director bcoz of certain other reasons like direct recruitment .Now bcoz of these ‘ Great Directors’ or ‘ Great Dictators’ AIR has reached to that position where nobody is listening AIR.Yes it is still being heard in those areas where there is no electricity. But how many intellectuals are listening AIR. Probably very few almost none.Actually AIR & DD are dying media. It is my estimate that in next 10 years they are going to be “Zindaa Lash”. And credit goes to our predecessors who lacked in futuristic approach and just used office for their selfish ends.Working in AIR , I have realized that it is most amusing place where concerns for b’ casting occupies last place. Enjoying a good office is highest priority. Station Director is not one who would be directing his juniors to produce good Programmes.But he starts thinking himself as ” Station Master” or Master of Station.He would not allow his juniors to use office vehicle for coverage of programs but would be satisfied if vehicle is stationed in Premises. And everyone regards it as ” Boss Vehicle”. There are so many stories I can tell of which I had been either a victim or witness. I may sound very negative in my approach but I am unable to hide the truth.Prafulla jee , I would love to quote only one couplet in the end

Tu idhar udhar ki na baat ker
Ye bataa ki Qafila kyon luta
Mujhe Rehzano se gila nahi
Teri rehbari kaa sawal hai.”

इस प्रतिक्रिया पर मैनें सम्बन्धित अपने उन मित्र को कोई उत्तर नहीं दिया है।मैं जानता हूं कि कुछ अनुभव उम्र की ऊंची पायदान पर ही आते हैं। मेरा यह मानना है कि अपने संगी साथियों के व्यक्तित्व के मूल्यांकन में उनके व्यवहारों के उजले पक्ष को ही सामने रखना चाहिए । मैनें उन सभी के उजाले पक्ष को ही सामने रख कर ब्लाग लिखे हैं । वैसे भी वे सभी रिटायर हो चुके हैं । इसलिए बेहतर होगा कि –

“उजाले अपनी यादों के ,
हमारे संग रहने दे ।
न जाने किस घड़ी में,
जिन्दगी की शाम हो जाए ।”

प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी, कार्यक्रम अधिकारी (से0नि0), आकाशवाणी, लखनऊ।  ईमेल: darshgrandpa@gmail.com  मोबाइल नं0 –  9839229128

1 thought on “संस्मरण : उजाले उन सबकी यादों के – प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी

  1. अति सुंदर लेख ।जानकारी देने के लिए धन्यवाद ।

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