यादें : आकाशवाणी गोरखपुर के कार्यक्रम युववाणी की

आकाशवाणी गोरखपुर के युववाणी (आगे चलकर युवा जगत ) कार्यक्रम से मैं पहले एक वार्ताकार के रुप में जुड़ा और फिर आकाशवाणी की सेवा में आने के बाद प्रोन्नति पाकर उस विभाग का कार्यक्रम अधिकारी भी बना ।

युवाओं के इस लोकप्रिय कार्यक्रम से जुड़ना मेरे जीवन के लिए गर्व ,गौरव और रोमांच का हिस्सा रहा है। उन दिनों जब मेरे सहकर्मी लोग प्रायः इस विभाग की देखरेख करना अपनी पद गरिमा से कमतर माना करते थे मैं इसे अपना सौभाग्य मानता रहा। इसलिए कि युवाओं को अपनी प्रतिभा दिखाने, संवारने के लिए एक लांचिंग पैड साबित हुआ करता था। नब्बे और दो हज़ार के दशक के ढेर सारे ऐसे ही युवाओं (वार्ताकार और कम्पेयर) को आज जब मैं शीर्ष पदों पर काम करते देखता हूं तो जो ख़ुशी होती है उसे मैं व्यक्त नहीं कर सकता ! किन – किन के नाम गिनाऊं? अभी जो स्मृति पटल पर हैं वे कुछ यूं हैं –

सर्वश्री दीपक मिश्र, प्रवक्ता (प्रजातान्त्रिक समाजवादी पार्टी ), रविशंकर तिवारी (वरिष्ठ पत्रकार, राष्ट्रीय सहारा, दिल्ली), अभिजीत शुक्ला (पत्रकार), मिथिलेश द्विवेदी (हिन्दुस्तान, गोरखपुर), इक़बाल ज़कारिया (एडवोकेट आयकर, गोरखपुर), धर्मेंद्र कुमार दुबे (एडवोकेट, गोरखपुर), दीपक मिश्र (शिक्षक, देवरिया), प्रोफ़ेसर ध्रुव कुमार त्रिपाठी (विद्यांत डिग्री कॉलेज), केशव शुक्ल (शिक्षक), एडवोकेट प्रेम सिंह (आकाशवाणी समाचार संवाददाता, महाराजगंज) तथा प्रमोद सिंह (अंशकालिक समाचार वाचक) आदि ।

इसी प्रकार ढेर सारे युवा वार्ताकार भी जुड़े रहे जो आज ऊंचे पदों की शोभा बढ़ाकर येन केन प्रकारेण आकाशवाणी गोरखपुर का भी नाम रौशन कर रहे हैं। ऐसा ही एक नाम है डा. कन्हैया त्रिपाठी का, जो पिछले दिनों फ़ेसबुक के माध्यम से मेरे संपर्क में आए। उन्होंने फ़ेसबुक मित्रता का ऑफ़र दिया और फिर अतीत जीवंत हो उठा..मैसेंजर पर रोचक संदेशों का आदान-प्रदान शुरू हुआ..
“मेरा नाम कन्हैया त्रिपाठी है। आपने मुझे दो बार टॉक करवाया था युवजगत में। आपसे बस इतना परिचय है।…मैं आकाशवाणी महानिदेशालय से बाद में जुड़ गया।….उसके बाद वर्धा में पढ़ाई लिखाई आगे बढ़ाया। राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटील जी का संपादक बना। सागर यूनिवर्सिटी ज्वाइन किया। उसके बाद राष्ट्रपति श्री प्रणब मुख़र्जी जी का विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) बना। कार्यकाल समापन के बाद पुनः डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर में असिस्टेंट प्रोफेसर/डायरेक्टर के रूप में अभी कार्यरत हूँ।….मैं धारावाहिक दहलीज़, तिनका तिनका सुख और ये कहाँ आ गए हम का समीक्षक, रेडियो ब्रिज प्रोग्रामर, पत्रोत्तर संचालक और लोक सभा टीवी पर को-एंकर रहा।…पॉपुलेशन कम्युनिकेशन इंटरनेशनल न्यू यॉर्क और आकाशवाणी महानिदेशालय से मुझे पुरस्कार 1997 में मिला। 2011 में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का क्रिएटिव राइटिंग अवार्ड मिला।…”

डा.कन्हैया त्रिपाठी ने यह भी लिखा….”आपके यहाँ प्रोग्राम के लिए आता था युवजगत में तो कई बार आप डांट दिए ! दो रिकॉर्डिंग भी बहुत निवेदन पर करवाई थीं – ‘घर के काम में हांथ न बंटाना’ और ‘विज्ञापनों में युवतियों की छवि।’  खैर, आपके स्वस्थ जीवन की कामना करता हूँ। डॉ. कन्हैया त्रिपाठी”

मैसेंजर की इस बातचीत ने रोमांचक टर्न ले लिया था। यह सच है कि कभी कभार हम पेक्स लोग काम के दबाब में झल्लाहट में आ जाते हैं और उसी क्रम में डांट डपट भी हो जाया करती थी। मैंनें उनके कथन को स्वीकार करते लिखा- “आपकी याददाश्त अच्छी है। मुझे ये सब एकदम याद नहीं आ रहा है। डांट डपट यदि बुरा लगा हो तो खेद है। वैसे उसके पीछे कोई निहित स्वार्थ नहीं रहा। आपको एक बात बताऊं। मैं जब गोरखपुर में ड्यूटी  ऑफ़िसर था तो डा.अरविंद त्रिपाठी (एमरिटस प्रोफेसर हिन्दी विभाग,  दीन दयाल उपाध्ययाय गोरखपुर विश्वविद्यालय) मेरे सामने एक कैज़ुअल उद्घोषक बनकर आये। ग्रामीण पृष्ठभूमि के सीधे सादे साहित्यिक रुचि वाले युवा थे और उद्घोषणा करने, टेप, ग्रामोफोन रिकॉर्ड, फेडर चलाने में उनके साथ दिक्कतें थीं। मैनें लगभग झल्लाते हुए उन्हें कैज़ुअल एनाउंसमेंट छोड़कर पेक्स बनकर रेडियो आने की सलाह दी। उन्होंने सलाह गांठ बांध ली थी और संयोग यह हुआ कि कुछ ही वर्ष में वे पेक्स बनकर इसी गोरखपुर केन्द्र पर आ गये आ गये। पेक्स ही नहीं कार्यक्रम प्रभारी भी रहे। आज भी वे यह वाकया याद करते हैं। आपमें भी भरपूर प्रतिभा, लगन रही होगी तभी इस मुकाम पर हैं। जीवन खट्टे मीठे प्रकरणों का भी नाम है। इतने साल बाद हमें फ़ेसबुक या मैसेंजर ने जोड़ा यह भी प्रभु कृपा है। आपको शुभकामनाएं। सम्पर्क में बने रहिएगा।”

प्रति उत्तर में डा.कन्हैया ने लिखा- “अपना आशीष बनाए रखें। जीवन में यह सब होता रहता है। बहुतों का अपनापन सहा। अपमान सहा। सीख ली। प्रयास किया। माँ पिता और आप सभी लोगों का आशीर्वाद ही तो है कि मैं किसी स्तर पर अपने आपको देख सका। अरविंद त्रिपाठी जी भी बहुत अच्छे इंसान हैं। सब लोग अपनी जगह ठीक हैं।”

उन्होंने कुछ और स्मृतियों को साझा किया-.”..रेडियो ब्रिज हुआ था तो सर्वेश दुबे जी और जुगानी जी मेरे घर तक आये कि आप लखनऊ पहुंचिए , आपके बगैर कार्यक्रम नहीं होगा। जुगानी जी ने पूछा क्या कर दिया तुमने कि हम लोगों को घर का चक्कर लगाना पड़ा ! मेरे कार्य को तो ओहियो यूनिवर्सिटी, जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी, मैक्सिको यूनिवर्सिटी के इंटरपर्सनल कम्युनिकेशन एंड जर्नलिज्म विभाग के लोगों ने 1998 में पी-एच डी का हिस्सा बनाया। रूरल एरिया में रेडियो धारावाहिक के इम्पैक्ट पर इन यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्कॉलर काम किए। वे मुझे अपने थीसिस का हिस्सा बनाए। यही सब है।
आप श्रेष्ठ हैं। अपने स्नेह को बनाए रखें।”

…….सचमुच इन प्रसंगों से गुज़रते हुए मैं आज भी अपने को आकाशवाणी गोरखपुर की सुखद और खट्टी मीठी यादों के गलियारों में पाता हूं..और इतने साल बाद भी रोमांचित हो उठता हूं।

■- प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी, कार्यक्रम अधिकारी(से.नि.), आकाशवाणी लखनऊ

1 thought on “यादें : युववाणी की

  1. Yaade you vaadi ki…..
    Sir ji aapki biography maine padhi bahut hi achchi hai…..aur pata chala aap Gkp ke hai ….mai bhi Gkp se hi hu. …ak choti si…..singer hu ……

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