मुनिया

आज घर का माहौल बहुत खुशनुमा था और होता भी क्यों नहीं, आज मुनिया वापस आई थी.

छोटी सुमी ने सुबह ही उसका  कमरा साफ  कर दिया था और कमरे को सजाने के लिए बगीचे से मुनिया के पसंदीदा फूल ला कर प्यार  से सजा रही थी. मुनिया को फूल बहुत पसंद थे. जब भी बगीचे में जाती छोटे छोटे फूल तोड़ कर लाती और अपना कमरा सजाती. कमरे में उसका झूला जो गंदा हो गया था उसको साफ करके उसके पसंद की चद्दर बिछाई गई.

वह अपने झूले को बहुत  पसंद करती थी. मुनिया को बेरीज और पपीता बहुत पसंद थे. सोनू फल वाले से बेरीज और पपीता ले कर आ गया और मॉम ने छोटे छोटे टुकड़े करके खाने की टेबल पर उसकी प्लेट में सजा दिए थे. मुनिया खाने की टेबल पर सबके साथ बैठ कर नाश्ता करती थी, खाना खाती थी.

मुनिया बहुत सफाई पसंद थी.कचरे का एक छोटा सा कण भी उसे दिख जाए शोर मचा कर पूरा घर सर पर उठा लेती थी. जब सभी काम कर रहे थे तो पापा कैसे पीछे रहते. उन्होंने मुनिया के रुम में पानी रख दिया. सुमी को याद आया मुनिया को मां के हाथ का बना हुआ हलवा बहुत पसंद था तो पहुंच गई मां के पास हलवा बनवाने और सोनू को याद आया मुनिया पकोड़ी भी बहुत प्यार से खाती थी तो वो भी पहुंच गया मुनिया के लिए पकोड़ी बनवाने. मां भी खुशी खुशी सब बना रही थी और मां और पापा ने एक दूसरे को देखा और एक मुस्कुराहट दोनों के चेहरे पर आ गई. माता पिता दोनों बच्चों के चेहरे पर छाई खुशी देख पिछली यादों में खो गए. पिछले एक महीने से बच्चों के चेहरे पर हंसी देखने को तरस गए थे दोनों. कौन थी यह मुनिया और कहां चली गई थी यह?

मुनिया एक छोटी सी गिलहरी थी जिसे सुमी ने  एक बिल्ली से उस वक्त बचाया था जब उसको चलना भी नहीं आता था. उस वक्त वह पेड़ पर बने अपने खोल से नीचे गिर गई थी और बिल्ली रानी उसको अपना खाना बनाने ही वाली थी जब सुमी वहां पहुंच गई. गिलहरी के बच्चे को वह घर ले आई और घर में सबने उस बच्चे को अपना लिया. नाम रखा गया मुनिया. डॉक्टर मां ने मुनिया को संभाल कर बड़ा किया.

इंजीनियर पापा ने लकड़ी के एक  बड़े डब्बे में उसके लिए कमरा बनाया, झूला बनाया. एक छोटा सा कृत्रिम पेड़ लगाया दरवाजे और खिड़की बनवाए.

वह दिन भर गाती.  उसकी पसंदीदा जगह थी मां का कमरा, वहां वह  ड्रेसिंग टेबल के उपर बैठ कर दिन भर  गाना गाती रहती. सुमी के साथ खाना खाना ,खेलना और कभी कभी उसके साथ सो जाना.

और एक दिन सुबह सुमी जब नींद में से उठी तो मुनिया घर में कहीं नहीं दिखी. सबने बहुत ढूंढा, पर मुनिया कहीं नहीं मिली. घर में, बगीचे में. सुमी का रो रो कर बुरा हाल था. सोनू सभी जगह ढूंढ आया था पर मुनिया का कहीं पता नहीं था. पहले लगा कहीं घूमने गई होगी आ जाएगी पर दो दिन के चार दिन हुए.

चार के दस और अब एक महीना के ऊपर होने को आया था. सुमी और सोनू दिन भर उदास रहते. एक दूसरे से आंखों ही आंखों में सवाल करते कि उनके साथ खेलने वाली उनकी छोटी मुनिया कहां चली गई. मां पापा ने बहुत समझाया कि मुनिया एक गिलहरी थी बड़ी हो गई थी अपने परिवार के पास चली गई होगी दूसरी गिलहरियों के पास. पर दोनों बच्चे नहीं समझ पा रहे थे.

और आज सुबह मां के कमरे से गाने की मीठी आवाज सुनाई दी. सुमी एकदम नींद से उठ कर मां के कमरे में भागी और देखा तो मुनिया वहीं अपनी मनपसंद जगह मां के ड्रेसिंग टेबल के ऊपर बैठ कर गा रही है. सुमी ने उसका नाम लेकर बुलाया “मुनिया” और मुनिया सुमी के कंधे पर आ बैठी जैसे पहले बैठती थी. मां,पापा ,सोनू सभी कमरे में आ गए और मुनिया सबके पास जा जा कर कह रही थी मैं आ गई वापस..पूरे घर में भाग रही थी, कूद रही थी, गा रही थी और सुमी और सोनू ताली बजा कर खिलखिला कर उसके साथ खेल रहे थे.

अब वह बगीचे में अपने पेड़, पौधों और फूलों के पास पहुंच गई गाना गाने और पूरा घर व्यस्त हो गया उसका स्वागत करने उसका कमरा सजाने. उसका मनपसंद खाना बनाने..मुनिया कहां चली गई थी.. क्यों चली गई थी कभी किसी को पता नहीं चला पर अब वह अपने घर में अपने कमरे में, झूला झूलते हुए बहुत आराम से रहती है. मां के कमरे में ड्रेसिंग टेबल के ऊपर बैठ कर गाती है . दोनों बच्चों के साथ खाना खाती है.  बगीचे में खेलती है और रात में सुमी के साथ में ही सो जाती है.

उषा धूत

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5 thoughts on “मुनिया – उषा धूत

  1. मुनिया कुछ अपनी सी लगी। उसका कुछ दिनों तक ना मिलना मन में जिज्ञासा पैदा कर रहा है की कहाँ गयी होगी…क्यूँ गयी होगी …लौटी क्यूँ …कैसे …सवाल बहुत से मगर जवाब सिर्फ़ मुनिया का प्रेम । बहुत अच्छा लेख ।

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