मुझे गोद ले लो रिटायर हूँ मैं – प्रमिला भारती

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अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस 1 अक्टूबर 

The International Day of Older Persons 

 

अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस याद दिलाता है कि हम वृद्धजनों के सम्बन्ध में चिंतन करें, उनकी समस्याओं को समझें और उनका सम्मान करें। आज का वृद्ध समाज अत्यधिक कुंठा ग्रस्त है और सामान्यत: इस बात से सबसे अधिक दु:खी भी है कि जीवन का विशद अनुभव होने के बावजूद कोई उनकी राय न तो लेना चाहता है और न ही उनकी राय को महत्व ही देता है। एक तरह से समाज में उन्हें निष्प्रयोज्य समझा जाने लगा है। वृद्ध समाज को इस दुःख और संत्रास से छुटकारा दिलाना आज की सबसे बड़ी ज़रुरत है और इस दिशा में ठोस प्रयास किये जाने की बहुत आवश्यकता है। अक्सर देखने-सुनने में आता है कि अपने वृद्ध माता-पिता को ‘बूढ़ा’ कहकर वृद्धाश्रम में छोड़ दिया जाता है। वह लोग भूल जाते हैं कि एक दिन ऐसी ही स्थिति से उन्हें भी गुज़रना पड़ सकता है। अनुभव का कोई दूसरा विकल्प दुनिया में है ही नहीं। अनुभव के सहारे ही दुनिया भर में बुज़ुर्ग लोगों ने अपनी अलग दुनिया बना रखी है। जिस घर को बनाने में एक इंसान अपनी पूरी ज़िंदगी लगा देता है, वृद्ध होने के बाद उन्हें उसी घर में एक तुच्छ वस्तु समझ लिया जाता है … उन्हें ज़िन्दगी से भी रिटायर समझ लिया जाता है।

 

अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवियित्री प्रमिला भारती ने अपनी कविता में वृद्धजनों की पीड़ा को अत्यंत मार्मिक भाव-व्यंजना के साथ व्यक्त किया है। समस्त  वृद्धजन को समर्पित ये कविता ‘प्रकाशक’ के पाठकों के लिए प्रस्तुत है।

 

मुझे गोद ले लो रिटायर हूँ मैं

 

तुम्हें याद होगा कि शायर हूँ मैं
मुझे गोद ले लो रिटायर हूँ मैं …

जो बेटा है अफ़सर बुलाता नहीं
कहीं बिन बुलाए मैं जाता नहीं
पकड़ लूँ किसी का ना पहुँचा कहीं
कोई मुझको उँगली थमाता नहीं
बिना बाँट का इक तराज़ू हूँ मैं
बदन से कटा एक बाज़ू हूँ मैं
कई बार टूटा मगर जुड़ गया
जिधर भी घुमाया उधर मुड़ गया
लचीला बड़ा एक वायर हूँ मैं
मुझे गोद ले लो रिटायर हूँ मैं ….

जो ठहरा नयन में वो पानी हूँ मैं
करूँ क्या बहुत स्वाभिमानी हूँ मैं
बिना जोग साधे सधी जोग में –
हृदय में बसी संत वाणी हूँ मैं
धरा पर खड़ा एक विश्वास हूँ
किसी बेबसी की निठुर आस हूँ
चलूँगा जहाँ तक चलेगी ज़मीं
खलेगी मुझे हर किसी की कमी
मगर ये ना समझो कि कायर हूँ मैं
मुझे गोद ले लो रिटायर हूँ मैं …

जो बरसा उमर भर वो बादल हूँ मैं
जो तरसा द्रिगों को वो काजल हूँ मैं
खुले अंग रिश्तों के ढकता हुआ
विवश हूँ, ग़रीबी का आँचल हूँ मैं
कोई ऐसे घर से मिला दे मुझे
अधूरे सपन ही दिला दे मुझे
बहुत थक गया हूँ ना चल पाऊँगा
न क्षमता को अपनी ही छल पाऊँगा
पुराना घिसा एक टायर हूँ मैं
मुझे गोद ले लो रिटायर हूँ मैं …

किसी फूल को जो तपन ने छुआ
बहुत छटपटाया है बेकल सुआ
गिरा अश्रु बन भूमि पर जो कभी
कि होंठों पर उसके है अब भी दुआ
सदा प्यार से था जो सींचा चमन
बना शूल का इक ग़लीचा चमन
ये पिंजरा, ये खंडहर, ये दीवार है
न इस पार कोई न उस पार है
नए दौर पर इक सटायर हूँ मैं
मुझे गोद ले लो रिटायर हूँ मैं …

 

कवियित्री प्रमिला भारती


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2 thoughts on “मुझे गोद ले लो रिटायर हूँ मैं – प्रमिला भारती

  1. अति सुन्दर, हृदयस्पर्शी, भावपूर्ण रचना ।

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