ज़िन्दगी कुछ कुछ ख़फ़ा है

 

ज़ख्म देने वालो की कमी नही रही ,

अपना लिया हर ज़ख्म एक तोहफे की तरह

हम तो ज़ख़्मों पे भी ये सोच के ख़ुश होते हैं….

तोहफ़ा-ए-दोस्त हैं जब ये तो करम ही होंगे..!!

लोगो की इनायतो से, कभी कभी लगता है क़ि

ज़िन्दगी कुछ कुछ ख़फ़ा है..

फ़िर ये सोच लेते हैं कि
अजी छोड़िये भी
ये कौन सा पहली बार है
उम्मीद और चाहत में
थक कर बैठ जाती हैं ख्वाइशें भी कभी कभी
धूप और छाँव का खेल जब खेलती है जिंदगी!!!
जीवन की क्मी को पूरा करने को
सपनो को सजाया ,सपनो ने कहा
आसमां में मत दूंढ अपने सपनों को
सपनों के लिए तो ज़मी ज़रूरी है,
सब कुछ मिल जाए तो जीने का क्या मज़ा,
जीने के लिये एक कमी भी जरूरी है
दोस्तो ने मुस्कुराने की वजह बहुत दी
सिद्दत – ए – दर्द में
कमी न आई ज़रा भी

दर्द दर्द ही रहा
उल्टा भी लिखा
सीधा भी लिखा !!
खुशियो को पता बता तो मेरी गली का
शर्म नहीं आती उदासी को जरा भी
मुद्दतों से मेरे घर की मेहमान बनी हुई है
सर्कस के जोकर का पता होता की
नकली चेहरे से सबको खुशी देता है।
लेकिन
नादान आईने को क्या ख़बर
कुछ चेहरे
चेहरे के अन्दर भी होते हैं
लाख कोशिश की सबको खुश करने की
लेकिन
जो भी मिला वो हमसे खफा मिला
देखो दोस्ती का क्या सिला मिला
उम्र भर रही फ़क़त वफ़ा की तलाश
पर हर शख्स मुझको बेवफ़ा मिला
सब कुछ जिस पर वार दिया
अपने दर से मुझे ठुकराने वाले
तेरे दर के बाहर भी दुनिया पड़ी है
कहीं जा रहेंगे ठिकाने बहुत हैं
मेरा एक नशेमन जला भी तो क्या है
चमन में अभी आशियाने बहुत हैं।
जलजले ऊँची इमारत को गिरा सकते हैं…!
मैं तो बुनियाद हूँ ,मुझे कोई खौफ़ नहीं….!!

दोस्तो की बातो का कहना क्या
अक्सर वही दोस्त
लाजवाब होते हैं
जो एहसानों से नहीं,
एहसासों से बने होते हैं
इन्सान को समझना
सब के बस की बात नही ।कोई दिल से सोचे
कोई सोचे दिमाग से
सब के पास समान आँखे हैं
लेकिन
सब के पास समान दृष्टिकोण नहीं
बस
यही इंसान को इंसान से अलग करता है
भीड़ के तानो ने
मुझको इतना तन्हा कर दिया

दुनिया का सबसे मुश्किल काम कर लिया
सब के मन के कामो को कर पूरा
बस अपने काम से ही काम कर लिया
सीधा चलते देख नही पाते लोग
रखकर पत्थर राह में लोग चुपके से ताकते रहते है
ये दुनिया है दोस्तो
खुशी किसी को किसी की अच्छी नही लगती
दिल की छुपाऊं तो
पुछती है दुनिया ।
दिल की बात बताऊं
तो हंसती है दुनिया
दुनिया बड़ी जालिम है हर बात छिपानी पड़ती है
दिल में दर्द होता है फिर भी होंठो पर हंसी लानी पड़ती है

ज्योति किरन रतन


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1 thought on “ज़िन्दगी कुछ कुछ ख़फ़ा है – ज्योति

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