जीवन का सफ़र – दिव्या त्रिवेदी
जीवन का सफ़र
जीवन जीवन का सफ़र, इस सफ़र में कभी एक वो पड़ाव आता है,
जब हम अकेले होते हैं, बिल्कुल अकेले और देर तक पुकारते हैं किसी को, बहुत देर तक, हमें एक उम्मीद होती है कोई तो सुन लेगा आवाज़ हमारी और जवाब में एक आवाज आएगी, पर जवाब में जब हमें किसी की आवाज नहीं सुनाई देती तो हम आश्वस्त हो जाते हैं कि यहां हमारे आस पास कोई नहीं और फिर आवाज देना बंद कर देते हैं, चुप हो कर बैठ जाते हैं, पुकारना बंद कर देते हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे जब किसी अंधेरे कमरे में बैठे हों और कोई आहट सुनाई दे जाती है, फिर हम पुकार लगाते हैं कोई है क्या, पर बहुत देर तक कोई जवाब ना मिलने पर हम समझ जाते हैं कि ये किसी की आहट नहीं थी बस हवा की सरसराहट भर थी और हम शांत हो जाते हैं, फिर आवाज देना बंद कर देते हैं।
कुछ इसी तरह शुरू होता है *आस्तिक से *नास्तिक का सफर। मोह से निर्मोह का सफर। प्रेम से उदासीनता का सफर। विश्वास से अविश्वास का सफर।
जब ऐसी स्थिति होती है तब,
मन नदी की चंचलता त्याग कर समुद्र की स्थिरता को धारण करने को व्याकुल हो उठती है।
एहसास कुछ ऐसा की बहते-बहते थक गए हों जैसे, मीठे पानी सा बन कर बहते रहे फिर भी साथ तो कोई बहा नहीं, अब मीठापन त्याग कर खारेपन को धारण कर लिया जाए कम से कम हृदय के मोती चुनने तो कोई आयेगा पर हम कुछ नहीं धारण करेंगे समुद्र की तरह सब कुछ किनारे लग जाएगा हमारे। हमारे अंदर किसी का कुछ भी ना रहेगा बस हमारी मिठास हमारे खारेपन में बदल कर हमारे अंदर रह जाएगी, और होगी चिर शांति।
कवित्त मन अकवित्त की ओर…
दिव्या त्रिवेदी हिंदी भाषा की जानी-मानी कवियित्री हैं
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