कुछ तो है मेरे तुम्हारे बीच’

कुछ तो है
मेरे तुम्हारे बीच
वो मुलाकातों का दौर
जो कभी आया ही नही
या फिर इश्क़ की सरगोशियां
जो कभी हुई ही नही
या फिर कुछ और …

कुछ तो है मेरे तुम्हारे बीच
मेरी अनपढ़ सी ख़ामोशियाँ
तुम्हारे लफ़्ज़ दर लफ़्ज़
खुलते जज़्बात
होंठों का बुदबुदाना
ख़ामोश आंखों से
बहुत कुछ कह जाना
और कुछ नही तो
कुछ अलग ही है
मेरे तुम्हारे बीच
आँखों का मिल जाना
या फिर नैनों का बतियाना
मेरी उलझी सी लटों को
तुम्हारी बहकती सी
नज़रों से सुलझाना
इस उलझन सुलझन
के बीच कुछ तो है
शायद सदियों का फ़ासला
या फिर इश्क़ का सिलसिला
जो हमारे तुम्हारे बीच
बहने और एक नई
प्रेम कहानी लिखने को तैयार है

महकती है किसी की याद

महकती है किसी की याद दिल में ख़ुशबुओं की तरह
वो रहता है मेरे दिल में धड़कन की तरह

उसके ही इश्क़ से ज़िंदा हूँ मैं
वो बसता है मुझमें साँसों की तरह

कुछ कशिश तो थी उसकी बातों में
उसका हर्फ़ हर्फ़ याद है मुझे आयत की तरह

उसके इश्क़ की बरसात से अब तक सरोबार हूँ मैं
मोहब्बत थी उसकी ख़ुदा की रहमत की तरह

महरूम हूँ अब मैं उसकी पाक मोहब्बत
जिसकी कभी इबादत की थी ख़ुदा की तरह

 

धरती माँ की परछाई हूँ

अक्स हूँ मैं अपनी जननी का
या छाया मात्र हूँ नारी का
मैं पली बढ़ी डर के साये में
अपनी ही अस्तित्व से घबरायी हूँ
धरती पर अपना वजूद ढूँढती हूँ हरदम
जाने किस कालखंड मैं समायी हूँ
साया है मेरा अनगढ़ सा
किस अनजान नगर से आई हूँ
फिर भी सब कहते हैं मैं धरती माँ की परछाई हूँ

कवियित्री  अर्पणा गर्ग 


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1 thought on “कुछ तो है मेरे तुम्हारे बीच

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