स्वप्रश्नावली – दिव्या त्रिवेदी
स्वप्रश्नावली
हूं किसी अहंकार में
या, किसी प्रतिकार में हूं?
हूं किसी घमंड में
या, फिर किसी दंभ में हूं?
हूं किसी प्रचंड में
या, किसी हिमखंड में हूं?
हूं हृदय की वेदना में
या, तुम्हारे प्रसन्न में हूं?
हूं प्रकृति के रूप में
या, प्रलय के कुरूप में हूं?
हूं प्रेम की चाह में
या, विरह की आह में हूं?
हूं किसी पाश में
या, मुक्ति की आस में हूं?
हूं स्त्री के सम्पूर्ण में
या, पुरुष के अपूर्ण में हूं?
हूं स्वयं के भाव में
या, स्वयं के अभाव में हूं?
हूं जगत के प्रारंभ में
या, जगत के आरंभ में हूं?
हूं तुम्हारे स्वीकार में
या स्वयं के अस्वीकार में हूं?
हूं कथा विस्तार में
या, कथा के सार में हूं?
हूं जीव की मिथ्या में
या, मृत्यु के यथार्थ में हूं?
हूं स्वयं के खंड में
या, स्वयं अखंड मैं हूं?
हूं प्रश्न के जवाब में
या, प्रश्न ही के भाव में हूं?
हूं घमंड – अहंकार में
या, दंभ के प्रतिकार में हूं?
दिव्या त्रिवेदी हिंदी भाषा की जानी-मानी कवियित्री हैं
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जीव की मिथ्या में , मृत्यु के यथार्थ में
बहुत ही प्रकृष्ट कविता जो बिंदु को स्पर्श कर गई
🙂😐🙂 All greys and pinks of life’s spectrum, are well preserved and presented by this budding as well as grownup Poetess Divya !!
😌😑😌 My all good wishes for her literary as well as lunatic journey >>