काज़ी नज़रुल इस्लाम
अगर तुम राधा होते श्याम।
मेरी तरह बस आठों पहर तुम,
रटते श्याम का नाम।।
वन-फूल की माला निराली
वन जाति नागन काली
कृष्ण प्रेम की भीख मांगने
आते लाख जनम।
तुम, आते इस बृजधाम।।
चुपके चुपके तुमरे हिरदय में
बसता बंसीवाला;
और, धीरे धारे उसकी धुन से
बढ़ती मन की ज्वाला।
पनघट में नैन बिछाए तुम,
रहते आस लगाए
और, काले के संग प्रीत लगाकर
हो जाते बदनाम।।
অরুণকান্তি কেগো যোগী ভিখারী।
নীরবে হেসে দাঁড়াইলে এসে
প্রখর তেজ তব নেহারিতে নারি।
রাস-বিলাসিনী আমি আহিরিণী
শ্যামল-কিশোর-রূপ শুধু চিনি
অম্বরে হেরি আজ একি জ্যোতি-পুঞ্জ?
হে গিরিজাপতি! কোথা গিরিধারী।
সম্বর সম্বর মহিমা তব
হে ব্রজেশ ভৈরব! আমি ব্রজবালা,
হে শিব সুন্দর! বাঘছাল পরিহর-
ধর নটবর বেশ পর নীপমালা।
নব-মেঘ-চন্দনে ঢাকি’ অঙ্গগজ্যোতি
প্রিয় হ’য়ে দেখা দাও ত্রিভুবন-পতি,
পার্ব্বতী নহি আমি, আমি শ্রীমতী,
বিষাণ ফেলিয়া হও বাঁশরী-ধারী।।