माधुरी ने पहली बार सुधीर को तब देखा था, जब वो अपने बड़े भाई के साथ उसकी मौसी की बेटी को देखने घर आया था। माधुरी की मौसी उसकी माँ की बड़ी बहन थी। फिर घर में दूसरी पीढ़ी के रिश्ते की बात थी, इसलिए सभी लोग इस मौके पर इकट्ठे हुए थे। माधुरी की बहन एकलौती बेटी थी। मौसी उसके लिए अच्छा रिश्ता कब से ढूंढ रहीं थी। सुधीर का भाई उन्हें पहली नज़र में ही भा गया। देखने सुनने में अच्छा था, घर से मजबूत था और नौकरी भी बढ़िया थी, इसलिए उन्होंने दिल खोल कर खातिरदारी की। उस खातिरदारी का परिणाम अच्छा ही निकला। माधुरी की बहन पसंद कर ली गई।
फोन पर जैसे ही ये सूचना मिली जश्न सा माहौल छा गया। छह महीने बाद शादी की तारीख निकली थी, इसलिए मौसी ने माधुरी को हाथ बंटाने के लिए रोक लिया।
माधुरी दीदी के कमरे में ही सोती, इसलिए जल्द ही उसे पता लग गया कि होने वाले जीजाजी रोज़ रात में फोन करते हैं। माधुरी की बहन ने उससे कसम खिलवा ली कि वो ये बात किसी को नहीं बताएगी। माधुरी ने वादा किया, पर साथ ही उसे दीदी की किस्मत से रश्क हो आया। ’काश! उसकी ज़िन्दगी भी इतनी रोमांटिक होती।’ नींद का बहाना करके वो दीदी की शर्मीली हंसी और रोमांटिक बातचीत सुनती रहती।
फोन से हाले दिल सुनते-सुनाते जीजाजी ने एक दिन दीदी से मिलने की ठान ली। इसके लिए दीदी ने उसी की मदद ली। दीदी को लेकर माधुरी जब रेस्टोरेंट पहुंची, तब जीजाजी के साथ उनका भाई सुधीर भी था।
दीदी शर्मा रही थीं, इसलिए सुधीर के प्रस्ताव पर वो लोग पार्क में चले गए। वहां दीदी को जीजाजी के साथ बेंच पर बैठाकर माधुरी सुधीर के साथ टहलने लगी। बातों-बातों में ही पता लगा कि उसकी और सुधीर की रुचियाँ एक जैसी ही हैं। सुधीर को भी रोमांटिक फ़िल्में पसंद थीं, दोनों का फेवरेट हीरो सलमान खान थे, दोनों ही चिकन के कपड़ों के शौक़ीन थे और माधुरी की तरह सुधीर भी नए-नए स्थानों की सैर करना चाहता था।
उस मुलाकात के बाद वो चारों अक्सर मिलने लगे। इसके साथ ही माधुरी और सुधीर की मित्रता भी गहरी होने लगी। कई बार वो लोग शादी के लिए कपड़े वगैरह खरीदने के लिए भी मिलते थे। एक बार ऐसी ही शॉपिंग के दौरान सुधीर ने जिद करके अपनी ओर से माधुरी को एक लंहगा भेंट किया। लहंगा लेकर माधुरी घर आई, तो रात को उसके मोबाइल पर सुधीर का मेसेज आया, ’लहंगा सुन्दर है, पर इसे पहनने वाली इससे भी ज्यादा सुन्दर है। दो खुबसूरत चीज़ें एक साथ कितनी खूबसूरत लगेंगी, ये देखने को बेकरार हूँ।’ माधुरी ने पढ़़ा और मुस्कुरा दी। उसने जवाब दिया, ’सगाई वाले दिन इस बेकरारी को करार आ जाएगा।’
वो सोचने लगी ’कैसे सुधीर के साथ पांच महीने पलक झपकते ही गुज़र चुके थे। अब तो सगाई का दिन आने वाला था और पंद्रह दिन बाद शादी थी। फिर उसे वापिस लौट जाना था। बहुत याद आएगा सुधीर।’ उसी के ख्यालों में डूबे हुए पता नहीं कब उसकी आँख लग गई।
सगाई वाले दिन उसने सुधीर का दिया हुआ लंहगा पहना था, जिसमें वो बेहद खूबसूरत लग रही थी। धीरे-धीरे मेहमान आने लगे। माधुरी की निगाहें दरवाज़ंे की ओर लगी रहीं। जीजाजी और उनके माता पिता भी आ गए, पर सुधीर देर से आया।
माधुरी उससे नाराज़ थी, इसलिए बार-बार आँखे मिलने के बावजूद अनजानी निगाह से उसे देखती। सुधीर ने कई बार आँखों-आँखों में उसकी प्रशंसा की। एक बार वो पास से गुज़री तो उसने खूबसूरती पर एक शेर भी पढ़ा, पर माधुरी अनजान बनी रही।
इसी बीच सगाई की रस्म की तैयारी होने लगी। सभी लोगों का ध्यान अंगूठियों, तोहफों और शगुन में लगा था। मौका देखकर सुधीर ने माधुरी का हाथ पकड़ा और उसे खींचते हुए छत पर ले गया। छत पर चाँद निकल आया था। माधुरी को सीने से लगाकर सुधीर ने कहा, ’इस खूबसूरत चेहरे पर ये गुस्से के तेवर! जान ही ले लोगी क्या?’ माधुरी मुस्कुरा दी और सुधीर उसकी जुल्फों से खेलने लगा, फिर उसने जेब से एक अंगूठी निकल कर माधुरी की उंगली में पहनाते हुए कहा, ’छोटा हूँ पर इस मामले में भैया का इंतज़ार नहीं करूंगा। बोलो, मुझसे शादी करोगी?’ माधुरी ने सर हिलाकर हामी भर दी और दो जवान दिल एक दूसरे में खो गए।
तभी नीचे से तालियाँ और शोर सुनाई दिया। दोनों हड़बड़ाते हुए नीचे उतरे तो अंगूठियाँ पहनाई जा चुकी थीं। अब दोनों परिवार एक दूसरे का मंुह मीठा करवा रहे थे। सुधीर ने अपनी मीठी नजरों से माधुरी का शगुन करवा दिया। माधुरी मुस्कुरा दी और सुधीर का दिल धड़क उठा। वापिस जाते हुए उसने मौका देखकर माधुरी का हाथ दबा दिया, माधुरी शर्मा गई।
उसके बाद शादी तक दोनों कई बार अकेले बाहर मिले और दोनों के बीच की सभी दूरियां मिट र्गइं। अब दोनों रात भर फोन पर बातें करते। ये बात जल्द ही दीदी को पता लग गई कि उसकी छोटी बहन और देवर एक दूसरे को पसंद करते हैं। दीदी ने जीजाजी को ये बात बताई और जीजाजी ने घर पर माधुरी की तारीफें शुरू कर दीं। अब घर पर लोग माधुरी और सुधीर के बारे में सोचने लगे थे। ये जानकर माधुरी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा।
दीदी की शादी में वो दौड़ भागकर बारातियों की आवभगत करती रही। आखिर अब वो उसकी भी तो ससुराल थी। सुधीर की माँ माधुरी की बलाएं लेते नहीं थकतीं थीं। उसके पिता माधुरी के सर पर बार-बार हाथ फेरते और माधुरी निहाल हो जाती। कितना प्यार करने वाली ससुराल मिल रही है।
दीदी की विदाई होने तक माधुरी और सुधीर का रिश्ता पक्का हो गया था। अब शादी की तारीख निकालनी थी, पर अगले दिन से ही कोई नक्षत्र अस्त हो रहा था, ऐसे में शादी की तारीख नहीं निकल सकती थी, इसलिए तय हुआ कि अभी वो लोग वापिस लौट जाएंगे, फिर जब अच्छे दिन शुरू होंगे तब शादी की तारीख निकलवाकर माधुरी के पिता शगुन दे आएंगे।
दीदी की शादी के बाद घर लौटते हुए माधुरी के मन में जहाँ सुधीर से बिछड़ने की कसक थी, वहीं इस बात की ख़ुशी भी थी कि जल्द ही वो हमेशा के लिए सुधीर की हो जाएगी। घर आकर छोटी बहन और भाई का उल्लास देख उसे हंसी आ जाती।
घर में शादी की तैयारियों की बातें होतीं। पिताजी अपनी जमा-पूँजी गिनते और माधुरी सपने देखती कि वो शादी के बाद सुधीर के साथ किन स्थानों की सैर कर रही है। कभी सपने में खुद को सुधीर के आगोश में पाती तो उसकी आँख खुल जाती। उसका मन होता, काश! ये सपना सच हो जाए।
आखि़रकार पंडितजी से तारीख निकलवाकर माधुरी के घरवालों ने फोन किया, तो उन्होंने शादी की तैयारियों के बारे में विचार-विमर्श करने के लिए उन्हें घर आने का आमंत्रण दिया। माधुरी के पिताजी सुधीर के घर जाने की तैयारी करने लगे। जिस दिन पिता और भाई को जाना था, उस दिन कई बार सुधीर का फोन आया। वो गाड़ी के समय के बारे में पूछता, तो कभी उसे याद दिलाता कि उसके घर में किससे किस तरह की बात करनी है।
पिता के जाने के बाद माधुरी बेसब्री से इंतज़ार करने लगी कि शायद पिताजी फोन पर मां से कुछ बात करें, पर पिताजी का फोन नहीं आया, बल्कि अगली सुबह वो खुद आ गए और उन्होंने जो कुछ बताया उसे सुनकर माधुरी के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
सुधीर के पिता ने उनसे कहा था कि ’अपने बड़े बेटे की शादी में उन्हें 25 लाख कैश और पैंतीस तोले सोना मिला है, छोटे की शादी में इससे ज़्यादा नहीं तो इतने की उम्मीद तो उन्हें है ही।’ माधुरी के पिता ने जब उन्हें अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में बताया, तब उन्होंने कह दिया कि ’आखिर उनकी भी तो कोई इज्ज़त है और अगर छोटे की शादी ऐसे घर में करेंगे, तो कल को खानदान में चार तरह की बातें होंगी कि पता नहीं क्यों छोटे की ऐसी शादी कर दी।’
माधुरी के दिल को धक्का लगा था, पर उसे यकीन था कि उसका सुधीर सब संभाल लेगा। पर सुधीर का फोन नहीं आया। माधुरी ने जब फोन किया, तब उसने कहा कि ’अंकलजी ने क्या तुम्हारी शादी की कोई तैयारी नहीं की थी?’ माधुरी को कोई जवाब नहीं सूझा, फिर सुधीर ने कहा ’वो कोशिश करेगा, पर उसके पिताजी काफी सख़्त हैं।’ माधुरी के रोने पर उसने उसे दिलासा दिया और समझाया कि ’कुछ दिन वो लोग शांत रहेंगे, फोन पर भी बात नहीं करेंगे। इस बीच वो अपने पिताजी को समझा लेगा।’
माधुरी के पास और कोई उपाय नहीं था। वो सुधीर की बात पर भरोसा करके इंतज़ार करने लगी। एक दिन उससे रहा नहीं गया। उसने दीदी को फोन किया। उन्होंने बताया कि ’अपनी तरफ से वो साऱी कोशिशंे कर चुकी हैं, पर कोई फायदा नहीं। अब तो घर में सुधीर के रिश्ते की बात भी चल रही है।’ माधुरी को समझ में नहीं आया कि वो क्या करे, पर आखिरकार उससे रहा नहीं गया। उसने सुधीर को फोन किया। इस बार सुधीर ने फोन नहीं उठाया।
माधुरी फोन करती रही, पर सुधीर का जवाब नही आया और आखिरकार सुधीर की शादी तय होने की खबर आ गई। माधुरी अवाक थी। उसे ये उम्मीद नहीं थी। उसने गुस्से में सुधीर को लगातार फोन करना शुरू किया। हारकर सुधीर को फोन उठाना ही पड़ा। उसने कहा कि ’वो अपने पिता की मर्ज़ी के खिलाफ नहीं जा सकता।’ माधुरी ने जब उसे अपने प्यार की याद दिलाई, तब उसका जवाब था कि ’वो प्यार नहीं, बल्कि एक वक्ती तूफ़ान था, जिसमें वो दोनों फंस गए थे। पर अब तूफ़ान गुज़र गया है। अच्छा होगा कि माधुरी उसे भूल जाए। ये शादी उसकी पसंद से हो रही है और वो आगे माधुरी से कोई संबंध नहीं रखना चाहता।’
माधुरी चुप हो गई। सवाल उसकी दीदी का भी था। अगर वो सुधीर की बेवफाई जगजाहिर करती तो इसका खामियाजा दीदी को भुगतना पड़ सकता था। अपनी खामोशी की कीमत खुद उसे ही चुकानी थी।
टूटी हुई माधुरी आज तक ये समझ नहीं पाई कि क्यों उसने सुधीर की मीठी बातों पर यकीन किया। वो कैसे भावावेश में साऱी सीमाएं लांघती गई और क्यों उसने एक बार दीदी से सीधे बात करने की हिम्मत नही जुटाई? शायद तब कुछ बात बनती, पर, फिर वो सोचती, इससे क्या फायदा होता। सुधीर ने उसे दिल से निकालने में ज़रा भी देर नहीं लर्गाइं थी। वो उसकी जगह अब किसी और को दे चुका था। ऐसे में वो लाख कोशिशों के बावजूद उसके दिल में वापिस नहीं जा सकती थी। उसका आशियाना अब किसी और का हो चुका था।