वरिष्ठ साहित्यकार गोप कुमार मिश्र

जिस प्रकार गद्य में व्याकरण का विशेष महत्व है , उसी प्रकार पद्य में छंद का विशेष महत्व है । छंद को पद्य सृजन का मापदण्ड कहा जा सकता है ,, छंद शिल्प पद्य की कसौटी है ।

छंदस् की उत्पत्ति छद धातु से हुआ है जिसका अर्थ है ,जो अपनी इच्छा(भाव) से चलता है । इसीसे स्वछंद बना है जो अपनी इच्छा (मनमर्जी ) से चलता है , सनातन छंद बद्ध रचना ऋग्वेद है ।
छंद वह वाक्य जो उसमे प्रयुक्त अक्षर वर्ण की संख्या या मात्रा की संख्या व क्रम के लय यति से गति प्राप्त करती है

छंद चार प्रकार के होते हैं

१-क ):- मात्रिक छंद ,, जिसमें मात्रा की गणना व क्रम तय होती है जो चारो चरण मे समान होती है। पर वर्ण की मात्रा असमान हो सकती है ,, इसमें लघु लघु को गुरू मान लेते है । जैसे अहीर, मानव, तोमर , पद्धरि , चौपाई , पीयुष वर्ष , राधिका , सरसी , सार , ताटंक , कुकुभ , मनहरण , गीतिका , हरिगीतिका , विधाता आदि

१-ख):- अर्धमात्रिक छंद जिसमें विषम चरण की मात्रा बराबर होती है ,, सम चरण की मात्रा बराबर होती है ,, पर चारो चरण की मात्रा सम नही होती है ,,, जैसे दोहा , सोरठा आदि

२):- वार्णिक छंद इसमे वर्णो की संख्या व क्रम तय होता है,, इसमे गुरु को दोलघु मे नही तोड सकते है जैसे प्रमाणिका , पंचामर , अनंगशेखर , दोधक , बसंततलिका , तोटक , सवैया , मंदाकांता,शिखरिणी छंद आदि

३) वर्ण वृत्त ,, जिसमे वर्णो की संख्या निश्चित होती पर क्रम तय नही होता मात्ताए भी हर चरण मे समान नही होती ,, जैसे घनाक्षरी ,द्रुत विलम्बित , मालिनी आदि

४) मुक्त छंद ,, जिसमें वर्णो की संख्या , क्रम , मात्राओ की गणना अनिश्चित पर लय , यति गति इनमें होती है

आज कुछ मापनी युत मात्रिक छंदो पर विचार करते है

अट्ठाइस मात्रिक मापनी के संदर्भ में आइए हम सब विचार करते है ,,, अगर हम सात मात्राओ के कन्बिनेशन की चार आवृत्ति लें तो कुल अट्ठाइस मात्रा बनती है । जैसे

सात में द्विकल और त्रिकल के कम्बिनेशन होगें
232 322 223 यह तीन कम्बिनेशन होंगे ,,,, अब हमारे पास मात्रा के तो लघु दीर्घ दो ही प्रकार है ,,, अत: हम तीन को लघु गुरू यानी 12 में तोड लें तो इन्ही कम्बिनेशन की चार आवृत्तियाँ

A) 232 232 232 232
~~ 2122 2122 2122 2122

1) 2122—2122—2122—2122 = चार कड़ी = माधव मालती
2) 2122—2122—2122—212 = साढ़े तीन कड़ी = गीतिका
3) 2122—2122—2122 = तीन कड़ी = पियूष निर्झर
4a) 2122 21,22 212 = ढाई कड़ी = पियूष वर्ष
4b) 2122 2122 212 आनंद वर्धक छंद
5) 2122—2122 = दो कड़ी = मनोरम
6) 2122—212 = डेढ़ कड़ी = मालिका
7) 2122 = एक कड़ी = सुगति

B) 322 322 322 322
~~ 1222 1222 1222 1222

1) 1222—1222—1222—1222 = चार कड़ी = विधाता
2) 1222—1222—1222—122 = साढ़े तीन कड़ी = दिगंबरी
3) 1222—1222—1222 = तीन कड़ी = सिंधु
4) 1222—1222—122 = ढाई कड़ी = सुमेरु
5) 1222—1222 = दो कड़ी = विजात
6) 1222—122 = डेढ़ कड़ी = विजातक
7) 1222 = एक कड़ी

C) 223 223 223 223
~~ 2212 2212 2212 2212

1) 2212—2212—2212—2212 = चार कड़ी = हरिगीतिका
2) 2212—2212—2212—22 या 2 = साढ़े तीन कड़ी = माधुरी , मधु रजनी
3) 2212—2212—2212 = तीन कड़ी = मधु वल्लरी
4) 2212—2212—22 या 2 = ढाई कड़ी = मधु मंजरी
5) 2212—2212 = दो कड़ी = मधु मालती
6) 2212—22 या 2 = डेढ़ कड़ी = गंग
7) 2212 = एक कड़ी = सुगति

कुल यह इक्कीस प्रकार के छंद हो गये

उदाहरण-1
माधव मालती छंद
मापनीं ,,, 2122 2122 2122 2122

शारदे उपकार कर माँ ,ज्ञान का भण्डार भर दे।
छंद में हर बंद में माँ , सार गर्भित सार भर दे।।
लेखनी में धार दे माँ , भाव अक्षत प्यार भर दे ।
धर्म कवि निर्वाह हो ऐसे सुदृढ संस्कार भर दे ।।
.

उदाहरण -२
गीतिका छंद आधारित गीतिका


मापनी 2122 2122 2122 212
समांत – आना पदांत – आ गया

मै कली ऐसी खिली खिल खिलखिलाना आ गया
नैन सर प्रतिपक्ष को जलवा दिखाना आ गया

होंठ अंगारे हुए जब आँख पानी हो गयी
प्यार में पडकर मुझे देखो लजाना आ गया *१ ***

रूप यौवन देह चंदन शान पर ऐसी रखी
वात को भी बिन पियें अब लड़खड़ाना आ गया

प्रेम सागर ज्वार भाटा देख पूनम चाँदनी
रूप गंधित झील सँग मुझको नहाना आ गया*३

बीत जाता पल सखी जो लौटकर आता नही
छोंड़ कल- कल आज को ही आजमाना आ गया *

काल छोड़े छाप अपनीं , ढल गयी रस माधुरी
याद आयी तो अधर को मुस्कराना आ गया

उदाहरण-३
पियूष निर्झर आधारित गीतिका

(2122 2122 2122 )

श्वास लय पर शारदे माँ को बसाओ।
है यही तो यज्ञ -पूजा ,गोप ध्याओ।।1।।

है चराचर रूप माता साध्य साधक ।
प्यास रख सरि सी अधर पर सुर सजाओ ।।2।।

धार भी मझधार भी पतवार भी माँ
पार खुद माता करेगी, डूब जाओ ।।3।।

भावना अभि व्यंजना मे, छंद दोहा
साज निर्झर श्वास लय मृदु गीत गाओ ।।4।।

कृष्ण गीता पावनी सी , मातृ भाषा ।
चंद्र बिंदी #ओम #शरणा#, गोप आओ ।।5।।

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