लुप्त सुप्त व नूतन विधाओं की महिमा (३)
लोक संगीत की बेहद खूबसूरत विधा “माहिया“
माहिया“ का मतलब प्रेमी होता है। इसके अनुसार पहले केवल प्यार -मोहब्बत , रूठना ,मनाना, मीठी- सी नोक -झोंक माहिया के विषय हुआ करते थे। अब सामयिक विषयों पर भी इसे लिखा जाने लगा है।
माहिया तीन पंक्तियों का एक छोटा-सा मात्रिक छंद है , जिसकी पहली और तीसरी पंक्ति में 12-12 और दूसरी में 10 मात्राएँ होती हैं। पहली और तीसरी पंक्तियाँ तुकांत होती हैं । यह “ गेय“ (गाने योग्य) छंद है ।इसे गाया जाता है, तो हर पंक्ति में अंतिम मात्रा गुरु होने पर गायकी को सरस बना कर यही बात माहिया को हुस्न प्रदान करती है l
मात्रा गणना के बारे में आप सभी जानते ही हैं, फिर भी एक बार संक्षेप मे बता देते हैं ।
वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे मात्रा कहते हैं। मात्रा 2 प्रकार की होती है लघु और गुरु।
ह्रस्व उच्चारण वाले वर्णों की मात्रा लघु होती है तथा दीर्घ उच्चारण वाले वर्णों की मात्रा गुरु होती है।
तो अगर पहली और तीसरी पंक्ति में अगर 6 द्विकल और मध्य पंक्ति में 5 द्विकल की संरचना हो तो बहुत ही अच्छाl इससे रचित छंद की गेयता बढ़ेगीl
(द्विकल =दो मात्राओं का समूह या वर्ग)
जो भी लिखें उसे गुनगुना कर देखें , क्यूँ कि माहिया गाया जाता है
विशेष
यह एक गेय (गाने योग्य) छंद है।
आप जिस धुन पर लिख कर आप भाव रच रहे हैं अगर किसी पंक्ति मे मात्रा गणना मे मात्रा बढ़ रही है पर वो गेयता को बाधित करने के बदले उसे ज्यादा सरस और सहज बना रही है तो यह मात्रा बढ़ायी जा सकती है।पर जानबूझ कर मात्रा बढ़ाकर लिखना छंद-लेखन की दृष्टि से सही नहीं है।
“माहिया” विधा में कुछ रचनाएँ “
1.
यादों की बदली थी
अश्क बनी बरसी
आँखों से निकली थी
2.
आँखों से लूटे थे
मोती से आँसू
जब दो दिल टूटे थे
3.
इक ठेस लगी चटका
शीशे के दिल था
या माटी का मटका
4
जीवन को बाँधा है
दिल की गठरी में
साँसों का धागा है
5
संसार सुहाना है
प्रिय का साथ मिला
रंगीन तराना है
6
दिल चीर चली आयी
तू ही ना आया
क्यों याद चली आयी
7
सूरज लेकर आया
रात विदा करके
खुशियों का सरमाया
8
तुम ही जो रूठ गये
चटका दिल शीशा
सपने ही टूट गये
9
पत्थर पे खिंची रेखा
मिटी न मिटाये से
दिल पे ही लिख देखा
10.
रैना यूँ बीती है
आँखे ना मूँदी
सपनों से रीती हैं
- महिमा श्रीवास्तव वर्मा