Break-up Story क्या प्यार की सीमा सिर्फ़ शरीर तक है

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ब्रेक अप स्टोरी

क्या प्यार की सीमा सिर्फ़ शरीर तक है

तानी और मितेश की मुलाक़ात बिजली बिल के जमा काउंटर पर हुई थी। उस दिन काफी लम्बी लाइन लगी थी। तानी रिक्शा वाले को रोककर बिल जमा करने के लिए जब अन्दर पहुंची, तो भीड़ देखकर उसके होश उड़ गए।

उसे देर हो रही थी। अगले पौन घंटे में अगर वो कालेज नहीं पहुंची, तो फिजिक्स का नकचढ़ा प्रोफ़ेसर उसका असाइंमेंट जमा नहीं करेगा। असाइंमेंट जमा नहीं हुआ, तो उसके दस नंबर कट जायेंगे और तानी को यूं भी फिजिक्स काफी मुश्किल लगती थी। उसे डर था तो सिर्फ एक यही, कि फिजिक्स की वजह से कहीं उसकी परसेंटेज कम न हो जाए। इसलिए उसे हर हालत में फिजिक्स का असाइंमेंट जमा करना था।

ये असाइंमेंट पूरा करने के लिए उसने बहुत मेहनत भी की थी, पर इस भीड़ की वजह से उसे अपनी मेहनत पर पानी फिरता नज़र आ रहा था। वो तेज़ी से सोचने लगी कि क्या करे। आज बिल जमा करना भी ज़रूरी था। माँ ने चलते समय ही ये बता दिया था, कल जमा होगा, तो फाइन लगेगा और वो लोग पिताजी की लम्बी बीमारी के कारन इस हालत में नहीं थे कि एक भी पैसा फिजूलखर्च किया जाए।

आज तानी बहुत बुरी तरह फंस गई थी। ’कुछ तो कमाल करना होगा तानी’, उसने खुद से कहा और बिल काउंटर के सामने लगी लम्बी लाइन में खड़े लोगों को गौर से देखने लगी। पांचवें नंबर पर एक लड़का खड़ा था। लम्बा, बॉडी बिल्डर टाइप का लड़का। तानी को उसकी शक्ल जानी पहचानी लगी। वो सोचने लगी कि इसको कहा देखा है। याद नहीं आ रहा था, इसलिए तानी ने एक ब्लफ खेला।

वो उस लड़के के पास गई और पूछने लगी, ’एक्सक्यूज़ मी। आप एनएम के स्टूडेंट हैं?’ तानी को उम्मीद नहीं थी, पर जब उस लड़के ने ’हाँ’ में सर हिलाया, तब तानी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने जल्दी से अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, ’हाय, मैं भी एनएम् में पढ़ती हूँ, सेकण्ड इयर, बीएससी।’ तानी को उम्मीद थी कि उधर से भी जवाब आएगा, पर लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि वो इस समय उसे प्रश्नवाचक आँखों से देख रहा था।

तानी ने सोचा ’बहुत अकडू लड़का है, ये तो उसकी मदद करने से रहा’। तानी फिर लाइन की तरफ देखने लगी। उसकी निगाहें जैसे ही लाइन के अगले हिस्से पर पड़ी, उसने देखा वो लड़का उसे अभी भी देख रहा था। तानी ने सोचा कोशिश करने में क्या बुराई है, अगर मान गया तो अच्छा है, वरना उसे कौन सा सूली चढ़ा देगा। चेहरे को बेचारा बनाकर और आँखों में प्रार्थना लेकर वो लड़के के करीब आई और एक ही सांस में बोल गई, ’देखिये, आज मुझे प्रोफ़ेसर शर्मा का असाइंमेंट जमा करना है। लास्ट डेट है और बिजली का बिल भी जमा करना है, क्योंकि उसकी भी लास्ट डेट है। असाइंमेंट जमा करने के लिए मेरा कालेज पहुंचना ज़रूरी है और वो तभी हो पाएगा, जब आप मेरी मदद करेंगे।’

तानी ने सोचा था कि इस भूमिका के बाद तो लड़का खुद ही पूछ लेगा, पर वो अभी भी उसकी और सवालिया आँखों से देख रहा था। तानी खीझ उठी। इसके जैसा अड़ियल और घमंडी लड़का उसने आजतक नहीं देखा था। मन ही मन दांत पीसकर, लेकिन होठों पर मुस्कराहट लाते हुए उसने याचना भरी आवाज़ में कहा, ’आप अपने बिल के साथ मेरा बिल भी जमा कर दीजिये, प्लीज़,प्लीज़,प्लीज़।’

लड़के ने इस बार बिना कुछ कहे उसके हाथ से पैसे और बिल ले लिया। अगला नंबर उसी का था। तानी किनारे खड़े होकर इंतज़ार करने लगी। बिल जमा हुआ तो उसने ’थैंक्स’ के साथ दो चार वाक्य कहे ही थे कि इस बार लड़का उसे बीच में ही रोककर बोल पड़ा, ’अब जल्दी से जाकर अपना असाइंमेंट जमा करो, वरना देर हो जायेगी।’

तानी आगे बढ़ने को हुई, फिर याद आया कि लगे हाथ इस लड़के का नाम भी पूछ लें। उसने नाम पूछा तो लड़के ने पहली बार मुस्कुराते हुए कहा, ’तुम एनएम में पढ़ती हो और मितेश को नहीं जानती? खैर मैं भी कालेज ही जा रहा हूँ, आओ तुम्हें छोड़ देता हूँ।’

तानी धर्मसंकट में थी कि उसके साथ जाए या नहीं, तभी वो लड़का बाइक लेकर आ गया। मजबूरी में तानी को उस पर बैठना पड़ा। रास्ते भर तानी और मितेश चुप रहे।

कालेज आया तो तानी ’थैंक यू’ कहकर उतर गई। उस दिन पूछने पर ही उसे पता लगा कि मितेश उसके कालेज में थर्ड इयर बी कॉम स्टूडेंट है, पर बहुत लोकप्रिय है। उसे पिछले साल मिस्टर हैण्डसम चुना गया था। इस साल भी उसी का चुनाव होगा, ये सुनकर तानी ने सोचा हैण्डसम चाहे जितना हो पर बेहद अकडू है, लेकिन जल्द ही तानी की ये धारणा गलत साबित हुई। कालेज की लाइब्रेरी से उसे मनचाही किताबें इशू करवाने में मितेश ने काफी मदद की।

धीरे-धीरे उनकी दोस्ती गहरी होती गई। मितेश तानी के इलाके में ही रहता था, अतः अक्सर वो उसी के साथ चली जाती। मितेश उससे कहता कि उसे तानी का भोला स्वभाव बहुत अच्छा लगता है। तानी सुनती और मुस्कुरा देती, हालांकि तानी के सुन्दर चेहरे और स्वाभाव की वजह से उसके कई दोस्त बन गए थे, फिर भी मितेश को वो अपने सबसे करीब पाती।

इम्तिहान के दिनों में तो मितेश ने उसे कई इम्पोर्टेन्ट नोट्स और प्रश्न भी लाकर दिए। किसी ने एक दूसरे से कुछ कहा नहीं था, पर मितेश और तानी एक दूसरे के साथ बहुत अच्छा महसूस करते। अगले साल दाखिले के व़क्त तानी बीमार हो गई, तब मितेश ने ही उसकी फीस भरी और फॉर्म जमा करवा दिया। तानी को लगता कि मितेश के होते हुए उसे किसी बात की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है।

घर के आर्थिक संकट को दूर करने के लिए अब तानी ट्यूशन देने लगी थी। जब मितेश को पता लगा, तब वो बहुत नाराज़ हुआ, पर तानी का कहना था कि ये मुश्किल कुछ समय बाद ख़त्म हो जाएगी।

थर्ड ईयर पूरा होते ही तानी ने एक नौकरी कर ली। अभी भी वो और मितेश रोज़ शाम को मिलते, घूमते-फिरते, काफी पीते। इसी बीच एक दिन मितेश ने तानी को कानों के झुमके देते हुए कहा, ’इसे पहना करो, तुम और भी अच्छी लगोगी।’ तानी हैरान थी, क्योंकि उसने इस तरह के लम्बे झुमके कभी पहने ही नहीं थे, पर मितेश कहने लगा, ’तुम मेरी पसंद हो और मेरी पसंद के हर एंगल, हर हिस्से पर मेरी छाप होनी चाहिए।’ ये कहते हुए मितेश ने वो झुमके खुद तानी को पहना दिए और उसके कानो पर चुम्बन अंकित कर दिया। तानी बहुत खुश थी। उसे यकीन था कि मितेश के साथ उसका जीवन बहुत सुन्दर होगा। वो मितेश को माँ से मिलवा चुकी थी। उन्हें भी तानी की पसंद पर नाज़ था।

सब बहुत अच्छा चल रहा था, पर तानी तब बहुत परेशान हो जाती, जब मितेश साऱी सीमाएं पार करने की कोशिश करता। उसे रोकने में तानी को न जाने कितना प्रयत्न करना पड़ता, कितना समझाना पड़ता। एक बार तानी को गुस्सा भी आ गया था। ये देख मितेश का स्वर तुरंत बदल गया था, और वो कहने लगा कि ’इसीलिए वो तानी को इतना प्यार करता है। वो सिर्फ तन से नहीं बल्कि मन से भी बहुत सुन्दर है। उसके आदर्श कितने अच्छे है,।’ ये सब सुनकर तानी का गुस्सा दूर हो गया। उसने मितेश को समझाया भी कि जिस तरह वो चाहता है, उस तरह वो लोग सिर्फ शादी के बाद ही मिलेंगे।

कुछ दिनों से तानी बार-बार बीमार हो रही थी। उसका वज़न भी अचानक बढ़ने लगा था। तब मितेश ने ही बार-बार कहकर उसके टेस्ट करवाए। पता लगा कि तानी थायरायड की बीमारी से ग्रस्त है। उसकी दवाएं चलने लगीं। घर में पहले ही पिता की बीमारी के कारण आर्थिक तंगी थी। तानी के इलाज ने और मुश्किल खड़ी कर दी।

तानी अपनी परेशानियों के अलावा एक और बात से भी परेशान थी। इधर उसे मितेश का स्वभाव बदला हुआ नज़र आ रहा था। वो उसके साथ रहता और सामने से कोई छरहरी लड़की गुज़रती, तो वो उसकी तारीफ़ करने लगता। तानी को उसकी आँखों में लालसा नज़र आती, पर वो खुद को ही झुठला देती कि मितेश ऐसा नहीं है।

एक दिन तानी मितेश के साथ फिल्म देखने जा रही थी। सिनेमा हाल में पार्किंग भर चुकी थी, इसलिए मितेश ने कुछ दूर स्थित एक दूसरे पार्किंग स्थल में अपनी बाइक जमा की। वापिसी में वो दोनों विंडो शॉपिंग करते हुए हाल की ओर आ रहे थे। तानी ने डिस्प्ले में लगी एक ड्रेस की सराहना की, तो मितेश ने कहा, ’ये तुम्हें कहाँ आएगी। ये एक्स्ट्रा लार्ज साइज़ की नहीं है बाबा। अपना साइज़ देखकर कपडे पसंद किया करो।’ तानी को अवाक् देख मितेश ने कहा कि ’वो तो सिर्फ मज़ाक कर रहा था।’ पर तानी ने बड़ी मुश्किल से अपने आंसुओं को छिपाया।

मितेश की सालगिरह पर तानी ने उसके लिए सरप्राइज़ पार्टी दी, जिसमें उसने मितेश के सभी दोस्तों को बुलाया। उसके मन में था कि वो इसे मितेश की यादगार सालगिरह बना देगी।

वो दिन बेशक यादगार बन गया, पर मितेश के लिए नहीं बल्कि तानी के लिए। पार्टी में कई बार मितेश ने तानी के मोटापे का मज़ाक उड़ाते हुए कुछ चुभने वाली बातें कह दी थी। लाख रोकने पर भी तानी फूट-फूटकर रो पड़ी। वहां आये मितेश के कुछ दोस्त उससे सहानुभूति जताने लगे और कुछ मितेश को डांटने लगे कि उसे किसी का इस तरह मज़ाक नहीं उड़ना चाहिए। इस सारे वाकये के दौरान तानी को अपनी हालत काफी हास्यास्पद लग रही थी। खुद को सँभालने के लिए वो बाथरूम में घुस गई।

कुछ देर बाद संयत होकर जब वो बाहर आई, तब मितेश के सभी दोस्त जा चुके थे। मितेश अकेला सोफे पर बैठा था और काफी नाराज़ लग रहा था। उसने तानी के बोलने से पहले ही अपनी नाराज़गी जतानी शुरू कर दी। उसका कहना था कि ’सालगिरह का दिन इस तरह बर्बाद करके तानी न जाने कब की दुश्मनी निकाल रही है।’ तानी ने जब कहा कि ’वो तो ऐसा सोच भी नहीं सकती क्योंकि वो मितेश से बेहद प्यार करती है और अब तक वो यही समझती थी कि मितेश भी उसे उतना ही चाहता है, पर शायद वो गलत थी, क्योंकि अगर मितेश उसे चाहता होता तो इस तरह सार्वजनिक रूप से उसका मज़ाक न उड़ाता।’

तानी ने सोचा कि उसकी इन बातों से मितेश का गुस्सा पिघलेगा और शायद वो माफ़ी भी मांग ले, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। तानी की बात सुनकर मितेश और भड़क गया। वो कहने लगा कि ’तानी को जब उसने पसंद किया था, तब वो कैसी दिखती थी और आज कैसी दिखती है, ये वो खुद आईने में देख सकती है। वो तो कालेज का मिस्टर हैण्डसम रहा है, जिस पर एक से एक सुन्दर लड़कियां जान देती थीं।’

ये सुनकर तानी फिर रो पड़ी। उसने कहा कि क्या मितेश को नही पता कि वो एक बीमारी से जूझ रही है, उसे तो उसका साथ देना चाहिए।’ इस पर मितेश और भड़क कर बोला, ’साथ उसका दिया जाता है, जो बराबर खड़ा हो सके। पहले हमारी जोड़ी दुनिया की अबसे सुन्दर जोड़ी मानी जाती थी, पर आज हमें साथ देखकर लोग मेरा ही मज़ाक उड़ाने लगे हैं। जानती हो तुमने तो मेरी और अपनी फोटो फेसबुक पर डालकर सोच लिया कि बहुत बड़ा काम कर दिया है, पर इससे मेरी कितनी फजीहत हुई है। कालेज में जिस टीना को मेरे साथ मिस ब्यूटीफुल चुना गया था, उसने फेसबुक पर मुझे कैसे कमेंट्स भेजे हैं। तुमसे कहा भी कि अपना वज़न किसी तरह मेंटेन करो, पर नहीं, तुम्हें तो बदसूरत दिखने का शौक है।’

अब तक बातें तानी की बर्दाश्त के बाहर हो चुकी थीं। वो उसी तरह रोती हुई घर वापिस लौट आई। लौटने के बाद मितेश का एक फोन तक नहीं आया। तानी को गुस्सा था, और मान भी, कि मितेश की गलती है वही उसे आकर मनाये।

पर दिन बीतते गए, मितेश नहीं आया। टूटी हुई तानी के मन को बहुत चोट लगी जब उसने सुना की मितेश आजकल किसी और के साथ घूमता है।

वो आज भी यही सोचती है कि क्या प्यार की सीमा सिर्फ शरीर तक होती है या वो मन भी देखता है। कई बार जब उसे मितेश बहुत याद आता है तो वो मन में कहीं पढ़ी हुई ये पंक्तियाँ दोहरा लेती है –

’जिस तट पर प्यास बुझाने से अपमान प्यास का होता है,                          उस तट पर प्यास बुझाने से प्यासा मर जाना बेहतर है।’

  • राजुल अशोक

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