सरस्वती वंदना

मुझे ऐसा वर दे मां
मैं तेरा ध्यान करूं
जब – जब तुझको ध्याऊं
नित – नूतन गीत रचूं।

मुझे ऐसा वर दे मां
मैं तेरा ध्यान करूं…..

हाथों में सजाकर थाल
कुमकुम – अक्षत लाऊं
दीया – बाती हाथ में ले
तेरी आरती गाऊं।

मस्तक पर टिकुली लाल
पड़ी गले वैजंती माल
दाएं वीणा सोहे
बाएं कर शंख विशाल।

जब भजन करूं तेरा
रस कानों में घुल जाए
तेरी सेवा करने से
मेरी किस्मत खुल जाए।

दिन-रात तुझे ध्याऊं
हर पल तुझको चाहूं
जब तेरा नाम जपूं
नतमस्तक हो जाऊं।

तेरी हंस सवारी है
तू सबसे प्यारी है
जो तेरी कृपा हो मां
लक्ष्मी भी हमारी हैं।

मेरी लेखनी को तू
कुछ ऐसा बल दे मां
जब कलम चलाऊं तो
तेरा आशीष पा जाऊं।

मुझे ऐसा वर दे मां
मैं तेरा ध्यान करूं
जब – जब तुझको ध्याऊं
नित – नूतन गीत रचूं।

बेटियों पर मुक्तक

बेटियां मां की दुआओं का ही फल होती हैं
बेटियां अपने इरादों की अटल होती हैं
सुनो उसका कभी यूं दिल तुम दुखाना ना
वो अपने बाबा के आंगन का कमल होती हैं।

बेटियां घर में जिनके हों तो घर, घराना है।
बेटियों से ही तो लोगो का आना जाना है।
बेटियों को बहुत ही प्यार – अदब से रखो
एक दिन निड से चिड़ियां को उड़के जाना है।

बेटियां मोम से भी नाज़ों कली होती हैं
उनका जो दिल दुखाओगे तो वली होती हैं
वो घर के राज़ को रखती है जिगर के भीतर
अपने मां – पा के कलेजे की अली होती हैं।

कविता – ” आभार तुम्हारा मित्रों ”

आभार,
आभार उन सभी जल कुकड़ों का
जिन्होंने हमेशा मुझे चर्चा में बनाए रखा।
ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर की टेबल
दफ़्तर के बंद केबिंस
मोबाइल कॉल्स और
चाय की चुस्कियां में मुझे जीवित रखा।
वरना कौन, किसे, कब…
कहां जगह देता
याद रखता है आजकल

इतना समय भी नहीं किसी के पास
किसी को याद किया जाए बारहां।

आभार,
कि तुमने गाहे-बगाहे
जाने-अनजाने
मेरी राह में कांटे बोए
कीचड़ फैलाया
और मुझे कमल सा खिलाया।

आभार,
कि तुम जलते रहे
पैदा करते रहे रुकावटें लगातार
पर मैंने भी कहां मानी हार।
बस ढिठाई से डटी रही
और जो चाहा वो पाया हर बार।

तुम्हारे चाहने से ही
सब नहीं होता और
न होगा इस दुनिया में
फिल्म तो हम सब की
पहले से ही तैयार है
बस जुटे हैं हम सभी
अपनी – अपनी भूमिकाओं को
निभाते हुए देखने में।

तुम कोई खुदा नहीं
एक नाम ही तो हो
या फ़िर कोई एक पद मात्र….
वो भी घिनौने षड्यंत्रों
दुष्ट चालों का
उठापटक… शतरंज की बिसात का।

जबरन मठाधीश बन बैठी
गुटबाज़ी-घेराबंदी की घिनौनी सोच का।

तुम्हारे करतब, तुम्हें मुबारक…
मेरी चाल
मेरा अंदाज
मेरा जायका
मेरी पहचान
मेरा स्वाभिमान….

फ़िर भी,
इस सब के बीच भी….
आभार….
आभार….
तुम्हारा आभार…
दिल से साभार मित्र….

जिन्होंने…
मुझे रचनात्मक बनाया
अपनी कमियों पर
पार पाना सिखाया
हर क्षेत्र में कुछ अभिनव
कर जाने का जज़्बा जगाया
सफ़लता को प्राप्त कर
शिखर तक पहुंचाया।

अनवरत यात्रा अभी जारी है
मेरी ये ज़िंदगी
दिल से आप सभी की आभारी है।

जिन्होंने….
मुझ में यह अहसास भरा
कि मैं भी रचनाधर्मी हूं
सृजनक्षम हूं मैं
सृष्टि रचना का एक कण मैं भी हूं।

रचना – ” रुठे हैं मनाए कौन

रुठे हैं मनाए कौन
हाल-ए-दिल बतलाए कौन
दर्द उसे है मुझको क्या
व्यर्थ में समय गवाएं कौन।

पांव फटी न मेरे बिवाई
पीर पराई अपनाए कौन

जिसको देखो वही खफा है
हंसकर हाथ बढ़ाएं कौन

ठंडी रातें कांप रही हैं
नंगे बदन ढकाए कौन

खुद के लिए तो हर कोई जीता
दूजे की भूख मिटाए कौन

100 से ऊपर बच्चे मर गए
अब घर आंगन चहकाए कौन

आस्तीन में सांप पल रहे
घर के भेद बताएं कौन

खट्टे अनुभव देते हमेशा
मीठी बात सुनाए कौन

आबरूए रोज़ लूट रही
नन्हीं कलियां खिलाए कौन

बलात्कारी खूले घूमते
इनको सजा दिलाए कौन

मंसूबे नापाक बहुत है
चेहरों से नकाब हटाए कौन

लेखक ही जब भांड हो गए
सच्चाई कह पाए कौन

ना काबिले बर्दाश्त हो सुनना
तो गीत, ग़ज़ल अब गाए कौन

सत्ताधारी मतांध हो गए
आईने बिकवाए कौन

सी ए ए को समझो पहले
रायता – बवाल मचाए कौन

हिंदू – मुस्लिम एक है जब सब
देशद्रोह के नारे लगाए कौन

दहशतगर्दी बढ़ती जाती
मां भारती को बचाए कौन।

मां भारती को बचाए कौन।

रुठे हैं मनाए कौन
हाल-ए-दिल बतलाए कौन
दर्द उसे है मुझको क्या
व्यर्थ में समय गवाएं कौन।

कविता – ” अपनी उजास “

थकान भरा दिन
लौट जाता है जब शाम को
तब भी एक उजास-सी
फैली होती है ढ़लान पर ।

सारी थकन दूर कर
‘शाम’ भरती है ऊर्जा पोर-पोर में ।

न जाने कब / कैसे ?
मेरी नन्हीं
अपनी उजास-
रखती रही शाम तक
और पहुँचने पर
धूप में सूखते तौलिये की तरह
लपेट लाती है मेरे भीतर ।

कविता – ” ये उन दिनों की बात है…. “

ये उन दिनों की बात है
जी हां ये उन दिनों की बात है
जब हम कभी ऐसे भी दिखते थे…

ये उन दिनों की बात है
जब लड़के वालों को
भेजी जाने वाली तस्वीर
केवल ‘ कमला नगर ‘ प्रेम स्टूडियो
से ही खिंचवाने की एकमात्र इच्छा
रखते थे हर लड़की के माता-पिता।

ये उन दिनों की बात है
जब अपने पूरे शबाब पर होता था हुस्न
जी हां ये उन्हीं दिनों की बात है
जब हम पर भी मरते थे
लड़के कई हजार
और पहुंचाते सहेलियों के हाथों
चिट्ठियां कई – कई बार।

जी हां ये उन दिनों की बात है
जब नया – नया शौक चढ़ा था हमें भी
क्रीम पाउडर लगाने का
पॉकेट मनी से कुछ पैसे बचाकर
पोंड्स क्रीम खरीद पाने का
फ़िर तबियत से पापा की डांट
” तेरी मां ने भी कभी लगाई है
तो तू क्यों इसे खरीद के लाई है…”
सुनकर सहम जाने का।

हां ये उन दिनों की बात है
जब होठों पर लिपस्टिक लगाने पर
शर्म से कहीं ज्यादा लगता था डर
पापा के सामने जाने का
कहीं क्रीम वाला किस्सा
फ़िर से न दोहरा दिया जाए
यही सोच – सोचकर घबराने का।

मुझे अच्छे से याद है
नौकरी लगने के बाद
ऑफिस के पहले दिन पर ही लगाई थी
वो हल्की सी गुलाबी रंग वाली लिपस्टिक
उससे पहले शायद ही
कभी – किसी, शादी – पार्टी में ।
आइब्रो तक बनवाई पहली बार
अपनी शादी के टाइम,
और इस लॉक डाउन टाइम में
वो भी संभव नहीं…

जी हां ये उन दिनों की बात है
एक अद्भुत नॉस्टैल्जिया
जब हमारे लिए भी लड़के
काट देते थे अपने हाथ की नसें
और लिखते लव लेटर उसी खून से।

जी हां ये उन दिनों की बात है
जब हमारे घर से निकलते ही
उन गलियों – मोहल्लों की सड़कों में
लग जाती थी भीड़
एक झलक पाने को
हुस्न – ए – दीदार – ए – यार।
तब नहीं होती थी टेंशन डाइटिंग की
एक रोटी ज्यादा खा लेने की।

जी हां ये उन दिनों की बात है
जब फैशन था मल्टीकलर कढ़ाई वाले
एकमात्र ब्लैक ब्लाउज का
जो जरूरत पड़ने पर
स्पेशली लड़के वालों के आने पर
साड़ी ही पहनने की भारी मांग के चलते
चस्पा दिया जाता हर साड़ी के साथ
एकदम मैचिंग कर रहा है, बोलकर।

जी हां ये उन्हीं दिनों की बात है
जब मूछें रखना भी
हुआ करता था एक फैशन
अजय देवगन की तरह
चेहरे पर जुल्फे गिराना और
” कहता है तुमसे पल – पल
हो के दिल ये दीवाना
एक पल भी जाने जाना
मुझसे दूर नहीं जाना
प्यार किया तो निभाना
प्यार किया तो निभाना “
वाला गाना हर पल गुनगुनाना।

जी हां ये उन दिनों की बात जब…
” एकदम ममता कुलकर्णी लगती हो तुम “
जैसे कमेंट सुनकर भी
ख़ुद पर कभी न इतराते हुए
हरदम बस यही गुनगुनाना
” किसी के इश्क में खुद को मिटा लूं
हूं उ, हूं उ, हूं…. ढम ढम….
हो नहीं सकता, हो नहीं सकता “
के बावजूद इश्क में पड़ना
मर मिटने की कसमें खाना
फ़िर उन्हीं संग परिणय सूत्र में बंधकर
किया वादा निभाना।

जी हां ये उन दिनों की बात थी
और ये इन दिनों की बात है
जब इस लॉक डाउन में भी
ये हमारा, एक बहुत ही प्यारा – राजदुलारा
हंसता – खेलता – गाता – गुनगुनाता
हरदम नाचता – खिलखिलाता
हरफनमौला परिवार है।

हां मैं – तुम – हम
हमारा प्यार भरा संसार है।

जी हां… ये उन दिनों की बात थी
और ये इन दिनों की बात….

कविता – ” सच्ची देशभक्ति निभाना “

सुनो
यही वक्त है
सच्ची देशभक्ति निभाना
घर से मत निकलना
घर ही में रहना
बाहर न जाना।

भले मुंह चिढ़ाए तुम्हें
कमरे में पसरा घनघोर सन्नाटा बिस्तर बार-बार दे दुहाई
उठो, जाओ ना बाहर भाई।
कमरे की दीवारें, छतें, रोशनदान सब के सब बात करना कर दें बंद
भले लॉक डाउन से ठीक
एक दिन पहले सरोजनी नगर से खरीदी वो ढिंचेक ड्रेस
उकसाए तुम्हें बार-बार
कहे मैचिंग के सैंडल पहन के
चलो हो जाओ तैयार
नाइट क्लब में थिरकाने को कदम
लेकिन तुम उसे साफ – साफ
कर देना इंकार
फ़िर भी तुम
सच्ची देशभक्ति
जरूर निभाना यार
घर से मत निकलना
घर ही में रहना
बाहर न जाना।

भले बोर हो रहे हो तुम घर में
थक गए हो घर के ढेर सारे
काम करते
लेकिन हर 20 सेकेंड में हाथधोना
गिव अप ना करना
भीड़ का हिस्सा न बनना पुलिसकर्मी डॉक्टर सेवा कर्मियों का आभार अर्पण करना
मास्क और सैनिटाइजर के उपयोग को बढ़ाना
सुनो
फिर भी तुम
सच्ची देशभक्ति निभाना
घर से मत निकलना
घर ही में रहना
बाहर न जाना।

भले मन भर गया हो
पढ़-पढ़ कर किताबें बेहिसाब गला रूंधने तक गा – गाकर
गाने कई हजार।
खुद से खुद का
परिचय कराती
टिक टॉक पर बना – बनाकर
फनी वीडियोस कई बार।
सांस फूलने तक
नाच – नाचकर घुटने
दे गए हो जवाब।
सभी टीवी चैनलों पर
कोरोना वायरस महामारी के
सुन – सुनकर समाचार,
थक गया हो मस्तिष्क
लिख – लिखकर कविताएं और लेख कई हजार।
भले इस लॉक डाउन
की फुर्सत में कर लो
विभिन्न विधाओं में
पुस्तकों की सामग्री तैयार
सुनो
फ़िर भी तुम
सच्ची देशभक्ति निभाना
घर से मत निकलना
घर ही में रहना
बाहर न जाना।

भले न मिल रही हो
तुम्हें बैड टी
इस लॉक डाउन में,
अदरक, तुलसा जी, लोंग, इलाइची की खुशबू सी
पानी में देर तक
उबलती चाय की चुस्की,
नमक – मिर्च के देसी घी लगे पराठे पर मां के
हाथों का जायका,
ना चख रही हो ज़बान
इन दिनों मट्ठी, पापड़
और अचार का स्वाद
फ़िर भी,
सुनो
फ़िर भी तुम
सच्ची देशभक्ति निभाना
घर से मत निकलना
घर ही में रहना
बाहर न जाना।

क्यों – क्या हुआ
जो बंद कर दिया
कढ़ाई, चम्मच, करछुल,
पतीला, परात ने
तुमसे ढेर सारा बतियाना,
गाना – गुनगुनाना
नल की धार पर
ढेर सारे बर्तन धोते जाना,
रसोई से कुकर की
सीटी का तराना
कढ़ाई में हींग और जीरे के
छोंक की खुशबू का
घर भर में महक जाना
बच्चों की धमाचौकड़ी और
जान, जानेमन, जाने बहार
का प्यार भरा अफसाना
चाहे जिस किसी को भी
पड़ जाए इस बार मनाना
लेकिन सुनो,
सुनो
फ़िर भी तुम
सच्ची देशभक्ति निभाना
घर से मत निकलना
घर ही में रहना
बाहर न जाना।

भले अब छतों से
टपकती हुई धूप
नहीं आती हो
घर के भीतर
सीलन भरे कमरों में,
फिर भी तुम अपने
सर का दर्द मत बढ़ाना, समय-समय पर
डॉक्टर द्वारा दी गई
सभी हिदायत – दवाइयों को
सही समय पर खाना,
बेहद घनी, डरावनी
होती आइब्रो
और जरूरत से ज्यादा
बढ़ते बालों को
अभी कुछ दिन
और छोड़ो कटाना,
घंटों रसोई में खाना बनाते हुए असहनीय कमर के
दर्द को सहते हुए
मालिश वाली को
याद मत करना
खुद से ही खुद की
कमर दबाना और
बेल्ट बांध फिर से
खड़े होकर पूरे परिवार
के लिए भोजन बनाना,
सुनो
फ़िर भी तुम
सच्ची देशभक्ति निभाना
घर से मत निकलना
घर ही में रहना
बाहर न जाना।

क्या हुआ जो
सब्जियां काटते हुए
दे दी कई निशानियां
चाकूओं ने मोहब्बत की
उंगलियों पर,
क्या हुआ जो
पूरी – पकोड़े बनाते हुए
मिल गए कुछ छाले
इस लॉक डाउन में,
क्या हुआ जो मन भर
आटा गूंधते – गूंधते
उंगलियां चटकने
लगी है अब
फिर भी तुम
मोर्चे पर डटे रहना
जैसे डटा रहता है
वह वीर जवान – सिपाही
अपने देश की सरहद पर
घात लगाए दुश्मन से
अपनी मातृभूमि की
रक्षा के लिए
आज वही रक्षा कवच
तो बनना है तुम्हें
तुम्हें खुद भी संभलना है,
दूसरे को भी संभालना है
एक दूसरे का
मनोबल बढ़ाना है
परिवार में सुख – शांति
बनाना है,
पति की जाती हुई
नौकरी में भी
उसे अपने होने का
एहसास कराना है,
हम दोनों मिलकर
दुनिया जीत लेंगे
यही उन्हें प्रेमपूर्वक
समझाना है।
तुम तो अन्नपूर्णा हो
खाली भंडार भी भर दोगी
बस इस समय
यही कोशिश करो
मान मनुहार या डिफेंड करो
लेकिन वादा करो कि
घर से किसी को भी
नहीं निकलने दोगी
विश्व में जितनी भी जंग हुई
सब औरतों और बच्चों
ने ही जीती,
यह जग भी तुम्हें
परिवार के साथ मिलकर
पूरे राष्ट्र को जितानी है
चाहे कहीं से भी
आया हो कोरोना लेकिन
उसकी वापसी
भारत से ही करानी है
उसकी वापसी
भारत से ही करानी है,
उसकी वापसी
भारत से ही करानी है।

फिर भी सुनो,
जब तक ये लॉक डाउन है
तब तक तो
सच्ची देशभक्ति निभाना
घर से मत निकलना
घर ही में रहना
बाहर ना जाना
हमें कोराना को है
इंडिया से भगाना
सब को एकजुट होकर
राष्ट्र को है बचाना
घर में टिकेगा इंडिया
तभी तो बचेगा इंडिया

(और अब,जब लॉक डाउन खुल गया है तो मैैं कहती हूं..)

हमें अब जन – जन को है समझाना
मास्क – सेनेटाइजर के प्रयोग को है बढ़ाना
डिस्टेंसिग का है सबको याद कराना
स्वच्छता के मूल मंत्र को है अपनाना।
जहां से भी आया हो ये मुआ कोरोना
इंडिया से ही है इसको मार – मारकर भगाना।
हमें स्वदेशी को है अपनाना
भारत को है आत्मनिर्भर बनाना।

सुनो
यही वक्त है
सच्ची देशभक्ति निभाना
हमें स्वदेशी को है अपनाना
भारत को है आत्मनिर्भर बनाना।

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