शायर : अबरार लखनवी
यकीं जब अपने ही करना छोड़ दें तो ये समझ लेना
यकीनन देर कर दी है संभलने में ये समझ लेना
गिला तक़दीर से करते हो कैसे ना समझ हो तुम
जहां करनी थीं तादबी रें वहां ना की समझ लेना
क्यूं औरों के भरोसे पे उठाए हो ये बीड़ा तुम
निकाल जाएगा जल्दी हाथ से सब कुछ समझ लेना
जो सोचो अभी तो वक्त है करलेंगे ऐसी क्या जल्दी
ज़रा सी दर में ढल जाएगा दिन ये समझ लेना
भरोसा जब नहीं अपनेही कंधों पर तुम्हें अबरार
कोई कंधा नहीं देगा तुम्हें बस ये समझ लेना
जो भी इंसान सियासत में दख़ल रखते हैं
कैसे जज़्बात से खेलें ये हुनर रखते हैं
चाहे जितनी भी हो मिठास उनके लेहजों में
अपने सीनों में वो भर पुर जहर रखते हैं
मरे कितने ये खबर उनको भले हो ना हो
मारा किसने है उन्हें ये तो खबर रखते हैं
सच फटकता ही नहीं उनके आस पास कभी
झूट कहने में वो मज़बूत जिगर रखते हैं
घुप अंधेरों में पहुंचा दिया सबको अबरार
अपनी आंखों में वो क्या खूब सहर रखते हैं
देखे जो ख़्वाब कभी हम ने ज़िन्दगी के लिए
सख़्त तर हो गए हालात ज़िन्दगी के लिए
ख़ुद मेरा शौक़ ए परस्तीश ही गवाही देगा
कोई सनम भी हो उस जैसा बंदगी के लिए
होके रुसवा वो बड़ा खुश दिखाई देता है
ज़मीर भी तो हो कुछ शर्मिंदगी के किए
भटक रहे हैं इधर को कभी उधर को हम
कोई शगल ही नहीं है पाबांदगी के लिए
वो देखते भी नहीं मुड के अब मुझे अबरार
लुटाय बैठे हैं सब जिनकी ज़िन्दगी के लिए