आत्मकथा : मेरे घर आना ज़िन्दगी (32)
किसी से मिलना बातें करना,बातें करना अच्छा लगता है। लेकिन ज़िंदगी इतनी आसान कहाँ! वह तो वीराने में फैला हुआ ऐसा रेगिस्तान है जहाँ रेत के सारे टीले एक से दिखते हैं। और किस्मत में भी बंजारापन । जब देखो बिच्छू का डेरा पीठ पर। योगेश जोशी को घर बेचना था। इत्तफाक से उसी बिल्डिंग की पहली मंजिल पर मुझे टेरेस फ्लैट मिल गया। दो बड़े-बड़े टेरेस एक हॉल से लगा हुआ दूसरा रसोईघर से। फ्लैट मुझे पसंद आया।
विभिन्न शहरों से मुम्बई आने वाले मुझसे ज़रूर संपर्क करते,मिलने की इच्छा प्रगट करते।मैं उनके सम्मान में घर में गोष्ठी भी आयोजित करती और अपनी सखी सहेलियों को भी बुलाती ।सभी कहते “संतोष, तुम्हारा घर तो भैरव बाबा का मंदिर है ।जैसे बनारस जाओ तो बाबा विश्वनाथ के दर्शन तभी संपूर्ण कहलाते हैं जब भैरो बाबा के भी दर्शन कर लो। इसी तरह जो भी मुम्बई आता है वह जब तक संतोष के घर नहीं आ जाता तब तक उसकी मुम्बई यात्रा पूर्ण नहीं होती।”
हरनोट जी पत्नी सहित आए। श्रीहरि अक्षत आए। विकेश निझावन जी बेटे अरुण के साथ आए। उन्हें सारथी साहित्य सम्मान दिया जाना था लेकिन उनके साथ पुरस्कार की आयोजक लता सिन्हा और सुशील योगी ने धोखा किया ।धोखा उन दोनों ने मेरे साथ भी किया ।विकेश जी को रुकवाने के लिए उन दोनों ने अंधेरी स्थित सुभाष होटल में एक कमरा मेरे नाम से बुक करा लिया। सुभाष होटल का मालिक मुझे इस तरह पहचानता था कि मैं हेमंत फाउंडेशन के पुरस्कार समारोह में आमंत्रित किए गए अतिथियों को उसी में रुकवाती थी। विकेश जी 2 दिन होटल में रुके। जिसका किराया खाना पीना सब मुझे भरना पड़ा ।न जाने लता सिन्हा और सुशील योगी ने ऐसा क्यों किया।
विकेश जी बेहद अपसेट थे ।मैंने उनका कहानी पाठ अपने घर में रखा और मुंबई घूमने के लिए उन्हें टैक्सी अरेंज करके दी ।
इस घटना का मेरे ऊपर गहरा असर हुआ था। क्योंकि विकेश जी मेरे ही कहने पर पुरस्कार लेने को राजी हुए थे। अब उन्हें खाली हाथ अंबाला लौटना पड़ रहा था। एक साहित्यकार के लिए इससे अपमानजनक स्थिति और क्या हो सकती है। मैं लता सिन्हा और सुशील योगी को कभी माफ नहीं करूंगी।
मेरा चौथा कथा संग्रह “आसमानी आंखों का मौसम” नमन प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित होकर आ गया था। मुंबई में उसका लोकार्पण रविंद्र कात्यायन जी के कॉलेज से प्रेम भारद्वाज के हाथों हुआ ।प्रकाशक नितिन गर्ग भी दिल्ली से आए ।इस बात से जयप्रकाश मानस बहुत नाराज हुए कि आप इतनी सीनियर राइटर और अपने से जूनियर लेखक प्रेम भारद्वाज से लोकार्पण करा रही हैं। उन्होंने सुमीता से भी यह बात कही। वे सभी लेखकों की पुस्तकों के प्रकाशन, लोकार्पण ,पुरस्कार, जन्मदिन और दिवंगत होने की खबरें फेसबुक पर लगाया करते हैं ।लेकिन मेरी पुस्तक के लोकार्पण की खबर उन्होंने नहीं लगाई और मुझे फेसबुक पर ब्लॉक भी कर दिया । अब प्रेम भारद्वाज इस दुनिया में नहीं हैं। कितना कुछ उनसे सम्बंधित याद आ रहा है।
शुरुआत के वर्षों में दिल्ली से गुजरते हुए कुछ दिन रुकते हुए बहुत चाह कर भी प्रेम भारद्वाज से मिलना नहीं हो पाया ।हालांकि पाखी में उन्होंने मेरा यात्रा संस्मरण और एक कहानी भी छापी।
फिर एक दिन अचानक रात 9:00 बजे उनका फोन आया
” कैसे सह पाईं इतनी पीड़ा ,हादसे। कैसे चेहरे पर मुस्कुराहट बनाए रखती हो ।”उस दिन मैंने जाना कि यह व्यक्ति अंदर से कितना खोखला निराश है । पत्नी की असमय मृत्यु, आर्थिक संकट के रहते दिल्ली जैसे महानगर में जीवन यापन करना कोई मामूली बात नहीं। फिर तो रोज रात 9:00 बजे से 11:00 बजे तक हम फोन पर बतियाते ।पाखी के जुनून को लेकर वे इस दुरावस्था में भी रात दिन उसे निकालते रहने की जहमत उठाए रखते ।बातें करते करते कभी गैस पर दूध रख कर भूल जाते ।पूरा दूध जल जाता। 11:00 बजे फोन रखते ही तुरंत फिर कॉल करते।
” दूध जल गया पूरा । पैंदे से चिपक गया । दूध पीकर ही पाखी के प्रूफ पढने वाला था।”
“क्यों आज से शराब को अलविदा कह दिया क्या,”हम देर तक हँसते रहे थे।
फिर अचानक पाखी से उन्होंने इस्तीफा दे दिया और अपनी स्वतंत्र पत्रिका भवन्ती निकालने की योजना पर काम करना शुरू किया।
साल भर से वे कैंसर से अहमदाबाद के अस्पताल में जूझ रहे थे ।पता नहीं ठीक हुआ कि नहीं। लेकिन फिर दिल्ली आकर भवंति पत्रिका का प्रकाशन ,लोकार्पण भी किया और दूसरे अंक की तैयारियों में जुट गए। मैंने कहा “अंक तो भिजवाईए।”
बोले “भोपाल आने का प्लान कर रहा हूं ।लेता आऊंगा ।लेकिन फिर ब्रेन हेमरेज ,कोमा में चले जाना और कोमा में ही दुनिया को अलविदा कहना। उन्होंने जीना चाहा ही नहीं। शराब ने, सिगरेट ने उन्हें पीलिया निचोड़ लिया। वे उस कड़ी के आखिरी व्यक्ति थे जो आर्थिक संकट और सामाजिक बहिष्कार के बावजूद कभी अपने पद से नहीं डिगे।
कांदिवली में रहते हुए बाहर के सभी लेखकों ने मुझे बहुत अधिक रिस्पांस दिया ।दिल्ली से हरिसुमन बिष्ट, सिलीगुड़ी से रंजना श्रीवास्तव, भोपाल से स्वाति तिवारी , बनारस से श्री हरि वाणी ,पटना से मीरा श्रीवास्तव अनुराधा सिंह मेरे घर आई ।अहमदाबाद से रजनी मोरवाल आई जिन्होंने मेरा साक्षात्कार भी लिया जिसे पंकज त्रिवेदी ने अपनी पत्रिका विश्वगाथा में छापा। मराठी की नंदिनी आत्मसिद्धा ने साक्षात्कार लिया जो मराठी की पत्रिका ललित में प्रकाशित हुआ।
23 मई को हेमंत के जन्मदिन पर सब घर में इकट्ठा हुए ।धीरेंद्र अस्थाना, ललिता अस्थाना, खन्ना मुजफ्फरपुरी, सूरज प्रकाश ,अमर त्रिपाठी, महेश दुबे, कैलाश सेंगर, मुकेश गौतम, सुभाष काबरा और सुमीता सहित विश्व मैत्री मंच के सभी सदस्य।
वह शाम हेमंत की कविताओं से शुरू होकर कहानी पाठ, कविता पाठ ,व्यंग्य, गीत ग़ज़ल पर समाप्त हुई। उस फ्लैट में वह आखिरी गोष्ठी थी। मुंबई में मैं और अधिक नहीं टिक पाई। हालांकि लेखकों के जमावड़े से घर रौनक लबरेज रहता पर इस सिलसिले को जल्द टूट जाना था।
क्रमशः