बाल कहानी : सुजय सर – अलका प्रमोद
सुजय सर
गणित की कक्षा थी। सुजय सर ने कक्षा में आते ही ब्लैकबोर्ड पर कुछ सवाल लिखो और आरव से बोले ‘आरव तुम यह सवाल हल करोगे।’
आरव सोच रहा था कि पता नहीं क्यों सर हमेशा उसे ही सवाल हल करने लिये बुलाते हैं और सजा देते हैं । उसे विश्वास हो गया था कि सर उससे चिढ़ते हैं तभी उससे रोज सवाल हल करने को कहते हैं फिर डाँटते हैं।
आरव को न तो गणित अच्छी लगती है न सुजय सर। अब क्या हो सकता था एसर ने कहा है तो सवाल हल करने ही पड़ेंगे नही तो उसे मुर्गा बना दिया जाएगा। आरव को घबराहट में पसीना आने लगा।
सवाल में तीन अंकों की संख्या को तेरह से गुणा करना था।आरव को तेरह की टेबल याद ही नहीं थी। वह सिर झुका कर खड़ा हो गया।यह देख कर सर ने उसे बहुत डाँटा और मनुज से सवाल हल करने को कहा।
मनुज ने आते ही दो मिनट में सवाल हल कर दिया। सर ने मनुज की पीठ थपथपाते हुए कहा ‘शाबाश’ आज तुमको कक्षा समाप्त होने के बाद मैं एक चाकलेट दूँगा। ष्ष्
यह सुन कर आरव चिढ़ गया। उसे मन ही मन विश्वास हो गया कि सर उससे चिढ़ते हैं इसीलिये उसे कठिन सवाल हल करने को दिया। यह मनुज तो सर का चमचा है । उसने एक आसान सा सवाल क्या हल कर दिया उसे चाकलेट भी देंगे और तारीफ भी कर रहे हैं।
सर ने आरव से कहा ‘ कल कक्षा में आते ही मैं तुमसे तेरह का टेबल सुनूंगा।’
घर जा कर वह भूल ही गया कि उसे टेबल याद करनी थी। दूसरे दिन जब स्कूल आ रहा था तब उसे याद आया कि आज तो सर उससे टेबल सुनेंगे। यह सोच कर वह काँप उठा कि आज उसको सुजय सर को टेबल सुनाना है।
वह मन ही मन मनाने लगा ‘ हे भगवान आज सुजय सर बीमार पड़ जायें या उनके चोट लग जाये और वह स्कूल नहीं आयें।’
कक्षा में क्लास टीचर ने बताया ‘बच्चो आज से एक महीने बाद सामान्य ज्ञानए हिन्दी एअंग्रेजी और गणित की एक परीक्षा होगी। उसमें जो बच्चे सभी विषयों में नब्बे प्रतिशत से अधिक अंक लाएंगे उन्हे आँचलिक विज्ञान केन्द्र में होने वाली प्रदर्शनी में जाने का अवसर मिलेगा तथा वहीं पर राज्यपाल महोदय के द्वारा पुरस्कार मिलेंगे।’
सभी बच्चे तैयारी में लग गये। आरव को सामान्य.ज्ञानए हिन्दी और अंग्रेजी तो बहुत अच्छी तरह आता था पर गणित से वह सदा ही भागता रहा है। वह सोच रहा था कि काश, उसने गणित में मन लगा कर अभ्यास किया होता तो वह भी पुरस्कार पा सकता था ।
स्कूल से छुट्टी होने पर जब वह कक्षा से बाहर निकला तो सुजय सर मिल गये । उन्होने उसे शिक्षक कक्ष में बुलाया।अब तो आरव समझ गया कि वह उसे उपदेश पिलाएंगे । वह उसे नीचा दिखाने के लिये ही बुला रहे होंगे।
आरव जब सर के पास गया तो उन्होने कहा ‘ आरव तुम्हे एक महीनें बाद होने वाली प्रतियोगिता के बारे में तो पता ही है।’
आरव ने मन ही मन गुस्सा होते हुए कहा ‘जी सर पता है। मुझे यह भी पता है कि मैं गणित में अच्छे अंक नहीं ला पाऊँगा।’
सर ने कहा ‘अरे यह तुमने क्यों सोचा ‘
‘सर आप ही तो मुझे गणित की क्लास में हमेशा डाँटते हैं ‘आरव ने कहा।
सर बोले ‘हाँ मैं तुम्हे डाँटता हूँ क्योंकि तुम गलती करते हो और मैं चाहता हूँ कि तुम गणित सीखो। ‘
आरव ने कहा ‘ पर मुझे गणित नहीं आती।’
सर ने समझाया ‘मेहनत करके सब सीखा जा सकता है। तुम बाकी विषयों में इतने अच्छे अंक लाते हो तो मैं चाहता हूँ तुम भी पुरस्कार पाओ।’
यह सुन कर आरव ने दुखी होते हुए कहा ‘पर सर अब तो इतने कम दिन बचे हैं। अब कुछ नहीं हो सकता।’
सर ने जो कहा उस पर आरव को विश्वास नहीं हुआ। सर बोले ‘आज से रोज स्कूल की छुट्टी के बाद मैं तुम्हे अलग से गणित पढ़ाऊँगा, मुझे विश्वास है कि तुम गणित में अन्य विषयों की तरह होशियार हो जाओगे।’
सर रोज उसे गणित पढ़ाने लगे। एक माह में वह फटाफट सारे सवाल हल करने लगा। अब उसे गणित से डर भी नहीं लगता था। जब प्रतियोगिता के लिये परीक्षा हुई तो सान्वी बोली ‘आरव तुम्हारे बाकी पेपर तो अच्छे हुए होंगे पर गणित में तुम्हारे नब्बे प्रतिशत से ऊपर अंक आने मुश्किल हैं।’
आरव मुस्करा कर रह गया। जब परिणाम आया तो आरव के अंक सबसे अधिक थे। उसे हिन्दी अंग्रेजी और सामान्य ज्ञानए में तो नब्बे से अधिक अंक मिले ही थे पर गणित में पूरे सौ में सौ अंक मिले थे। सभी आश्चर्य कर रहे थे कि आरव को गणित में इतने अंक कैसे मिल गये। आरव दौड़ता हुआ सुजय सर के पास गया और बोला ‘सर मुझे गणित में सौ अंक मिले हैं।’
सर ने उसकी पीठ थपथपा कर कहा ‘शाबास।’
आरव ने कहा ‘ सर मुझे आप से सॉरी बोलना है।’
सर ने आश्चर्य से पूछा ‘ क्यों ‘
‘सर जब आप मुझे क्लास में डाँटते थे तो मैं आपसे गुस्सा रहता था। मैंने भगवान से आपके बीमार होने के लिये प्रार्थना की थी। पर आप तो बहुत अच्छे हैं। कहीं भगवान जी आपको बीमार न कर दें।’ कहते.कहते आरव रोने लगा।
सर ने उसे प्यार करते हुए कहा ‘ तुम चिंता मत करोए भगवान जी कभी गलत नहीं करते हैं। मैं बहुत खुश हूँ क्योंकि तुम गणित में तो अच्छे हो हीए उससे भी अच्छी बात है कि तुमने एक सच्चे बहादुर बच्चे की तरह अपनी गलती को माना और बताया ।’
सर ने आरव को एक चाकलेट दी । आज से सुजय सर उसके सबसे फेवरेट सर बन गये थे।
बहुत ही सुंदर कहानी मेरी बेटी को बहुत ही पसंद आया