धारावाहिक उपन्यास भाग 14 : सुलगते ज्वालामुखी
धारावाहिक उपन्यास
सुलगते ज्वालामुखी
लेखिका – डॉ अर्चना प्रकाश
सन्तान ऐसी धुरी है जिसके चारों ओर मानव जीवन की परिधि है।
जब तक औलाद जन्म नहीं लेती व्यक्ति का दृष्टिकोण गगन चुम्बी होता
है, चा°द छूने और बादलों को पकड़ने की उड़ाने उठती हैं। लेकिन सप्तपदी
व सन्तान प्राप्ति के बाद पुराने नजरिये हवाई किलों की तरह ध्वस्त हो जाते
हैं। डा. सुनीता भी लगभग इसी हाल में थीं। प्रेम की क्रूरतम नियति उनसे
ज्यादा कौन जान सकता था। विजया को वो ऐसी नियति से इस तरह दूर
रखना चाहतीं थी कि सा°प भी मरे और लाठी भी न टूटे।
डा. सुनीता के दिल का टुकड़ा विजया अब एम.बी.बी.एस. फाइनल
में थी। विजया के साथ रहने के लिए ही डा. सुनीता ने लाजपत नगर
दिल्ली में तीन कमरों का एक फ्लैट खरीद लिया और डा. चित्रा व पापा
आशीष को भी वे दिल्ली ले आई। हफ्ते में एकबार जाकर वे लखनऊ में
नर्सिंग होम की कार्यशैली पर निगरानी रखती व दिशा निर्देश देतीं।
‘‘बेटा तू तो देख ही रही है कि मेरे मम्मी पापा की बीमारी दिनों दिन
बढ़ती ही जा रही है। ऐसे में उनकी एक ही ख़्वाहिश है कि उनकी नातिन
की शादी उसकी आ°खों के सामने हो जाये।’’ सुनीता ने कहा।
‘‘माम! ये मेरा कैरियर का समय है। पहले कुछ बन जाऊ° तब इस
विषय पर बात करेंगे।’’ विजया ने प्रत्युत्तर दिया।
‘‘तेरे नानू और नानी बड़ी उम्मीदों से तेरी ओर देखते हैं। कम से कम
तेरी विवाह की खुशी तो हम उन्हंे दे ही सकते हैं।’’ सुनीता ने बेटी को
समझाया।
‘‘उन्हें खुश करने के लिए मैं अपने कैरियर से समझौता नहीं कर
सकती मां! विजया ने डा. सुनीता को निरुत्तर कर दिया।
वेदना व संवेदना के आवेश में डा. आशीष को ऐसा हार्ट अटैक पड़ कि वे बच न सके। सफलतम व्यक्तियों को भी दुर्भाग्य ढूढ़ ही लेता है और दबे पा°व आकर दबोच भी लेता है। डा. चित्रा गम्भीर अस्थमा की वजह से आक्सीजन सिलेन्डर पर रहने के लिए विवश थी।
डा. विजया अपने सहपाठी डा. रोहित के साथ घर आई तो हृष्ट पुष्ट व सुदर्शन कद काठी के रोहित सुनीता को अच्छे लगे। वे बेटी से बोली-
‘‘बेटा! रोहित के साथ तेरा क्या चल रहा है? मुझे भी तो बता न!’’
‘‘ममा! क्या आप कहीं भी शुरू हो जाते हो। प्लीज भरोसा रखो मुझ पर। रोहित मुझे नोट्स बनाकर देता है और मेरे साथ कम्बाइन्ड स्टडी भी करता है।’’
लगभग एक माह बाद फाइनल परीक्षाएं हुई और विजया मेरिट से उत्तीर्ण हुई। डा. रोहित ने ही उसे मौलाना आजाद मेडिकल कालेज दिल्ली में जच्चा बच्चा व प्रसूति विशेषज्ञ में चयनित कराने के लिए अथक परिश्रम किया। जिससे विजया की पी.जी. की पढ़ाई भी शुरू हो गई। डा.रोहित के व्यवहार व मेलजोल से सुनीता को पूर्ण विश्वास हो चुका था कि रोहित विजया को प्रेम करता है।
एक शाम विजया ओ.पी.डी. में व्यस्त थी तभी रोहित उससे मिलने आया तो सुनीता उसे ड्राइंग रूप में ले गई। पढ़ाई लिखाई की बातों से बात चीत विजया की ओर मुड़ गई।
‘‘विजया तुम्हें कैसी लगती है रोहित?’’ डा. सुनीता ने पूछा ‘‘यस मैम! विजया मुझे बहुत अच्छी लगती है लेकिन उसके मन में क्या है मैं नहीं जानता’’, रोहित ने कहा।
‘‘इस दोस्ती को रिश्ते का नाम देना चाहोगे?’’ सुनीता ने पूछा।
‘‘कभी तो विजया निरे अजनबीपन से बाते करती है, कभी लगता है जैसे हमारा सात जन्मों का साथ है। ऐसे में क्या कहू°?’’ रोहित मायूसी में बोले।
‘‘थोड़ा सब्र से काम लो! मैं तुम्हें मदद करू°गी बस कभी कभी मुझसे मिलते रहा करो।’’ सुनीता ने कहा।
‘‘जी मैम!’’ डा. रोहित प्रसन्नता से खिल उठे।
दो दिन बाद ही रोहित डा. सुनीता के पास फिर आ गये। उसे देखते ही सुनीता मुस्कराते हुए बोली ‘‘क्या तुमने विजया से अपना प्यार जताया कभी? नो मैम! कैसे करू° ये सब,’’ डा. रोहित ने पूछा।
‘‘प्यार जताने के लिए रोमांटिक व भाव भीने उपहार दिये जाते हैं’’ सुनीता ने समझाया।
‘‘नो मैम! मैंने उसे कभी कोई गिफ्ट नहीं दिया और ना ही कभी शब्दों से अपने दिल की बात कही’’, रोहित बोले।
‘‘फिर कैसे कहते हो कि तुम्हें विजया से प्यार है?’’ डा. सुनीता ने पूछा।
‘‘आंटी! मैं आज ही से आपके गुरु मंत्र पर अमल करू°गा और जल्दी ही आपसे मिलू°गा भी।’’ रोहित चला गया और डा. सुनीता अकेले ही कमरे में विजया के सुखद भविष्य के सपने संजोने लगी।
क्रमशः