धारावाहिक उपन्यास भाग 15 : सुलगते ज्वालामुखी
धारावाहिक उपन्यास
सुलगते ज्वालामुखी
लेखिका – डॉ अर्चना प्रकाश
राम चरित मानस में तुलसीदास जी ने लिखा है- होइहै वही जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै शाखा।। लेकिन देशराज को रामायण निरर्थक लगती थी। क्योंकि रामायण व गीता को वे सिर्फ एक किस्सा मानते थे। धर्म व आस्था की श्रेणी में वे इन पुस्तकों को नहीं रखते थे।
लेकिन इस बार के नोएडा प्रवास में वे समीर व तुषार से सपना के प्रेम प्रसंग व वैवाहिक दृढ़ता के विषय में जानकर हतप्रभ थे। दुलारी बेटी सपना उनके सामने थी-
‘‘पापा अगर सिद्धान्त से मेरी शादी न हुई तो मैं जहर खा कर जान दे दू°गी!’’ सपना आ°सुओं से रोने लगी।
दुलारी पुत्री की आ°ख में आ°सू देखकर देशराज का दिल बैठने लगा। उन्होंने आगे बढ़कर सपना को गले लगाया, गालों पर ठहरे आ°सू पोछते हुए बोले- ‘‘बेटा! हम तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती नहीं करेंगे। जिसमें तुम्हें खुशी हो हम वही करेंगे।’’ सुनते ही सपना ह°स पड़ी।
‘‘हम लोग मम्मी को समझा लेंगे’’। समीर ने ढाढ़स दिया।
‘‘तुम हमें जल्द से जल्द सिद्धान्त से मिलवा दो जिससे पापा भी उसे जान समझ लें’’ तुषार ने कहा।
‘‘मैं कल ही कालेज में आप तीनों को सिद्धान्त से मिलवा दू°गी!’’ सपना खुशी से बोली।
अगले दिन निश्चित समय पर देशराज समीर व तुषार के साथ नीली बत्ती की गाड़ी से सपना के कालेज पहु°च गये। सपना पहले से ही सिद्धान्त शर्मा के साथ गेट पर खड़ी थी। देशराज ने दोनों को गाड़ी में बैठा लिया और सेक्टर इक्कीस के मैकडानल रेस्टोरेन्ट आ गये। समीर व तुषार सबके
लिए काॅफी व बर्गर लेने गये और देशराज सिद्धान्त से बाते करने लगे।
‘‘बेटे! आपके पापा क्या करते हैं तथा आपके घर में कौन कौन है?’’
‘‘अंकल! मेरे पापा मनोज शर्मा इंडियन बैंक में मैनेजर हैं और मेरी मम्मी सरोज शर्मा बुटीक चलाती हैं। मेरा छोटा भाई वैभव शर्मा लखनऊ यूनीवर्सिटी से बी.एस.सी. कर रहा है।’’ सिद्धान्त ने कहा।
‘‘आपके माता पिता भी इस विवाह के लिए तैयार हैं क्या?’’ देशराज ने पूछा?
‘‘अंकल हम ब्राह्माण वाले शर्मा नहीं हैं वरन् हम लोग पंजाबी हैं और प्रगतिशील सोच रखते हैं’’, सिद्धान्त बोले।
‘‘हम लोग महार बिरादरी के दलित हैं बेटे और हमसे रोटी और बेटी का सम्बन्ध कोई करता नहीं है’’ देशराज मायूसी से बोले।
‘‘अंकल! आप जहा° चाहें सपना की शादी कर सकते हैं, मुझे कोई एतराज नहीं होगा’’ सिद्धान्त पुनः बोले।
देशराज और उनके गरिमामयी पद को सहसा एक हजार वोल्ट का झटका लगा। अपने प्रशासनिक तेवर नीचे करते हुए वे सिद्धान्त से पुनः बोले- ‘‘बेटे! सपना अब सिर्फ तुम्हीं से शादी करेगी! मैं कल ही तुम्हारे माता पिता से मिलने आऊ°गा, मुझे अपने घर का पता नोट करवा दो।’’
अगले दिन, मनोज शर्मा के छोटे से ड्राइंग रूप में देशराज अपने दोनों बेटों के साथ बैठे थे। देशराज के सामने ही शर्मा दम्पत्ति भी बैठे थे।
‘‘हम जाति बिरादरी के भेद भाव नहीं मानते, लेकिन आपकी बेटी को सिद्धान्त से विवाह के लिए यहा° के रीति रिवाजों व संस्कारों में ढलना होगा’’ मनोज शर्मा ने कहा।
‘‘विवाह की सारी रस्में हमारे रीति रिवाजों से ही होंगी।’’ सरोज शर्मा ने कहा।
‘‘आप लोग जैसा चाहेंगे सब कुछ उसी तरह होगा। मैं आपसे वादा करता हू° कि सपना भी आपके घर परिवार के तौर तरीके जल्द सीख लेगी’’ देशराज विनम्रता से बोले।
‘‘ठीक है आप एक महीने बाद की तारीख तय कर ले’’, शर्मा दम्पत्ति ने कहा।
इतने वर्षों की नौकरी में देशराज को पहली बार ऐसा लगा जैसे वे पुनः अपने नगण्य अस्तित्व वाले अतीत में लौट आये हो।
देशराज व समीर ने बिंदिया को सपना व सिद्धान्त के विवाह की सूचना दी तो वे सदमें से जमीन पर ही गिर पड़ी और चीख चीख कर रोने लगी देशराज ने स्थिति और बिंदिया को दोनो सम्भाला और बिंदिया को खुद को दृढ़ रखने की सख्त हिदायत दी।
दोनों पक्षों द्वारा निर्धारित योजनानुसार बिना दहेज व महंगे लेन देन के पंजाबी रीति रिवाजों से सपना व सिद्धान्त का विवाह हो गया और वह पंजाबी शलवार सूट व कोहनी तक लाल हाथी दा°त की चूड़ियों में सज कर सिद्धान्त के घर आ गई। इस विवाह में देशराज ने अपने गा°व से किसी को नहीं बुलाया। क्योंकि उन्हें डर था कि पंजाबी दामाद की खबर मात्र से ही पूरे गा°व जवार में उनकी नाक ही कट जायेगी।
विवाह के बाद बिंदिया और देशराज उदास बैठे थे।
‘‘गुड़िया गुड्डे के खेल की तरह हमारी बेटी की शादी हो गई’’ बिंदिया उदासी से बोली।
‘‘हम लोगों से बिछड़ते समय सपना न रोई न दुःखी हुई वरन् सिद्धान्त के साथ गाड़ी में ऐसे बैठ गई जैसे घूमने जा रही हो!’’ देशराज ने कहा।
‘‘तुम सच कह रहे हो समय कितना बदल गया है’’ बिंदिया ने जोड़ा।
‘‘बड़े शहरों में जिन्दगी की रफ्तार बढ़ गई है। हमें भी जाति बिरादरी के भेदभाव से आगे निकलना चाहिए। माता पिता जैसे सगे रिश्तों के गर्म
अहसास विलुप्त हो रहे हैं’’, देशराज बोले।
‘‘जब सगे रिश्तों का हाल इतना बुरा है तो चाचा चाची, बुआ, दादी नानी के रिश्ते तो कहीं रह ही नहीं जायेंगे’’ बिंदिया ने कहा।
‘‘समीर व तुषार के लिए भी अब सजातीय बहुओं के सपने न देखना’’ देशराज ने बिंदिया को समझाया।
‘‘वो किसलिए?’’
‘‘क्योंकि पुरानी मान्यताऐं दम तोड़ चुकी हैं। आज का युवा जाति व द्दर्म की जंजीरों को तोड़ उन्मुक्त विहार करने वाला है!’’ देशराज कठोर शब्दों में बोले।
‘‘सपना कल यहा° पगफेरों के लिए आयेगी’’ बिंदिया ने कहा।
अगले दिन सपना पगफेरों के लिए मायके आई तो सास ससुर व ससुराल की तारीफों के पुल बा°धने लगीं। ‘‘ममा! नोएडा में सिर्फ रहने से और पैसे कमा लेने से ही कोई आधुनिक नहीं हो जाता। लेकिन सिद्धान्त के माम डैड वास्तव में खुले विचारों के हैं।’’ अच्छा! ‘‘तुम तो मु°ह देखते ही उनकी मुरीद हो गई!’’ बिंदिया ने उलहना दिया।
‘‘उन लोगों से तुलना करू° तो आप और पापा दोनों ही रुढ़वादी लगते हैं और पुरानी मान्यताओं पर अड़े रहते हैं।’’ सपना ने प्रत्युत्तर दिया।
‘‘कल तुम्हारी विदाई भी करनी है!’’ बिंदिया ने उसकी बात को अनसुना करते हुए कहा।
सपना की विदाई के समय बिंदिया सिद्धान्त को टीका कर के पा°च हजार रुपये की गड्डी देते हुए बोली ‘‘बेटा! ये तुम्हारे खर्चे के लिए हैं! हम तुम्हें समय≤ पर और खर्चा भी देते रहेंगे।’’
‘‘मम्मी जी! पिछले चार वर्षों से माम की बुटीक की सारी भाग दौड़ मैं कर रहा हू° जिसके लिए माम मुझे दस हजार प्रतिमाह देती है। अपना और सपना का खर्चा मैं अपनी कमाई से उठा सकता हू°।’’ सिद्धान्त ने कहा।
सिद्धान्त की बातें सुन कर बिंदिया को लगा कि काश उसके अपने बेटे भी ऐसे खुद्दार होते। बिंदिया जानती थी कि चरित्र और खुद्दारी वो धरोहर है जो साधारण इन्सान को पुरुषोत्तम बना देती हैं। लेकिन उसके अपने बेटों में दोनों का आभाव था।
क्रमशः