धारावाहिक उपन्यास भाग 16 : सुलगते ज्वालामुखी

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धारावाहिक उपन्यास

सुलगते ज्वालामुखी

लेखिका – डॉ अर्चना प्रकाश

यशोदा सिंह व रजत सिंह का बेटा सुशान्त संयोग से गलगोटियाज नोएडा की उसी कोचिंग में पढ़ाई कर रहा था जहा° पर समीर व तुषार पढ़ते थे। इस कोचिंग में इस वर्ष एक लड़की आई जिसका नाम परी था। परी बेहद सुन्दर भी थी। परी हर समय सुशान्त के साथ रहती जिसे देखकर समीर जलभुन जाते।

‘‘दुनिया की हर अच्छी व खूबसूरत लड़की पर मेरा अधिकार है!’’ समीर तुषार से बोला।

‘‘यदि तुम्हारा इशारा परी की ओर है तो तुम्हें सुशान्त से बात करनी चाहिए।’’ तुषार ने समझाया।

‘‘मैं उसे पटाने के बेजोड़ नुस्खे अपना चुका हू° मगर वह गुड़ की मक्खी की तरह सुशान्त से ही चिपकी रहती है’’, समीर चिढ़कर बोले।

‘‘फिर तो तुम्हारे लिए खासी मशक्कत है’’ तुषार ने कटाक्ष किया।

‘‘कल मैंने कोचिंग के बाद सुशान्त को अल्टीमेटम दिया कि परी से दूर रहे! तब वह बोला कि परी उसे बचपन से राखी बा°धती है!’’ समीर ने ह°सते हुए कहा।

‘‘भाई बहन के रिश्ते की बात से तुम्हें सुकून हुआ होगा!’’ कहते हुए तुषार मुस्कराया।

‘‘कल वो परी से मेरी दोस्ती करा देगा। फिर तुम देखना कैसे मैं उसे शीशे में उतारता हू°!’’ समीर ने कहा!

‘‘तुम्हारी ये दीवानगी अब जग जाहिर हो चुकी है! मैं ये सब कुछ सपना व सिद्धान्त को भी बता चुका हू°!’’ तुषार ने कहा।

‘‘जैसे बारिश में पपीहा पी कहा°, पी कहा° की रट लगाता है वैसे ही मेरा दिल सोते जागते परी रटता रहता है।’’ समीर ने कहा!

‘‘कल मैं परी से मिलू°गा और उसे तुम्हारे लिए समझाऊ°गा!’’ तुषार ने भाई को आश्वस्त किया।

अगले दिन तुषार सपना के साथ परी से मिलने गया।

‘‘मेरा भाई तुम्हें पागलों की तरह चाहता है!’’ तुषार परी से कह रहा

था।

‘‘तुम उसे पागलखाने भेज दो! मैं पागलपन की दवा नहीं हू°।’’ परी दृढ़ता से बोली।

‘‘तुम्हारे मम्मी पापा कहा° रहते हैं?’’ सपना से पूछा?

‘‘मेरे पेरेन्ट्स लखनऊ में रहते हैं! मैं उनका मो. नम्बर ही दे सकती हू°।’’ परी गुस्से में बोली।

शाम को परी रजत व यशोदा को समीर व उसके भाई बहन का किस्सा सुना रही थी तभी सुशान्त ने उन्हें समीर की परी के प्रति दीवानगी की सारी कथा सुनादी जिसे सुन कर रजत व यशोदा ह°स पड़े।

‘‘लेकिन ये समीर किसका बेटा है और परी के पीछे क्यू° पड़ा है?’’ यशोदा ने सुशान्त से पूछा।

‘‘आजकल ये फैशन है कि लड़के सुन्दर लड़कियों से दोस्ती करते हैं कुछ दिन साथ रहते हैं फिर बेकअप पार्टी कर के नया साथी ढूढ़ लेते हैं।’’ ये सुशान्त था।

‘‘बेटा इन्सान का चरित्र ही उसकी धरोहर होता है। तुम मुझे समीर के माता पिता का पता लाकर दो तो मैं उनसे समीर के विषय में बात करू°।’’ यशोदा ने कहा।

‘‘दो तीन दिनों में ही मैं आपको समीर की सारी जानकारी दे दू°गा माम!’’ सुशान्त बोले।

इस घटना के दो तीन दिन बाद ही सुशान्त ने यशोदा को समीर के पापा का नाम पता व मो. न. सब एक पर्ची पर लिख कर दे दिये जिसे पढ़ते ही यशोदा को जमीन घूमती हुई सी नजर आई और वह बोली –

‘‘ये तो देशराज महार का बेटा है।’’ पढ़ाई के दिनों में हम लोगों का साथी था। लेकिन अभी लगभग बारह साल पहले हम इनके घर गये थे। लेकिन इनकी पत्नी व बच्चों के व्यवहार के कारण दुबारा नहीं गये।

यशोदा को कालेज के दिनों के देशराज की रूढ़िवादिता के अनेकों किस्से याद आ गये। प्रत्यक्ष में वह सुशान्त से बोली-

‘‘समीर के पापा को मैं अच्छी तरह जानती हू° वे पक्के दलितवादी है और परी को कभी पसन्द नहीं करेंगे।’’

‘‘तब तो परी के माम डैड को तुरन्त बुलाना चाहिए! आप आज ही उन्हें फोन करिये’’ सुशान्त ने कहा।

परी के माता पिता जीनत व अहमद अगले दिन ही यशोदा के घर नोएडा आ गये।

‘‘माम! मैं तो इस सिरफिरे लोफर से बात तक नहीं करना चाहती थी लेकिन सुशान्त ने मुझे इस पचड़े में डाला है।’’ कहते हुए परी जीनत से लिपट गई।

‘‘समीर करता क्या है?’’ यशोदा ने पूछा

‘‘हर समय अपने पिता के आई.ए.एस. के ठसके मारता रहता है। पिछले आठ साल से आरक्षण कोटे से आई.ए.एस. में बैठ भी रहा है।’’ परी ने खीज कर कहा।

‘‘वो कैसे?’’

‘‘क्योंकि इसके पापा ने इसके हाईस्कूल सर्टीफिकेट में इसकी उम्र आठ वर्ष कम लिखाई है’’ परी ने कहा।
अगले दिन सब साथ मिल कर देशराज के घर पहु°चे अचानक इतने वर्षों बाद सभी को साथ देखकर देशराज हैरान थे। अपना बेटा समीर जिसे वे बहुत सीधा समझते थे, उसकी लड़कियों के साथ दिल फेंक हरकते सुनकर उनके दिमाग में सीटिया° बजने लगीं।

‘‘आप लोग निश्चिन्त होकर जाये, मैं समीर को समझा दू°गा। वह अब ऐसा नहीं करेगा।’’ देशराज ने कहा।

देशराज के वक्तव्य से सब चले गये तब उन्होंने बिंदिया को समीर की सारी हरकते बताई। रात के खाने के बाद उन्होंने समीर को अपने कमरे में बुलाया ‘‘बेटे! आज के बाद से परी का नाम भी न लेना। साथ ही दूसरी लड़कियों से भी आ°खे चार करना बन्द कर दो। दोस्ती अफेयर, लिव इन के लिए पूरी जिन्दगी पड़ी है अभी सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दो।’’ देशराज कठोरता से बोले।

‘‘ऐसी धमकी आप हमें ही क्यों देते हैं? अगर आपको हमसे जरा भी लगाव होता, तो परी के मम्मी पापा से मेरी शादी की बात करते’’ समीर भड़क उठा।

‘‘ये शादी कभी नहीं हो पायेगी, तुम्हें अपनी बिरादरी की लड़की से शादी करनी चाहिए।’’ देशराज कठोरता से बोले।

‘‘आप भी समझ लीजिए पापा! बिरादरी से मेरा कोई लेना देना नहीं है। मैं तो जल्द से जल्द परी को हासिल करके रहू°गा!’’ कहते हुए समीर कमरे से निकल गया।

कुछ दिनों में समीर किसी बहाने से परी को अपने साथ ले गया और उसके साथ जबरदस्ती करने लगा। परी ने शोर मचा कर आस पास के लोगों को इकट्ठा कर लिया। सभी लोगों के साथ परी ने भी समीर की पिटाई की और उसे थाने में बन्द करा दिया। इससे समीर की फोटो पूरी घटना के साथ अखबार में छप गई।

समीर कोचिंग से निकाल दिया गया। आरक्षण की बैसाखी से आई.ए.एस. बनने का सपना कपूर की तरह उड़ चुका था। यू° भी पिछले आठ वर्षों से वह प्रिलिम्स भी नहीं निकाल पाया था। परी की घटना के बाद दूसरी दो तीन लड़कियों ने भी समीर के खिलाफ थाने में शिकायत लिखवा दी। समीर को जेल हो गई और अब वह सिर्फ एक अपराधी था।

देशराज भी समझ चुके थे कि हायर कोर्ट में अपील करके समीर की सजा भले ही कम हो जाय। लेकिन प्रशासनिक सेवायें अब उसके लिए लोमड़ी के अंगूर की तरह हो चुकी हैं।

क्रमशः

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