धारावाहिक उपन्यास भाग 18 : सुलगते ज्वालामुखी

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धारावाहिक उपन्यास

सुलगते ज्वालामुखी

लेखिका – डॉ अर्चना प्रकाश

अपने पद की सारी शक्ति लगा कर तथा बड़े वकील को मोटी रकम देकर देशराज समीर की जमानत इस शर्त पर करा पाये कि अपर कोर्ट में पुनः अपील करेंगे। बेटे समीर के सभी दुर्गणों का दोष बिंदिया देशराज पर ही मढ़ देती।

‘‘अपनी नौकरी की व्यस्तता में तुमने मेरे बेटे पर कभी ध्यान नहीं दिया और इसका भविष्य बिगड़ गया’’, बिंदिया ने कहा।

‘‘कभी आपने ये जानने की जरूरत नहीं समझी कि हम लोग क्या और कैसे पढ़ रहे हैं?’’ समीर ने पिता को धौंस दी।

‘‘अपनी गलत आदतों और असफलता का आरोप मुझ पर लगाते। हुए कुछ भी शर्म नहीं तुम्हें?’’ ये देशराज थे।

‘‘बेटा अब ये बताओ कि तुम करना क्या चाहते हों?’’ बिंदिया ने प्यार से समीर से पूछा।

‘‘छोटी मोटी नौकरी तो मैं कर नहीं सकता मम्मी। पापा यदि कुछ जमा पू°जी हमें दें तो मैं इलेक्ट्रानिक सामान बेचने का बिजनेस शुरू कर सकता हू°’’, समीर ने कहा।

‘‘मैं तुम्हे बीस लाख रुपये देता हू° और करीब पचीस लाख का लोन भी बैंक से दिला सकता हू°’’ देशराज कुछ नर्म हुए।

‘‘इस तरह टी.वी. फ्रिज व माइक्रोवेव ओवन की बिक्री के लिए समीर इलेक्ट्रानिक्स नाम से शो रूप लगभग पचास लाख की लागत से खुल गया।’’ जिसमें समीर प्रतिदिन जाने लगे। अब देशराज व बिंदिया समीर के विवाह के विषय में चर्चा कर रहे थे।

‘‘समीर का विवाह अति शीघ्र हो जाना चाहिए, अन्यथा वो अपनी दिल फेंक हरकतों से बिजनेस भी गवा° बैठेगा’’, देशराज ने कहा।

‘‘यू° तो मैंने अपनी बहनों व सहेलियों से समीर के लिए लड़की ढूढ़ने के लिए कह दिया है। किन्तु समीर परी के अलावा और किसी से शादी नहीं करेगा।’’ बिंदिया ने चेताया।

‘‘समीर आजकल जीप से दुकान जाता है, ये उसके पास कहा° से आई?’’ देशराज ने पूछा।

‘‘उसने तुमसे और पैसे मांगना ठीक नहीं समझा तो मैंने मेरे एकाउण्ट से उसे जीप के लिए चेक दे दिया’’, बिंदिया ने कहा।

‘‘तुमने मुझसे पूछने की जरूरत भी नहीं समझी क्यों?’’ देशराज बोले।

‘‘दिन भर में दस बार घर से शो रूम और शो रूम से घर आना जाना वह बिना गाड़ी के कैसे करता? ये सिर्फ मा° ही समझ सकती है।’’ बिंदिया का स्वर तल्ख था।

देशराज दलित साहित्य के मुरीद थे। वे मुम्बई के शरण निम्बाले व डा. धर्मकीर्ति की पुस्तकें पढ़ते रहते थे। इतने वर्षों में देशराज समझ चुके थे कि सवर्णों व दलितों के बीच वैमनस्य की गहरी खाई का मुख्य आधार दलित साहित्य ही हैं। जिसमें सवर्ण पूर्वजों द्वारा दलितों पर किये गये अत्याचारों को अतिशयोक्ति परक ढंग से उकेरा गया हैं। इसे पढ़ते ही दलित भाई सवर्णों के प्रति नफरत व दुश्मनी से भर जाते हैं। देशराज के मित्र मधुकर से इसी विषय में वार्तालाप चल रहा था।

‘‘अगर हम दलित साहित्य को निरा सच मान ले तो भी सवर्ण पूर्वजों द्वारा दलित पूर्वजों पर किये गये अन्याय व उत्पीड़न की कथाओं को निरन्तर कहने सुनने व दोहराने से किसी सामंजस्य की उम्मीद की जा सकती है क्या?’’ मधुकर ने कहा।

‘‘वो जख्म इतने गहरे हैं कि हम उसे अनदेखा भी तो नहीं कर सकते।’’ ये देशराज थे।

‘‘देश के नव निर्माण के लिए सभी को साथ मिलकर हमदर्दी व दोस्ती की कसमें खानी होंगी। अन्यथा हिन्दू व हिन्दुुत्व दोनों का अस्तित्व विलीन हो सकता है’’ मधुकर बोले।

‘‘रणजीत कबीर पन्थी भी लिखते हैं कि जब तक दलित व सवर्णों के बीच रोटी बेटी का सम्बन्ध न होगा, दलित व सवर्ण के बीच की दरार कभी समाप्त न होगी’’, देशराज ने कहा।

‘‘मुझे अब जाना चाहिए।’’ मधुकर बोले।

मधुकर चले गये लेकिन देशराज इन्हीं विचारों में डूबे हुए ड्राइंग रूप में बैठे थे। तभी बिंदिया वहा° आई-

‘‘किस चिन्ता में बैठे हो जरा हम भी तो सुने?’’ बिंदिया ने कहा। ‘‘यू° ही घर बार इधर उधर की सोच रहे थे’’, देशराज बोले।

‘‘समीर के लिए मेरे पास दो रिश्ते आये हैं। दोनों लड़किया° इन्टर पास है और बेहद सुन्दर भी!’’ बिंदिया बोली।

‘‘समीर के दिमाग में परी इस कदर छाई है कि कोई भी दूसरी लड़की उसे पसन्द ही न आयेगी। पिछले दो सालों में उसे जो भी लड़किया° दिखाई उसने साफ मना कर दिया’’ देशराज बोले।

‘‘अब तो तुषार भी लोअर सबार्डिनेट में पिछले एक साल से काम कर रहा है। हमें उसके विवाह का भी सोचना है’’ बिंदिया बोली।

‘‘मैं भी चाहता हू° कि दोनो बेटों की जल्दी शादी करके हम भी अपने कर्तव्यों की इति श्री कर लें।’’ ये देशराज थे।

‘‘मैं समझती हू° हमें परी के माता पिता से एक बार अवश्य मिलना चाहिए’’ बिंदिया पति को समझा रही थी।

‘‘ठीक हैं! कल या परसों में मैं सपना व सिद्धान्त को लेकर जीनत व अहमद से मिलने जाऊ°गा। जिनकी मैं हमेशा तौहीन करता रहा, समीर के लिए अब उनकी खुशामद करू°गा’’ देशराज बोले।

‘‘हमारे पास इसके अलावा कोई रास्ता भी नहीं है, इन्सान औलाद के लिए क्या-क्या नहीं करता है!’’ बिंदिया तटस्थ थी।

दो दिन बाद सपना व सिद्धान्त के साथ देशराज नीली बत्ती की सरकारी गाड़ी से लखनऊ पहु°चे। फलों मेवे व मिठाई के डिब्बों के साथ वे तीनों जीनत के घर उसके ड्राइंग रूम में बैठे थे। ड्राइंग रूप की साज सज्जा से ही उन्हें जीनत व अहमद के निम्न आय वर्ग का होने का अन्दाजा लग चुका था, फिर भी समीर की जिद के कारण वे अहमद से बोले-

‘‘यू° तो हम विद्यार्थी जीवन से दोस्त हैं, लेकिन मैं आप दोनों से अपने बेटे समीर के लिए परी का हाथ मा°गने आया हू°। उसे मैं बहू नहीं बेटी की तरह रखू°गा ये मेरा वादा है आपसे।’’ ‘‘एस.डी.एम. साहब मैं परी को ऐसे लोगों को कदापि नहीं सौंप सकता, जो नारी का सम्मान ही न करें!’’ अहमद बोले।

देशराज के लाये हुए फल मिठाई के टोंकरे अहमद ने स्वयं ही उठा कर देशराज की गाड़ी में रख दिये। अहमद व जीनत की इस अप्रत्यक्ष मनाही से देशराज टूट गये और वे लखनऊ से तुरन्त ही नोएडा वापस आ गये। उन्होंने बिंदिया व समीर को अहमद व जीनत का फैसला सुनाया तो दोनों के चेहरे शर्म से झुक गये। तीनों ही किंकर्तव्य विमूढ़ से बैठे थे।

‘‘प्रशासनिक सेवाओं के सुदीर्घ अनुभवों से ये निष्कर्ष निकलता है कि जाति प्रथा में एक बार जिसे जाति से अलग किया गया उसे पुनः वापस मिलाने का रिवाज न होने से हिन्दुओं में अनेक जातिया° धीरे-धीरे इस्लाम की ओर झुकी या फिर ईसाइयत अपना ली। वे हिन्दुओं से सदा के लिए दूर हो गये।’’ ये देशराज थे।

‘‘शायद इसीलिए विश्व में ईसाईयों व मुस्लिमों की तुलना में हिन्दू बहुत कम हैं’’, समीर बोला।

‘‘सारे हिन्दू एक साथ एकजुट कभी नहीं हो सकते। क्योंकि जाति प्रथा व अछूतपन के विचारों से पूरा ढा°चा ही खोखला हो चुका है’’, बिंदिया ने कहा।

‘‘प्रशासन व जीवन के तमाम अनुभवों से ये तथ्य निकलता है कि दलित व सवर्ण जब तक एकजुट नहीं होता, तब तक हिन्दू संगठित नहीं हो सकते।’’ देशराज बोले।

‘‘तो फिर तुषार का विवाह उसकी प्रेमिका नीरजा मिश्रा से क्यों नहीं करा देते’’ बिंदिया ने तर्क दिया।

‘‘अवश्य कराऊ°गा!’’ देशराज ने कहा तो सभी हतप्रभ थे।

‘‘समीर व परी का क्या सोचा ये भी तो कहो’’ बिंदिया ने उन्हें कुरेदा।

‘‘उसका भी कोई न कोई रास्ता निकाल लेंगे! वैसे समीर अगर परी को मना ले तो कोर्ट मैरिज का रास्ता साफ है’’, देशराज बोले।
उसी दिन रात्रि भोजन के समय देशराज ने तुषार को बुलाया।

‘‘बेटे नीरजा मिश्रा से तुम्हारा चक्कर कब से चल रहा है’’ देशराज ने पूछा।

‘‘मेरी नौकरी लगने के एक साल पहले से’’ तुषार ने जवाब दिया।

‘‘क्या उसके माता-पिता इस विवाह के लिए तैयार हैं?’’ देशराज ने पुनः प्रश्न किया।

‘‘नहीं पापा वे लोग इस विवाह के सख्त खिलाफ हैं तभी तो उन लोगांे ने नीरजा का घर से निकलना तक बन्द कर रखा है’’, तुषार ने प्रत्युत्तर दिया।
‘‘फिर तुम उसे मना कर कोर्ट मैरिज कर लो। मैं सब व्यवस्था करा दू°गा।’’ देशराज ने समझाया।

पापा! मैं इस विषय में नीरजा से बात कर चुका हू°! वह मुझे बेहद प्यार करती हैं और कोर्ट मैरिज के लिए भी तैयार हैं।’’ तुषार ने पिता को बताया।

‘‘तुम कल ही अपने आफिस की विश्वस्त सहकर्मी को नीरजा के घर भेज कर कोर्ट मैरिज के पेपर्स पर दस्तखत करा के कोर्ट में जमा कर दो। फिर एक महीने बाद शादी होगी।’’

‘‘ठीक है पापा मैं कल ही अपनी सहयोगीय श्रुति को नीरजा के घर भेज कर शादी के पेपर्स तैयार कराता हू°’’, तुषार बोले।

लगभग एक महीने बाद तुषार की सहकर्मी श्रुति नीरजा के घर गई और बहाने से उसे अपने साथ कोर्ट में ले आई। देशराज और तुषार वहा° पहले से मौजूद थे। नीरजा ने तुषार को और तुषार ने नीरजा को जयमाला पहना दी। फिर फैमिली कोर्ट के जज के सामने दोनों ने दो तीन दस्तख़त किये और जज साहब ने पति पत्नी के रिश्ते पर अदालत की मुहर लगा सर्टीफिकेट भी उन्हें दे दिया। जिसमें देशराज व श्रुति की गवाही के हस्ताक्षर थे।
नीरजा और तुषार ने देशराज के चरण स्पर्श किए तो उन्होंने दोनों को ढेरों आशीष दिये और नीरजा के हाथों में पचास हजार का चेक थमाते हुए बोले-

‘‘आज से तुम हमारी बहू हो ये तुम्हारी मु°ह दिखाई के रूपये हैं, अपनी पसन्द की ज्वैलरी खरीद लेना।’’

‘‘अभी कुछ दिन तुम मायके में रह लो फिर मैं और पापा आकर तुम्हें अपने साथ लें आयेंगे!’’ तुषार ने प्यार से समझाया।

सबने मिलकर पास के रेस्टोरेन्ट में कुछ जलपान किया फिर नीरजा श्रुति के साथ अपने घर आ गई जैसे कुछ हुआ ही न था।

क्रमशः

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