धारावाहिक उपन्यास भाग 19 : सुलगते ज्वालामुखी
धारावाहिक उपन्यास
सुलगते ज्वालामुखी
लेखिका – डॉ अर्चना प्रकाश
वैभव और रिश्म की दोस्ती को बढ़ावा देने के लिए मुशीरा ने रश्मि को उसके जन्म दिन पर ओप्पों का मोबाइल उपहार में दिया और उसकी सारी एप्स रश्मि को सिखाने का जिम्मा वैभव को सौंप दिया। इसी बहाने वैभव रश्मि के साथ समय बिताने लगा।
मैसेज करते करते दोनों सही में एक दूसरे को मैसेज करने लगे, फिर मिस्डकाल के जरिये दोनों सच में एक दूसरे को मिस करने लगे। इन्टरनेट के युग में जब सभी कार्य विद्युत गति से हो रहे हैं तो दोस्ती को प्यार में बदलते कितनी देर लगती? मुशीरा रश्मि से अक्सर चुहल करती- अब कोई हमसे क्यू° बात करेगा? अब तो वैभव से बात करने से फुर्सत मिले तब न!
‘‘क्या भाभी! आप भी! आप ही तो मेरी बेस्ट फ्रेंड है!’’ रश्मि शर्माते हुए कहती।
‘‘अगर मैं तेरी बेस्ट फ्रेंन्ड हू° तो तुझे सच बता! वैभव तुझे अच्छा लगता है न?’’ मुशीरा ने पूछा।
‘‘हू° ये तो है!’’ कहते हुए रश्मि ड्राइंग रूम की तरफ भाग जाती हैं।
मुशीरा भी मुस्कराती है और ये खबर वेदान्त को बताती है।
‘‘क्या सच में?’’ वेदान्त फोन पर बोले।
‘‘हा°! रश्मि वैभव से प्यार करने लगी है। दोनों को विवाह बन्धन में बा°धने का समय आ गया है।’’ मुशीरा ने कहा। ‘‘मैं तो खुशी से पागल हो रहा हू°! मैं कल ही मा° व बाबूजी से इस विषय में बात करू°गा’’, वेदान्त ने प्रत्युत्तर दिया।
अगली सुबह वेदान्त पिता सत्यशरण व माता सीता देवी के साथ बैठे
थे।
‘‘बाबू जी और मा°! अपनी रश्मि के लिए लड़का मिल गया है, और हम सब से परिचित भी हैं’’, वेदान्त ने कहा।
‘‘ये बहुत खुशी की बात है बेटा! लेकिन वो लड़का है कौन?’’ सत्यशरण ने पूछा।
‘‘वैभव और रश्मि एक दूसरे से प्यार करते हैं अम्मा। रश्मि ने मुशीरा से ये सब बताया है’’, वेदान्त ने माता से कहा।
‘‘फिर तो वैभव के माता पिता से तुम्हें तुरन्त बात करनी चाहिए।’’
‘‘मुशीरा ने वैभव से उसके मम्मी पापा का पता व फोन न लेकर मुझे दे दिया है। वे लोग नोएडा में रहते हैं’’ वेदान्त ने कहा।
‘‘हमें कल ही नोएडा चलकर उन लोगों से सारी बात तय करनी चाहिए’’, सत्यशरण ने सुझाव दिया।
‘‘ठीक है बाबू जी! मैं अपनी और आपकी टिकट करा लेता हू° और वैभव को साथ ले चलने की कोशिश करता हू°’’, वेदान्त ने कहा।
‘‘वैभव साथ रहेगा तो रिश्ता तय करना आसान होगा’’, ये सत्यशरण
थे।
वेदान्त अपने पिता सत्यशरण के साथ वैभव के पिता मनोज शर्मा के छोटे से ड्राइंग रूप में बैठे तो लड़के वालों की हैसियत उन्हें बहुत अच्छी नहीं लगी! फिर भी वे रश्मि का विवाह वैभव शर्मा से करने को विवश थे। क्योंकि बड़ी मुश्किल से रश्मि के लिए कोई रिश्ता मिला था।
सत्यशरण के साथ वेदान्त और मनोज शर्मा के साथ उनकी पत्नी सरोज सभी आमने सामने बैठे थे। तभी सपना वैभव के साथ ट्रे में चाय नाश्ता लेकर आई और सभी को देने लगी! मनोज शर्मा ने सपना का परिचय कराया- ‘‘वेदान्त जी! ये हमारी बड़ी बहू सपना म्हार है। इनके
पिता देशराज म्हार इस समय मेरठ में कमिश्नर हैं लेकिन परिवार यहीं नोएडा में रहता है।’’ मनोज शर्मा ने कहा।
‘‘ये बहुत अच्छी बात है कि आप इतनी प्रगतिशील सोच के व्यक्ति हैं’’, ये सत्यशरण थे।
‘‘वैभव रश्मि से प्यार करता है, इसलिए हमें ये रिश्ता मंजूर है। हमारे लिए सपना व रश्मि दोनों मेरी बेटिया° हैं’’, मनोज शर्मा ने कहा।
‘‘भाई साब मैंने भी उस जमाने में मनोज जी से प्रेम विवाह किया था। मेरा मानना है कि दो लोगों के प्यार के बीच जाति बिरादरी व धर्म की दीवार नहीं आनी चाहिए’’, सरोज शर्मा ने कहा।
‘‘मैं आपसे पूरी तरह सहमत हू°, मैं आपको बता दू° कि मेरी बहू मुस्लिम है और मेरे घर में ईद व दीवाली दोनों त्योहार धूमधाम से मनाये जाते हैं’’, सत्यशरण बोले।
‘‘अभी मैं ग्यारह सौ रु. का शगुन वैभव जी के हाथ में रखता हू°, लेकिन शुभ मुहूर्त निकलवा कर वैभव व रश्मि की मंगनी लखनऊ से द्दूमद्दाम से करू°गा’’ वेदान्त ने सभी से कहा।
पिता सत्यशरण के इशारे पर वेदान्त ने ग्यारह सौ रु. के नोट मनोज शर्मा व सरोज जी के हाथों में देकर उनके चरण स्पर्श किए।
रात की ट्रेन से पिता पुत्र दोनों ही लखनऊ आ गये।
देशराज की दलितवादी सोच को लेकर वेदान्त परेशान थे। लखनऊ आते ही सबसे पहले वे मुशीरा से बोले,
‘‘वैभव के बड़े भाई सिद्धान्त का पत्नी यानि रश्मि की जेठानी देशराज म्हार की बेटी सपना हैं। मुझे जानबूझकर मक्खी निगलनी पड़ेगी, क्या करू°?’’
‘‘हमारे ग्रुप में देशराज म्हार ही सबसे ज्यादा सवर्ण विरोधी थे। इस रिश्ते से उनकी सवर्णों के प्रति नफरत व दलित सोच अवश्य बदलेगी’’,
मुशीरा ने समझाया। ‘‘मैं रश्मि की शादी बहुत धूमधाम से करना चाहता हू°, मैंने बचपन से उसे बेहद प्यार किया है’’, वेदान्त ने कहा।
‘‘आप सिर्फ तारीख तय करिये मंगनी तिलक व शादी का सारा खर्च मैंने इकट्ठा कर रखा है।’’ मुशीरा ने कहा।
‘‘वाह! तुमने तो मुझे सरप्राइज ही दे डाला है’’, वेदान्त बोले।
‘‘रश्मि मेरे लिए सगी बहन से बढ़कर हैं! मैं अम्मा जी बाबू जी पर इस शादी का जरा भी बोझ नहीं पड़ने दू°गी!’’ ये मुशीरा थी!
‘‘तुम सचमुच बहुत अच्छी हो शम्मो। मैं मा° व बाबू जी से कह कर शादी की तारीखें निकलवाता हू°’’, वेदान्त ने कहा।
सीता देवी ने पंडित जी से बात की तो उन्होंने अगले माह की बीस, इक्कीस व बाइस तारीखें मंगनी, तिलक व शादी के लिए निश्चित कर दी। पुराने सोने की सीतारामी सीता देवी अपने सन्दूक से निकाल कर लाई फिर वेदान्त के हाथों में देते हुए बोली-
‘‘मेरी शादी में मुझे मिली थी इसे बेचकर रश्मि के लिए नये डिजाइन के जेवर खरीद लो बेटा। बाकी का खर्चा गाजीपुर के खेत बेच कर पूरा हो जायगा’’, सत्यशरण ने कहा।
‘‘जरा सुनो ‘शम्मो’ मा° बाबू जी खेती और गहने बेचकर रश्मि की शादी का खर्चा उठायेंगे!’’ वेदान्त ने मुशीरा से कहा।
‘‘मम्मी जी! बाबू जी! प्लीज अपना सब कुछ आप लोग सम्भाल कर रखें! कुछ भी बेचने की जरूरत नहीं है, रश्मि के भाई भाभी दोनों कमाते हैं और उसके विवाह के लिए मैंने अलग से रुपये जोड़ रखे हैं’’, मुशीरा ने समझाया!
‘‘रश्मि की शादी ऐसी शानदार करेंगे कि सब देखते रह जायेंगे।’’ वेदान्त ने पिता से कहा।
तभी मुशीरा ने वेदान्त के हाथों से लेकर सीतारामी सीता देवी के गले में पहना दी। सीता देवी व सत्यशरण दोनों ही ह°स पड़े।
‘‘हम जानते हैं कि हमारी बहू लाखों में एक है!’’ सीता देवी ने कहा।
वेदान्त ने पा°च कमरे होटल महाराणा में मनोज शर्मा के रिश्तेदारों व बारातियों के लिए बुक कर दिये। होटल के ही बैंक्वेट हाल में शादी मंगनी व तिलक की व्यवस्था भी कर दी!
‘‘ये देखो! रश्मि मैं तुम्हारे लिए क्या-क्या लाई हू° इसमें जो तुम्हें पसन्द न हो साफ बता दो। मैं बदल कर दूसरा ले आऊ°गी’’, मुशीरा ने रश्मि के हाथ मैं कुछ पैकट्स पकड़ाते हुए कहा।
‘‘आप की पसन्द कभी खराब नहीं हो सकती भाभी मेरे लिए साड़ी सूट व लह°गा आप जो भी लाई है मैं उसे ही पहनू°गीं!’’ रश्मि ने कहा।
हीरे की मंगनी की अंगूठिया° देखते हुए सीता देवी बोली-
‘‘इतना महंगा हीरा लाने की क्या जरूरत थी?’’
‘‘जरूरत थी मा° जी! दूल्हें के लिए नवाबी सूट शेरवानी और दूसरे कपड़ों की नाप वैभव जी को साथ ले जा कर दिलवा आई हू°। जल्दी ही सिलकर मिल जायेंगे।’’ मुशीरा ने कहा।
‘‘बेटी! अपने और बच्चों के लिए भी कुछ कपड़े वगैरह खरीद लो! बउवा को तो कुछ होश है नहीं!’’ सीता देवी ने कहा।
वैभव और रश्मि के विवाह में मनोज शर्मा के बरातियों में वेदान्त को देशराज भी मिले। अनेक वर्षों के अन्तराल के बाद पहली बार देशराज बड़े हौसले व हुलास के साथ वेदान्त से मिले।
‘‘कभी हम सिर्फ सहपाठी थे लेकिन अब रिश्तेदार बन चुके हैं। हमारे बीच रोटी बेटी का सम्बन्ध हो चुका है!’’ देशराज ने कहा।
‘‘मैं तो पहले भी तुम्हें अपना सच्चा दोस्त मानना था लेकिन तुम जातिवादी थे’’, वेदान्त ने कहा।
‘‘अब मेरी बेटी सपना और तुम्हारी बहन रश्मि एक ही रसोई में खाना खायेगी इससे ज्यादा समीपता और क्या होगी?’’ देशराज बोले।
‘‘मेरा विवेक जाग चुका है, देश में एक नये युग की शुरुआत हो चुकी है, आओ गले मिलते हैं’’ देशराज पुनः बोले।
देशराज स्वयं ही आगे बढ़कर वेदान्त के गले लग गये। वेदान्त की आ°खों में आ°सू आ गये, ये सोचकर कि इतनी सी बात समझने में कितना वक्त लगा दिया और मित्रता का धर्म भी भुला दिया।
क्रमशः